
अजमेर नगर की स्थापना चैहान राजा अजयराज ने की। इस नगर का मूल नाम ‘अजयमेरू’ था। 1 नवम्बर 1956 को राजस्थान का 26 वां जिला अजमेर बना।अजमेर राजस्थान का हृदय’, ‘भारत का मक्का’, ‘राजपूताना की कुंजी’ के नाम से प्रसिद्ध है।
जिला अजमेर, राजस्थान, भारत।
मुख्य बिंदु
एकीकरण के समय राजस्थान का एकमात्र केन्द्र शासित प्रदेश अजमेर – मेरवाड़ा।
अजमेर-मेरवाड़ा का प्रथम व एकमात्र मुख्यमंत्री – हरिभाऊ उपाध्याय ।
अजमेर – मेरवाड़ा राजस्थान में 1 नवम्बर 1956 को राज्य पर्नगठन आयोग की सफारिश पर राजस्थान में मिलाया ।
यह राजस्थान का अन्तर्वर्ती जिला जिसकी सीमा किसी भी अन्य राज्य या देश से नहीं लगती।
राजस्थान के अजमेर जिले की आकृति त्रिभूजाकार मानी गई। अजमेर जिला राजस्थान का एक खण्डित जिला है, जो अजमेर व टॉड़गढ़ में विभक्त है।
न्युनतम अन्तर्राज्यीय सीमा बनाने वाला संभाग ।
राजस्थान का मध्यवर्ती संभाग ।
सभी छः संभागों की सीमा से लगने वाला संभाग ।
यह राजस्थान का संपूर्ण साक्षर जिला है।
अरावली पर्वतमाला का सबसे कम विस्तार अजमेर जिले में है।
अरावली पर्वतमाला – मध्यवर्ती अरावली प्रदेश मुख्यतः अजमेर जिले में फैला है।
मध्यवर्ती अरावली की सबसे ऊंची चोटी तारागढ़ (873 मी.) अजमेर है।
अजमेर
राजस्थान के मध्य में स्थित अजमेर एक बहुत ही रोचक अतीत वाला एक छोटा सा शहर है और आज की दुनिया में संस्कृति, शिक्षा, राज्य और निजी स्वामित्व वाले औद्योगिक और बुनियादी ढांचा प्रतिष्ठानों के विकास और विकास के बढ़ते पहलू व्यापार के प्रति आकर्षण की ओर बढ़ रहे हैंपर्यटन और जिले में निवेशअरावली पर्वतमाला की पहाड़ियों से घिरी सुरम्य घाटी में 132 कि.मी. वर्तमान राज्य की राजधानी के पश्चिम में – जयपुर अजमेर का ऐतिहासिक शहर है – एक हरा नखलिस्तान, बंजर पहाड़ियों से लिपटा हुआ, जिसे 7 वीं शताब्दी में राजा अजय पाल चौहान द्वारा स्थापित किया गया थाअजमेर का नाम ‘अजय मेरु’ या अजेय पहाड़ी के नाम पर पड़ा। यहां उन्होंने भारत का पहला पहाड़ी किला तारागढ़ बनवाया। 12वीं शताब्दी के अंत तक युद्ध और शांति के समय तक यह चौहान वंश का शक्ति केंद्र बना रहा। शांति और बलिदान के माध्यम से।
आज सैकड़ों साल बाद अजमेर हिंदुओं के साथ-साथ मुसलमानों के लिए भी एक लोकप्रिय तीर्थस्थल है। महान सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती के अंतिम विश्राम स्थल के रूप में। दुनिया भर के मुसलमान दरगाह शरीफ का सम्मान करते हैं, जहां संत को दफनाया जाता है और स्थानीय रूप से हिंदुओं और मुसलमानों दोनों द्वारा समान रूप से सम्मानित किया जाता है।
इसके अलावा, पुष्कर जाने के लिए अजमेर भी लगभग 14 किलोमीटर का आधार है। दूर। भगवान ब्रह्मा का निवास पुष्कर झील हिंदुओं के लिए एक पवित्र स्थान है, जहां वे विशेष रूप से कार्तिक के महीने में डुबकी लगाते हैं और आध्यात्मिक रूप से प्रेरित माने जाते हैं।
