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कैलेंडर व पंचांग | अर्थ, अंतर, प्रकार, राष्ट्रीय कैलेंडर व अन्य रोचक तथ्य

कैलेंडर

एक कैलेंडर दिनों के आयोजन की एक प्रणाली है। यह समय की अवधियों , विशेष रूप से दिनों , सप्ताहों , महीनों और वर्षों को नाम देकर किया जाता है । एक तिथि ऐसी प्रणाली के भीतर एक एकल और विशिष्ट दिन का पदनाम है। एक कैलेंडर ऐसी प्रणाली का एक भौतिक रिकॉर्ड (अक्सर कागज) भी होता है। एक कैलेंडर का अर्थ नियोजित घटनाओं की सूची भी हो सकता है, जैसे कि कोर्ट कैलेंडर या दस्तावेजों की आंशिक या पूरी कालानुक्रमिक सूची, जैसे वसीयत का कैलेंडर। एक आंकड़े के मुताबिक, दुनियाभर में 96 तरह के कैलेंडर हैं। अकेले भारत में 36 कैलेंडर या पंचांग हैं। इनमें से 12 आज भी चलन में हैं।

एक कैलेंडर में अवधि (जैसे वर्ष और महीने) आम तौर पर सूर्य या चंद्रमा के चक्र के साथ सिंक्रनाइज़ होते हैं, हालांकि यह जरूरी नहीं है । पूर्व-आधुनिक कैलेंडर का सबसे आम प्रकार चंद्र-सौर कैलेंडर था , एक चंद्र कैलेंडर जो कभी-कभी सौर वर्ष के साथ लंबे समय तक सिंक्रनाइज़ रहने के लिए एक अंतरालीय महीना जोड़ता है।

ग्रेगोरियन कैलेंडर

यूं तो नये साल का मतलब पहली जनवरी है. ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार जनवरी साल का पहला महीना है और एक जनवरी को दुनिया के प्राय: सभी देशों में नया साल मनाया जाता है. ग्रेगोरियन के अलावा कई अन्य कैलेंडर भी काफी प्रचलित हैं.

हमारे देश में चार कैलेंडर हैं जिनका पालन किया जाता है :

  • पहला कैलेंडर विक्रम संवत कैलेंडर था।
  • दूसरा शक संवत है जिसे अब अपनाया गया है।
  • तीसरा कैलेंडर हिजरी कैलेंडर है।
  • चौथा कैलेंडर ग्रेगोरियन कैलेंडर है।

पंचांग

पंचांग हिंदू कैलेंडर होता है जिसमें ग्रहों, नक्षत्रों की दशा व दिशा पर तिथि, वार त्यौहार आदि का निर्धारण होता है। पंचांग में प्रत्येक दिन में पड़ने वाले शुभाशुभ योग एवं मुहूर्त का विवरण भी होता है। विवाह जैसा मांगलिक कार्य हो या फिर कोई नया व्यवसाय शुरु करना हो, नये घर में प्रवेश करना हो या किसी व्रत त्यौहार पर पूजा के लिये शुभ समय की जानकारी सब पंचांग के आधार पर ही जानी जाती हैं।

कितने प्रकार का होता है पंचांग?

पंचांग में गणना समय व स्थानानुसार भी होती है क्योंकि जो पंचांग उत्तर भारत में जिस समय लागू होता है वह दक्षिण भारत में नहीं होता इसलिये पंचांग क्षेत्र विशेष के अनुसार अलग-अलग होते हैं। लेकिन किसी भी पंचांग समानता होती है। जानकारियों के स्तर पर लगभग

किसी भी पंचांग में तिथि, वार, नक्षत्र, योग एवं करण आदि पांच अंग होते हैं इन्हीं पांच अंगों की जानकारियां इसमें निहित होने के कारण इसे पंचांग कहा जाता है।

पंचांग के प्रकारों की बात करें तो यह क्षेत्र व धार्मिक-सांस्कृतिक आधार पर अनेक प्रकार के होते हैं। अकेले भारत में ही कई तरह के पंचांग देखने को मिलते हैं। मुख्यत: चंद्रमा, नक्षत्र एवं सूर्य की गति पर समय की गणना करके ही भारतीय पंचांगों का निर्माण होता है। उत्तर भारत में जहां माह का पूर्ण होना पूर्णिमा से जुड़ा है तो वहीं दक्षिण भारत में अमावस्या को माह का अंत माना जाता है। वर्ष की गणना के लिये सौर वर्ष से गणना की जाती है। नक्षत्रों के अनुसार एक माह 27 दिनों का होता है तो वहीं चंद्रमा की गति के अनुसार लगभग 29 + 1/2 दिन का माना जाता है।

कैलेंडर व पंचांग में अंतर

आधुनिक (ग्रेगोरियन) कैलेंडर में प्रति चार वर्ष पश्चात एक लीप वर्ष होता है, 100 वर्ष पश्चात लीप वर्ष नहीं होता एवं 400 वर्ष पश्चात पुनः लीप वर्ष होता है। इस प्रकार वर्ष मान 365.2425 दिनों का होता है जो कि सायन वर्ष मान 365.2422 के बहुत करीब है और केवल 3000 वर्षों बाद 1 दिन का अंतर आता है।

