कुषाण साम्राज्य एक शक्तिशाली प्राचीन साम्राज्य था जो पहली से तीसरी शताब्दी ईस्वी तक मध्य एशिया और उत्तरी दक्षिण एशिया में मौजूद था। साम्राज्य की स्थापना कुषाण वंश द्वारा की गई थी, जो यूझी मूल का था। कुषाण साम्राज्य ने बौद्ध धर्म को दुनिया के अन्य हिस्सों में फैलाने और सिल्क रोड व्यापार नेटवर्क के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आंतरिक राजनीतिक संघर्षों और आक्रमणकारी जनजातियों के बाहरी दबावों के संयोजन के कारण तीसरी शताब्दी ईस्वी में साम्राज्य का पतन हो गया।
कुषाण वंश प्राचीन भारत के राजवंशों में से एक था। कुषाण वंश के संस्थापक कुजुल कडफिसेस था। कुछ इतिहासकार इस वंश को चीन से आए युची या युएझ़ी लोगों के मूल का मानते हैं।
क्या कुषाण वंश के भारतीय थे ?
कुषाण साम्राज्य एक बहुजातीय साम्राज्य था जिसने लगभग पहली शताब्दी सीई से तीसरी शताब्दी सीई तक मध्य और दक्षिण एशिया के एक विशाल क्षेत्र पर शासन किया था। कुषाण स्वयं एक मध्य एशियाई लोग थे जो संभवतः एक इंडो-यूरोपीय भाषा बोलते थे और एक बहुदेववादी धर्म का पालन करते थे।
हालांकि कुषाण मूल रूप से भारतीय नहीं थे, उन्होंने अपने साम्राज्य को आज के आधुनिक भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के कुछ हिस्सों में स्थापित किया और उनके साम्राज्य में कई भारतीय विषय शामिल थे। कुषाणों ने भारत के इतिहास और भारतीय संस्कृति के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, विशेष रूप से कनिष्क महान के शासनकाल के दौरान, जिन्हें बौद्ध धर्म के महायान स्कूल के निर्माण को प्रायोजित करने और चौथी बौद्ध परिषद के आयोजन का श्रेय दिया जाता है।इसलिए जबकि कुषाण मूल रूप से भारतीय नहीं थे, उन्होंने शासकों के रूप में अपने समय के दौरान भारतीय इतिहास और संस्कृति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
कुषाण राजवंश के प्रमुख राजा
कुषाण वंश के समय के कुछ महत्वपूर्ण राजाओं के नाम निम्नलिखित हैं:
- कुजुल कदफिसा (Kujula Kadphises)
- विम कदफिसा (Vima Kadphises)
- कनिष्क (Kanishka)
- हुविश्क (Huvishka)
- वासुदेव (Vasudeva)
ये सभी राजाओं को महत्वपूर्ण धर्मनिरपेक्ष रूप से माना जाता है, और उनकी सत्ता काल ने भारतीय इतिहास और संस्कृति के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

कुजुल कदफिसा (Kujula Kadphises)
शासन काल (30 ई. से 80 ई तक लगभग)
कुजुल कडफ़ाइसिस (Kujula Kadphises) कुषाण वंश का पहला शासक था जिसने प्रथम शताब्दी में यूची प्रदेश वासियों को एकीक्रत किया और साम्राज्य को बढ़ाया। कुजुल कडफ़ाइसिस के बाद इसका पुत्र विम तक्षम (वेम तख्तो), विम तक्षम के बाद उसका पुत्र विम कडफ़ाइसिस, विम कडफ़ाइसिस के बाद उसका पुत्र कनिष्क गद्दी पर बैठे।