इस प्रकार, अजमेर एक आदर्श स्थान है जिसे भारतीय संस्कृति, नैतिकता के प्रदर्शन और विविध धर्म, समुदाय, संस्कृति, भाषा विज्ञान आदि के व्यापक ढेरों के सही मिश्रण के प्रदर्शन के लिए प्रतीक बनाया जा सकता है, जो सभी शांति और सद्भाव में सह-अस्तित्व में हैं। स्थानीय हिंदुओं और मुसलमानों के अलावा कई समुदाय जैसे गुजराती, मराठी, मलयाली और अन्य दक्षिण भारतीय समुदाय, सिख, कैथोलिक, पारसी आदि। ऐतिहासिक रूप से अजमेर एक केंद्र प्रशासित राज्य है।
ख़्वाज़ा की नगरी
अजमेर में ख़्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह और 14 कि.मी. की दूरी पर पुष्कर में ब्रह्मा जी के मंदिर के कारण, यहाँ दो संस्कृतियों का समन्वय होता है। 7 वीं शताब्दी में राजा अजयपाल चौहान ने इस नगरी की स्थापना ‘अजय मेरू’ के नाम से की। यह 12वीं सदी के अंत तक चौहान वंश का केन्द्र था। जयपुर के दक्षिण पश्चिम में बसा अजमेर शहर, अनेक राजवंशों का शासन देख चुका है। 1193 ई. में मोहम्मद ग़ौरी के आक्रमण तथा पृथ्वीराज चौहान की पराजय के बाद, मुगलों ने अजमेर को अपना ईष्ट स्थान माना। सूफी संत ख़्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती को ’ग़रीब नवाज़’ के नाम से जाना जाता है और अजमेर में उनकी बहुत सुन्दर तथा विशाल दरगाह है। प्रत्येक वर्ष ख़्वाजा के उर्स (पुण्यतिथि) के अवसर पर लाखों श्रद्धालु शिरकत करते हैं। अजमेर शहर को शैक्षणिक स्तर पर भी उच्च स्थानों में माना जाता है। यहाँ पर अंग्रेजों द्वारा स्थापित मेयो कॉलेज, विश्वविख्यात है तथा इसकी स्थापत्य कला भी अभूतपूर्व है। यहां अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर विदेशी छात्र भी पढ़ने आते हैं।
अजमेर के पर्यटन स्थल
अजमेर शरीफ दरगाह
अजमेर में दरगाह के अलावा भी बहुत से दर्शनीय स्थल हैं। अजमेर में सर्वाधिक देशी व विदेशी पर्यटक ख़्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह पर मन्नत मांगने तथा मन्नत पूरी होने पर चादर चढ़ाने आते हैं। सभी धर्मों के लोगों में ख़्वाजा साहब की बड़ी मान्यता है। दरगाह में तीन मुख्य दरवाजे़ हैं। मुख्य द्वार, ’निज़ाम दरवाज़ा’ निज़ाम हैदराबाद के नवाब द्वारा बनवाया गया, मुगल सम्राट शाहजहाँ द्वारा बनवाया गया ’शाहजहाँ दरवाजा’ और ’बुलन्द दरवाज़ा’ सुल्तान महमूद ख़िलजी द्वारा बनवाया गया ’बुलन्द दरवाजा’। उर्स के दौरान दरगाह पर झंडा चढ़ाने की रस्म के बाद, बड़ी देग (तांबे का बड़ा कढ़ाव) जिसमें 4800 किलो तथा छोटी देग में 2240 किलो खाद्य सामग्री पकाई जाती है। जिसे बांटी जाती हैं। श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूर्ण होने पर भी इन देगों में भोजन पकवाते व बाँटते हैं। सर्वाधिक आश्चर्य की बात है कि यहाँ केवल शाकाहारी भोजन ही पकाया जाता है।