कैलेंडर की तुलना में पंचांग में सूर्य, चंद्र आदि के राशि प्रवेश व तिथि, योग, करण आदि की गणना दी जाती है। राशि अर्थात् तारों के परिपे्रक्ष्य में जब हम ग्रहों को देखते हैं, तो वह उसकी निरयण स्थिति होती है। निरयण वर्ष मान 365.2563 दिनों का होता है जो कि सूर्य के एक राशि में प्रवेश से अगले वर्ष उसी राशि में प्रवेश का काल है। यह सायन वर्ष से .0142 दिन बड़ा है। इस प्रकार 100 वर्षों में 1.42 दिनों का अंतर आ जाता है। पंचांग प्रति 100 वर्षों से कैलेंडर से लगभग डेढ़ दिन आगे खिसक जाता है। इस कारण मकर संक्रांति व लोहड़ी आदि में अंतर आ जाता है और हिंदू पर्व, जो तिथि के अनुसार मनाए जाते हैं, धीरे-धीरे आगे खिसकते जाते हैं।

सायन व नियरण गणना क्या होती है और दोनों में क्या अंतर है? पृथ्वी अपनी धुरी पर सूर्य की परिक्रमा क्रांतिवृत्त पर लगाती है। लेकिन यह लगभग 23.40 झुकी रहती है। पृथ्वी के इस झुकाव के कारण ही गर्मी व सर्दी पड़ती हंै। झुकाव के कारण पृथ्वी का जो भाग सूर्य के सीधे सामने आ जाता है वहां गर्मी हो जाती है। क्योंकि ऋतुएं, अयन व सूर्योदय आदि पृथ्वी के झुकाव के कारण होते हैं न कि पृथ्वी की परिक्रमा के कारण, अतः कैलेंडर सायन बनाया जाता है। पृथ्वी का भूमध्य वृत्त क्रांतिवृत्त के साथ एक रेखा पर काटता है, जिसका एक बिंदु वसंत विषुव व दूसरा शरद विषुव कहलाता है। यह रेखा पृथ्वी के अक्ष दोलन ;छनजंजपवदद्ध के कारण 50.3 प्रतिवर्ष की गति से पश्चिम की ओर खिसकती जाती है। पृथ्वी के पूर्ण 3600 चलने को निरयण और उसके पुनः उसी झुकाव में आने को सायन वर्ष कहते हैं। इस कारण शरद विषुव पर पृथ्वी को पुनः आने में 3600 से लगभग 50’’ कम चलना पड़ता है। यह अंतर ही अयनांश कहलाता है।

विक्रमादित्य व विक्रम संवत

“विक्रमादित्य”, लोकप्रिय रूप से विक्रमसेन के रूप में जाना जाता है| यह भारतीय उपमहाद्वीप के परमार राजवंश के सम्राट थे| सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य को संवत विक्रम का पिता माना जाता है। “विक्रमादित्य” (102 ईसा पूर्व – 19 ईसवी), लोकप्रिय रूप से विक्रमसेन के रूप में जाना जाता है| यह भारतीय उपमहाद्वीप के परमार राजवंश के सम्राट थे| उनके साम्राज्य में भारतीय उपमहाद्वीप का एक बड़ा हिस्सा शामिल था, जो पश्चिम में वर्तमान सऊदी अरब से लेकर पूर्व में वर्तमान  चीन तक फैला हुआ था, जिसकी राजधानी  उज्जैन थी।

विक्रमादित्य ने विक्रम संवत की शुरुआत 57 ई.पू. में शकों को हराने के बाद की थी। उनके समय में सबसे बड़े खगोल शास्त्री वराहमिहिर थे. जिनके सहायता से इस संवत के प्रसार में मदद मिली। विदेशी शकों को उखाड़ फेंकने के बाद तब के प्रचलित शक संवत के स्थान पर विदेशियों और आक्रांताओं पर विजय स्तंभ के रूप में विक्रम संवत स्थापित हुआ। आरम्भ में इस संवत्‌ को कृत संवत के नाम से जाना गया। कालांतर में यह मालव संवत के रूप में भी प्रख्यात हुआ। विक्रमी पञ्चाङ्ग  सर्वाधिक प्रसिद्ध पञ्चाङ्ग है जो भारत के उत्तरी, पश्चिमी और मध्य भाग में प्रचलित है।

भारत और नेपाल की हिंदू परंपरा में व्यापक रूप से प्रयुक्त प्राचीन पंचाग हैं विक्रम संवत् या विक्रम युग। कहा जाता है कि ईसा पूर्व 56 में शकों पर अपनी जीत के बाद राजा ने इसकी शुरूआत की थी।

हिंदू नववर्ष की शुरुआत 22 मार्च, बुधवार से हो रही है. हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के साथ ही विक्रम संवत 2080 शुरु हो रहा है. चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा यानी 22 मार्च 2023 दिन बुधवार को ही चैत्र नवरात्र की भी शुरुआत हो रही है.

