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चौरासी लाख योनियों का सत्य | 84 लाख योनियों से मुक्ति कैसे मिलेगी ?

भगवद गीता (2.22) में कहा गया है कि जिस तरह एक व्यक्ति एक नई शर्ट पहनने के लिए एक पुरानी शर्ट को छोड़ देता है, उसी तरह आत्मा एक नए प्रकार के शरीर को प्राप्त करने के लिए एक पुराने शरीर को छोड़ देती है (वसामसि जिर्णानि यथा विहाय)। इस प्रकार चौरासी लाख (चौरासी लाख) प्रकार के शरीर हैं, जिनमें से मृत्यु के समय आत्मा शरीर धारण करती है।

भारतीय हिंदू धर्म शास्त्रों, पुराणों के अनुसार इस सुन्दर विश्ववसुधा में छोट बड़े कुल मिलाकर 84 लाख योनियां बताई गई है। शास्त्रों के इन चौरासी लाख योनियों में सबसे श्रेष्ठ योनी मनुष्य योनी मानी जाती है, क्योंकि मनुष्य योनी में अपने शुभ-अशुभ कर्मों के कारण पुनर्जन्म जन्म की व्यवस्था भी है। कहा जाता है जो अच्छे कर्म करते हैं उन्हे मानव जीवन मिलता है, कुछ ऐसे जीव भी होते हैं जो शुभ कर्मों के कारण 84 लाख योनियों भटकने के बाद मानव देह में जन्म मिलता है।

मुख्य बिंदू

  • पद्म पुराण में 84 लाख योनियों का जिक्र मिलता है.
  • पशु, पक्षी, कीड़े, मनुष्य, पेड़, पौधे आदि मिलकर 84 लाख योनियों बनाते हैं.
  • ऐसा कहा जाता है की 84 लाख योनियों को पार करने के बाद ही आत्मा को मनुष्य योनि मिलती है।
  • मनुष्य योनि प्राप्त करके इंसान को शुभ कर्म करने चाहिए। मनुष्य को अशुभ कर्मों से मुख मोड लेना चाहिए। 
  • प्राणियों का भी विभाजन अलग-अलग प्रकारों में हुआ है जैसे कि जलचर, थलचर और नभचर प्राणी।
  • मनुष्य देह चौरासी लाख योनि के बाद मिलती है और मनुष्य तो परमात्मा की प्राप्ति के लिए ही बनाया गया है।
  • 84 लाख योनि‍यों में 21 लाख जारज (जरायुज), 21 लाख अंडज, 21 लाख स्‍वेदज और 21 लाख उद्भीज योनि‍यां हैं।
  • यदि‍ वि‍कासवादी पूर्नजन्‍म और पूनर्जन्‍म के सि‍द्धांत को मान ले तो उन्‍हें 84 लाख योनि‍यों के बाद मनुष्‍य योनी प्राप्‍त होने की बात अपने आप ही सि‍द्ध होती है।
  • 52 अरब वर्ष एवं 8400000 योनियों में भटकने के बाद मानव तन मिलता है। इसलिए मानव तन को दुर्लभ माना जाता है। इन योनि में विवेक जैसा दुर्लभ गुण जीव को प्राप्त होता है।
  • आत्मा के प्रत्येक जन्म द्वारा प्राप्त जीव रूप को योनि कहते हैं। ऐसी 84 लाख योनियां है, जिसमें कीट-पतंगे, पशु-पक्षी, वृक्ष और मानव आदि सभी शामिल हैं।

योनियों का वर्गीकरण

योनियों को धर्म के जानकार आचार्यों ने दो भागों में बाटां गया है। पहला- योनिज और दूसरा आयोनिज।

1- ऐसे जीव जो 2 जीवों के संयोग से उत्पन्न होते हैं वे योनिज कहे जाते हैं।

2- ऐसे जीव जो अपने आप ही अमीबा की तरह विकसित होते हैं उन्हें अयोनिज कहा गया।

3- इसके अतिरिक्त स्थूल रूप से प्राणियों को भी 3 भागों में बांटा गया है-

1- जलचर- जल में रहने वाले सभी प्राणी।

2- थलचर- पृथ्वी पर विचरण करने वाले सभी प्राणी।

3- नभचर– आकाश में विहार करने वाले सभी प्राणी।

तुलसीदास जी के मत में 84 लाख योनियां

तुलसीदास ने इस 84 लाख प्रकार के जीवो की बात को किस प्रकार अपने राम चरित्र मानस में दर्शाया

” आकर चारि लाख चौरासी । जाति जीव जल थल नभ बासी | सीय राममय सब जग जानी | करिउ प्रनाम जोरि जुग पानी”

अर्थ:जीव चार प्रकार के हैं उनकी 84 लाख योनियों है तथा वह पृथ्वी,जल ओर आकाश में रहते हैं इन सब भरे हुए इस सारे जगत को सीताराम मय जानकर दोनों हाथ जोड़कर मौं प्रणाम करता हूं.

