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इतिहास | कक्षा 12 | अतिरिक्त अंक प्राप्त करने हेतु महत्वपूर्ण जानकारी

प्रिय Raj Students हमने आपका ग्रुप बनाया था। आज से हम कला संकाय के विद्यार्थियों हेतु बेमिसाल सामग्री रोजाना प्रस्तुत करेंगे। आज हम कक्षा 12 व कक्षा10 के विद्यार्थियों हेतु वास्तविक पठनीय सामग्री प्रस्तुत कर रहे है। आप हमसे निरन्तर सम्पर्क में रहिये। यह सामग्री प्रतियोगी परीक्षा के लिए परीक्षार्थियों हेतु बहुत अधिक उपयोगी है।

भारतीयों ने इतिहास को विद्या- ज्ञान के एक विशिष्ट अंग के रूप में स्वीकार किया था तथा ‘पंचम वेद’ के रूप में ‘इतिहास’ को उच्च मान्यता प्रदान की थी। उनके इतिहास में पुराण, इतिवृत्त, आख्यायिका, धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र और नीतिशास्त्र सभी कुछ होता था। प्राचीन भारतीय इतिहास की जानकारी के समस्त साधनों को हम मुख्यतः चार वर्गों में बाँट सकते हैं, जो निम्नलिखित हैं-

  • भारतीय धर्मग्रन्थ
  • ऐतिहासिक एवं समसामयिक ग्रन्थ
  • पुरातत्व सम्बन्धी साक्ष्य
  • विदेशियों द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य

भारतीय धर्मग्रंथ

प्राचीनकाल में भारत में ब्राह्मण, बौद्ध एवं जैन-इन तीन धर्मों की प्रधानता थी, अतः इनके धर्मग्रन्थ भी अपनी-अपन विशेषताओं के साथ तीन वर्गों में विभक्त हैं। सर्वप्रथम हम ब्राह्मण धर्मग्रन्थों का उल्लेख करेंगे-

ब्राह्मण धर्मग्रन्थ

वेद

वेद wwwshalasaralcom

वेद चार हैं-ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद एवं अथर्ववेद। इनमें ऋग्वेद सबसे प्राचीन है। वैदिक संहिताओं में वे मन्त्र और सूक्त संगृहीत हैं, जिनका निर्माण (दर्शन) प्राचीन आर्य ऋषियों ने किया था। इनका प्रयोजन किसी देवता-विशेष की स्तुति है, पर प्रसंगवश कहीं कहीं इनमें अपने समय की राजनीतिक घटनाओं का उल्लेख हो गया है।

ब्राह्मण

यज्ञ के विषयों का प्रतिपादन करने वाले ग्रन्थ ‘“ब्राह्मण” कहलाये। ये वेदों पर आधारित हैं। प्रत्येक वेद के पृथक्-पृथक् ब्राह्मण ग्रन्थ हैं । ऋग्वेद का ऐतरेय और कौषितको ब्राह्मण, यजुर्वेद का शतपथ ब्राह्मण, सामवेद का पंचविश ब्राह्मण और अथर्ववेद का गोपथ ब्राह्मण। ब्राह्मण ग्रन्थों में अनेक उपाख्यानों का उल्लेख है जो तत्कालीन सामाजिक दशा पर प्रकाश डालते हैं।

आरण्यक

ब्राह्मण ग्रन्थों के पश्चात् आरण्यक ग्रन्थों का स्थान है। ये ग्रन्थ वनों की एकान्तता में पढ़े जाते थे। इनमें चिन्तन शील ज्ञान पक्ष पर जोर दिया गया है।

उपनिषद

आरण्यक ग्रन्थों के पश्चात् उपनिषदों की रचना की गई। प्रमुख उपनिषदों के नाम इस प्रकार है-ईशावास्य, केन, कठ, प्रश्न, मुण्डक, माण्डुक्य, ऐतरेय, तैत्तिरीय, श्वेताश्वतर, छान्दोग्य, बृहदारण्यक और कौपितकी।

वेदांग

वेदांग छ : हैं – शिक्षा ( स्वरशास्त्र), कल्प (कर्मकाण्ड), व्याकरण, निरुक्त ( शब्द व्युत्पत्ति विद्या), छन्द एवं ज्योतिष ये सब वेदों के अंग समझे जाते हैं।