चीनी इतिहासकार ‘स्यू मा चियन’ के अनुसार एक नेता कुजुल कडफ़ाइसिस ने पाँच विभिन्न क़बायली समुदायों को अपने कुई शांग अथवा कुषाण समुदाय की अध्यक्षता में संगठित किया और वह भारत की ओर बढ़ा जहाँ उसने क़ाबुल और कश्मीर में अपनी सत्ता स्थापित कर दी। उसके प्रारम्भिक सिक्कों पर मुख भाग पर अन्तिम यूनानी राजा हर्मियस की आकृति है और पृष्ठ भाग पर उसकी अपनी। इसका अर्थ यह हुआ कि वह पहले यूनानी राजा हर्मियस के अधीन था। बाद के सिक्कों में वह अपने को ‘महाराजाधिराज’ कहता है। उसकी मृत्यु लगभग 64 ई. में हुई। उसके सिक्के रोम के सम्राटों के सिक्कों से बहुत मिलते जुलते हैं।
विमा कडफिसेस
विमा कडफिसेस ( यूनानी : Οοημο Καδφιϲηϲ ओओमो कडफिसेस (एपिग्राफिक); विमा कल्पिश ) कुषाण सम्राट था लगभग 113 से 127 सीई। रबातक शिलालेख के अनुसार , वह विम तकतो का पुत्र और कनिष्क का पिता था ।
कनिष्क सम्राट
कनिष्क प्रथम, या कनिष्क, द्वितीय शताब्दी में कुषाण राजवंंश के भारत के एक सम्राट थे। यह अपने सैन्य, राजनैतिक एवं आध्यात्मिक उपलब्धियों तथा कौशल हेतु प्रख्यात थे। इस सम्राट को भारतीय इतिहास एवं मध्य एशिया के इतिहास में अपनी विजय, धार्मिक प्रवृत्ति, साहित्य तथा कला का प्रेमी होने के नाते विशेष स्थान मिलता है।
महान कनिष्क जिसे कनिष्क प्रथम भी कहा जाता है कुषाण वंश का महान शासक था, सैन्य राजनीति और आध्यात्मिक क्षेत्रों में कनिष्क को अपने समय के शासकों में सर्वश्रेष्ठ माना गया था.कहा यह भी जाता है कि कनिष्क ने हीं कालगणना के लिए एक नए युग शक संवत की शुरुआत की थी हालांकि इतिहासकारों में इस बात पर विवाद है. शकों और पहलवो को हराकर कनिष्क ने हिंदुस्तान के उत्तरी हिस्से में बड़े साम्राज्य की स्थापना की और इस तरह कुषाणों का शासन मध्य एशिया से उत्तर प्रदेश के बनारस, कौशांबी और सरस्वती सहित उत्तर भारत तक फैल गया.
कुषाण वंश के पतन के कारण
- सम्राट कनिष्क की मृत्यु के बाद कुषाण वंश की शासन प्रणाली पूर्णता सैन्य व्यवस्था पर निर्भर हो गई थी जिसके फलस्वरूप कुषाण वंश की आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था सुदृढ़ नहीं हो सकी।
- सम्राट कनिष्क की मृत्यु के पश्चात कुषाण वंश के शासकों ने कई छोटे-मोटे राजा की अधीनता को स्वीकार कर लिया जिसके कारण कुषाण साम्राज्य कई भागों में विभाजित हो गया। इसके फलस्वरूप कुषाण वंश के साम्राज्य में एकता की कमी हुई जो आगे चलकर कुषाण वंश के पतन का कारण बनी।
- कुषाण वंश ने जिन राजाओं की अधीनता को स्वीकार किया था वह कुषाण वंश की प्रजा को परस्पर सुख नहीं दे सकी जिसके कारण कुषाण वंश के शासकों ने राजा के विरोध शुरू कर दिया।
- सम्राट कनिष्क कुषाण वंश के अंतिम कुशल शासक थे परंतु उनके द्वारा किए गए लोक कल्याण कार्य जनता के लिए प्रभावशाली साबित नहीं हो सके जिसके कारण कुषाण वंश का पतन हो गया।