परीक्षा के दिन परीक्षार्थी के लिए बड़े कठिन होते हैं। इन दिनों परीक्षार्थी अपनी समस्त शक्ति अध्ययन की ओर केन्द्रित कर एकाग्रचित होकर सम्भावित प्रश्नों को कंठस्थ करने के लिए लगा देता है। ये दिन उसके लिए परीक्षा देवी को प्रसन्न करने के लिए अनुष्ठान करने के दिन हैं, गृहकार्यों से मुक्ति, खेल-तमाशों से छुट्टी और मित्रों-साथियों से दूर रहने के दिन हैं।
परीक्षा परीक्षार्थी के लिए भूत है। भूत जिस पर सवार हो जाता है उसकी रातों की नींद हराम हो जाती है. दिन की भूख गायब हो जाती है और घर में सगे-सम्बन्धियों का आना बुरा लगता है। दूरदर्शन के मनोरंजक कार्यक्रम, मनपसन्द एपीसोड, चित्रहार आदि समय नष्ट करने के माध्यम लगते हैं।
परीक्षा के इन कठिन दिनों में परीक्षा-ज्वर चढ़ा होता है, जिसका तापमान परीक्षा- भवन में प्रवेश करने तक निरन्तर चढ़ता रहता है और प्रश्न-पत्र हल करके परीक्षा भवन से बाहर आने पर ही सामान्य होता है। फिर अगले विषय की तैयारी का स्मरण होते ही यह ज्वर 99,100,101 के क्रम से चढ़ना आरम्भ कर देता है। ज्वरग्रस्त परीक्षार्थी निरन्तर विश्राम न कर पाने की पीड़ा से छटपटाता है। परीक्षाज्वर से ग्रस्त परीक्षार्थी क्रोधी बन जाता है, चिन्ता ‘दावा’ बनकर उसके स्वास्थ्य को चौपट कर देती है।
वर्ष के प्रारम्भ से ही नियमपूर्वक अध्ययन न करने वाला परीक्षार्थी परीक्षा के इन कठिन दिनों में पवन-सुत हनुमान् की भाँति एक ही उड़ान में परीक्षा – समुद्र लाँघना चाहता है। वह सहायक पुस्तकों का आश्रय ढूँढता है, गलत सलत जो भी पुस्तक देवता समझकर पूजता है, विष को भी अमृत समझकर पी जाता है। मिल जाए, उसे परीक्षार्थी की कठिनाई उस समय पूर्णतः बढ़ जाती है, जब वह ‘गैस पेपर’ या ‘टेस्ट पेपर’ में कोई ऐसा प्रश्न देखता है, जिसे अध्यापक ने प्रमादवश या ‘ऑउट ऑफ कोर्स’ कहकर छुड़वा दिया था, तब वह किंकर्तव्यविमूढ़ हो अध्यापक को गाली देता है।
‘डूबते को तिनके का सहारा।’ परीक्षा के कठिन दिनों में कतिपय छात्र नकल का आश्रय लेना चाहते हैं, किन्तु नकल के लिए भी अकल की जरूरत है। नकल के लिए निरीक्षक की आँखों में धूल झोंकने की चतुराई चाहिए। निरीक्षक को लोभ-लालच देकर या धमकी से सुविधा प्राप्त करने की शक्ति चाहिए। फिर नकल के लिए किन-किन प्रश्नों के संकेत लिखने हैं, किन-किन प्रश्नों का पूरा उत्तर ही फाड़कर ले जाना है, यह निर्णय करने की योग्यता चाहिए। नकल की घबराहट में पढ़ा कुछ जाता है, लिखा कुछ जाता है। कंठस्थ उत्तर भी विस्मृत हो जाता है। कारण, आत्मविश्वास जो हिल जाता है।
