![मिड-डे-मील योजना (Mdms) [Mid-Day Meal Scheme In Hindi] | Shalasaral images 2023 03 15T175043.001 | Shalasaral](https://shalasaral-media.s3.ap-south-1.amazonaws.com/wp-content/uploads/2023/03/15175253/images-2023-03-15T175043.001.jpeg)
मिड-डे-मील कार्यक्रम एक केन्द्रीय प्रवृतित योजना के रूप में 15 अगस्त, 1995 को पूरे देश में लागू की गई। इसके पश्चात सितम्बर, 2004 में कार्यक्रम में व्यापक परिवर्तन करते हुए मेन्यु आधारित पका हुआ गर्म भोजन देने की व्यवस्था प्रारम्भ की गई| वर्तमान में यह कार्यक्रम भारत सरकार के सहयोग से राज्य सरकार द्वारा राज्य के उच्च प्राथमिक स्तर तक के सभी राजकीय, अनुदानित विद्यालयों, स्थानीय निकाय विभाग द्वारा संचालित विद्यालय, शिक्षा गारंटी योजना एवं ए.आई.ई.सेंटर, नेशनल चाईल्ड लेबर प्रोजेक्ट(NCLP) के अन्तर्गत संचालित विशेष विद्यालय तथा मदरसों आदि में संचालित किया जा रहा हैं।
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मिड डे मील योजना (MDMS) [Mid-Day Meal Scheme in Hindi] एक स्कूल फीडिंग प्रोग्राम है, जिसे मद्रास नगरनिगम द्वारा 1925 में शुरू किया गया था। मिड डे मील स्कीम एक सुविचारित कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य वंचित बच्चों को प्रतिदिन (दोपहर का भोजन) कम से कम एक पोषण की दृष्टि से पर्याप्त भोजन उपलब्ध कराना है।
- मध्याह्न भोजन योजना के तहत, 6 से 14 वर्ष के आयु वर्ग के बच्चों को निर्दिष्ट पोषण मूल्यों के साथ पका हुआ भोजन प्रदान किया जाता है, जो सरकारी या सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में पढ़ रहे हैं।
- इस योजना के कार्यान्वयन में सुधार के लिए, कई राज्य सरकारों ने विभिन्न प्रथाओं की शुरुआत की है। उदाहरण के लिए, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों ने किचन गार्डन नामक एक प्रथा शुरू की जहां खाना पकाने के लिए आवश्यक सब्जियों और फलों की खेती स्कूल के परिसर में की जाती है।
मिड-डे-मील योजना के लिए निम्नांकित श्रेणी के नागरिक योग्य है :-
विद्यार्थी
राज्य के शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्र के समस्त राजकीय विद्यालयों, मदरसों एवं विशेष प्रशिक्षण केन्द्रों में कक्षा 1 से 8 तक के अध्ययनरत विद्यार्थी मिड-डे-मील योजना से लाभान्वित होते है। वर्ष 2020 की शुरुआत में पिछली बढ़ोतरी के बाद से प्राथमिक कक्षाओं (कक्षा I-V) में खाना पकाने की लागत 4.97 रुपए प्रति बच्चा और उच्च प्राथमिक कक्षाओं में 7.45 रुपए (कक्षा VI-VIII) रही है। बढ़ोतरी के प्रभावी होने के बाद प्राथमिक स्तर तथा उच्च प्राथमिक स्तर पर यह लागत क्रमशः 5.45 रुपए एवं 8.17 रुपए होगी।
मिड डे मील योजना का संक्षिप्त इतिहास (MDMS) | Brief History Of Mid-Day Meal Scheme (MDMS)
- यह योजना पहली बार मद्रास नगर निगम द्वारा 1925 में उस निगम में वंचित बच्चों के लिए शुरू की गई थी। इस योजना के तहत सरकारी या सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को मुफ्त लंच दिया जाता था।
- 1980 के दशक के मध्य तक, यह योजना पूरे तमिलनाडु और केरल, गुजरात और केंद्र शासित प्रदेश पांडिचेरी में लागू की गई थी। धीरे-धीरे भारत के कई राज्यों ने इस योजना को लागू किया।
