
सेवा के सामान्य नियम
1. संदर्भ
लोकतांत्रिक राज्य में नीति-निर्धारण सरकार (कार्यपालिका) द्वारा किया जाता है। नीतियों के क्रियान्वयन एवं नियमन हेतु सरकारी सेवाएँ स्थापित की जाती हैं। सरकारी सेवा का अर्थ है ऐसी सेवा जो सरकार के अधीन हो, सेवक की नियुक्ति सरकार द्वारा हो और सेवक के वेतन का भुगतान सरकारी राजस्व से होता हो। सरकारी तथा गैरसरकारी सेवाओं में बुनियादी अंतर यह है कि सरकारी सेवकों की शक्तियाँ एवं कर्तव्य जहाँ कानून द्वारा नियंत्रित होते हैं वहीं गैरसरकारी सेवकों की शक्तियाँ एवं कर्तव्य संविदा (Contract) द्वारा नियंत्रित होते हैं। सरकारी सेवा में आरंभ तो संविदा से होता है क्योंकि भर्ती का “प्रस्ताव” शासन द्वारा किया जाता है और उसका “प्रतिग्रहण” अभ्यर्थियों द्वारा किया जाता है किंतु नियुक्ति के उपरांत सरकारी सेवक सांविधानिक उपबंधों, सेवाविधि एवं सेवा नियमों से विनियमित होने लगता है, जिन्हें सरकार द्वारा एकतरफा, यहाँ तक कि भूतलक्षी प्रभाव से भी, विरचित एवं परिवर्तित किया जा सकता है।
भारत के संविधान के अनुच्छेद 309 के अंतर्गत सरकार अपने सेवकों के लिए नियम बना सकती है तथा उनकी सेवा शर्तों को विनियमित कर सकती है। तद्नुसार उत्तर प्रदेश राज्य के समस्त सरकारी सेवकों द्वारा की जाने वाली सरकारी सेवा वित्तीय नियम संग्रह खण्ड-II भाग 2 से 4 में संकलित सेवा नियमों (Service Rules) से प्रशासित/विनियमित होती है। इस वित्तीय हस्तपुस्तिका की संरचना निम्नवत् है –
भाग-2 मूल नियम (Fundamental Rules या FR)
भाग-3 सहायक नियम (Subsidiary Rules या SR)
भाग-4 प्रतिनिधायन (Delegation) एवं प्रपत्र (Forms)
सरकारी सेवा के सामान्य नियमों एवं शर्तों की दृष्टि से उपर्युक्त भाग 2 के अध्याय 2 व 3 बहुत महत्वपूर्ण हैं।
लिपिकीय है तथा किसी दूसरे वर्ग के सरकारी कर्मचारी, जिनको शासन के सामान्य अथवा विशेष आदेश द्वारा इस वर्ग का घोषित कर दिया जाय।
(छ) स्थायी पद (PERMANENT POST) :- (मूल नियम 9 (22))
वह पद जिसकी वेतन की एक निश्चित दर हो और जो बिना समय की सीमा लगाए हुए स्वीकृत किया गया हो।
(ज) अस्थायी पद (TEMPORARY POST) :- (मूल नियम 9(30))
वह पद जिसको एक निश्चित वेतन दर पर सीमित समय के लिए स्वीकृत किया गया हो।
(झ) सावधि पद (TENURE POST) :- (मूल नियम 9(30-क))
वह स्थायी पद जिस पर कोई सरकारी कर्मचारी एक निश्चित अवधि से अधिक समय तक तैनात नहीं रह सकता।
(=) प्रतिकर भत्ता (COMPENSATORY ALLOWANCE) :- (मूल नियम 9 (5))
वह भत्ता जो किन्हीं विशेष परिस्थितियों में कार्य करने के कारण व्यक्तिगत व्यय को पूरा करने के लिए दिया जाए। इसमें यात्रा भत्ता भी सम्मिलित है।
(ट) शुल्क (FEE) :- (मूल नियम 9(6-क))
