
रामलीला रामायण की एक जीवंत प्रस्तुति है, जिसमें भगवान श्री राम जी की जीवनकथा को प्रस्तुत किया जाता है और समाज को प्रेरित किया जाता है। पात्रों द्वारा अपने जीवंत अभिनय से रामराज्य की स्थापना एवम तत्कालीन जीवन मूल्यों को सादर प्रस्तुत किया जाता है। आइये, रामलीला के बारे में विस्तार से जानने का एक प्रयास करते हैं।
मुख्य बिंदु
- हमारे देश में हर साल सितंबर से अक्टूबर महीने के समय शारदीय नवरात्रि के दौरान भव्य रामलीला नाटक का आयोजन किया जाता है।
- रामायण ग्रंथ के अनुसार रामलीला एक पुरानी धार्मिक और सांस्कृतिक परंपरा है, जिसके लिए एक बड़ा मेला भी लगता है जिसमें रामलीला का आयोजन किया जाता है।
- रामलीला, रामायण पर आधारित एक पारंपरिक नाट्य शैली है। इसे पूरे उत्तर भारत में दशहरे के अवसर पर खेला जाता है।
- इस नाट्य शैली में गीत, कथन, गायन और संवाद जैसे सभी आयाम शामिल होते हैं और यह जाति, धर्म या उम्र भेद से परे है।
- ‘रामलीला’ प्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न हिस्सा है। इसका शाब्दिक अर्थ ‘राम का नाटक’ होता है और इसे दशहरे के मौके पर पूरे देश में खेला जाता है, विशेष रूप से उत्तर भारत में।
- रामलीला को वर्ष 2008 में यूनेस्को द्वारा मानवता के अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के रूप में मान्यता दी गई।

रामलीला
रामलीला दो शब्दों के मेल से बना हैं, “राम” व “लीला” अर्थात प्रभु श्रीराम के जीवन पर आधारित कथाओं का नाटक (Ramleela Natak) के माध्यम से मंचन।
रामलीला का शाब्दिक अर्थ
रामलीला एक ऐसा रंगमंच हैं जिसका प्रस्तुतीकरण आज से ही नही अपितु हजारो वर्षों से होता आ रहा है। पहले यह वाल्मीकि रचित रामायण पर आधारित था तो आजकल इसे तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरितमानस को आधार मानकर आयोजित किया जाता हैं। यह केवल एक नाटक नही अपितु जीवन मूल्यों की एक खान हैं जो समाज को संदेश देती हैं।
रामलीला का आयोजन प्रायः भक्ति-साधना के रूप में होता रहा हैं। गोस्वामी जी राम का व्यापक प्रचार करना चाहते थे। उनके मत से तात्कालिक व्याधियों का सबसे बड़ा उपचार रामचरित था। जहाँ उन्होंने प्रचार के अनेक साधन अपनाये वहां मानस की रामलीला का आयोजन धूम-धाम से किया।
श्रीराम के जीवन में भारतीय आदर्शों के चरम विकास के दर्शन होते हैं। भक्ति-संप्रदाय में वे भगवान् के अवतार माने जाते हैं। अतः उनके चारित्रिक गुण एवं जीवन का ज्ञान बड़े उत्साह से प्राप्त किया जाता है। रामलीला का आयोजन भारत में तो अत्यन्त प्राचीन काल से होता ही रहा है, विदेशों में भी सहस्त्रो वर्षों से बसे भारतीय इसे अक्षुण्ण बनाये हुए हैं। इस प्रकार रामलीला ने विदेशों में स्थापित भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध को ऐसा दृढ बना दिया है कि सहस्त्रों वर्षों तक निरंतर प्रयत्न करते रहने पर भी काल उसे नष्ट करने में समर्थ नहीं हो सका है।
रामलीला का मंचन
रामलीला का मंचन विभिन्न शहरों तथा गाँवों में अलग-अलग होता हैं। इसमें शहर या गाँव के चर्चित जगह या बड़ा मैदान जिसे सामान्यतया रामलीला मैदान के नाम से ही जाना जाता हैं, वहां किया जाता हैं। गाँवों में भी इसे छौराहे या खुली जगह पर किया जाता है।
इसमें जो कलाकार भूमिका निभाते हैं वे मंडली से होते हैं। इस कार्य को करने के लिए ज्यादा पैसे तो नही मिलते लेकिन बाकि सब सुख-सुविधाएँ मिलती हैं जैसे कि खाना-पीना, रहने का आवास इत्यादि। रामलीला का आयोजन करने के लिए शहर-गाँव के लोग ही पैसो की व्यवस्था करते हैं जो कि एक तरह से दानकार्य ही होता हैं।
रामलीला की सामान्य विषय सामग्री
रामलीला में श्रीराम के जीवन की मुख्य घटनाओं को नाटक के माध्यम से प्रदर्शित किया जाता हैं।
- श्री राम का जन्म होना
- गुरुकुल में जाकर शिक्षा ग्रहण करना
- पुनः अयोध्या लौटना
- माता कैकेयी का संताप
- श्रीराम को लक्ष्मण व सीता सहित चौदह वर्ष का वनवास होना
- केवट व शबरी प्रसंग
- सूर्पनखा की नाक काटना
- माता सीता का हरण होना
- हनुमान का मिलना
- सुग्रीव का किष्किन्धा नरेश बनना
