पंडित जी नमस्कार द की मुद्रा में आने ही वाले थे कि सामने बैठे ही श्रोता और… और की मांग करने लगे। चतुर , पंडित जी ने फिर खुद भी गाया और श्रोताओं र से भी गवाया… गोविन्द जय जय, गोपाल जय जय… एक टेक पंडित जी गाते और दूसरी श्रोता । खूब जमी गम्मत…।
गम्मत का अर्थ
गम्मत दो शब्दों गम और मत से मिलकर बना युग्म है. गम यानी जाने की क्रिया और मत यानी विचार या सलाह. जोड़कर देखें तो गम्मत किसी विचार या मत की ओर ले जाने वाली कलात्मक प्रक्रिया है. देहात के मंच अपनी परंपरा में दुनियावी सुख-दुख और उसके बीच मनोरंजन का ऐसा ही ताना-बाना बुनते रहे है, जैसे गम्मत का यह मंच।
उपरोक्त वाक्य में प्रयुक्त शब्द ” गम्मत ” का अर्थ आज हम हमारे पाठकों के साथ सांझा कर रहे है।
पुराने समय मे जब आधुनिक तकनीक उपलब्ध नही थी। रेडियो, टीवी, फ़िल्म, ओटीटी इत्यादि उपलब्ध नही थी तब मनोरंजन का साधन नाच, गम्मत, रामलीला व रासलीला हुआ करती थी। गम्मत का विशेष प्रचलन छतीसगढ़ में था।
गम्मत का शाब्दिक अर्थ
गम्मत एक स्त्रीलिंग शब्द है जिसका अर्थ होता है-
- हँसी। दिल्लगी। परिहास। विनोद।
- मजेदार घटना या बात।
- आनन्द बहार या मौज की स्थिति।
गम्मत शब्द का प्रयोग करते हुए कुछ वाक्य
- 21 नवंबर को रात आठ बजे से गम्मत होगी। 22 नवंबर को ग्यारस पूजन और 23 नवंबर को कवि सम्मेलन रखा गया है।
- नेपानगर और अन्य क्षेत्रों के कलाकारों द्वारा राई नृत्य, बधाई नृत्य, देवी नृत्य, गम्मत, गणगौर, भगोरिया, कथक आदि नृत्यों की प्रस्तुति दी जाएगी।
- छत्तीसगढ़ की मूल पुरातन पारंपरिक नाचा गम्मत विधा जो कि वर्तमान में आधुनिकता के होड़ के साथ विलुप्त होने के कगार पर है।
- लोक गायन एवं गम्मत का आयोजन तीन सितंबर की शाम सात बजे लोक गायन कार्यक्रम होगा।
गम्मत
कुछ लोग रहस में प्रदर्शित होने वाले प्रहसन को गम्मत कहते हैं, जबकि सामान्यतया गम्मत का आयोजन अलग से किया जाता है। गम्मत का मंच भी वर्गाकार बनता है। एक किनारे वादक बैठकर साज बजाते हैं और नर्तक नृत्य करते हैं। गम्मत में सामान्यतः कृष्ण की लीला का ही आख्यान होता है तथा बीच-बीच में प्रहस न का आयोजन किया जाता है।
“गम्मत’ छत्तीसगढ़ का प्रसिद्ध लोक नृत्य है ये आदिवासियों के लोक नृत्य एवं लोक गीत है।
छत्तीसगढ़ अपनी लोक परम्पराओं के मामले में अत्यंत समृद्ध है। यहाँ की लोक संस्कृति जहाँ सम्पूर्ण देश के प्रभावों को आत्मसात करती रही, वहीं दूसरी ओर यहाँ के भीतरी आदिवासी अंचल लंबे समय तक बाहरी दुनिया के लिए लगभग बंद जैसे रहे। इसके कारण आदिवासी कला बाह्य प्रभावों से बची रही। उपरोक्त कथन विरोधाभासी प्रतीत होता है परन्तु यहाँ की भौगौलिक स्थिति में यह बात सही है। इस तथ्य का प्रमाण यहाँ के आदिवासियों के लोक नृत्य एवं लोक गीत हैं बस्तर से ले कर सरगुजा तक फैले हुए विभिन्न आदिवासी समुदायों में विद्यमान उनके नृत्यों को ध्यान पूर्वक देख जाए तो ज्ञात होता है कि अनेक आदिवासियों ने अपने नृत्य, गीत, मिथ कथाएँ, संगीत आदि सभी कला रूपों को काफी हद तक सुरक्षित रखा है।