सादुल राजस्थानी रिसर्च इंस्टीट्यूट की दो दिवसीय पुस्तक प्रदर्शनी प्रारंभ
बीकानेर, 12 नवंबर 2023: सादुल राजस्थानी रिसर्च इंस्टीट्यूट ने अपने 80वें स्थापना दिवस के अवसर पर पांडुलिपियों और प्राचीन पुस्तकों की एक भव्य दो दिवसीय प्रदर्शनी का उद्घाटन किया। इस समारोह का उद्घाटन बीकानेर (पश्चिम) विधायक जेठानंद व्यास ने किया, जिन्होंने साहित्य के प्रति समर्पण और सांस्कृतिक धरोहर की आवश्यकता के महत्व पर जोर दिया। इस प्रदर्शनी का उद्देश्य हमारे अतीत को संरक्षित करना और भविष्य की पीढ़ियों के लिए सहेजना है।
इस वन-स्टॉप प्लेटफॉर्म पर संग्रहित पांडुलिपियाँ और प्राचीन पुस्तकें केवल साहित्यिक महत्व की गवाही नहीं देतीं, बल्कि ये हमारे पूर्वजों की उपलब्धियों का प्रतीक हैं जो उन्होंने कठोर साधना से हमें भेंट कीं। विधायक जेथानंद व्यास ने अपने उद्घाटन भाषण में कहा, “इन दस्तावेजों का संरक्षण केवल हमारी जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि यह एक आवश्यकता बन गई है।”
प्रदर्शनी का महत्व
यह प्रदर्शनी साहित्यिक और सांस्कृतिक संवाद को पुनर्जीवित करती है। वर्तमान डिजिटल युग के दौरान, पारंपरिक पांडुलिपियों का महत्व अधिक बढ़ गया है। यह हमें न केवल बौद्धिकता का जश्न मनाने का अवसर देती है, बल्कि हमें हमारे अतीत से भी जोड़ती है।
विधायक का संदेश
विधायक जेथानंद व्यास ने राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए जन जागरूकता की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि यह हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है कि हम राजस्थानी को जन-सामान्य की भाषा बनाएं और इसे स्कूली पाठ्यक्रमों में शामिल करें। इसके अलावा, उन्होंने महाराजा गंगा सिंह विश्वविद्यालय में स्थायी राजस्थानी विभाग के निर्माण की बात भी उठाई।
संस्थान का दृष्टिकोण
इंस्टीट्यूट के सचिव राजेंद्र जोशी ने बताया कि यह संस्थान 1946 से विभिन्न साहित्यिक ग्रंथों का प्रकाशन कर रहा है और यहाँ पांडुलिपियों की एक बड़ी संख्या उपलब्ध है। उन्होंने कहा कि राज्य स्तर पर इस संस्थान की साप्ताहिक गतिविधियाँ युवा रचनाकारों को प्रोत्साहित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।
राजस्थान भारती पत्रिका का महत्व
“राजस्थान भारती,” संस्थान की प्रमुख पत्रिका है, जिसका संपादन रानी लक्ष्मी कुमारी चंडावत और बद्री दास सांकरिया जैसे विद्वानों ने किया। जोशी ने बताया कि यह पत्रिका समकालीन साहित्य का प्रसार करने के साथ-साथ राजस्थान की साहित्यिक धरोहर को संरक्षित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।
रचनात्मकता की ओर बढ़ते कदम
बीकानेर के साहित्यकार राजा राम स्वर्णकार ने बताया कि यह संस्थान युवा रचनाकारों को प्रोत्साहित करने के लिए नियमित गतिविधियाँ आयोजित करता है। डॉ. अजय जोशी ने बीकानेर की राजस्थानी साहित्यिक परंपरा के बारे में चर्चा की, जबकि डॉ. नमामी शंकर आचार्य ने उच्च शिक्षा में राजस्थानी भाषा की आवश्यकता पर जोर दिया।
सांस्कृतिक संवाद और संवाद का महत्व
यह प्रदर्शनी साहित्यिक संवाद की परंपरा को नए अर्थ देती है और पुराने ग्रंथों और आधुनिक विचारों का समन्वय करती है। पारंपरिक पांडुलिपियों का संग्रह हमें उन मूल्यों और सिद्धांतों से जोड़ता है जो हमारी पहचान को परिभाषित करते हैं।
