
राजस्थान के लोक जीवन में भोपाओं द्वारा फड़ बाँचने की परम्परा का सदियों से प्रचलन रहा है। विशेषत: देवनारायण और पाबूजी के फ़ड़ अत्यन्त लोकप्रिय है। इस परम्परा में लगभग ८ ३६ मीटर विशाल फड़ का प्रयोग किया जाता है जिसमें लोक गाथा के पात्रों और घटनाओं का चित्रण होता है। इस विशालकाय चित्रण को सामने रख भोपागण काव्य के रुप में लोक कथा के पात्रों के जीवन, उनकी समस्याओं, प्रेम, क्रोध, संघर्ष, बलिदान, पराक्रम और उस जमाने में प्रचलित अन्तर्द्वेनदों को उभारकर प्रस्तुत करते हैं। नृत्य और गान का समावेश भोपाओं की इस प्रस्तुति को अत्यन्त लोकप्रिय बना देता है। विशेषकर राजस्थान के देहाती क्षेत्र के लोगों के सांस्कृतिक जीवन में इस परम्परा की गहरी छाप रही है।
भोपागण जागरण के रुप में नृत्य और गान के साथ फड़ को बाँचते हैं। यह प्रस्तुति प्रत्येक वर्ष कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष के ११वें दिन से शुरु की जाती है। इसके बाद साल भर तक भोपागण अलग-अलग जगह पर जाकर फड़ कथा बाँचते हैं। साल भर में केवल चौमासे (बरसात का महीना) में इस प्रस्तुति को रोक दिया जाता है। कहा जाता है कि चौमासे में देवनारायण एवं अन्य देवतागण सो जाते है। इस महीने में फड़ों को खोलना भी वर्जित होता है। चौमासे में बैठकर कथा वाचन एवं गान किया जा सकता है परन्तु उसमें फड़ व नृत्य का प्रयोग नहीं किया जाता।
भोपाओं द्वारा फड़ प्रस्तुति केवल तीन स्थलों पर ही की जा सकती है-
- भक्तगणों के घरों में
- देवनारायण अथवा सवाई भोज के मन्दिर के प्रांगण में
- जनसमुदाय सभा स्थल के सामने
देवनारायण जी की फड़ पर डाक टिकट कब जारी हुआ?
भारत सरकार ने 2 सितम्बर 1992 को देवनारायण जी की फड़ पर 5रू. का डाक टिकट जारी किया था।
देवनारायणजी का मुख्य पूजा स्थल कहाँ स्थित है?
देवनारायणजी का मुख्य मंदिर भीलवाड़ा जिले के आसींद शहर के पास सवाई भोज में स्थित है।
देवनारायण की उत्पत्ति कैसे हुई?
देवनारायण की फड़ के अनुसार मांडलजी के हीराराम, हीराराम के बाघसिंह और बाघसिंह के 24 पुत्र हुए जो बगडावत कहलाए. इन्ही में से बड़े भाई सवाई भोज और माता साडू (सेढू) के पुत्र के रूप में विक्रम संवत् 968 (911 ईस्वी) में माघ शुक्ला सप्तमी को आलौकिक पुरुष देवनारायण का जन्म मालासेरी में हुआ. देवनारायण पराक्रमी यौद्धा थे.
सार संक्षेप
देवनारायण की फड़ एक कपड़े पर बनाई गई भगवान विष्णु के अवतार देवनारायण की महागाथा है जो मुख्यतः राजस्थान तथा मध्य प्रदेश में गाई जाती है। राजस्थान में भोपे फड़ पर बने चित्रों को देखकर गाने गाते हैं जिसे राजस्थानी भाषा में ‘पड़ का बाचना’ कहा जाता है। देवनारायण भगवान विष्णु के अवतार थे।