वह आवर्तक या अनावर्तक भुगतान जो सरकारी कर्मचारी को उत्तर प्रदेश की संचित निधि के अतिरिक्त अन्य स्त्रोत से सीधे अथवा अप्रत्यक्ष रूप से शासन के मध्यवर्ती के माध्यम से किया जाय। इसमें निम्नलिखित सम्मिलित नहीं है –
- अनार्जित आय जैसे कि सम्पत्ति से आय, लाभांश और प्रतिभूतियों पर ब्याज, और
- साहित्यिक, सांस्कृतिक , कलात्मक, वैज्ञानिक या तकनीकी कार्यों से आय, यदि ऐसे कार्यों में सरकारी सेवक को अपनी सेवा के दौरान अर्जित ज्ञान की सहायता न ली हो।
(ठ) मानदेय (HONOURARIUM) :- (मूल नियम 9(9))
वह आवर्तक या अनावर्तक भुगतान जो किसी सरकारी कर्मचारी को यदाकदा किये जाने वाले किसी विशिष्ट कार्य के लिए उत्तर प्रदेश की संचित निधि या भारत की संचित निधि से पारिश्रमिक के रूप में दिया जाय।
सरकारी कर्मचारी अपने पद की अवधि पर सम्बद्ध वेतन तथा भत्ते उस तिथि से पाने लगेगा जिससे वह उस पद का कार्यभार ग्रहण करे, बशर्ते कार्यभार उस तिथि के पूर्वान्ह में हस्तान्तरित हुआ हो। यदि कार्यभार अपरान्ह में हस्तान्तरित हो तो वह उसके अगले दिन से पाना आरम्भ करता है।
(ज) ड्यूटी से लगातार 5 वर्ष से अनुपस्थिति :- (मूल नियम 18)
जब तक शासन किसी मामले की विशेष परिस्थितियों को ध्यान में रखकर कोई दूसरा निर्णय घोषित न कर दें, भारत में वाह्य सेवा को छोड़कर, अवकाश पर या बिना अवकाश के अपनी ड्यूटी से पाँच वर्ष से अधिक लगातार अनुपस्थित रहने पर जब तक शासन कुछ अन्यथा न अवधारित (determinal) करे उसे कोई अवकाश स्वीकृत नहीं किया जा सकता तथा उसके विरूद्ध अनुशासनिक कार्यवाही की जानी चाहिए। पाँच वर्ष से अधिक अवकाश पर रहने के पश्चात बिना नियुक्ति प्राधिकारी की अनुमति के उसको ड्यूटी पर उपस्थित होने नहीं देना चाहिए। (विज्ञप्ति संख्या जी-4-34/दस-89-4-83, दिनांक 12.9.89 तथा शासनादेश संख्या जी-2-729/दस, दिनांक 6-6-2001)
(झ) वेतन व भत्तों को विनियमन :- (मूल नियम 18-क)
गवर्नमेन्ट आफ इण्डिया ऐक्ट, 1935 की धारा 241(3)(क) और 258(2)(ख) के प्रतिबन्धों को ध्यान में रखते हुए, सरकारी कर्मचारियों के वेतन तथा भत्ते का दावा उन नियमों द्वारा विनियमित होता है जो वेतन या भत्ता अर्जित करते समय लागू रहे हों और अवकाश का दावा उन नियमों द्वारा विनियमित होता है जो अवकाश के लिए आवेदन करने और स्वीकृत होते समय लागू रहे हों।
- प्रविष्टि कर दी जानी चाहिए। सेवापुस्तिका में इस प्रकार की घोषणाओं के अतिरिक्त अन्य महत्वपूर्ण घटनाओं तथा विकल्प का चुनाव आदि की प्रविष्टि कर दी जाय और उनका अभिप्रमाणन भी कर दिया जाये।
- सेवापुस्तिका में कार्यवाहक पद की प्रकृति का संदर्भ दिया जाना चाहिए और इसके अतिरिक्त उस पद पर होने वाली नियुक्ति के फलस्वरूप किये जाने वाली विभिन्न प्रबन्धों की प्रविष्टि इनके आदेशों सहित की जानी चाहिए।
