Policy Updates

राजस्थान में पेनोरमा के माध्यम से महापुरषों को याद किया जाएगा

पन्नाधाय, अमरा जी भगत और केसरी सिंह बारहठ का बनेगा पेनोरमा

 28-मार्च-2023, 07:45 PM

जयपुर, 28 मार्च। राज्य में स्वतंत्रता सेनानी केसरी सिंह बारहठ, महाबलिदानी पन्नाधाय और लोकदेवता अमरा जी भगत के पेनोरमा का निर्माण होगा। मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत ने इन पेनोरमा के निर्माण के लिए 12 करोड़ रुपए की वित्तीय स्वीकृति प्रदान की है। यह पेनोरमा भावी पीढ़ी के लिए प्रेरणास्त्रोत साबित होंगे। श्री गहलोत की स्वीकृति से चित्तौड़गढ़ जिले में पन्नाधाय के पैतृक स्थल पाण्डोली में 4 करोड़ रुपए की लागत से ‘पन्नाधाय पेनोरमा’ बनेगा। पेनोरमा में पन्नाधाय के कृतित्व एवं व्यक्तित्व को विभिन्न माध्यमों से दर्शाया जाएगा। आमजन को उनके बलिदान, त्याग, साहस एवं स्वाभिमान की जानकारी मिलेगी। चित्तौड़गढ़ जिले में लोकदेवता अमरा जी भगत (अनगढ़ बावजी) का पेनोरमा भी 4 करोड़ रुपए की लागत से तैयार होगा। यहां सामाजिक सरोकार के कार्यों के बारे में जानकारी मिलेगी। भीलवाड़ा के शाहपुरा में स्वतंत्रता सेनानी श्री केसरी सिंह बारहठ के पेनोरमा का निर्माण होगा। इसमें 4 करोड़ रुपए की लागत आएगी। इन पेनोरमा से युवा वर्ग अपने अधिकारों के प्रति शिक्षित और जागृत होगा।  इन तीनों ही पेनोरमा में मुख्य भवन, सभागार, हॉल, पुस्तकालय, प्रतिमा, छतरी, शिलालेख, स्कल्पचर्स, ऑडियो-वीडियो सिस्टम जैसे विभिन्न कार्य होंगे। तीनों जगह निर्माण कार्य पर्यटन विकास कोष से कराए जाएंगे।

स्वतंत्रता सेनानी केसरी सिंह बारहठ

  • केसरी सिंह बारहठ का जन्म 21 नवंबर, 1872 को राजस्थान की शाहपुरा रियासत के देवपुरा गांव में हुआ था। उनके पिता कृष्ण सिंह बारहठ जागीरदार थे। जब वह एक महीने के थे तब ही उनकी माता का निधन हो गया, अत: उनका लालन-पालन उनकी दादी ने किया।
  • उनकी शिक्षा उदयपुर में संपन्न हुई। उन्होंने बंगाली, मराठी, गुजराती, संस्कृत आदि भाषाओं के अलावा इतिहास, दर्शन (भारतीय और यूरोपीय), खगोलशास्त्र, ज्योतिष आदि में शिक्षा प्राप्त की।
  • वह चारण परिवार से थे इसलिए डिंगल-पिंगल भाषा में काव्य लेखन की कला विरासत में मिली थी। केसरी सिंह के अध्ययन के लिए उनके पिता ने अपना प्रसिद्ध पुस्तकालय ‘कृष्ण-वाणी-विलास’ उनके लिए उपलब्ध करवा दिया था। वह राजनीति में अपना गुरु इटली की क्रांति के जनक मैजिनी को मानते थे। वीर सावरकर द्वारा मैजिनी की जीवनी मराठी में लिखकर लोकमान्य तिलक को गुप्त रूप से भेजी, तो केसरी सिंह ने उसका हिंदी अनुवाद किया था।
  • वर्ष 1920 में उन्हें रिहा कर दिया गया। इसके बाद सेठ जमनालाल बजाज के बुलाने पर केसरी सिंह सपरिवार वर्धा चले गए। वर्धा में उन्होंने ‘राजस्थान केसरी’ नामक साप्ताहिक समाचार पत्र का प्रकाशन शुरू किया और इसके सम्पादक विजय सिंह पथिक को बनाया। यहीं पर उनकी मुलाकात महात्मा गांधी से हुई।
  • राजस्थान के महान क्रान्तिकारी और कवि केसरी सिंह बारहठ का निधन 14 अगस्त, 1941 को हुआ।