अढ़ाई दिन का झोंपड़ा
मूल रूप से ’ढ़ाई दिन का झोंपड़ा’ कहने वाली इमारत एक संस्कृत महाविधालय था, परन्तु 1198 ई. में सुल्तान मुहम्मद गौरी ने इसे मस्जिद में तब्दील करवा दिया हिन्दू व इस्लामिक स्थापत्य कला के इस नमूने को 1213 ई. में सुल्तान इल्तुतमिश ने और ज्यादा सुशोभित किया। इसका यह नाम पड़ने के पीछे एक किवंदती है कि इस इमारत को मन्दिर से मस्जिद में तब्दील करने में सिर्फ ढ़ाई दिन लगे थे। इसलिए इसका नाम ’ढ़ाई दिन का झोंपड़ा’ पड़ गया।

मेयो कॉलेज
भारतीय राजघरानों के बच्चों के लिए यह बोर्डिंग स्कूल हुआ करता था। अंग्रेजों के समय में रिचर्ड बॉर्क द्वारा 1875 ई. में मेयो कॉलेज की स्थापना की गई तथा ’मेयो कॉलेज’ नाम दिया गया। इसके पहले प्राचार्य के रूप में नोबेल पुरस्कार विजेता तथा प्रसिद्ध इतिहासकार, व लेखक रूडयार्ड किपलिंग के पिता जॉन लॉकवुड किपलिंग ने इसका राज्य चिन्ह बनाया, जिसमें भील योद्धा को दर्शाया गया। इस भवन का स्थापत्य, इंडो सार्सेनिक (भारतीय तथा अरबी) शैली का अतुलनीय उदाहरण है। संगमरमर से निर्मित यह भवन अत्यंत आकर्षक है

आनासागर झील
यह एक कृत्रिम झील है जिसे 1135 से 1150 ई. के बीच राजा अजयपाल चौहान के पुत्र अरूणोराज चौहान ने बनवाया। इन्हें ’अन्ना जी’ के नाम से पुकारा जाता था तथा इन्हीं के नाम पर आना सागर झील का नाम रखा गया । इसके निकट दौलत बाग, मुगल सम्राट जहांगीर द्वारा तथा पाँच बारहदरियां, सम्राट शाहजहाँ द्वारा बनवाई गई थीं। खूबसूरत सफेद मार्बल में बनी बारहदरियां, हरे भरे वृक्ष-कुन्जों से घिरी हैं।यहाँ सुस्ताने तथा मानसिक शांति के लिए पर्यटक आते हैं।

सोनी जी की नसियां
19वीं सदी में निर्मित यहदिगम्बर जैन मन्दिर, भारत के समृद्ध मंदिरों में से एक है। इसके मुख्य कक्ष को स्वर्णनगरी का नाम दिया गया है। इसका प्रवेश द्वार लाल पत्थर से तथा अन्दर संगमरमर की दीवारें बनी हैं। जिन पर काष्ठ आकृतियां तथा शुद्ध स्वर्ण पत्रों से जैन तीर्थंकरों की छवियाँ व चित्र बने हैं। इसकी साज सज्जा बेहद सुन्दर है।

फॉय सागर झील
अरावली पर्वतमाला की छवि इस कृत्रिम झील में देखी जा सकती है। सन् 1892 ई. में एक अंग्रेज इन्जीनियर मिस्टर फॉय द्वारा बनाई गई इस झील को, उस समय अकाल राहत कार्य द्वारा लोगों को सहायता देने के लिए बनवाया गया था। यहाँ का वातावरण मन को शांति देता है।

