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मानक हिंदी वर्णमाला तथा अंक – शाला सरल

हिंदी भाषा में मानक वर्णमाला में कुल ५२ वर्ण होते हैं। इन वर्णों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है: स्वर और व्यंजन। स्वर वर्ण होते हैं: अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अः। व्यंजन वर्ण होते हैं: क, ख, ग, घ, ङ, च, छ, ज, झ, ञ, ट, ठ, ड, ढ, ण, त, थ, द, ध, न, प, फ, ब, भ, म, य, र, ल, व, श, ष, स, ह।

हिंदी वर्णमाला में दस अंक होते हैं: ०, १, २, ३, ४, ५, ६, ७, ८, और ९। ये हिंदी भाषा में नंबर को दर्शाने के लिए इस्तेमाल होते हैं।

भारत संघ तथा कुछ राज्यों की राजभाषा स्वीकृत हो जाने के फलस्वरूप हिंदी का मानक रूप निर्धारित करना बहुत आवश्यक था, ताकि वर्णमाला में सर्वत्र एकरूपता रहे और टाइपराइटर, कंप्यूटर आदि आधुनिक यंत्रों के उपयोग में लिपि की अनेकरूपता बाधक न हो।

इन सभी बातों को ध्यान में रखकर केंद्रीय हिंदी निदेशालय ने देश के शीर्षस्थ विद्वानों के साथ वर्षों के विचार-विमर्श के पश्चात् हिंदी वर्णमाला तथा अंकों का जो मानक स्वरूप निर्धारित किया, वह इस प्रकार हैं:-

मानक हिंदी वर्णमाला तथा अंक

वर्ण भाषा की ध्वनियों के उच्चरित तथा लिखित दोनों रूपों के प्रतीक हैं। लिपि- चिह्न भाषा के लिखित रूप के प्रतीक होते हैं। इस दृष्टि से लिपि-चिह्न वर्ण के अंतर्गत आते हैं। इन वर्णों के क्रमबद्ध समूह को ‘वर्णमाला’ कहते हैं। वर्णमाला में सर्वत्र एकरूपता बनाए रखने के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय की अधीनस्थ संस्था ‘केंद्रीय हिंदी निदेशालय द्वारा विद्वानों के विचार-विमर्श के पश्चात् हिंदी वर्णमाला तथा अंकों का अद्यतन मानक स्वरूप निर्धारित किया गया है जो इस प्रकार है:

2.1 हिंदी वर्णमाला

2.1.1 स्वर

अ आ इ ई उ ऊ ऋ ए ऐ ओ औ

संस्कृत के लिए प्रयुक्त देवनागरी में ऋ लृ तथा लृ भी सम्मिलित हैं, किंतु हिंदी में इनका प्रयोग न होने के कारण इन्हें हिंदी की मानक वर्णमाला में स्थान नहीं दिया गया है।

2.1.2 मूल व्यंजन

ड़ और ढ़ व्यंजन रूप हिंदी में स्वीकृत ध्वनियाँ हैं। इस तरह हिंदी वर्णमाला में मूलतः 11 स्वर तथा 35 (33 + 2) व्यंजन हैं।

2.1.3 संयुक्त व्यंजन

क्ष (क् + ष)

त्र (त् + र)

ज्ञ (ज् + ञ)

श्र ( श् + र)

2.1.4 अनुस्वार (शिरोबिंदु)

संयम

2.1.5 अनुनासिक (चंद्रबिंदु)

आँख

2.2 हिंदी अंक

संविधान के अनुच्छेद 343 (1) के अनुसार संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयुक्त होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अंतरराष्ट्रीय रूप होगा। परंतु राष्ट्रपति, संघ के किसी भी राजकीय प्रयोजन के लिए भारतीय अंकों के अंतरराष्ट्रीय रूप के साथ-साथ देवनागरी रूप का प्रयोग प्राधिकृत कर सकते हैं।

नोट

  1. उपर्युक्त बारहखड़ी के अनुरूप ही इ और द के साथ भी मात्राओं का प्रयोग किया जाता है, जैसे – कड़ा, गुड़िया, सड़ी, झाडू, चढ़ी, पढ़ा
  2. व्यंजनों के साथ ‘ऋ’ का संयोग होने पर शब्दों का निर्माण इस तरह होता है : कृपा, गृह, घृणा, तृप्ति, पृष्ठ, मृत,सृष्टि

2.4 परिवर्धित देवनागरी वर्णमाला

परिवर्धित देवनागरी, देवनागरी वर्णमाला का वह रूप है जिसमें मूल देवनागरी लिपि में कुछ प्रतीक चिह्न (विशेषक चिह्न) जोड़े गए हैं। परिवर्धित चिह्नों को जोड़ने का मूल उद्देश्य यह है कि देवनागरी लिप्यंतरण करते समय अर्थभेदकता की स्थिति में संबंधित भाषा की ध्वनियों का लेखन संभव हो सके।

