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गुरु रविदास जयंती 2023 |आज उन्हें नमन करके उनके कुछ दोहों को समझे

गुरु रविदास की जयंती पर कोटि-कोटि नमन
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‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’ कहने वाले संत रविदास के दोहे

आज गुरु रविदास जयंती है.🌹*
𝟬𝟱.𝟬𝟮.𝟮𝟬𝟮𝟯,रविवार
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सामाजिक समरसता के महान संत शिरोमणी श्री रविदास जी महाराज

संत गुरु रविदास जी जयंती कब मनाई जाती है

प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा, पूर्ण चन्द्रमा के दिन बहुत ही उत्साह के साथ जयंती आयोजन मनाया जाता है। वनारस के लोग इस मौके पर बहुत सारे सुन्दर कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं और इस दिन को एक त्यौहार के जैसे मनाते हैं। हरयाणा, हिमाचल प्रदेश और पंजाब में भी इस दिन को बहुत ही सुन्दर रूप से मनाया जाता है। 05 फरवरी, 2023 को संत गुरु रविदास जी का 646 वी जयंती मनाई जा रही है। प्रतिवर्ष वाराणसी में “श्री गुरु रविदास जन्म स्थान मंदिर, सीर गोवेर्धनपुर, वाराणसी” में इस दिन को बहुत ही भव्य रूप से मनाया जाता है जहाँ पुरे विश्व भर से लोग इस महोत्सव में भाग लेने के लिए आते हैं।

गुरु रविदास जी की शिक्षा

बचपन में रविदास जी अपने गुरु, पंडित शारदा नन्द पाठशाला में पढने के लिए गए परन्तु कुछ लोगों द्वारा उन्हें वहां पढ़ाने से मना कर दिया गया था। परन्तु उनके विचारों को देख पंडित शारदा नन्द को भी यह एहसास हुआ की रविदास जी बहुत ही प्रतिभाशाली हैं और उन्होंने रविदास जी को पाठशाला में दाखिला दे दिया और उन्हें पढ़ाने लगे।

गुरु रविदास जी द्वारा दिया गया परचा

रविदास जी बहुत ही अच्छे और बुद्धिमान बच्चे थे और पंडित शारदा नन्द से शिक्षा प्राप्त करने के साथ वो एक महान समाज सुधारक बने। पाठशाला में पढाई करते हुए पंडित शारदा नन्द जी का पुत्र उनका मित्र बन गया।

एक दिन दोनों छुपान-छुपी खेल रहे थे। खेल में दोनों एक-एक बार जित चुके थे। शाम हो जाने के कारण दोनों ने अगले दिन फिर खेलने का मन बनाया। अगले दिन पंडित शारदा नन्द का पुत्र खेलने नहीं आया।

जब बहुत देर तक वह नहीं आया तो रविदास जी उनके घर गए। जब वे घर पहुंचे तो उन्हें पता चला की उनके मित्र की मृत्यु हो गयी है।

सभी लोग उनके मित्र की लाश के चारों और बैठ कर रो रहे थे। तभी रविदास जी पंडित शारदा नन्द जी के पुत्र के शारीर के पास जाकर वो बोले – “अभी सोने का समय नहीं है, चलो छुपान-छुपी खेलें।”

यह शब्द सुनते ही वह जीवित हो गया। गुरु रविदास जी को भगवान से मिली शक्तियों के कारण उनके शब्दों से वह बच्चा जीवित हो गया। सब कोई यह देख कर अचंभे में पड़ गए।

सामाजिक समरसता के महान संत शिरोमणी श्री रविदास जी महाराज के प्रसिद्ध दोहे

गुरु रविदास जी. 15वीं शताब्दी के कवि. “मन चंगा तो कठौती में गंगा”, लिखा. और साफ़ किया कि भगवान और मंदिर की ज़रुरत इंसान को रोटी और मानवीयता से ज्यादा नहीं है. कई बातें और कई चीज़ें हैं. अपने लिखे में ईश्वर को मानने की बाध्यता और आडंबर से समाज को मुक्त किया. और देखते-देखते रविदास को संत रविदास कहा जाने लगा. बहुत से लोग उनके समर्थक हो गए. और समर्थकों को कहा गया रैदासी. यूपी, दिल्ली, हरियाणा और पंजाब तक रैदासियों की रिहाईश हुई. और हर साल देश भर से तमाम रैदासी रविदास जयन्ती के दिन उनके घर बनारस में जुटते हैं. रविदास ने आंदोलन के तहत कविताएं लिखीं. अभी बात उनके कुछ फेमस दोहों की-

ब्राह्मण मत पूजिए जो होवे गुणहीन,
पूजिए चरण चंडाल के जो होने गुण प्रवीण

किसी व्यक्ति को सिर्फ इसलिए नहीं पूजना चाहिए क्योंकि वह किसी ऊंचे कुल में जन्मा है. यदि उस व्यक्ति में योग्य गुण नहीं हैं तो उसे नहीं पूजना चाहिए, उसकी जगह अगर कोई व्यक्ति गुणवान है तो उसका सम्मान करना चाहिए, भले ही वह कथित नीची जाति से हो.