महाराज विक्रमादित्य के समय में उनके नाम से विक्रमी सम्वत चला है । बारह महीने का एक वर्ष और सात दिन का एक सप्ताह रखने का प्रचलन विक्रम संवत से ही शुरू हुआ। महीने का हिसाब सूर्य व चंद्रमा की गति पर रखा जाता है। यह बारह राशियाँ बारह सौर मास हैं।

विक्रम संवत व हिन्दू कलेंडर में अंतर

5वीं से 6वीं शताब्दी में आर्यभट्ट और वराहमिहिर द्वारा गुप्त युग के खगोल विज्ञान के दौरान हिंदू कैलेंडर को परिष्कृत किया गया था। ये, बदले में, वेदांग ज्योतिष की खगोलीय परंपरा पर आधारित थे, जो पिछली शताब्दियों में कई (गैर-विद्यमान) कार्यों में मानकीकृत किए गए थे जिन्हें सूर्य सिद्धांत के रूप में जाना जाता है। हिंदू कैलेंडर मूल रूप से चंद्र कैलेंडर है और चंद्रमा के चक्रों पर आधारित है। विशुद्ध रूप से चंद्र कैलेंडर में – इस्लामिक कैलेंडर की तरह – हर सौर वर्ष में महीने लगभग 11 दिन आगे बढ़ते हैं।

भारत में आज आम उपयोग में दो मुख्य कैलेंडर हैं, विक्रम संवत 57 ईसा पूर्व के शून्य बिंदु के साथ और शक संवत 78 ईस्वी के शून्य बिंदु के साथ। इनका उपयोग दिवाली और होली जैसे सभी हिंदू त्योहारों की तिथियों की गणना के लिए किया जाता है।

शक संवत और विक्रम संवत में अंतर

शक संवत को सरकारी रूप से अपनाने के पीछे ये वजह दी जाती है कि प्राचीन लेखों, शिला लेखो में इसका वर्णन देखा गया है. इसके अलावा यह संवत विक्रम संवत के बाद शुरू हुआ. अंग्रेजी कैलेंडर से ये 78 वर्ष पीछे है, 2020 – 78 = 1942 इस प्रकार अभी 1942 शक संवत चल रहा है.

भारत का राष्ट्रीय कैलेंडर कौन सा है?

भारतीय राष्ट्रीय पंचांग या ‘भारत का राष्ट्रीय कैलेंडर’ (संक्षिप्त नाम – भारांग) भारत में उपयोग में आने वाला सरकारी सिविल कैलेंडर है। यह शक संवत पर आधारित है और ग्रेगोरियन कैलेंडर के साथ-साथ २२ मार्च १९५७ , (भारांग: १ चैत्र १८७९) से अपनाया गया।

शक युग पर आधारित राष्ट्रीय कैलेंडर , चैत्र के साथ इसका पहला महीना और 365 दिनों का एक सामान्य वर्ष 22 मार्च 1957 से निम्नलिखित आधिकारिक उद्देश्यों के लिए ग्रेगोरियन कैलेंडर के साथ अपनाया गया था:

  1. भारत का राजपत्र।
  2. ऑल इंडिया रेडियो द्वारा प्रसारित समाचार।
  3. भारत सरकार द्वारा जारी कैलेंडर।
  4. जनता को संबोधित सरकारी संचार।

राष्ट्रीय कैलेंडर की तिथियों का ग्रेगोरियन कैलेंडर की तिथियों के साथ स्थायी पत्राचार होता है, 1 चैत्र 22 मार्च को सामान्य रूप से और 21 मार्च को लीप वर्ष में पड़ता है।

चैत्र प्रतिपदा, 1879 यानी 22 मार्च 1957 को शक संवत् को भारत के राष्ट्रीय कैलेंडर के रूप में अपनाया गया। यह 78 ईस्वी में प्रारम्भ हुआ था। इसके नामकरण के पीछे कई मत हैं, परंतु सर्वाधिक प्रचलित मतानुसार इसे कुषाण राजा कनिष्क ने चलाया था।

विभिन्न कैलेंडर में अंतर

विक्रम संवत और शक संवत में क्या अंतर है?

दोनों कैलेंडर का एक अलग प्रारंभिक बिंदु है, विक्रम संवत शक संवत से 135 वर्ष पुराना है । और भले ही, विक्रम कैलेंडर नेपाल का आधिकारिक कैलेंडर है, इसका उपयोग बहुत सारे भारतीय राज्यों में भी किया जाता है, खासकर उत्तर में। शक कैलेंडर दूसरी ओर आधिकारिक भारतीय नागरिक कैलेंडर है।

पहला कैलेंडर कब बना?

यह राजा ईसा पूर्व सातवीं शताब्दी में था। आज विश्व भर में जो कैलेंडर प्रयोग में लाया जाता है। उसका आधार रोमन सम्राट जूलियस सीजर का ईसा पूर्व पहली शताब्दी में बनाया कैलेंडर ही है। जूलियस सीजर ने कैलेंडर को सही बनाने में यूनानी ज्योतिषी सोसिजिनीस की सहायता ली थी।