
मुगल बादशाहों का संक्षिप्त इतिहास
जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर तैमूर लंग से छठी पीढ़ी में था । यह अपने पिता उमर शेख मिरजा की मृत्यु पर ग्यारह वर्ष की अवस्था में मध्य एशिया के फर्गानः या खोबंद राज्य की राजधानी बंदोजान में सन् १४९४ ई० में गद्दी पर बैठा इसको अपना यौवन काल अपने राज्य की रक्षा के विफल प्रयत्न में व्यतीत करना पड़ा । अंत में अट्ठाईस वर्ष की अवस्था तक पहुँचते ही वह अपने पैतृक राज्य से निकाल बाहर हुआ। इसी बीच में इसने दो बार समरकंद विजय किया और खो दिया था। सन् १५४० ही में बाबर ने काबुल विजय कर वहाँ अपना राज्य स्थापित कर दिया था, इससे यह वहीं चला गया और मध्य एशिया में सफलता मिलने की आशा न देख कर इसने भारत की ओर दृष्टि फेरी ।
सन् १५०५ ई० में बाबर ने गजनी पर अधिकार कर लिया और सिंध नदी के तट तक आकर वह लौट गया । सन् १५१९ ई० में सिंध नदी पार कर उसने पंजाब के कुछ भाग पर अधिकार कर लिया। इस चढ़ाई में बाबर यूरोपियन आग्नेयास्त्र काम में लाया था, जो उस समय पूर्व में एक नई चीज था सन् १५२४ ई० में पंजाब के सूबेदार दौलत खां और इब्राहीम लोदी के चाचा आलम खां के सहायता मांगने पर बाबर लाहौर और दीपालपुर आया और उसने दोनों स्थानों को लूटा दौलत खाँ के साथ न देने पर बाबर पंजाब में अपना सूबेदार नियत कर सेना एकत्र करने लौट गया ।
सन् १५२६ ई० में बाबर बारह सहस्र सैनिक और सात सौ तोपें लेकर पानीपत के मैदान में इब्राहीम लोदी की सेना के सामने पहुंचा, जो संख्या में एक लाख के लगभग थी। २१ अप्रैल को युद्ध हुआ, जिसमें इब्राहीम पंद्रह सहस्र सैनिकों के साथ गया। बाबर ने दिल्ली और आगरे पर अधिकार कर लिया और २७ अप्रैल को दोनों स्थानों पर अपने बादशाह होने का घोषणापत्र निकाला। बाबर ने जो कुछ लूट में पाया था, उसमें से उसने काबुल आदि तक के निवासियों के लिये पुरस्कार भेजा था। बाबर के सैनिकों ने भी यद्यपि बहुत लूट प्राप्त की थी परंतु वे देश को लोटने के लिये बड़े उत्सुक हो रहे थे पर बाबर के बहुत कहने पर वे रुक गए ।
बाबर के जीवन में जो थोड़े दिन बच गए थे, वे भारत में राज्य की जड़ जमाने में ही बीत गए और नैतिक प्रबंध करने का उसे समय नहीं मिला, बाबर के सबसे बड़े महाराणा संग्राम सिंह थे, जो मेवाड़ के राजा और राजपूताने के राजाओं के प्रधान थे यह राणा सांगा के नाम से अधिक प्रसिद्ध हैं और इन्होंने मालबा नरेश महमूद खिलजी को परास्त कर भिल्लसा, सारंगपुर, चंदेरी मोर रणथंभौर छीन लिया था। इब्राहीम लोदी से इनसे दो बार युद्ध हुआ और दोनों ही बार परास्त होकर लोदी को लौट जाना पड़ा था। मृत्यु के समय इनके शरीर पर अस्सी घावों के चिह्न थे और एक बस एक हाथ और एक पाँव युद्ध में सो चुके थे। बाबर ने बड़ी तैयारी के साथ राणा पर चढ़ाई की और १६ मार्च सन् १५२७ ई० को सीकरी के पास कन्या के मैदान में दोनों सेनाओं का सामना हुआ। घोर युद्ध के अनंतर राणा परास्त होकर लौट गए। सन् १५२८ ई० में चंदेरी का दुर्ग टूटा और राजपूत सो बड़ी वीरता से ये रहे। इसी वर्ष रामा ने रणथंभौर दुर्ग विजय किया था।