परीक्षा के इन कठिन दिनों में परीक्षार्थी अहर्निश इस भय से ग्रस्त रहता है कि पता नहीं परीक्षा में क्या आएगा? भय से वह अनेक कार्य करता है। वह अध्यापक की सहायता से सम्भावित प्रश्नों को छाँट लेता है, किन्तु वह जानता है परीक्षा मात्र संयोग है, प्रश्न- पत्र लाटरी’ है- अनिश्चित और अविश्वसनीय। परीक्षक प्रश्न-पत्र के माध्यम से उसके भाग्य के साथ क्रूर परिहास कर सकता है। भय का एक कारण प्रश्नों का प्रचलित परम्परागत शैली से हटना भी है। यदि परीक्षक ‘समाचार पत्र’ पर निबन्ध न पूछकर ‘जन-जागरण और समाचार-पत्र’, मद्य-निषेध न पूछकर ‘मद्य-निषेध की अनिवार्यता, ‘ ‘परीक्षा’ न पूछकर ‘परीक्षा के ये कठिन दिन’ पूछ बैठे, तो कुशल और योग्य परीक्षार्थी का मस्तिष्क भी चकरा जाता है, उसे मूर्च्छा आने लगती है। यदि पढ़ा हुआ, कंठस्थ किया हुआ प्रश्न आ गया, तो पौ-बारह हैं।
परीक्षा का समय तीन घंटे निश्चित होता है। इस अल्पावधि का एक-एक क्षण अमूल्य होता है। प्रश्न-पत्र को अच्छी तरह समझकर हल करना और भी कठिन होता है। किसी प्रश्न या प्रश्नों का उत्तर लम्बा लिख दिया तो अन्य प्रश्न छूटने का भय रहता है। उत्तर प्रश्नों के अनुसार न दिए तो अंकों की न्यूनता की आशंका रहती है। विचारों की अभिव्यक्ति में सुन्दरता न आई तो पिछड़ने का भय रहता है। विचारों को व्यक्त करने के लिए भाषा अनुकूल न बनी, तो भी गड़बड़ होने की आशंका होती है। सबसे बड़ी कठिनाई तो तब आती है, जब रटा हुआ उत्तर लिखते-लिखते दिमाग में द्वन्द्व मच जाता है। उस समय सूझ-बूझ का दिवाला निकल जाता है। अतः रटे हुए उत्तर के स्मरणार्थ लिखे को दोहराने लगते हैं तो समय दबे पाँच खिसकता जाता है।
परीक्षा के इन कठिन भयप्रद दिनों को साहसपूर्वक पार करने का अर्थ है सफलता का वरण करना। इसके लिए अनिवार्य है प्रारम्भ से ही एकाग्रचित्त होकर नियमित अध्ययन । प्रमादवश या अध्ययन के प्रति उपेक्षा भाव के कारण नियमित परिश्रम नहीं हो सका तो ‘परीक्षा तैयारी के अवकाश’ में धैर्यपूर्वक और नियमित परिश्रम करो। बार-बार पढ़ने से, सहायक पुस्तकों तथा अध्यापकों के सहयोग से कठिनाई दूर हो जाती है। वृन्द कवि ने कहा भी है, ‘करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान।’
परीक्षा के दिनों में आत्म-विश्वास को बनाए रखो। जो कुछ पढ़ा है समझा है, कंठस्थ किया है, उस पर भरोसा करो। परीक्षा भवन के लिए चलने से पूर्व मन को शांत रखो। कोई अध्ययन सामग्री साथ न लो, न कहीं से पढ़ने देखने की चेष्टा करो। परीक्षा भवन में प्रश्न-पत्र को दो बार पढ़ो। उन प्रश्नों पर चिह्न लगा लो, जिन्हें कर सकते हो। जो प्रश्न सबसे बढ़िया लिख सकते हो, उसे पहले लिखो। लिखने से पूर्व ‘कथ्य’ सोच लो। कथ्यों का विस्तार करते चलो। उत्तर लिखने के बाद उस उत्तर का पुनः पाठ करो। उत्तर को अंकों के अनुसार • छोटा या बड़ा करना न भूलो। यदि कोई प्रश्न अत्यन्त कठिन है, तो उसे अन्त में करो। उस पर कुछ क्षण विचार करो। विचारोपरान्त जो समझ में आता है, उसे लिख दो। इससे परीक्षा के कठिन दिनों की पीड़ा से छुटकारा पा सकोगे।
कठिनाई को सरल बनाना या समझना मानव मन की दृढ़ता और विवेक पर अलम्बित है। भय और आतंकपूर्ण होते हुए भी परीक्षा के कठिन दिन एकाग्रचित अध्ययन और सतत चेष्टा से आनन्दपूर्ण दिनों में परिणत किए जा सकते हैं।