पद्म पुराण के अनुसार 84 लाख योनिया

जलज नव लक्षाणी, स्थावर लक्ष विम्शति, कृमयो रूद्र संख्यक:।
पक्षिणाम दश लक्षणं, त्रिन्शल लक्षानी पशव:, चतुर लक्षाणी मानव:।। (78:5 पद्मपुराण श्लोक)

श्लोक का अर्थ है कि, जलचर प्राणी 9 लाख, स्थावर अर्थात पेड़-पौधे 20 लाख, सरीसृप कृमि का मतलब है कीड़े-मकौड़े 11 लाख, पक्षी/नभचर 10 लाख, स्थलीय/थलचर 30 लाख और शेष 4 लाख मानवीय नस्ल के. इस तरह से योनियों की कुल संख्या 84 लाख बताई गई है.

84 लाख योनियों का गणनासूत्र

  1. पानी के जीव-जंतु- 9 लाख
  2. पेड़-पौधे- 20 लाख
  3. कीड़े-मकौड़े- 11 लाख
  4. पक्षी- 10 लाख
  5. पशु- 30 लाख
  6. देवता-दैत्य-दानव-मनुष्य आदि- 4 लाख

इस तरह से कुल योनियों की संख्या- 84 लाख

प्राचीन ग्रन्थ के अनुसार योनियों का विभाजन

प्राचीन भारत में विज्ञान और शिल्प ग्रंथ में शरीर की रचना के आधार पर प्राणियों का वर्गीकरण किया जाता है, जो कि नीचे दिए गए अनुसार है:-

  • एक शफ (एक खुर वाले पशु):- खर (गधा), अश्व (घोड़ा), अश्वतर (खच्चर), गौर (एक प्रकार की भैंस), हिरण को शामिल किया जाता है।
  • द्विशफ (दो खुर वाले पशु):- गाय, बकरी, भैंस, कृष्ण मृग आदि शामिल है।
  • पंच अंगुल (पांच अंगुली) नखों (पंजों) वाले पशु:-सिंह, व्याघ्र, गज, भालू, श्वान (कुत्ता), श्रृंगाल आदि को शामिल किया जाता है।

जैन मतानुसार चौरासी लाख योनियों की अपेक्षा


(मूलाचार/226)णिच्चिदरधादु सत्त य तरु दस विगलिंदिएसु छच्चेव । सुरणरयतिरिय चउरो चउदस मणुए सदसहस्सा ।226।= नित्यनिगोद, इतरनिगोद, पृथिवीकाय से लेकर वायुकाय तक-इनके सात सात लाख योनियाँ हैं । प्रत्येक वनस्पति के दश लाख योनि हैं, दो इंद्रिय से चौइंद्री तक सब छह लाख ही हैं, देव व नारकी और पंचेंद्री तिर्यंचों के चार-चार लाख योनि हैं तथा मनुष्यों के चौदह लाख योनि हैं । सब मिलकर चौरासी लाख योनि हैं ।226। (मूलाचार/1104</span)); ( बारस अणुवेक्खा/35 ); ( तिलोयपण्णत्ति/5/297 ); ( तिलोयपण्णत्ति/8/701 ); ( तत्त्वसार/2/110-111 ); ( गोम्मटसार जीवकांड/89/211 ); ( नियमसार/ तात्त्पर्यवृत्ति/42) ।

संतवाणी के अनुसार 84 लाख योनियों का अर्थ

संतवाणी में कुछ भिन्नता है परंतु इन्होंने भी संख्या 84 लाख बताई है।

नवलाख जल के जीव बखाना, पक्षीगण दसलक्ष प्रमाना। 

किरमि कीट एकादश लाखा, तेईस लाख चतुष्पद भाखा।।

सत्ताईस लाख स्थावर जानो, चार लाख मानुष तन मानो।

अन्य योनि निश्चय नहीं गावा, मुक्ति द्वार मानुष तन पावा।।

निम्न वाणी में महामति प्राणनाथ जी ने भी 84 लाख योनियों की बात कही है तथा इन चौरासी लाख योनियों को चार खंडों में बांटा गया है।

लाख चौरासी जीव जन्त, ए बांधे सब निरवाण।    

थिर चर आद अनाद लो, ए भरी चारों खान।।” (किरन्तन -27-13)

