भागवत गीता में आत्मनिर्भरता पर बल दिया गया है
भगवद गीता में, भगवान कृष्ण आत्मनिर्भरता के महत्व और दूसरों पर निर्भर होने के खतरों पर जोर देते हैं। अध्याय 3, श्लोक 6 में, वे कहते हैं, “जो इंद्रियों और कर्मों के अंगों को संयमित करता है, लेकिन जिसका मन इंद्रियों की वस्तुओं पर ध्यान केंद्रित करता है, वह निश्चित रूप से अपने आप को धोखा देता है और उसे ढोंग कहा जाता है।”
इसका मतलब यह है कि अगर हम अपनी इच्छाओं और जरूरतों को पूरा करने के लिए दूसरों पर बहुत अधिक भरोसा करते हैं, तो हम भ्रमित हो जाते हैं और अपने वास्तविक स्वरूप से दूर हो जाते हैं। हम ढोंगियों की तरह बन जाते हैं, आत्मनिर्भर होने का ढोंग करते हैं लेकिन वास्तव में हम दूसरों पर निर्भर हैं।
भगवान कृष्ण भी अध्याय 3, श्लोक 8 में कर्म के महत्व के बारे में बताते हैं, जहां वे कहते हैं, “अपना निर्धारित कर्तव्य करो, ऐसा करने के लिए काम न करने से बेहतर है। कोई व्यक्ति बिना काम के अपने भौतिक शरीर का रखरखाव भी नहीं कर सकता है।”
इसका मतलब है कि हमें अपने जीवन की जिम्मेदारी लेनी चाहिए और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कड़ी मेहनत करनी चाहिए। हम अपने लिए काम करने के लिए या हमें अपनी जरूरत की हर चीज उपलब्ध कराने के लिए दूसरों पर निर्भर नहीं रह सकते। कार्रवाई करने और आत्मनिर्भर होने से हम मजबूत और स्वतंत्र बनते हैं और हम जीवन में सफलता प्राप्त कर सकते हैं।
अध्याय 18, श्लोक 47 में, भगवान कृष्ण कहते हैं, “दूसरे के कर्तव्य को पूरी तरह से करने की तुलना में अपना कर्तव्य अपूर्ण रूप से करना बेहतर है। अपने स्वयं के स्वभाव से पैदा हुए दायित्वों को पूरा करने से, व्यक्ति कभी भी पाप नहीं करता है।”
इसका मतलब यह है कि हमें किसी और का काम करने की कोशिश करने के बजाय अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों पर ध्यान देना चाहिए। अपनी पूरी क्षमता से अपना काम करके, हम दूसरों पर निर्भर हुए बिना, जीवन में सफलता और पूर्णता प्राप्त कर सकते हैं।
कुल मिलाकर, भगवद गीता आत्मनिर्भरता और हमारे जीवन की जिम्मेदारी लेने के महत्व पर जोर देती है। ऐसा करके हम मजबूत, स्वतंत्र और सफल बन सकते हैं और अपनी वास्तविक क्षमता को पूरा कर सकते हैं।
♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️ *!! बिल्ली और कुत्ते !!*
एक दिन की बात है. एक बिल्ली कहीं जा रही थी. तभी अचानक एक विशाल और भयानक कुत्ता उसके सामने आ गया. कुत्ते को देखकर बिल्ली डर गई. कुत्ते और बिल्ली जन्म-बैरी होते हैं. बिल्ली ने अपनी जान का ख़तरा सूंघ लिया और जान हथेली पर रखकर वहाँ से भागने लगी. किंतु फुर्ती में वह कुत्ते से कमतर थी. थोड़ी ही देर में कुत्ते ने उसे दबोच लिया.
बिल्ली की जान पर बन आई. मौत उसके सामने थी. कोई और रास्ता न देख वह कुत्ते के सामने गिड़गिड़ाने लगी. किंतु कुत्ते पर उसके गिड़गिड़ाने का कोई असर नहीं हुआ. वह उसे मार डालने को तत्पर था. तभी अचानक बिल्ली ने कुत्ते के सामने एक प्रस्ताव रख दिया, “यदि तुम मेरी जान बख्श दोगे, तो कल से तुम्हें भोजन की तलाश में कहीं जाने की आवश्यता नहीं रह जायेगी. मैं यह ज़िम्मेदारी उठाऊंगी. मैं रोज़ तुम्हारे लिए भोजन लेकर आऊंगी. तुम्हारे खाने के बाद यदि कुछ बच गया, तो मुझे दे देना. मैं उससे अपना पेट भर लूंगी.”
कुत्ते को बिना मेहनत किये रोज़ भोजन मिलने का यह प्रस्ताव जम गया. उसने इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया. लेकिन साथ ही उसने बिल्ली को आगाह भी किया कि धोखा देने पर परिणाम भयंकर होगा. बिल्ली ने कसम खाई कि वह किसी भी सूरत में अपना वादा निभायेगी.
कुत्ता आश्वस्त हो गया. उस दिन के बाद से वह बिल्ली द्वारा लाये भोजन पर जीने लगा. उसे भोजन की तलाश में कहीं जाने की आवश्यकता नहीं रह गई. वह दिन भर अपने डेरे पर लेटा रहता और बिल्ली की प्रतीक्षा करता. बिल्ली भी रोज़ समय पर उसे भोजन लाकर देती. इस तरह एक महिना बीत गया. महीने भर कुत्ता कहीं नहीं गया. वह बस एक ही स्थान पर पड़ा रहा. एक जगह पड़े रहने और कोई भागा-दौड़ी न करने से वह बहुत मोटा और भारी हो गया.
एक दिन कुत्ता रोज़ की तरह बिल्ली का रास्ता देख रहा था. उसे ज़ोरों की भूख लगी थी. किंतु बिल्ली थी कि आने का नाम ही नहीं ले रही थी. बहुत देर प्रतीक्षा करने के बाद भी जब बिल्ली नहीं आई, तो अधीर होकर कुत्ता बिल्ली को खोजने निकल पड़ा.
वह कुछ ही दूर पहुँचा था कि उसकी दृष्टि बिल्ली पर पड़ी. वह बड़े मज़े से एक चूहे पर हाथ साफ़ कर रही है. कुत्ता क्रोध से बिलबिला उठा और गुर्राते हुए बिल्ली से बोला, “धोखेबाज़ बिल्ली, तूने अपना वादा तोड़ दिया. अब अपनी जान की खैर मना.”
इतना कहकर वह बिल्ली की ओर लपका. बिल्ली पहले ही चौकस हो चुकी थी. वह फ़ौरन अपनी जान बचाने वहाँ से भागी. कुत्ता भी उसके पीछे दौड़ा. किंतु इस बार बिल्ली कुत्ते से ज्यादा फुर्तीली निकली. कुत्ता इतना मोटा और भारी हो चुका था कि वह अधिक देर तक बिल्ली का पीछा नहीं कर पाया और थककर बैठ गया. इधर बिल्ली चपलता से भागते हुए उसकी आँखों से ओझल हो गई.
शिक्षा:-
मित्रों! दूसरों पर निर्भरता अधिक दिनों तक नहीं चलती. यह हमें कामचोर और कमज़ोर बना देती है. जीवन में सफ़ल होना है, तो आत्मनिर्भर बनो!
Dependence on others does not last long. It makes us lazy and weak. If you want to be successful in life, then be self-reliant!