
दीवान-ए-अजय | कवि अजय शर्मा की काव्यात्मक रचनाओं का प्रथम संग्रह आप सभी सुधि पाठको के समक्ष प्रस्तुत है। श्री अजय शर्मा विज्ञान से स्नातक है व इनकी अधिस्नातक उपाधि ” हिंदी ” विषय मे है। आप एक राजकीय शिक्षक के रूप में समाज को अपनी अमूल्य सेवाएं प्रदान कर रहे है। आप मूलतः कोटपुतली , जयपुर के निवासी है।
स्वयं के बारे में श्री अजय शर्मा के दो शब्द।
अपनी रचनाओंके माध्यम से देश और समाज के नव निर्माण का प्रयास करना, व्यवस्था में सुधार का सूत्रपात करना, जनसाधारण के अंतर्मन को आंदोलित करना, एक सच्चे शिक्षक और सद्नागरिक के दायित्व को निभाना, युवा वर्ग को प्रेरित करना, यही मेरा उद्देश्य है।। श्री अजय शर्मा
मधु की तलाश में।
मधु की तलाश में भटकते मतवाले थे।
श्री अजय शर्मा
इस शहर में कुछ ऐसे भी दिलवाले थे।।
सारे जहां में अंधेरा कायम हो लेकिन ।
उसकी आंखो में तो आशाओं के उजाले थे।।
जमाने का चलन समझ न आया हमको।
सारे बेशकीमती खजाने चोरों के हवाले थे ।।
हर तकलीफ को भुलाकर जीता चला गया। उसके हाथों में आखिर मय के प्याले थे ।।
अपनेपन के खयालों से रोशन थी ये दुनिया।
ये वो वक्त था जब सर के बाल काले थे।। आसमान से गिरने का खतरा किसे था ‘अजय’ हम तो सदा से ही जमीन पर चलने वाले थे।।
2. जाने आज यह क्या बात हुई ?
जाने आज यह क्या बात हुई ? अचानक ही उनसे मुलाकात हुई ।
श्री अजय शर्मा
हमने कभी किसी का बुरा नहीं किया हमारे साथ ही फिर क्यूं घात हुई ?
ईमान सारे जहां में मशहूर था जिसका आखिर आज उसी की तहकीकात हुई?
खेल खेल में दिल हो जाएंगे टुकडें आज कुछ इस तरह की खुराफात हुई?
आसमान से ऊँचा कद हो गया उनका कैसे आज उनकी इतनी बड़ी औकात हुई ? हाल-ए-दिल लिखा था कोई गजल नहीं ‘अजय’ दर्द-ए-गम पर गुफ्तगू सारी कायनात हुई?
3. आंखों में किसी सपने को तो पलना होगा।
आंखों में किसी सपने को तो पलना होगा। बिना रूके बिना थके अनवरत ही चलना होगा।। दुनिया का क्या है कुछ भी बात कह हमे अपने आदर्शों के सांचों में ढलना होगा।।
श्री अजय शर्मा
मन में सोचे ख्यालात पर कायम न रहो दुनिया के हालातों से जाने कब तक गलना होगा।।
अपनी रूह को कितना भी पाक कर लो लेकिन दुनिया का काम तो तुमको हर पल छलना होगा। अंधेरी रातों में रोशनी की क्या आस करो ‘अजय’ राह को रोशन करने के लिए तुमको ही जलना होगा।।
4. अपने जीवन में नई आस तो लाओ।
अपने जीवन में नई आस तो लाओ।
श्री अजय शर्मा
आगे बढते रहने की प्यास तो लाओ ।।
बीच सड़क पर मर गया कोई नौजवा।
तुम्हारा कोई अपना था अहसास तो लाओ।।
रहने को छोटी पड़ गई जमीं तो क्या हुआ।
रहने के लिए अपने कोई आकाश तो लाओ।।
नीरस और बेजान होती जा रही है जिन्दगी। जीवन में लगे कोई बात खास तो लाओ।।
गोल परिधि पर कब तक भटकोगे “अजय”।
दो सिरों को मिला दे वो प्यास तो लाओ।।
5. जीवन जीते जाने की लाचारी हैं।
जीवन जीते जाने की लाचारी हैं।
श्री अजय शर्मा
अब ना कोई मन में बेकरारी है।।
दुनिया मे हमारा कोई दुश्मन नहीं।
अपनी तो सारे जहां से यारी है।।
लोगों को भले कितनी ही शिकायतें हो।
अपने लिए यह दुनिया बहुत प्यारी है।।
अपने दुख नहीं औरों के सुख से परेशां हैं।
लोगों को जाने यह कैसी बीमारी है ?
