मधुबनी पेंटिंग की बात करने से पहले मधुबनी जिले को जान लेते हैं। बिहार राज्य के मधुबनी शहर के नाम का अर्थ है ‘ पैसे का जंगल ‘ और यह यहाँ बहुतायत में पाया जा सकता है। मधुबनी अपने खूबसूरत गांवों और अपनी प्राचीन कला के लिए लोकप्रिय है, जिसे मधुबनी पेंटिंग के नाम से जाना जाता है। मधुबनी शहर ‘मैथिली’ संस्कृति का केंद्र भी रहा है।
मधुबनी चित्रकला मिथिलांचल क्षेत्र जैसे बिहार के दरभंगा, मधुबनी एवं नेपाल के कुछ क्षेत्रों की प्रमुख चित्रकला है। प्रारम्भ में रंगोली के रूप में रहने के बाद यह कला धीरे-धीरे आधुनिक रूप में कपड़ो, दीवारों एवं कागज पर उतर आई है।
मधुबनी पेंटिंग भारत और विदेशों में सबसे प्रसिद्ध कलाओं में से एक है. इस चित्रकला की शैली को आज भी बिहार के कुछ हिस्सों में प्रयोग किया जाता है, खासकर मिथिला चूंकि मिथिला क्षेत्र में इस पेंटिंग की शैली की उत्पत्ति हुई है, इसलिए इसे मिथिला चित्रों के रूप में भी जाना जाता है.
मधुबनी पेंटिंग में विवाह या जन्म और त्यौहार जैसे अनुष्ठान सामग्री शामिल होती है। अपने जनजातीय रूपांकनों और ज्वलंत मिट्टी के रंगों के उपयोग के कारण , मधुबनी पेंटिंग प्रसिद्ध हैं और इन्हें आसानी से पहचाना जा सकता है।
मधुबनी कला में तीन मुख्य विषय हैं: धर्म, सामाजिक दृश्य और प्रकृति के तत्व । हिंदू पौराणिक आकृतियाँ और पवित्र ग्रंथों के दृश्य बहुत सामान्य विषय हैं, जिनमें राधा और कृष्ण, शिव, गणेश, सरस्वती और लक्ष्मी जैसे लोकप्रिय देवता शामिल हैं।
इतिहास माना जाता है ये चित्र राजा जनक ने राम-सीता के विवाह के दौरान महिला कलाकारों से बनवाए थे। मिथिला क्षेत्र के कई गांवों की महिलाएँ इस कला में दक्ष हैं। अपने असली रूप में तो ये पेंटिंग गांवों की मिट्टी से लीपी गई झोपड़ियों में देखने को मिलती थी, लेकिन इसे अब कपड़े या फिर पेपर के कैनवास पर खूब बनाया जाता है।
मधुबनी पेंटिंग्स दो तरह की होती हैं. एक भित्ति-पेंटिंग जो घर की दीवारों (मैथिली में दीवारों को भित्ति भी कहते हैं) पर बनाई जाती है और दूसरी अरिपन, जो घर के आंगन में बनाई जाती है. इन पेंटिंग्स को माचिस की तीली और बांस की कलम से बनाया जाता है. चटख रंगों का खूब इस्तेमाल होता है, जैसे गहरा लाल, हरा, नीला और काला.