सन् १५२९ ई० में सुलतान इब्राहीम लोदी के भाई महमूद ने बिहार और बंगाल के अफगान सरदारों को उभाड़ कर सेना सहित पूर्व की ओर से चढ़ाई की। बाबर भी युद्धार्थ ससैन्य आगे बढ़ा और घाघरा तथा गंगा जी के संगम पर मई महीने में युद्ध हुआ । इस बार भी बाबर की विजय हुई। इसने बंगाल के स्वतंत्रता सुलतान मसरत शाह से संधि कर ली जिससे बिहार दिल्ली साम्राज्य में मिल गया सन् १५३० ई० में अड़तालीस वर्ष की अवस्था में बावर की आगरे में मृत्यु हो गई।
बाबर के चारों पुत्रों में सबसे बड़ा पुत्र हुमायूँ गद्दी पर बैठा। उसके साम्राज्य विस्तार नाममात्र के लिये कर्मनाशा नदी से बंधू ( औस्मस) नदी तक और हिमालय पर्वत से नर्मदा नदी तक फैला हुआ था। गद्दी पर बैठते ही उसने पिता के इच्छानुसार काम को काबुल और पंजाब दे दिया, जिसका वह स्वतंत्र स्वामी बन बैठा। अब हुमायूँ को नई सेना भरती करने में कठिनाई पड़ने लगी, क्योंकि वह अफगानिस्तान से नए रंगरूट नहीं बुला सकता था। गुजरात के सूबेदार बहादुर शाह के विद्रोह करने पर हुमायूँ ने उस पर चढ़ाई कर उसे परास्त किया, परन्तु इधर बिहार के सूबेदार शेरशाह के बा करने पर वह वहां के छोट आया, जिससे फिर बहादुर स्वतंत्र बन बैठा शेर खां ने बिहार में अपना राज्य जमा लिया था। वह हुमायूँ को पहिली बार कर्मनाशा और गंगा के संगम के पास चौसा मे सन् १५३९ ई० में और दूसरी बार दूसरे वर्ष कन्नौज में परास्त कर शेर शाह के नाम से दिल्ली की गद्दी पर बैठा। सूर जाति का अफगान होने से इसका वंश सूरी वंश कहलाया।
हुमायूँ ने कामरों से सहायत मांगी, परंतु वह पंजाब भी शेर शाह के लिये छोड़ करा गया। इसके अनंतर हुमायूँ ने के सरदारों और मारवाड़-नरेश मालदेव से सहायता मांगी, पर वह कहीं सफल प्रयत्न नहीं हुआ। इस प्रकार घूमता हुआ जब वह अमरकोट दुर्ग में पहुंचा, जो सिंध में है, तब वहाँ २३ नवम्बर सन् १५४२ ई० को जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर का जन्म हुआ यहाँ से हुमायूँ कंधार होता हुआ फारस के शाह तहमास्प के यहाँ पहुँचा । कंधार का सूबेदार कामरों के अधीन उसी का भाई अस्करी था, जिसने अकबर को वहीं कैद कर लिया, और वह बहुत दिनों तक माता पिता से अलग उसी के पास रहा।
शेरशाह का अधिकार बिहार, बंगाल और संयुक्त प्रांत पर हो चुका था और सन् १५४५ ई० में इसने मालवा भी विजय किया उसी वर्ष जब यह बुंदेलखंड में 1 कालिंजर दुर्ग घेरे हुए था, तभी बाद में आग लग जाने से इसकी मृत्यु हो गई। शेर शाह का उत्तराधिकारी उसका द्वितीय पुत्र इसलाम शाह सूरी था, जिसने योग्यता के साथ सात वर्ष तक राज्य किया। इसकी मृत्यु पर इसके अल्पवयस्क पुत्र को मार कर उसका मामा मुबारिन at मुहम्मद शाह आदिल के नाम से गद्दी पर बैठा। परन्तु बादल ( न्यायी ) होने के प्रतिकूल यह बड़ा विपयी था और इसने राज्य का कुछ भार हे नामक काल के हाथ में छोड़ दिया, जिससे चारों ओर विद्रोह हो गया। इब्राहीम सूरी ने दिल्ली और आगरा तथा अहमद खाँ ने सिकंदर शाह सूरी के नाम से पंजाब विजय कर दिया।