- माता सीता की खोज करना
- रामसेतु बनाना
- वानर सेना का लंका पहुंचना
- कुंभकरण, मेघनाथ व रावण वध
रावण वध दशहरा के दिन किया जाता हैं तथा उसी के साथ रामलीला का समापन हो जाता है। कुछ रामलीलाओं में इसे भगवान श्रीराम के वनवास से शुरू किया जाता हैं जो रावण वध से समाप्त हो जाता हैं।
रामलीला के प्रकार
स्थानीय भाषा, मान्यताओं, परम्पराओं व संस्कृति के आधार पर रामलीला के विविध प्रकार है।विभिन्न देशों में रामलीला के अनेक नाम और रूप हैं। इन सभी को सामन्यतः दो प्रकारों में विभाजित किया जाता है।
- मुखौटा रामलीला
- छाया रामलीला
मुखौटा रामलीला
मुखोटा रामलीला के अंतर्गत इंडोनेशिया और मलेशिया के ‘लाखोन’, कंपूचिया के ‘ल्खोनखोल’ तथा बर्मा के ‘यामप्वे’ का प्रमुख स्थान है। मुखौटा रामलीला वस्तुत: एक प्रकार का नृत्य नाटक है जिसमें कलाकार विभिन्न प्रकार के मुखौटे लगाकर अपनी-अपनी भूमिका निभाते हैं। इसके अभिनय में मुख्य रूप से ग्राम्य परिवेश के लोगों की भागीदारी होता है।
छाया रामलीला
विविधता और विचित्रता के कारण छाया नाटक के माध्यम से प्रदर्शित की जाने वाली रामलीला मुखौटा रामलीला से भी निराली है। इसमें जावा तथा मलेशिया के ‘वेयांग’ और थाईलैंड के ‘नंग’ का विशिष्ट स्थान है।
रामलीला को यूनेस्को द्वारा मान्यता
सदियों से, रामलीला भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न अंग रही है, और 2008 में, इसे यूनेस्को द्वारा मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के रूप में मान्यता दी गई थी। रामायण पर आधारित यह नाट्य रूप दशहरे के उत्सव के दौरान पूरे उत्तर भारत में बजाया जाता है और इसमें गीत, कथन, गायन और संवाद के सभी पहलू शामिल होते हैं। यह जाति, धर्म या उम्र से परे है और भारतीय संस्कृति में एक अनूठी झलक प्रदान करता है।
रामलीला का आयोजन भारत में सदियों से मनाया जाता रहा है और अब इसे सांस्कृतिक विरासत के महत्व के लिए दुनिया भर में पहचाना जा रहा है। भारत की इस प्राचीन विरासत को अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिलने से एक भारतीय के रूप में हमे बहुत खुशी है।
रामलीला से सम्बंधित सामान्य प्रश्नों के उत्तर
रामलीला से आप क्या समझते हैं?
भारत में मनाये जाने वाले प्रमुख सांस्कृतिक कार्यक्रमों में से एक है। यह एक प्रकार का नाटक मंचन होता है, जो हिंदू धर्म के प्रमुख आराध्यों में से एक प्रभु श्रीराम के जीवन पर आधारित होता है। इसका आरंभ दशहरे से कुछ दिन पहले होता है और इसका अंत दशहरे के दिन रावण दहन के साथ होता है।
रामलीला का आयोजन कब से कियाजा रहा है?
रामलीला बहुत पहले से आयोजित की जा रही है। एक मत के अनुसार इसकी शुरुआत 16वीं सदी में वाराणासी में हुई थी। ऐसा माना जाता है कि उस समय के काशी नरेश ने गोस्वामी तुलसीदास के रामचरितमानस को पूरा करने के बाद रामनगर में रामलीला कराने का संकल्प किया था। जिसके पश्चात गोस्वामी तुलसीदास के शिष्यों द्वारा इसका वाराणसी में पहली बार मंचन किया गया था।
क्या रामलीला विदेशों में भी आयोजित की जाती है?
जी हां, रामलीला भारत के बाहर अनेक देशों में आयोजित की जाती है। विशेष रूप से इंडोनेशिया में रामलीला का बड़ा क्रेज है। इंडोनेशिया में 90 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है ऐसे में यहां रामलीला का मंचन होना बड़ी बात है. यहां रामायण को रामायण ककविन (काव्य) कहा जाता है. इंडोनेशिया में रामलीला का मंचन पूरे साल चलता है. यानी लोग यहां किसी भी शुभ अवसर पर रामलीला आयोजित करते हैं, यहां तक कि इस देश के स्कूलों में शिक्षा देने के लिए रामायण के चरित्रों का इस्तेमाल करते हैं।
रामलीला का शाब्दिक अर्थ, आशय व उद्देश्य क्या है?
रामलीला दो शब्दों से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है “राम” और “लीला” यानी श्रीराम के जीवन पर आधारित कथाओं का नाटक के माध्यम से मंचन. रामलीला के माध्यम से भगवान श्रीराम के जीवन में क्या-क्या घटित हुआ था और उससे हमे क्या संदेश मिलता है, यह नाटक के द्वारा दर्शकों को दिखाया जाता है.