
राजकीय सेवा में निम्नलिखित सामान्य नियम कार्यालयाध्यक्ष, संस्थाप्रधान व कार्मिक को जानने अत्यावश्यक है। ये सभी सामान्य नियम है जो कि प्रत्येक राज्यकर्मी को अवश्य जानने चाहिए।
1. 20.01.2006 को/पश्चात राज्य सेवा में सभी नियुक्तियां 2 वर्षीय परिवीक्षाधीन की जाती है व इस अवधि में नियत पारिश्रमिक दिया जाता हैं।
2. राज्य कर्मचारी यदि अपने नाम में परिवर्तन करना चाहता है तो उसे अपने वर्तमान नाम में परिवर्तन करने का एक बन्धपत्र व स्वयम के व्यय पर राजपत्र तथा समाचार पत्र में प्रकाशन को कार्यालयाध्यक्ष के माध्यम से शासकीय स्वीकृति प्राप्त करनी होगी।
3. एक राज्य कर्मचारी एक पद का कार्यभार ग्रहण करते समय उनके साथ देय वेतन भत्तों को उसी दिन से प्राप्त करेगा जिस दिन वह कार्यग्रहण करता हो, मध्यान्ह पश्चात कार्यग्रहण करने पर वेतन/भत्ते अगले दिन से देय होंगे।
4. सक्षम अधिकारी को यह निर्णय लेने में स्वतंत्रता है कि वह त्यागपत्र को तुरंत प्रभाव से स्वीकृत करे अथवा भावी दिनांक से।
5. सामान्यतया सेवानिवृत्ति के इच्छुक कार्मिक से “कोई बकाया ना होने का प्रमाणपत्र” प्राप्त करके त्यागपत्र स्वीकार किया जाता है।
6. नियुक्ति अधिकारी ही त्यागपत्र स्वीकृति हेतु सक्षम है। अनिच्छुक कार्मिक को रोकना राज्य हित में नही होता अतः सामान्य नियम यह है कि सामान्यतया त्यागपत्र स्वीकार कर लिया जाता है लेकिन यदि कार्मिक को विशेष कार्य दिया हुआ हो, अथवा निलम्बित हो, अथवा बन्धपत्र भरा हुआ हो तो रोका जा सकता है।
7. नियम 23 A के तहत एक अस्थायी सरकारी कर्मचारी को सेवा से त्यागपत्र से पूर्व एक विशेष अवधि का नोटिस देना आवश्यक होता है।
8. राज्य कार्मिक को किसी विशेष पद पर स्वतन्त्रता पूर्वक कार्य सम्भालने से पूर्व यदि प्रशिक्षण प्राप्त करना आवश्यक हो तथा वह कार्मिक प्रशिक्षण अवधि में या प्रशिक्षण समाप्ति के 2 वर्ष पूर्व यदि त्यागपत्र देता है तो प्रशिक्षण हेतु सरकार द्वारा व्यय की गई राशि को सरकार को लौटाने हेतु बाध्य हैं।
9. तीन माह से अधिक पर 6 माह से कम प्रशिक्षण अवधि पर एक वर्ष व 6 माह से अधिक प्रशिक्षण अवधि होने पर 2 वर्ष की राजकीय सेवा करने के लिए बन्धपत्र देय होता है।
10. एक कार्मिक को 5 वर्ष से अधिक का निरन्तर रूप से किसी भी प्रकार का अवकाश देय नहीं होता है।
11. एक कार्मिक निरन्तर 5 वर्ष तक अवकाश पर रहने के उपरांत भी अपने पद पर सेवा हेतु उपस्थित नही होता है तो राजस्थान सिविल सेवा( वर्गीकरण, नियंत्रण एवम अपील) निगमों द्वारा उसे सेवा से निष्कासित कर दिया जाता है।
12. जब विद्यमान पदों की संख्या में कटौती की जाती हैं तो उन कार्मिको को हटाया जाता है जो स्थाई सेवा में ना हो व संवर्ग में पदों पर कनिष्ठतम हो।