- इस योजना को देश भर में लागू करने के लिए, भारत सरकार ने 15 अगस्त 1995 को एक केंद्र प्रायोजित योजना शुरू की, जिसे प्राथमिक शिक्षा के लिए पोषण सहायता का राष्ट्रीय कार्यक्रम (NP-NSPE) कहा जाता है। बाद में इसका नाम बदलकर स्कूलों में मध्याह्न भोजन (Mid Day Meal) के राष्ट्रीय कार्यक्रम का नाम दिया गया। अब, इसे व्यापक रूप से मध्याह्न भोजन (MDM) योजना के रूप में जाना जाता है।
- 1980 के दशक के मध्य तक, यह योजना पूरे तमिलनाडु और केरल, गुजरात और केंद्र शासित प्रदेश पांडिचेरी में लागू की गई थी। धीरे-धीरे भारत के कई राज्यों ने इस योजना को लागू किया।
- इस योजना को देश भर में लागू करने के लिए, भारत सरकार ने 15 अगस्त 1995 को एक केंद्र प्रायोजित योजना शुरू की, जिसे प्राथमिक शिक्षा के लिए पोषण सहायता का राष्ट्रीय कार्यक्रम (NP-NSPE) कहा जाता है। बाद में इसका नाम बदलकर स्कूलों में मध्याह्न भोजन (Mid Day Meal) के राष्ट्रीय कार्यक्रम का नाम दिया गया। अब इसे व्यापक रूप से मध्याह्न भोजन (MDM) योजना के रूप में जाना जाता है।
- 2001 में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने सभी राज्य सरकारों को सभी सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त प्राथमिक विद्यालयों में पका हुआ मध्याह्न भोजन उपलब्ध कराने का निर्देश दिया।
मिड-डे मील योजना के उद्देश्य (Objectives of Mid-Day Meal Scheme)
- प्राथमिक स्कूलों में छात्रों को प्रवेश संख्या में वृद्धि करना।
- प्राथमिक स्तर पर अपव्यय को रोककर बालकों को प्राथमिक स्कूलों में रोके रखना।
- छात्रों की नियमित उपस्थिति में वृद्धि करना।
- छात्रों को पौष्टिक भोजन के द्वारा स्वास्थ्य लाभ देना।
- बिना किसी भेदभाव के एक साथ भोजन करने से भ्रातृत्व का भाव उत्पन्न करना, जातिभेद खत्म करना।
मिड-डे मील योजना का क्षेत्र (Scope of Mid-Day Meal Scheme)
प्रारम्भ में यह योजना केवल सरकारी प्राथमिक स्कूलों में लागू की 1997-98 तक इसे देश के सभी प्रान्तों के स्कूलों में लागू किया जा चुका था। 2002 में इस योजना में मुस्लिमों द्वारा चलाए जा रहे मदरसों को भी शामिल कर लिया गया। 2007 में उच्च प्राथमिक स्कूलों को भी इस योजना का लाभ मिलना शुरू हो गया। वर्तमान में कुछ सरकारी आर्थिक सहायता, मान्यता प्राप्त निजी स्कूलों को इस योजना में भी शामिल कर लिया गया है। 2014-15 में यह योजना लगभग साढ़े ग्यारह लाख प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक स्कूलों में चल रही थी। इससे साढ़े दस करोड़ बच्चे लाभान्वित हो रहे हैं।
मध्याह्न भोजन योजना के लाभ एवं महत्त्व (Benefits and Importance of Mid Day Meal Scheme)
- मध्याह्न भोजन बढ़ती उम्र के बच्चों के स्वास्थ्य को बनाए रखने में मददगार साबित होता है।
- यह छात्रों में अच्छी आदतें बढ़ाता है।
- यह सन्तुलित भोजन उपलब्ध करवाता है।
- यह कुपोषण से होने वाली बीमारियों को नियन्त्रित करने में भी मदद करता है।
- यह बच्चों में अतिरिक्त ऊर्जा पैदा करता है।
- यह घर तथा विद्यालय के बीच एक मजबूत बन्धन को बनाता है।
- यह बच्चों में सहयोगी भावना को जगाता है।
- यह बच्चों में जिम्मेदारी की भावना तथा स्वस्थ नेतृत्व को बढ़ाता है।
- यह बच्चों में सामाजिक भावना लाता है।
- यह विद्यालय में स्वच्छता की स्थिति को सुधारता है।
मिड-डे मील योजना की कार्यप्रणाली (Working of Mid Day Meal Scheme)