- सेवापुस्तिका में इस बात का उल्लेख होना चाहिए कि क्या स्थायीकरण के पूर्व कर्मचारी को परिवीक्षा पर रखा गया है।
- अस्थायी व कार्यवाहक राजकीय कर्मचारियों के बारे में इस बात का भी प्रमाण सेवापुस्तिका में अंकित होना चाहिए कि यदि वह राजकीय कर्मचारी अवकाश पर न गया होता तो उस समय पर वस्तुत: कार्य करता रहता।
- सेवापुस्तिका में अन्तिम तीन वर्षों में की गयी सेवाओं की प्रकृति का उल्लेख साफ-साफ किया जाय।
- सेवापुस्तिका में प्रत्येक वर्ष सेवाओं की प्रकृति का उल्लेख व सत्यापन किया जाना चाहिए।
- अशक्तता (इनवैलिड) पेंशन के होने पर चिकित्सा प्रमाण-पत्र के स्वीकार किये जाने का प्रमाण दिया जाना चाहिए।
- यदि कोई कर्मचारी स्वीकृत अवकाश के बाद भी अनुपस्थित रहता है तो स्वीकर्ता अधिकारी के पास विकल्प है कि वह अवकाश को, जो कि ग्राह्य हो, बढ़ा दे अथवा मूल नियम 73, सपठित तदधीन नोट के अंतर्गत निहित प्रक्रिया के अनुसार अनुपस्थित की अवधि के नियमितीकरण का आदेश निर्गत करें। यदि कोई कर्मचारी बिना अवकाश के अनुपस्थित रहता है तो स्वीकर्ता अधिकारी अनुपस्थिति की अवधि को असाधारण अवकाश में पूर्व तिथि से चाहे तो बदल सकता है। (राज्यपाल महोदय के आदेशों के साथ पठित मूल नियम 85 बी)
- सेवापुस्तिका में प्रविष्टियाँ स्याही से अंकित की जाय और उनका नियमित अभिप्रमाणन किया जाय।
- ओवर राइटिंग किसी भी दशा में न की जाय। त्रुटिपूर्ण प्रविष्टियों को स्याही से काटकर नयी प्रविष्टि कर दी जाय। सक्षम अधिकारी द्वारा इनको अपरिहार्य रूप से अभिप्रमाणित किया जाय।
- सरकारी सेवक उपर्युक्त अवधि की समाप्ति के 6 माह के अन्दर उसकी वापसी के लिए प्रार्थना-पत्र प्रस्तुत करता है तो सेवापुस्तिका में सेवानिवृत्ति, त्याग-पत्र अथवा सेवा से मुक्त किये जाने की प्रविष्टि करके सेवापुस्तिका उसे दे दी जाय। उपर्युक्त अवधि की समाप्ति पर सेवा पुस्तिका नष्ट कर दी जाय।
- सेवा में विमुक्ति/पृथक्करण के 5 वर्ष बाद तक या मृत्यु के छ: माह बाद तक, जो भी घटना पहले हो रखी जानी चाहिए। उसके बाद उसे नष्ट कर देना चाहिए।
- यदि सेवा से विमुक्त/पृथक्कृत कर्मचारी की सेवा में पुन: वापसी हुई हो, तो सेवापुस्तिका संबंधित अधिष्ठान को भेज दी जानी चाहिए।
- सेवापुस्तिका के रख-रखाव के विषय में विस्तृत अनुदेश सेवा पुस्तिका के प्रारम्भ में मुद्रित रहते हैं उनका सावधानी से अनुपालन करना चाहिए।
(च) सेवापुस्तिका के सम्बन्ध में आहरण-वितरण अधिकारियों के लिए चेक लिस्ट :- आहरण- वितरण अधिकारियों के लिए निम्नलिखित बिन्दु अत्यंत महत्वपूर्ण हैं :-
- पदोन्नति आदि जब और जैसे भी हो, की प्रविष्टियाँ सेवापुस्तिका में कर दी जाय और उनका अभिप्रमाणन कर दिया जाय।
