(कहाँ राजा भोज कहाँ गंगू तेली) उत्तर भारत की एक मशहूर कहावत है। इसका सीधा सा मतलब है कि गलत तुलना करना। जब किसी बड़े शक्तिशाली व्यक्ति व एक कमजोर की तुलना कर दी जाती है तो इस कहावत का तुरन्त उपयोग होता है। उपस्थित में से कोई ना कोई कह देता हैं की यह तुलना गलत है क्योंकि –

इस कहावत को फिल्मी गाने में भी पिरोया गया. यही नहीं, तंज कसने के लिए भी इस कहावत का इस्तेमाल किया गया. कहावत लोकप्रिय है, कहावत ऐसी है कि आम बोलचाल में कहीं न कहीं जुबां से निकल ही जाती है
कहाँ राजा भोज कहाँ गंगू तेली
एक मशहूर कहावत
कहावत के पीछे की कहानी
अल्पायु में सिंहासनारोहण के समय महान राजा भोज चारों ओर से शत्रुओं से घिरे थे। उत्तर में तुर्कों से, उत्तर- पश्चिम में राजपूत सामंतों से, दक्षिण में विक्रम चालुक्य,पूर्व में युवराज कलचुरी तथा पश्चिम में भीम चालुक्य से उन्हें लोहा लेना पड़ा। उन्होंने सब को हराया। तेलंगाना के तेलप और तिरहुत के गांगेयदेव को हराने से यह मशहूर कहावत बनी-
"कहां राजा भोज, कहां गंगू तेली"
राजा भोज और गंगू तेली कौन है?
मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से करीब ढाई सौ किलोमीटर दूर धार की नगरी को राजा भोज की नगरी कहा जाता है। 11 वीं सदी में ये शहर मालवा की राजधानी रह चुका है। राजा भोज 11 वीं सदी में मालवा और मध्य भारत के राजा थे। इतिहास के अनुसार राजा भोज शस्त्रों के साथ-साथ शास्त्रों के भी ज्ञाता माने जाते थे।
जिस गंगू तेली का बात होती है वो कोई एक नहीं, बल्कि दो व्यक्ति थे। गंगू का असली नाम कलचुरि नरेश गांगेय था और तेली, चालुक्य नरेश तैलंग थे। एक बार गांगेय और तैलंग ने मिल कर राजा भोज की नगरी धार पर आक्रमण किया, मगर उन दोनों को राजा भोज के पराक्रम के आगे घुटने टेकने पड़े। इस लड़ाई के बाद धार के लोगों ने गांगेय और तैलंग की हंसी उड़ाते हुए कहा कि ‘कहां राजा भोज, कहां गंगू तेली।’ तभी से ये कहावत आज भी आम बोलचाल में इस्तेमाल की जाती है।