इस योजना को राज्य सरकारों की सर्व शिक्षा अभियान समितियों के द्वारा संचालित कराया जाता है। ये समितियाँ अपने-अपने क्षेत्र में इस योजना का संचालन तथा निगरानी करती हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूलों में ही भोजन तैयार कराया जाता है। शहरी क्षेत्रों में ठेकेदारों के द्वारा। भोजन उपलब्ध कराया जाता है। सरकारी दावे के अनुसार कक्षा 1 से 5 तक प्रत्येक बच्चे को प्रतिदिन 100 ग्राम अनाज, दाल, सब्जी दिए जा रहे हैं और कक्षा 6 से कक्षा 8 तक प्रत्येक छात्रों को प्रतिदिन 150 ग्राम अनाज, दाल, सब्जी दिए जा रहे हैं।
मिड डे मील योजना के कुछ महत्वपूर्ण नियम
इस योजना के तहत सरकार के माध्यम से जारी दिशानिर्देशों में हम सिर्फ उन्ही दिशानिर्देशों के बारे में बताएगे जो आपको एक आवश्यक रूप से ज़रूरी है।
- एमडीएम दिशानिर्देश के अनुसार, बच्चों को परोसे जाने से पहले कम से कम एक शिक्षक सहित 2-3 वयस्कों को मध्याह्न भोजन का स्वाद चखना होगा।
- मिड डे मील योजना के दिशानिर्देश हर एक बच्चा जो प्राथमिक विद्यालय में पढता है, उसको एक दिन में 3. 86 पैसे दाल, चावल, फल, मिठाई, गैस सबकुछ मिलाकर खर्च करना होगा, और जो उच्च प्राथमिक विद्यालय में पढता है उस पर रूपये 5.78 खर्च करना होगा।
- इस योजना के तहत जारी खाद्य सुरक्षा और स्वच्छता पर दिशानिर्देशों के अनुसार, परोसने से ठीक पहले एक शिक्षक द्वारा भोजन का स्वाद चखना अनिवार्य है। जिसका रिकॉर्ड रखा जाना है। इसके अलावा, एसएमसी सदस्य को भी शिक्षक के साथ रोटेशन के आधार पर भोजन का स्वाद लेना होगा।
- एक शिक्षक के चखने के अलावा, कम से कम एक माता-पिता और दो जो एसएमसी सदस्य हो सकते हैं या नहीं हो सकते हैं, छात्रों को भोजन परोसने के दौरान उपस्थित होना चाहिए ताकि वे भोजन का स्वाद चख सकें और साथ ही बच्चों की संख्या को प्रमाणित कर सकें।
मिड डे मील योजना मंत्रालय
ह्यूमन रिसोर्स डेवलपमेंट मिनिस्ट्री द्वारा हमारे देश में मिड डे मील स्कीम को चलाया जा है। इस मंत्रालय द्वारा ही इस स्कीम से जुड़ी दिशा – निर्देश बनाइ गए है साथ ही इस मंत्रालय द्वारा कई ऐसी कमेटी में बनाई गई हैं जो कि इस स्कीम को और बेहतर बनाने के कार्य करेंगी।
नेशनल लेवल कमेटी
नेशनल लेवल पर अधिकारित समिति, राष्ट्रीय स्तर की स्टीयरिंग-सह-निगरानी समिति (एनएसएमसी) और कार्यक्रम स्वीकृति बोर्ड (पीएबी) इस स्कीम की मॉनीटर करेगी। यह कमेटी सीधे तौर पर मानव संसाधन विकास मंत्री द्वारा हेड की जाती हैं।
आगे की राह
- लड़कियों और युवतियों के मां बनने के वर्षों पूर्व मातृत्त्व सुरक्षा और शिक्षा में आवश्यक सुधार किया जाना चाहिये।
- बौनापन (स्टंटिंग) के विरुद्ध लड़ाई अक्सर छोटे बच्चों के लिये पोषण को बढ़ावा देने पर केंद्रित होती है, लेकिन पोषण विशेषज्ञों का स्पष्ट रूप से मानना है कि मातृ स्वास्थ्य और कल्याण उनकी संतानों में बौनापन (स्टंटिंग) को कम करने की कुंजी है।
- अंतर-पीढ़ीगत लाभों के लिये मध्याह्न भोजन योजना के विस्तार एवं सुधार की आवश्यकता है। जैसे-जैसे भारत में लड़कियाँ स्कूल स्तर की पढ़ाई पूरी करती हैं, उनकी शादी हो जाती है और कुछ ही वर्षों के बाद वे संतान को जन्म देती हैं, इसलिये स्कूल-आधारित हस्तक्षेप वास्तव में मदद कर सकता है।
स्रोत
मूल पाठ, राजकीय वेबसाइट व इंटरनेट सामग्री।