नारेली जैन मन्दिर
जयपुर राष्ट्रीय राजमार्ग परनारेली ग्राम में स्थित, श्री ज्ञानोदय जैन तीर्थ के नाम से पहचान रखने वाला यह जैन मन्दिर, पारम्परिक एवं समकालीन वास्तुकला का उत्तम नमूना है इसके आसपास 24 लघु देवालय हैं, जो ’जिनालय’ के नाम से जाने जाते हैं। दिगम्बर जैन समुदाय के लिए यह एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है।

साईं बाबा मंदिर
सांई बाबा के भक्तों के लिए यह मन्दिर वास्तुकला का नवीनतम नमूना है तथा बहुत लोकप्रिय है। अजय नगर में लगभग दो एकड़ में फैले, इस मंदिर को अनूठे पारदर्शी सफेद संगमरमर से बनाया गया है, जिसमें प्रकाश प्रतिबिंबित होता है। सन् 1999 में अजमेर निवासी श्री सुरेश के. लाल ने यह मंदिर बनवाया था।

राजकीय संग्रहालय
यह संग्रहालय मुग़ल सम्राट अकबर द्वारा सन् 1570 मेंनिर्मित कराये किले में सन् 1908 में स्थपित किया गया।। पुरातात्विक शिलालेख, मूर्तियाँ, अस्त्र शस्त्र तथा पूर्व महाराजाओं के सुन्दर चित्र व अन्य कलाकृतियां यहां प्रदर्शित किए गए हैं।

तारागढ़ किला
राजा अजयपाल चैाहान द्वारा निर्मित कराया गया यह किला एक ऊंची पहाड़ी पर बना हुआ है। किले का मुख्य प्रवेशद्वार भव्य है, द्वार के दोनों तरफ मजबूत विशाल रक्षक चौकियों के रूप में दो शक्तिशाली पहरेदारों के कमरे हैं, जो कि दो विशालकाय पत्थर के हाथियों से सजे हुए हैं। किसी जमाने में बेहद शानदार रहे इस भव्य क़िले की मुख्य विशेषता है इसमें बनाए गए पानी के कृत्रिम जलाशय तथा ’भीम बुर्ज’, जिन पर ‘‘गर्भ गुन्जम’’ नामक तोप निगरानी करती थी। किला राजपुताना के वास्तुशिल्प का एक अतुल्य और बेमिसाल उदाहरण बनाता है तथा अजमेर आने वाले पर्यटकों के लिए भी यह एक बड़ा आकर्षण है। यह क़िला ’हजरत मीरां सैयद हुसैन खंगसवार’ (मीरां साहब) की दरगाह के लिए भी विख्यात है।

किशनगढ़ का क़िला
राजस्थान के किशनगढ़ क़स्बे में किशनगढ़ का भव्य क़िला स्थित है। क़िले को देखने पर, इसमें आप जेल, अन्न भण्डार, शस्त्रागार और कई प्रमुख भव्य इमारतें भी देखेंगे। इसका सबसे बड़ा भवन दरबार हॉल है तथा यही वह स्थान है जहाँ राजा अपनी प्रतिदिन की शासकीय सभा बुलाया करते थे। और जब हम क़िले के अन्दर स्थित सर्वाधिक आकर्षक महल की बात करते हैं, तो वह है ‘‘फूल महल’’ जो कि राठौड़ वंश के शासकों के वैभव को प्रदर्शित करता है तथा इसकी दीवारों को राजसी शैली में भव्य और सुन्दर भित्ति चित्रों तथा बेहतरीन कलाकारी से सजाया गया है। क़िले के साथ साथ यहाँ पर कुछ झीलें हैं जैसे गुन्दुलावतालाब’ और ’हमीर सागर’, जो कि यहाँ के बड़े पिकनिक स्थल हैं। किशनगढ़ के पास में आप ’निम्बार्क पीठ’ और ’चोर बावड़ी’ – सलेमाबाद (20 कि. मी.), रूपनगढ़ (25 कि. मी.), करकेडी क़िले के अवशेष और श्री जवान सिंह करकेरी की छतरियां, करकेरी (सलेमाबाद होते हुए 30 कि. मी. की दूरी पर), पुराने मकबरों का एक समूहटूकड़ा, तिलोनिया (20 कि. मी.), ’पीताम्बर की गाल’ –सिलोरा (7 कि. मी.) और पुराने महल के अवशेष या ’सराय छतरी’ –यह सारे स्थल देखना भी महत्वपूर्ण है।

