
एक संस्था प्रधान के नाते हमे अपने कर्तव्यों की पालना के साथ भूमिका का निर्वहन भी करना हैं। विभागीय नियमावली, संदर्शिका, आर एस आर रूल्स, जी एन एफ रूल्स इत्यादि के साथ ही हमे नवीनतम आदेशो, दिशानिर्देशो, सूचनाओं के साथ ही विभिन्न प्रशिक्षणों में प्राप्त ज्ञान का उपयोग अपने विवेक से करना होता हैं। एक संस्था प्रधान हेतु सैद्धान्तिक पक्ष के साथ ही कुछ व्यवहारिक बिंदु भी उनके लिए प्रस्तुत हैं।
1. हमे विद्यालय योजना के अलावा भी विद्यालय हेतु दीर्घकालीन, मध्यमकालीन ( 5 वर्षो हेतु) व अल्पकालीन योजना (आगामी 3 माह) निर्माण कर लेना चाहिए। आगामी अल्पकालीन कार्ययोजना पर हमे अत्यधिक केंद्रित रहकर संसाधनों का विनियोग सुनिश्चित करना चाहिए।
Automatic Timing Bell for School Bell Timer, Industries with Advance Digital Gong Bell Sound, timely Bell System, Periodic Bell (ATB360 (Controller) with 1pc GX-LSH40-V1 (Loudspeaker))
Rs. 5,999
Swaggers Automatic School Timer Bell System with 12 Inch Gong Bell (Prime)
Rs. 5,299
Realon Metal Automatic School Timer Gong Bell (12-inch, Silver)
Rs. 1,320
OCELLI School Bell Timer Smart Automatic Bell Management System 20 Sessions Per Day + Unlimited Holidays
Rs. 2,049
2. विद्यालय विकास में संस्थाप्रधान की मुख्य भूमिका है, उसे आंतरिक व बाह्य शक्तियो को उपयोग में लेकर विद्यार्थी हित साधना पड़ता हैं। दोनों शक्तियो को संतुलित रखते हुए इनके प्रति स्वयं की जवाबदेही भी करनी पड़ती हैं। आंतरिक और बाह्य शक्तियों के उद्देश्य विपरीत होने पर विद्यालय संचालन में प्रतिकूलता व बाधा उतपन्न होती हैं।संस्थाप्रधान के लिए इनमे संतुलत स्थापित करना एक चुनोतिपूर्ण कार्य हैं।
3. विद्यालय में उपलब्ध संसाधनों यथा धनराशी, समय, भौतिक (वस्तुओ) एवम् मानवीय का अधिकतम एवम् अनुकूलतम उपयोग सुनिश्चित करना भी संस्थाप्रधान हेतु अनिवार्य हैं। इन संसाधनों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण मानवीय संसाधन हैं। इस संसाधन को साधलेने से किसी भी लक्ष्य को साधा जा सकता है एवम् इसके नियंत्रण से बाहर हो जाने से अत्यंत विपरीत दशाए भी उतपन्न हो सकती हैं। मानवीय संसाधन के उपयोग हेतु अनेक व्यवस्थाएं, सिद्धान्त व दर्शन है परन्तु एक महान शिक्षा शास्त्री श्री उमाशंकर जी “बन्धु जी” ने एक प्रेरणा मन्त्र दिया है ” मैं अग्नि में रहूँ तो तुम धुप में रहो, मैं धुप में रहूँ तो तुम छाव में रहो, में छाव में रहूँ तो तुम आराम करो और में आराम करू तो तुम आनंद करो”!
4. आज के सुचना प्रस्फुटन के युग में ज्ञान व सूचना सहज मिल जाती है परन्तु संस्कार और अनुशासन दुर्लभ है। हमें विद्यालय वातावरण में संस्कार और अनुशासन को स्थापित करने में हमेशा सजग रहना पड़ेगा।
5 विद्यालय संचालन हेतु आदेश पुस्तिका का अहम रोल हैं। हमारे द्वारा प्रदत्त आदेश स्पष्ट , नियमानुसार, प्रासंगिक, समयोचित होने चाहिए। आदेशो का दोहराव ना हो तथा आदेशो की पूर्ण पालना सुनिश्चित की जानी चाहिए।
6. संस्था प्रधान व स्टाफ सदस्यों के आपसी सम्बन्ध व व्यवहार गरिमापूर्ण हो, इस हेतु सजग रहना पड़ेगा। स्टाफ सदस्यों से अनावश्यक दुरी भी ना हो तथा गैरवाजिब निकटता भी अनुचित हैं।
7. राजकीय संस्थान होने पर संस्था संचालन राजकीय नियमो के आधार पर ही किया जाना चाहिए। व्यक्तिगत अवधारणाओं व पूर्वाग्रहों को राजकीय संसथान में लागु नहीं किया जाना चाहिए। राजकीय नियम सभी पर समान रूप से लागु कर एक स्वस्थ माहौल की स्थापना की जानी चाहिए। प्रत्येक निर्णय राज्य हित में, तुरंत व नियमानुसार लेकर उसे लिखित अभिलेख का रूप प्रदान करना चाहिए।
8. कार्मिको का मनोबल बनाये रखना कुशल प्रबंधन हैं। किसी कार्मिक द्वारा किये गए अच्छे कार्य की वास्तविक प्रशंसा सार्वजानिक व लिखित रूप से की जानी चाहिए परंतु किसी कार्मिक की कमजोरी/ गलती के बारे में उसे एकांत में व उसे सुधारने के रूप में व्यक्त करना चाहिए। एक संस्था प्रधान को व्यंग, मजाक से बचना चाहिए। संस्था प्रधान से प्रत्यक्ष संवाद अपेक्षित होता है अतः उसे अपरोक्ष कथन से बचना चाहिए।
9. किसी भी कार्य को समझ कर अभिमत प्रदान करे, पत्र को पढ़ने के बाद हस्ताक्षर करे, विद्यालय संचालन के मुलभुत अभिलेखों यथा- टाइम टेबल( कक्षावार, अध्यापकवार), टंकोर व्यवस्था, शिविरा पंचांग, अध्यापक उपस्थिति पत्रक, रोकड़ पंजिका मय केश मिलान, आदेश पंजिका, मूवमेंट रजिस्टर, पोषाहार पंजिका, एस डी एम् सी रजिस्टर, छात्र उपस्थिति पंजिका, परीक्षा परिणाम पत्रक, प्रवर्ति प्रभार, स्टोर अभिलेख, वार्षिक योजना,आगुतंक पञ्जिका, शिकायत/ सुझाव पंजिका, गृहकार्य योजना, शिक्षण परिविक्षण इत्यादि को तैयार व स्वयं की पहुँच में रखे।
10. स्थानीय समुदाय, अभिभवको, जनप्रतिनिधियों, गैर सरकारी संघटनो, भामाशाहो से निरंतर सवांद रखे एवम् नवीनतम विभागीय परिपत्रों, आदेशो, निर्देशो का अध्ययन कर उनको विद्यालय में पूर्ण करने हेतु कार्य के अनुसार जिम्मेदारी तय कर अनुपालना करे।