- जिन राजकीय कर्मचारियों की 1-4-1965 के पूर्व स्थायी पेंशन योग्य अधिष्ठान में नियुक्ति की गयी हो वहाँ उनकी सेवापुस्तिका में आवश्यक रूप से पेंशन तथा पारिवारिक पेंशन नियमों के अन्तर्गत उनके अधुनातन विकल्प की प्रविष्टि कर दी जानी चाहिए। सेवापुस्तिका में इस प्रकार की घोषणाओं के अतिरिक्त अन्य महत्वपूर्ण घटनाओं तथा विकल्प का चुनाव आदि की प्रविष्टि कर दी जाय और उनका अभिप्रमाणन भी कर दिया जाये।
- सेवापुस्तिका में कार्यवाहक पद की प्रकृति का संदर्भ दिया जाना चाहिए और इसके अतिरिक्त उस पद पर होने वाली नियुक्ति के फलस्वरूप किये जाने वाली विभिन्न प्रबन्धों की प्रविष्टि इनके आदेशों सहित की जानी चाहिए।
- सेवापुस्तिका में इस बात का उल्लेख होना चाहिए कि क्या स्थायीकरण के पूर्व कर्मचारी को परिवीक्षा पर रखा गया है।
- अस्थायी व कार्यवाहक राजकीय कर्मचारियों के बारे में इस बात का भी प्रमाण सेवापुस्तिका में अंकित होना चाहिए कि यदि वह राजकीय कर्मचारी अवकाश पर न गया होता तो उस समय पर वस्तुत: कार्य करता रहता।
- सेवापुस्तिका में अन्तिम तीन वर्षों में की गयी सेवाओं की प्रकृति का उल्लेख साफ-साफ किया जाय।
- सेवापुस्तिका में प्रत्येक वर्ष सेवाओं की प्रकृति का उल्लेख व सत्यापन किया जाना चाहिए।
- अशक्तता (इनवैलिड) पेंशन के होने पर चिकित्सा प्रमाण-पत्र के स्वीकार किये जाने का प्रमाण दिया जाना चाहिए।
- यदि कोई कर्मचारी स्वीकृत अवकाश के बाद भी अनुपस्थित रहता है तो स्वीकर्ता अधिकारी के पास विकल्प है कि वह अवकाश को, जो कि ग्राह्य हो, बढ़ा दे अथवा मूल नियम 73, सपठित तदधीन नोट के अंतर्गत निहित प्रक्रिया के अनुसार अनुपस्थित की अवधि के नियमितीकरण का आदेश निर्गत करें। यदि कोई कर्मचारी बिना अवकाश के अनुपस्थित रहता है तो स्वीकर्ता अधिकारी अनुपस्थिति की अवधि को असाधारण अवकाश में पूर्व तिथि से चाहे तो बदल सकता है। (राज्यपाल महोदय के आदेशों के साथ पठित मूल नियम 85 बी)
- सेवापुस्तिका में प्रविष्टियाँ स्याही से अंकित की जाय और उनका नियमित अभिप्रमाणन किया जाय।
- ओवर राइटिंग किसी भी दशा में न की जाय। त्रुटिपूर्ण प्रविष्टियों को स्याही से काटकर नयी प्रविष्टि कर दी जाय। सक्षम अधिकारी द्वारा इनको अपरिहार्य रूप से अभिप्रमाणित किया जाय।
5. सेवावृत्त (सहायक नियम 148)
(क) सभी प्रकार के समूह घ के कर्मचारियों तथा पुलिस कर्मियों जिनकी श्रेणी हेड कांस्टेबिल से उच्च न हो, का सेवा अभिलेख प्रपत्र संख्या-14 के सेवावृत्त में रखा जायेगा।
(ख) सेवावृत्त को बहुत सावधानी से जाँच की जानी चाहिए और सेवा विवरण के अन्तर्गत सभी अपेक्षित सूचनायें भरी जानी चाहिए तथा अभ्युक्ति के कालम में पूर्ण विवरण दिया जाना चाहिए। पेंशन के लिए प्रत्येक कर्मचारी के सेवा का विवरण इसी सेवावृत्त से बनाया जायेगा।