गले लगाकर जाने कब छुरा भोंक दे।
दुनिया की यह रीत बड़ी न्यारी है।।
ऐसे माहौल मे दम घुटता है ” अजय”।
अपनी तो यहां से जाने की तैयारी है।।
6. जाने कैसा हो गया अब मानव का स्वभाव ।
जाने कैसा हो गया अब मानव का स्वभाव ।
श्री अजय शर्मा
कोई निश्चित मंजिल नहीं केवल बचा भटकाव।।
जाने क्या पाने को दौड़ रहा हर पल।
आखिर जिन्दगी में है किस चीज का अभाव।। औरों के दामन के छींटे देख रहे सब लोग नहीं। किसी को दिखते कभी निज तन के घाव।। तकनीक की इस दुनिया में गोपनीय कुछ नहीं। अब अपने दोषों का भी नहीं कर पाओगे छिपाव। ।
केवल बाहरी भेद हैं अंदर बैठा भगवान जाने। कब ला पाएगा अपने अंदर यह समभाव ?
7. बात कितनी अजीब है जामा तलाशी बेकार हैं ।
बात कितनी अजीब है जामा तलाशी बेकार हैं । आदमी सचमुच गरीब है। वक्त बता देता है । कौन कितना करीब है ?
सबका अपना नसीब है। जिंदगी सीमित बची है लाचार और बदनसीब है?
रवैया बता देता हैसांसे मानो जरीब हैं। हालात देखना व्यर्थ हैं। कौन किसका रकीव है?
तुम्हें क्या समझायें ‘अजय‘ लगता कोई अदीब है।
8. जाने कैसे-कैसे ख्याल आते हैं?
जाने कैसे-कैसे ख्याल आते हैं? रोज अनजानी राहों पे जाते हैं।
श्री अजय शर्मा
बंद हो चुके हैं दरवाजे जिनके क्यूं उन्हीं के गीत गाते हैं ?
फिर वही तड़प कसक और बेखुदी आखिर किस लिए रोज पाते हैं?
भूल गये जिनके नाम भी शायद जाने हमारे उनसे क्या नाते है?
छूट गया जीवन के सफर में पीछे फिर उसी का नाम होठो पर लाते हैं?
कैसी आवारगी का आलम है ‘अजय’ ना गुजर रहे दिन और ना राते हैं?
9. सारे जहाँ में अब होती तकरार है।
सारे जहाँ में अब होती तकरार है। हर किसी के हाथ में अब तलवार है।।
श्री अजय शर्मा
उसकी बातों को कैसे अनसुना करोगें। आदमी नया है मगर असरदार है।।
आते ही शिकंजे में उसका गला काट लो। यही दुनियादारी है और यही व्यापार है।।
दीवानगी उसकी कभी कम नहीं हुई ।
मुद्दत गुजरी फिर भी तलवगार है।।
दुनिया की भीड़ में संभलकर चलो। जरा अकेले नहीं हो तुम पीछे घर-बार है।।
फितरत तुम्हारी देखकर क्या कहें “अजय” सारी दुनिया कहती है कि तू गुनहगार है।।
10. कैसा अजीब यार है ?
कैसा अजीब यार है ? छुपकर करता वार है।।
श्री अजय शर्मा
कितना ही राजी हो लो हुई तुम्हारी हार है।।
जो अपने आप को भूला वही दरिया के पार है।। राह ताकता है मुर्दा कहाँ वो कंधे चार हैं ? कितनी बार कहें उससे वही गलती हर बार हैं।। सब कुछ भूल गये ‘अजय‘ वक्त की कैसी मार है ?
11. अनजान राहों पर जाना है जीवन में अब क्या पाना हैं ?
अनजान राहों पर जाना है जीवन में अब क्या पाना हैं ?