प्रज्ञा शिखर, टोडगढ़
सन् 2005 में जैन सम्प्रदाय / समुदाय द्वारा, जैन आचार्य तुलसी की स्मृति में बनवाया गया ‘प्रज्ञाशिखर’ एक मंदिर है जो कि पूरा का पूरा काले ग्रेनाइट पत्थर से बनाया गया है। अरावली की पहाड़ियों में प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर यह मंदिर टोडगढ़ में स्थित है। यह एक एन. जी. ओ. द्वारा बनवाया गया तथा इसका उद्घाटन (स्व.) डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम द्वारा किया गया था । प्रज्ञा शिखर एक शांति स्थल है तथा मंदिर के नीरव वातावरण में आनंद लेने के लिए, यंहा अवश्य देखना चाहिए। टोडगढ़ में तथा उसके आस पास पुराना सी. एन. आई. चर्च, कातर घाटी, दूधालेश्वर महादेव, भील बेरी और रावली टोडगढ़ वन्यजीव अभ्यारण्य आदि दर्शनीय है।

विक्टोरिया क्लॉक टॉवर (घन्टाघर)
अजमेर एक ऐसा शहर है जहाँ ब्रिटिश राज्य का आधिपत्य तथा ब्रिटिश शासन का बहुत अधिक प्रभाव था। ब्रिटिश सरकार ने अजमेर में कई रूपों में अपनी विरासत छोड़ी है, जिनमें से कुछ शैक्षणिक संस्थाएं तथा कुछ वास्तुशिल्प से समृद्ध इमारतें इस शहर में हैं। अजमेर के मध्य में, इन इमारतों में से कुछ स्थित हैं, जिनमें एक ’विक्टोरिया जुबली क्लॉक टॉवर’ है, जो कि प्रत्येक आने वाले का ध्यान अपनी ओर तुरन्त खींचती है। अजमेर शहर में स्थित रेल्वे स्टेशन के एक दम सामने की ओर, यह शानदार भव्य स्मारक ’घन्टा घर’ सन् 1887 में बनवाया गया था। इसकी विशेष सुन्दरता तथा पहचान इसकी कलात्मक वास्तुकला है तथा यह ब्रिटिश वास्तुकला का एक प्रभावशाली उदाहरण है। देखने वालों को यह घन्टा घर, लन्दन की प्रसिद्ध ’बिग बेन घड़ी’ (छोटे रूप में) की याद दिलाता है।

पृथ्वीराज स्मारक
पृथ्वीराज स्मारक, बहादुर राजपूत ,सेना प्रमुख पृथ्वीराज चौहान तृतीय की स्मृति तथा सम्मान में बनवाया गया ’स्मृति स्मारक’ है। बारहवीं शताब्दी में चौहान वंश के अन्तिम शासक, जिन्होंने अजमेर और दिल्ली की दो राजधानियों पर शासन किया था, उनके भक्तिभाव और साहस का प्रतीक है यह स्मारक। इस स्मारक में पृथ्वीराज चौहान तृतीय की मूर्ति को अपने घोड़े पर बैठे हुए दर्शाया गया है जो कि काले पत्थर से निर्मित है। इनके घोड़े के अगले दोनों पैरों के खुर, सामने ऊपर की तरफ हवा में उठे हुए हैं, जिसे देख कर ऐसा प्रतीत होता है जैसे घोड़ा पूरे जोश के साथ आगे की तरफ बढ़ने वाला है। यह स्मारक एक पहाड़ी के ऊपर स्थित है, जो कि अरावली श्रृंखला से घिरी हुई है तथा यहाँ से दर्शक / पर्यटक अजमेर शहर का सुहाना विहंगम दृश्य देख सकते हैं। स्मारक के बराबर में ही एक हरा भरा बग़ीचा भी है, जहाँ पर्यटक बैठ सकते हैं तथा विश्राम कर सकते हैं।