कह रैदास तेरी भगति दूरि है, भाग बड़े सो पावै,
तजि अभिमान मेटि आपा पर, पिपिलक हवै चुनि खावै।

ईश्वर की भक्ति बड़े भाग्य से प्राप्त होती है. यदि आदमी में थोड़ा सा भी अभिमान नहीं है तो उसका जीवन सफल होना निश्चित है. ठीक वैसे ही जैसे एक विशाल शरीर वाला हाथी शक्कर के दानों को नहीं बीन सकता, लेकिन एक तुच्छ सी दिखने वाली चींटी शक्कर के दानों को आसानी से बीन सकती है._

जा देखे घिन उपजै, नरक कुंड में बास,
प्रेम भगति सों ऊधरे, प्रगटत जन रैदास

खाने से लोगों को घृणा आती थी, जिनके रहने का स्थान नर्क-कुंड के समान था, ऐसे रविदास का ईश्वर की भक्ति में लीन हो जाना, ऐसा ही है जैसे मनुष्य के रूप में दोबारा से उत्पत्ति हुई हो

मन चंगा तो कठौती में गंगा,

जिस व्यक्ति का मन पवित्र होता है, उसके बुलाने पर मां गंगा भी एक कठौती (चमड़ा भिगोने के लिए पानी से भरे पात्र) में भी आ जाती हैं ._

करम बंधन में बन्ध रहियो, फल की ना तज्जियो आस
कर्म मानुष का धर्म है, सत् भाखै रविदास।

आदमी को हमेशा कर्म करते रहना चाहिए, कभी भी कर्म के बदले मिलने वाले फल की आशा नही छोड़नी चाहिए, क्‍योंकि कर्म करना मनुष्य का धर्म है तो फल पाना हमारा सौभाग्य.

मन ही पूजा मन ही धूप,
मन ही सेऊं सहज स्वरूप।

निर्मल मन में ही ईश्वर वास करते हैं, यदि उस मन में किसी के प्रति बैर भाव नहीं है, कोई लालच या द्वेष नहीं है तो ऐसा मन ही भगवान का मंदिर है, दीपक है और धूप है. ऐसे मन में ही ईश्वर निवास करते हैं.

कृष्ण, करीम, राम, हरि, राघव, जब लग एक न पेखा,
वेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा

राम, कृष्ण, हरि, ईश्वर, करीम, राघव सब एक ही परमेश्वर के अलग-अलग नाम हैं. वेद, कुरान, पुराण आदि सभी ग्रंथों में एक ही ईश्वर की बात करते हैं, और सभी ईश्वर की भक्ति के लिए सदाचार का पाठ पढ़ाते हैं.

हरि-सा हीरा छांड कै, करै आन की आस,
ते नर जमपुर जाहिंगे, सत भाषै रविदास

हीरे से बहुमूल्य हैं हरि. यानी जो लोग ईश्वर को छोड़कर अन्य चीजों की आशा करते हैं उन्हें नर्क जाना ही पड़ता है.

रविदास जन्म के कारनै, होत न कोउ नीच
नकर कूं नीच करि डारी है, ओछे करम की कीच

कोई भी व्यक्ति किसी जाति में जन्म के कारण नीचा या छोटा नहीं होता है, आदमी अपने कर्मों के कारण नीचा होता है.

जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात,
रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात

जिस प्रकार केले के तने को छीला तो पत्ते के नीचे पत्ता, फिर पत्ते के नीचे पत्ता और अंत में कुछ नही निकलता, लेकिन पूरा पेड़ खत्म हो जाता है. ठीक उसी तरह इंसानों को भी जातियों में बांट दिया गया है, जातियों के विभाजन से इंसान तो अलग-अलग बंट ही जाते हैं, अंत में इंसान खत्म भी हो जाते हैं, लेकिन यह जाति खत्म नही होती.