श्री अजय शर्मा
सारी दुनिया से रूठ गए है बस तुमको ही अपना माना है।
कोई किसी का नहीं है यहाँ आज यही सच जाना है।
जिस घर को छोड़ गए कभी आज वहीं लौट कर आना है।
हम जिसे गुनगुना नहीं सकते. बाकी बच गया वही तराना है।
हमसे रूठ गए सभी अपने जाकर अब सबको मनाना है।
शहर मे मन कैसे लगे हर कोई यहाँ अनजाना है।
दिल के आर पार हो गया तीर नहीं है कोई ताना हैं ।
छूट गये जो सपने पीछे जीवन में वापस लाना है।
चोट खाकर भी हँसता है ‘अजय’ जाने कैसा अजब दीवाना हैं।
12. जाने कैसा हाल है ?
जाने कैसा हाल है ? बदली बदली चाल है। केवल लावारिस लाश नहीं आखिर किसी का लाल है।।
श्री अजय शर्मा
यतीम होकर जिन्दा है कौन लेता पाल है ? अनदेखी मत करो मुसीबत आने वाला काल है।।
डूबते को तिनके का सहारा मिल जाती कोई ढाल है।।
सारे सपने टूट गये अजब अनोखा साल है गुम हो गये होश “अजय” ना सुर है ना ताल है ।।
13. खुद में ख़ुदा की तलाश है ।
खुद में ख़ुदा की तलाश है । पा लेंगे यह विश्वास है।
श्री अजय शर्मा
सारे सपने टूट गये हैं अब बाकी क्या आस है ? सब कुछ जुऐ हार गये अब बचा क्या पास है? गोल घेरों पर चक्कर काटते सूशता नहीं कोई व्यास हैं।
पानी नहीं खून से बुझती आखिर कैसी ये प्यास है ?
तुमको समझाना मुश्किल है ‘अजय‘ आखिर तू क्यों उदास है ?
14. कितना भी बचो तुम पर ही नजर है।
कितना भी बचो तुम पर ही नजर है। कोई अजनबी नहीं अपना ही शहर है। ।
श्री अजय शर्मा
अभी न थको महफिल चलेगी। देर तलक अभी रात का दूसरा ही तो पहर है।।
इतनी बेतकल्लुफी मुनासिब नहीं। तुम्हारे लिये आदमी पराया है, तुम्हारी पहचान का अगर है।।
आंखें थक गई राह तकते तकते उनकी फिर भी हर आहट पर जाती ठहर है।।
बेफिक्र हो डूब जाने दो नशे में मुझे तुम्हारी लम्बी रात के बाद मेरी सहर हैं।।
महफिल की रंगीनियों में भटक न जाना ‘अजय’ हर शै यहाँ एक अन्तहीन सफर में है।
15. डूबने लगे तो किनारा देखा।
डूबने लगे तो किनारा देखा। उनकी आंखो का इशारा देखा।।
श्री अजय शर्मा
सारी उम्र आवारगी में गुजरी अब बुढ़ापे में गुजारा देखा।।
चुपचाप मर गया बिन बोले एक आदमी ऐसा बेचारा देखा।।
आदमी को मतलब नहीं आदमी से ऐसा अनोखा शहर तुम्हारा देखा।।
मौत की सरहद में आ गये तो जिन्दगी का हसीन नजारा देखा।।
कुछ अजीब सी शै हो तुम ‘अजय‘ ना कोई तुम जैसा दोबारा देखा।
16. अपने आप पर उसे नाज है।
अपने आप पर उसे नाज है। आखिर उसी का वक्त आज है ।
श्री अजय शर्मा
सुरों की पहचान भला कौन करे किसे पता बजा कौनसा साज है ?
तारूफ की मोहताज नहीं उड़ान उसकी आदमी नहीं है मानों कोई बाज है।
साथी उम्र हुकूमत की थी जिसने ना उसके सिर पर कोई ताज है।
दो घड़ी में मिट गई दुनिया सारी शायद ख़ुदा ने ही गिराई गाज हैं ।
उसके बारे में क्या जानोगे ‘अजय‘ शख्सियत उसकी एक गहरा राज है
17. जाने कुछ लोग कैसे जीते है ?