आनासागर बारादरी
अजमेर में स्थित ’आना सागर झील’ के दक्षिण पूर्व में आना सागर के किनारे पर अति सुन्दर सफेद संगमरमर के मंडप बने हुए हैं जो कि बारादरी (बारहदरी) कहलाते हैं। यह एक मुग़ल कालीन स्थापत्य कला है जो कि जल निकायों से चारों ओर घिरा हुआ सा महसूस होता है तथा यह बग़ीचों की हरियाली और सुन्दरता से भरपूर स्थल है। इन मण्डपों का इतिहास बड़ा ही गौरवशाली है, यह बग़ीचों के बीच आनंद से भरपूर एक हिस्सा है जिसे ’दौलत बाग़’ का नाम दिया गया जो कि मुग़ल बादशाह शाहजहाँ और जहाँगीर द्वारा बनवाया गया था। ब्रिटिश शासन के दौरान इन पाँच मण्डपों को अंग्रेजों के कार्यालय में बदल दिया गया था। लेकिन आज आप इन वास्तविक, प्रामाणिक मण्डपों को पूर्णतया संरक्षित देख सकते हैं, जिनके साथ में ही एक शाही हम्माम (स्नान गृह) भी है जो कि इसी जगह पर स्थित है। आना सागर की बारादरी एक सुरम्य और शांतिपूर्ण स्थल है, जहाँ बैठकर आप इन सुंदर मण्डपों की ओर आस पास के सुखमय वातावरण की प्रशंसा अवश्य करेंगे, साथ ही आप के मन को बड़ा सुकून महसूस होगा। शांति पाने के लिए, इस स्थान को अवश्य देखना चाहिए और इसके वैभवपूर्ण इतिहास को, जिसे आप यहाँ देख सकते हैं, अनुभव कर सकते हैं, अवश्य जानना चाहिये।

शहीद स्मारक, अजमेर
शक्तिशाली और बहादुर लोगों के लिए श्रृद्धा दर्शाना, हमेशा से राजस्थान के लोगों की आत्मा में गहराई तक अन्तर्निहित रहा है और यही बात आप अजमेर शहर में भी देख सकते हैं। जब आप शहर के अन्दर और चारों तरफ घूमेंगे तो आप इस तरह की इमारतों और स्मारकों के आस पास पहुंच जाएंगे, जो कि महान योद्धाओं और शूरवीरों को श्रृद्धांजलि अर्पित करने और इस शाही राज्य में जन्म लेने वाले शहीदों की याद में बनवाए गए थे। अजमेर का शहीद स्मारक इसी प्रकार की एक इमारत है जो कि साहसी वीरों की आत्माओं के बलिदान के लिए स्मरणोत्सव के रूप में बनवाया गया था। रेल्वे स्टेशन के एक दम सामने की ओर स्थित यह स्मारक बिल्कुल साफ दिखाई देता है और आप यहाँ तक आसानी से पहुँच सकते हैं। शहीदों को श्रृद्धांजलि अर्पित करने के लिए विभिन्न अवसरों पर यहाँ के स्थानीय लोग तथा स्थानीय प्रशासन के लोग इकट्ठा होते हैं। यह स्मारक रंग बिरंगी रौश्नी तथा फौव्वारों से सजाया गया है तथा बहुत सुन्दर व दर्शनीय है।