 ये चार प्रकार के खंड निम्न प्रकार की हैं –     

1- स्वेदज (पसीने से उत्पन्न होने वाले जीव)।

2- उद्भज (जमीन फोड़कर उत्पन्न होने वाले जीव)।      

3- अंडज (अंडे से उत्पन्न होने वाले जीव)।   

4- जरायुज (जेर से उत्पन्न होने वाले जीव)।

इस कथा को जो पढ़ेगा उसे 84 लाख योनियों से मुक्ति मिल जायेगी


एक बार की बात है कि यशोदा मैया प्रभु श्री कृष्ण के उलाहनों से तंग आ गयीं और छड़ी लेकर श्री कृष्ण की ओर दौड़ीं। जब प्रभु ने अपनी मैया को क्रोध में देखा तो वह अपना बचाव करने के लिए भागने लगे।भागते- भागते श्री कृष्ण एक कुम्हार के पास पहुँचे । कुम्हार तो अपने मिट्टी के घड़े बनाने में व्यस्त था। लेकिन जैसे ही कुम्हार ने श्री कृष्ण को देखा तो वह बहुत प्रसन्न हुआ। कुम्हार जानता था कि श्री कृष्ण साक्षात् परमेश्वर हैं। तब प्रभु ने कुम्हार से कहा कि ‘कुम्हारजी, आज मेरी मैया मुझ पर बहुत क्रोधित हैं। मैया छड़ी लेकर मेरे पीछे आ रही हैं। भैया, मुझे कहीं छुपा लो।’ तब कुम्हार ने श्री कृष्ण को एक बड़े से मटके के नीचे छिपा दिया। कुछ ही क्षणों में मैया यशोदा भी वहाँ आ गयीं और कुम्हार से पूछने लगीं- ‘क्यूँ रे, कुम्हार ! तूने मेरे कन्हैया को कहीं देखा है, क्या ?’ कुम्भार ने कह दिया- ‘नहीं, मैया ! मैंने कन्हैया को नहीं देखा।’ श्री कृष्ण ये सब बातें बड़े से घड़े के नीचे छुपकर सुन रहे थे। मैया तो वहाँ से चली गयीं। अब प्रभु श्री कृष्ण कुम्हार से कहते हैं- ‘कुम्हारजी, यदि मैया चली गयी हो तो मुझे इस घड़े से बाहर निकालो।’
कुम्भार बोला- ‘ऐसे नहीं, प्रभु जी ! पहले मुझे चौरासी लाख योनियों के बन्धन से मुक्त करने का वचन दो।’ भगवान मुस्कुराये और कहा- ‘ठीक है, मैं तुम्हें चौरासी लाख योनियों से मुक्त करने का वचन देता हूँ। अब तो मुझे बाहर निकाल दो।’ कुम्हार कहने लगा- ‘मुझे अकेले नहीं, प्रभु जी ! मेरे परिवार के सभी लोगों को भी चौरासी लाख योनियों के बन्धन से मुक्त करने का वचन दोगे तो मैं आपको इस घड़े से बाहर निकालूँगा।’ प्रभु जी कहते हैं- ‘चलो ठीक है, उनको भी चौरासी लाख योनियों के बन्धन से मुक्त होने का मैं वचन देता हूँ। अब तो मुझे घड़े से बाहर निकाल दो।’
अब कुम्हार कहता है- ‘बस, प्रभु जी ! एक विनती और है। उसे भी पूरा करने का वचन दे दो तो मैं आपको घड़े से बाहर निकाल दूँगा।’ भगवान बोले- ‘वो भी बता दे, क्या कहना चाहते हो ?’ कुम्भार कहने लगा- ‘प्रभु जी ! जिस घड़े के नीचे आप छुपे हो, उसकी मिट्टी मेरे बैलों के ऊपर लाद के लायी गयी है। मेरे इन बैलों को भी चौरासी के बन्धन से मुक्त करने का वचन दो।’ भगवान ने कुम्हार के प्रेम पर प्रसन्न होकर उन बैलों को भी चौरासी के बन्धन से मुक्त होने का वचन दिया।’
प्रभु बोले- ‘अब तो तुम्हारी सब इच्छा पूरी हो गयीं, अब तो मुझे घड़े से बाहर निकाल दो।’
तब कुम्हार कहता है- ‘अभी नहीं, भगवन ! बस, एक अन्तिम इच्छा और है। उसे भी पूरा कर दीजिये और वो ये है- जो भी प्राणी हम दोनों के बीच के इस संवाद को सुनेगा, उसे भी आप चौरासी लाख योनियों के बन्धन से मुक्त करोगे। बस, यह वचन दे दो तो मैं आपको इस घड़े से बाहर निकाल दूँगा।’
कुम्भार की प्रेम भरी बातों को सुन कर प्रभु श्री कृष्ण बहुत खुश हुए और कुम्हार की इस इच्छा को भी पूरा करने का वचन दिया।
फिर कुम्हार ने बाल श्री कृष्ण को घड़े से बाहर निकाल दिया। उनके चरणों में साष्टांग प्रणाम किया। प्रभु जी के चरण धोये और चरणामृत पीया। अपनी पूरी झोंपड़ी में चरणामृत का छिड़काव किया और प्रभु जी के गले लगाकर इतना रोये कि प्रभु में ही विलीन हो गये।
जरा सोच करके देखिये, जो बाल श्री कृष्ण सात कोस लम्बे-चौड़े गोवर्धन पर्वत को अपनी इक्क्नी अंगुली पर उठा सकते हैं, तो क्या वो एक घड़ा नहीं उठा सकते थे। लेकिन बिना प्रेम रीझे नहीं नटवर नन्द किशोर। कोई कितने भी यज्ञ करे, अनुष्ठान करे, कितना भी दान करे, चाहे कितनी भी भक्ति करे, लेकिन जब तक मन में प्राणी मात्र के लिए प्रेम नहीं होगा, प्रभु श्री कृष्ण मिल नहीं सकते। जय श्री कृष्ण। जय श्री राधे राधे।

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