जाने कुछ लोग कैसे जीते है ? हर घड़ों आंसुओं को पीते हैं।
श्री अजय शर्मा
ये हकीकत है कोई ख्वाब नहीं, जो वाकयात उस पर बीते हैं।
सारी उम्र कमाई दौलत उसने फिर भी कफन में हाथ रीते हैं।
समय के बहाव में फटी रूह की चादर फिर भी नाजुक अहसासों से उसे सीते हैं।
मकान की मजबूती का गुमां है उसे पता नहीं कि नींव में लगे पलीते हैं।
सारी उम्र सफर में बिता दी ‘अजय‘ हार गये हम या जिन्दगी से जीते हैं।
18. जाने मुझे इस बात का मलाल क्यूं है ?
जाने मुझे इस बात का मलाल क्यूं है ? सीने में उमड़ते कई सवाल क्यूं है ?
श्री अजय शर्मा
अमन और चैन की बस्ती थी यहाँ पर फिर आज हर शख्स यहाँ हलाल क्यूं हैं ?
सादगी के चर्चे हुआ करते थे यहाँ जिनके आज उनकी शखसियत का जालो – जलाल क्यूं है?
दीन दुनिया से बेखबर रहा करता था जो आज उसे हर बात का इतना ख्याल क्यू है?
सरकारी नुमाइंदों के घरों में छा गई खुशियाँ आखिर हर साल ही पड़ता ये अकाल क्यूं है ? दहशतगर्दों की बस्ती में जरा संभलकर रहो ‘अजय‘ पत्थर की जगह तुम्हारे हाथ में गुलाल क्यूं है ?
19. आज हमारे होश ठिकाने आ गये देखा जब कैसे जमाने आ गये ।
आज हमारे होश ठिकाने आ गये देखा जब कैसे जमाने आ गये ।
श्री अजय शर्मा
जीवन भर जिनको बताते रहे रास्ता आज वही हमको समझाने आ गए।
हमें पता नहीं कि ये भी मुमकिन है आज नई बात बताने आ गए।
जीवन भर झुककर ही चलता रहा है वो आज हथियार उठाने को उकसाने आ गये।
खून पसीना एक करके पाला था जिनको आज बुढ़ापे में वहीं सताने आ गये ।
बदले हुए समय की क्या बात कहें ‘अजय‘ आज मेरे अपने मुझे आजमाने आ गये ।
20. जाने किस बात पे अड़ी है ? आज जिंदगी सामने खड़ी हैं।
जाने किस बात पे अड़ी है ? आज जिंदगी सामने खड़ी हैं।
दीवान-ए-अजय
उनको पहचानना हो गया नामुमकिन वक्त की मार ऐसी पड़ी है।
आज काटे नहीं कटता है वक्त मानो दीवार में कोई बंद घड़ी है।
अपने गुनाह कोई नहीं देखता लेकिन मजलूम के लिए सबके हाथ मे छड़ी है।
कभी दो वक्त की रोटी भी मयस्सर ना थी आज अगुली में अंगूठी हीरे जड़ी है।
तुम्हारी बेचैनी का सबब जानता हूं, “अजय” वक्त और हालात पर तुम्हारी आंख गड़ी है।
श्री अजय शर्मा
समीक्षा
किसी भी लेखन कार्य की समीक्षा एक बड़ा सतर्क विषय है क्योंकि समीक्षक की समीक्षा व लेखक के लेखन कार्य मे प्रत्यक्ष कोई सम्बन्ध नही होता। लेखन कार्य लेखक की मनोद्रष्टि व मनोदशा के साथ ही अन्य अनेक विषयों से सम्बंधित होता है जबकि समीक्षा एक प्रत्यक्ष विषय है।
लेखक श्री अजय शर्मा के इस ” दीवान ” में उनकी करीबन 20 रचनाओं को सम्मिलित किया गया है। प्रथम दृष्टि में हम यह कह सकते है कि श्री अजय शर्मा की रचनाओं में व्यवस्था के प्रति रोष उनके प्रश्नों में झलकता है तथा उनके विचारों में छुपे हुए वे इशारे है जो समाज मे सुधारवादी कदम साबित हो सकते है।
सुरेंद्र सिंह चौहान