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मारवाड़ी कविता | सोरा और दोरा

फ़लका खाना सोरो है पर आटो ल्यानो दोरो है।

भगती करनी सोरी है पर नियम निभानो दोरो है।।

जीमन जानो सोरो है पर घरे क़राणो दोरो है।

फुट करानी सोरी है पर मेल क़राणो दोरो है।।

धान लावनो सारो है पर रान्ध खावनो दोरो है।

चोरी करनी सोरी है पर जेल जावणो दोरो है।।

झगड़ों करणो सोरो है पर मार खावनो दोरो है।

धंधों करणो सोरो है पर नफो कमानो दोरो है। ।

झूठ केवनो सोरो है पर साँच केवनो दोरो है।

निंदा करनी सोरी है पर मान देवणो दोरो है।।

मौज मारनी सोरी है पर कमा खावनो दोरो है।

डूब जावणो सोरो है पर पार जावणो दोरो है। ।

गुस्सो करणो सोरो है पर गम खावनो दोरो है।

मांग खावणो सोरो है पर घर-घर जावणो दोरो है।।

बाता करनी सोरी है पर बात निभानी दोरी है।

सिलगानी तो सोरी है पर लाय बुझानी दोरी है।।

बालपण में पड़े आदता पछे सुधारनी दोरी है।

गंजो माथो बुरो नही पर खाज कुतरनी दोरी है।।

ठोकर खानी सोरी है पर बुद्धि आनी दोरी है।

अंग्रेजी तो पढ़ लेवे पर हिंदी आनी दोरी है।।

मिठो खानो सोरो है पर जहर पीवनो दोरो है।

खोटा धंधा सोरा है पर पछे जीवनों दोरो है।।

गुरु बनानो सोरो है पर ज्ञान आवणो दोरो है।

उधार लेवनो सोरो है पर पाछो देवणो दोरो है।।