महाबलिदानी पन्नाधाय

पन्ना धाय राणा साँगा के पुत्र राणा उदयसिंह की धाय माँ थीं। पन्ना धाय किसी राजपरिवार की सदस्य नहीं थीं। अपना सर्वस्व स्वामी को अर्पण करने वाली वीरांगना  पन्ना धाय का जन्म कमेरी गावँ में हुआ था। राणा साँगा के पुत्र उदयसिंह को माँ के स्थान पर दूध पिलाने के कारण पन्ना ‘धाय माँ’ कहलाई थी। पन्ना का पुत्र चन्दन और राजकुमार उदयसिंह साथ-साथ बड़े हुए थे। उदयसिंह को पन्ना ने अपने पुत्र के समान पाला था। पन्नाधाय ने उदयसिंह की माँ रानी कर्मावती के सामूहिक आत्म बलिदान द्वारा स्वर्गारोहण पर बालक की परवरिश करने का दायित्व संभाला था। पन्ना ने पूरी लगन से बालक की परवरिश और सुरक्षा की। पन्ना चित्तौड़ के कुम्भा महल में रहती थी।

चित्तौड़  का शासक, दासी का पुत्र बनवीर बनना चाहता था। उसने राणा के वंशजों को एक-एक कर मार डाला। बनवीर एक रात महाराजा विक्रमादित्य की हत्या करके उदयसिंह को मारने के लिए उसके महल की ओर चल पड़ा। एक विश्वस्त सेवक द्वारा पन्ना धाय को इसकी पूर्व सूचना मिल गई। पन्ना राजवंश और अपने कर्तव्यों के प्रति सजग थी व उदयसिंह को बचाना चाहती थी। उसने उदयसिंह को एक बांस की टोकरी में सुलाकर उसे झूठी पत्तलों से ढककर एक विश्वास पात्र सेवक के साथ महल से बाहर भेज दिया। बनवीर को धोखा देने के उद्देश्य से अपने पुत्र को उदयसिंह के पलंग पर सुला दिया। बनवीर रक्तरंजित तलवार लिए उदयसिंह के कक्ष में आया और उसके बारे में पूछा। पन्ना ने उदयसिंह के पलंग की ओर संकेत किया जिस पर उसका पुत्र सोया था। बनवीर ने पन्ना के पुत्र को उदयसिंह समझकर मार डाला। पन्ना अपनी आँखों के सामने अपने पुत्र के वध को अविचलित रूप से देखती रही। बनवीर को पता न लगे इसलिए वह आंसू भी नहीं बहा पाई। बनवीर के जाने के बाद अपने मृत पुत्र की लाश को चूमकर राजकुमार को सुरक्षित स्थान पर ले जाने के लिए निकल पड़ी। स्वामिभक्त वीरांगना पन्ना धन्य हैं! जिसने अपने कर्तव्य-पूर्ति में अपनी आँखों के तारे पुत्र का बलिदान देकर मेवाड़ राजवंश को बचाया।

संत शिरोमणि अमरा भगत

राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले के बड़ी सादड़ी विधानसभा इलाके में नरबदिया तहसील है. नरबदिया तहसील के भदेसर में संत शिरोमणि अमरा भगत (Amra Bhagat) का समाधि स्थल है.

संत अमरा भगत से जुड़े चमत्कार

जैसे ही संत अमरा भगत का जन्म हुआ तो जन्म के 9 दिन तक उन्होंने मां का दूध नहीं पिया. 9 दिन के बाद सूर्य पूजन की रस्म पूरी करने के बाद उन्होंने मां का दूध पिया. जिससे इस यशस्वी बालक की चर्चा पूरे इलाके में फैल गई. वहीं लगभग 102 साल पहले देश में प्लेग नाम की महामारी और (लाल ताव) के नाम की बीमारी फैली. लोगों को इस महामारी से बचाने के लिए अनगढ़ बावजी की धूनी पर अमरा भगत ने घोर तपस्या की और लोगों को बचाया.

अमरा भगत से जुड़ी पहली कहानी

भेरू लाल गाडरी (मंदिर ट्रस्ट से जुड़े हैं) के मुताबिक नरबदिया गांव के कुछ लोगों का समूह चार धाम की यात्रा के लिए गया. उसमें अमरा भगत भी थे. उसी समय रक्षाबंधन का त्योहार आया. त्योहार पर अमरा भगत के माता पिता कुछ भी पकवान नहीं बना रहे थे क्योंकि अमरा भगत चार धाम यात्रा पर थे. इस मनोदशा को यात्रा पर गए अमरा भगत ने महसूस किया और अपने साथियों को कहा कि मैं स्नान करके आ रहा हूं. उसी समय वह सीधे अपने गांव लौट आए और मंदिर में माला जपने लगे. घर पर अपने बेटे के ना होने के कारण अमरा भगत की मां ने पकवान नहीं बनाए थे. इसलिए वह भैरु देवाता को सिर्फ चावल का भोग लगाने मंदिर पहुंची. यहां उन्होंने अपने बेटे को जाप करते हुए देखा और वह बहुत खुश हुईं. जिसके बाद उनके घर पर पकवान बने.