देवनागरी लिपि को भारतीय भाषाओं के लिप्यंतरण का सशक्त माध्यम बनाने के लिए यह अपेक्षित है कि देवनागरी में अन्य भाषाओं की ध्वनियों के सूचक प्रतीक चिह्नों का विकास किया जाए। अतः विभिन्न भाषाओं के भाषा-विशेषज्ञों के साथ विचार-विमर्श करने के बाद परिवर्धित देवनागरी’ का विकास किया गया है, जिसमें दक्षिण भारत की भाषाओं के साथ-साथ कश्मीरी, बांग्ला, मराठी, ओड़िआ तथा असमिया भाषाओं के विशिष्ट स्वरों और व्यंजनों के साथ-साथ सिंधी और उर्दू की विशिष्ट ध्वनियों के लिप्यंतरण के लिए देवनागरी में अपेक्षित परिवर्धन किया गया।

देवनागरी लिपि में जिन ध्वनियों के लिए कोई चिह्न उपलब्ध नहीं है, अर्थात् जो ध्वनियाँ हिंदी भाषा में स्वनिमिक (Phonemic) स्तर पर विद्यमान नहीं हैं, उनके लिए ही विशेषक चिह्न निर्धारित किए गए। उदाहरण के लिए दक्षिण भारतीय भाषाओं एवं कश्मीरी में ह्रस्व ‘ए’ और ‘ओ’ उपलब्ध हैं किंतु देवनागरी में वे स्वनिमिक स्तर पर उपलब्ध नहीं हैं।

अनेक भारतीय भाषाओं की वर्णमाला देवनागरी वर्णमाला के समान है परंतु भाषा विशेष में कुछ वर्णों का उच्चारण सामान्य हिंदी के उच्चारण से भिन्न है। यह भाषाओं के ध्वन्यात्मक व्यतिरेक (Phonetic Contrast) का विषय है।

परिवर्धित देवनागरी (विशेषक चिह्न)

संविधान की अष्टम अनुसूची में परिगणित अन्य भारतीय भाषाओं की विशिष्ट ध्वनियों को व्यक्त करने के लिए देवनागरी वर्णमाला में जो विशेषक चिह्न (Diacritical Marks) जोड़े गए, उनकी अद्यतन स्थिति यहाँ वर्णित है।

प्रयोक्ताओं की सुविधा के लिए कोष्ठकों में दी गई कुंजी संख्या यूनीकोड से साभार उद्धृत है। इससे संबंधित विस्तृत जानकारी वेबलिंक: http://unicode.org/charts/PDF/00900.pdf पर उपलब्ध है।

मैथिली भs / कs / अथवा भ’ / क’ के स्थान पर यूनीकोड की () 093A कुंजी संख्या का उपयोग कर वह में/ के के रूप में लिखा जाए।

मणिपुरी मणिपुरी की मौखिक भाषा में दो तरह के तान (tone) स्पष्ट रूप से अभिव्यक्त होते हैं परंतु इसकी लिपि ‘मैती में उसके लिए कोई तान (tone ) अंकित नहीं किया जाता।

पंजाबी इसी प्रकार पंजाबी भाषा भी तानयुक्त (tonal) भाषा है, लेकिन पंजाबी वर्तनी में उसका कोई तान अर्थात् विशेषक चिह्न अंकित नहीं किया जाता।

2.5 हिंदी वर्णमाला लेखन विधि

विशेष नोट

  • स्वर की मात्राओं को स्वर वर्णमाला में सम्मिलित नहीं किया गया है। अध्यापन के अवसर पर बारहखड़ी सिखाते समय इनका व्यंजनों के साथ यथारूप संयोजन बताया जाना चाहिए।
  • मूल व्यंजनों के शुद्ध रूप को दर्शाते समय प्रत्येक व्यंजन के साथ हल् चिह्न ( ) लगाया जाना चाहिए था, किंतु यहाँ वर्णमाला में इन्हें अंतर्निहित ( inherent) स्वर वर्ण ‘अ’ के साथ ही प्रस्तुत किया गया है।
  • हिंदी के स्वरों, व्यंजनों और अंकों के एकल रूपों का मानक उच्चारण सुनने के लिए केंद्रीय हिंदी निदेशालय द्वारा तैयार Audio Cassette की सहायता ली जा सकती है।
  • जब लिपि को तकनीकी स्तर पर मुद्रण, फोटोग्राफी या अन्य ऐसे ही कार्य के लिए प्रयुक्त किया जाता है तब वर्णों में स्पष्टता और एकरूपता अनिवार्य होती है। इसके लिए निर्धारित नियम इस प्रकार हैं-