आधुनिकता और परंपरा का समन्वय
डिजिटल युग में ज्ञान का प्रवाह ऑनलाइन हो गया है, परंतु प्राचीन पांडुलिपियों और ग्रंथों का महत्व बढ़ता जा रहा है। ग्रंथों का संरक्षण और अध्ययन हमें अपने सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ता है।
संरक्षण अनिवार्य है
जोशी ने जोर देकर कहा कि पांडुलिपियों की सुरक्षा के लिए प्रभावी कदम उठाने होंगे। विधायकों और शिक्षाविदों ने इस दिशा में आवश्यक कदम उठाने की बात की।
डिजिटलाइजेशन की आवश्यकता
फिजिकल संरक्षण के साथ साथ डिजिटलीकरण भी अनिवार्य है। जोशी ने कहा कि इस प्रक्रिया के जरिए युवा पीढ़ी को प्राचीन साहित्य के ज्ञान से लाभ होगा और ये ग्रंथ व्यापक स्तर पर उपलब्ध हो सकेंगे।
युवाओं का महत्व
युवाओं को पारंपरिक साहित्य की पढ़ाई के लिए प्रेरित करना आवश्यक है, ताकि वे अपनी सांस्कृतिक विरासत को समझ सकें और उसका सम्मान कर सकें।
आगे की दिशा
दो दिवसीय यह पुस्तक प्रदर्शनी केवल एक साहित्यिक प्रदर्शनी नहीं है, बल्कि यह उस सांस्कृतिक संवाद का हिस्सा है जो हमें हमारे अतीत से जोड़ती है। यह प्रदर्शनी हमें हमारी सांस्कृतिक धरोहरों को संरक्षित करने के साथ-साथ उन्हें आगे बढ़ाने की आवश्यकता की याद दिलाती है।
राजस्थानी भाषा की मान्यता
संभवत: यह आवश्यक है कि राजस्थानी भाषा को संविधान के आठवें अनुसूची में स्थान मिले। विधायक जेथानंद व्यास ने इस दिशा में जन जागरूकता बढ़ाने के लिए सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता की बात की। यह हमारे सामूहिक प्रयासों पर निर्भर करता है कि हम अपनी मातृभाषा और संस्कृति को संरक्षित रख सकें।
सारांश
हमारी सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण और विकास में यह प्रदर्शनी एक महत्वपूर्ण कदम है। राजस्थान के शिक्षकों, शोधकर्ताओं और छात्रों को चाहिए कि वे इस दिशा में काम करें ताकि हमारी पांडुलिपियाँ और ग्रंथ एक जीवंत साहित्यिक परंपरा का हिस्सा बन सकें। यह प्रदर्शनी हमें न केवल हमारे अतीत से जोड़ती है, बल्कि यह हमें अपने सांस्कृतिक ज्ञान को आगे बढ़ाने की प्रेरणा भी देती है।
इस प्रकार, यह योगदान हमारे समाज के सोचने के तरीके को बदलने का स्रोत बन सकता है, जिससे हम सभी मिलकर अपनी धरोहर को संरक्षित कर सकें।
स्रोत
राजस्थान सरकार का शिक्षा विभाग
ShalaSaral.com राजस्थान के शिक्षकों के लिए एक प्रमुख डिजिटल मंच है, जो शिक्षकों, प्रिंसिपल और शिक्षा अधिकारियों को महत्वपूर्ण जानकारी, संसाधनों और अपडेट्स को सरल प्रारूप में उपलब्ध कराता है।
शिक्षा के क्षेत्र में यह पहल एक नवीनतम कदम है, जो न केवल ज्ञान के प्रसार में सहायक है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि को भी विकसित करती है। यह सुनिश्चित करता है कि पिछले ज्ञान को संरक्षित किया जाए, ताकि यह आने वाली पीढ़ियों के लिए एक अमूल्य संसाधन बन सके।
हम सभी को इस दिशा में प्रयास करते रहना चाहिए ताकि शिक्षा और सृजनशीलता का यह अनुभव हमारी सांस्कृतिक यात्रा को एक नई ऊँचाई पर ले जा सके।
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