सूत्रग्रन्थों का क र्मकाण्ड से सम्बन्ध होने के कारण ब्राह्मण एवं आरण्यक ग्रन्थों से सीधा सम्बन्ध है। इनकी संख्य तीन है— श्रीतरत्र गुह्यसूत्र और धर्मसूत्र श्रौतसूत्र।

सूत्रग्रन्थ

स्मृति साहित्य

स्मृतियों में मरतुष्य के सम्पूर्ण जीवन के विविध कार्यों के नियमों एवं निषेधों का उल्लेख मिलता है। स्मृतियों में तत्कालीन सामाजिक संगठन, सिद्धान्तों, नियमों, प्रथाओं, रीति-रिवाजों आदि की महत्त्वपूर्ण जानकारी मिलती है।

महाकाव्य

ब्राहण धर्मग्रन्थों में भारत के दो प्राचीन महाकाव्यों- रामायण और महाभारत का भी विशेष स्थान है।

पुराण

पुरणों की संख्या 18 है। इन ग्रन्थों में महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक सामग्री है। इनमें अति प्राचीन काल से परम्परागत धर्म, इतिहास, सृष्टि और प्रलय, आख्यान, विज्ञान आदि का वर्णन है।

बौद्ध धर्मग्रन्थ

प्रारम्भिक बौद्ध ग्रन्थ पालि भाषा में लिखे गये थे, परन्तु बाद में बौद्ध विद्वानों ने संस्कृत भाषा में भी अपने ग्रन्थ लिखे।q

पिटक ग्रन्थ

बौद्धों के धार्मिक सिद्धान्त मुख्यतः पिटक ग्रन्थों में संगृहीत हैं। ये तीन हैं—विनयपिटक, सुतपिटक और अभिधम्मपिटक। तीन की संख्या के कारण इन्हें “त्रिपिटक ” श्री कहा जाता है।

जातक ग्रन्थ

त्रिपिटक के बाद जातक ग्रन्थ आते हैं। ऐतिहासिक दृष्टि से जातक – कथाओं का बहुत महत्त्व है। जातकों में महात्मा बुद्ध के पूर्वजन्मों की काल्पनिक कथाएँ लिखी हैं, जो अपने समय के समाज का सुन्दर चित्र हमारे सम्मुख उपस्थित करती हैं। इन कथाओं में उस युग के अनेक राजाओं का इतिवृत भी कहीं-कहीं प्रसंगवश दे दिया गया है।

अन्य पालि ग्रन्थ

इतिहास निर्माण में सहायक अन्य पालि बौद्ध ग्रन्थों में तीन ग्रन्थ विशेष उल्लेखनीय हैं, जिनके नाम हैं-मिलिन्द पन्हो, दीपवंश और महावंश।

संस्कृत बौद्ध ग्रन्थ

पालि भाषा के अलावा संस्कृत में भी बहुत से बौद्ध ग्रन्थ लिखे गये, जिनमें प्राचीन भारतीय इतिहास पर पर्याप्त प्रकाश डाला गया है। इनमें महावस्तु ललित विस्तार, बुद्ध चरित्र, सौंदरानन्द काव्य, दिव्यावदान, मंजूश्री-मूलकल्प आदि उल्लेखनीय हैं।

जैन धर्मग्रन्थ

बौद्ध साहित्य के समान जैन साहित्य भी प्राचीन भारतीय इतिहास के अनुशीलन के लिए अत्यधिक उपयोगी सामग्री उपस्थित करता है। ईसा की पहली सदी से छठी सदी तक के काल में अनेक ग्रन्थों की रचना हुई जिनमें “परिशिष्ट पर्व ” भद्रबाहु चरित्र, जैन आगम ग्रन्थ, व्याख्या एवं टीकाएँ उल्लेखनीय हैं। ऐतिहासिक दृष्टि से परिशिष्ट पर्व ” महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है।

भद्रबाहु चरित्र में प्रसिद्ध जैन विद्वान् भद्रा तथा चन्द्रगुप्त मौर्य से सम्बन्धित घटनाओं का उल्लेख मिलता है। जैन धर्मग्रन्थों में जैन आगम ग्रन्थों का महत्त्व सबसे अधिक है। जैन आगम 12 अंगों में विभाजित है, जिनमें आधारंग सुन में जैन भिक्षु के आचार सम्बन्धी नियम बतलाये गये हैं।