13. ऐसे सरकारी कर्मचारी जो पहले ही राज्य सरकार की सेवा में है यदि वह 21.01.2006 के पश्चात परिवीक्षाधीन परीक्षार्थी के रूप में नियुक्त हो तो उसके स्वयम के पूर्व के वेतन या नए पद पर प्रशिक्षणार्थियों को देय राशि में जो उसको लाभप्रद हो देय होगी।
14. सरकारी सेवा में रहते मृत्यु होने पर उनके पति/पत्नी को जब अनुकम्पात्मक नियुक्ति नियम 1996 के अधीन नियुक्ति मिल जाती है तो उसे प्राप्त होने वाली पारिवारिक पेंशन पर महंगाई भत्ता देय नही है। लेकिन परिवीक्षा काल के दौरान पारिवारिक पेंशन पर उनको महंगाई भत्ते के बराबर प्रतीकात्मक भत्ता देय है।
15. राज्य कर्मचारी को निम्न परिस्थितियों में पदस्थापन आदेश की प्रतीक्षा में रखा जाता है- दीर्घवकाश से लौटने पर, प्रतिनियुक्ति सर अपने पैतृक विभाग में प्रत्यावर्तन पर, प्रशिक्षण/ विदेशी सेवा में कार्यभार पूर्ण होने पर, नियुक्ति अधिकारी के निर्देश पर पुराने पद का चार्ज देने पर, दूसरे पद पर स्थानांतरण को कार्मिक द्वारा स्वीकार नही करने पर, कार्मिक को पदानवति से बचाने हेतु अथवा प्रशासनिक आधार पर।
16. साधारणतया प्रशासनिक विभाग को एक कार्मिक को 30 दिनों तक के लिए APO रखने का अधिकार है। इससे अधिक अवधि के मामलों में वित्त विभाग की स्वीकृति आवश्यक है।
17. एक राज्य कर्मचारी जो पूर्व में राजकीय सेवा के एक सेवा, संवर्ग, विभाग में हो और सीधी भर्ती द्वारा दूसरी सेवा, संवर्ग, विभाग में नियुक्त हो जाता है तो उसका प्रारम्भिक वेतन निम्ननिखित होगा-
A. अगर नए पद का अधिकतम वेतन पुराने पद से ज्यादा हो तो अंतिम मूल वेतन से आगे की स्टेज पर स्थिरीकरण।
B. अगर नए पद का अधिकतम पुराने पद के समान हो तो अंतिम मूल वेतन पर।
C. अगर नए पद का अधिकतम पुराने वेतन से कम तो अंतिम मूल वेतन तक सीमित।
D. यदि नए का न्यूनतम पुराने के अंतिम मूल वेतन से ज्यादा है तो न्यूनतम नया स्वीकार किया जाएगा।
18. परिवीक्षा पर सेवारत कोई सरकारी कर्मचारी पद की परिवीक्षा अवधि सन्तोषपूर्ण रूप से पूर्ण किये बिना किसी दूसरे ( प्रोबेशनर) पद पर नियुक्त हो जाता है तो उसे पूर्व के पद की सेवावधि का कोई लाभ प्राप्त नही होगा।
19. एक कार्मिक अवकाश की अवधि हेतु अवकाश वेतन प्राप्त करता है ना कि कर्तव्य वेतन।
20. वरिष्ठ/कनिष्ठ कार्मिको के वेतन स्थिरीकरण के फलस्वरूप हुई विसंगतियों को दूर करने के लिए वरिष्ठ कार्मिक का वेतन कनिष्ठ कार्मिक के निर्धारित वेतन के समान राशि तक बढाया जा सकता है यह व्रद्धि सक्षम प्राधिकारी द्वारा उसी तारीख से की जानी चाहिए जिस तारीख से कनिष्ठ कार्मिक अधिक वेतन प्राप्ति आरम्भ करता है। इस हेतु दोनों समान संवर्ग/श्रेणी के हो व उसी विभाग में कार्यरत हो तथा पदोन्नति से पूर्व समान वेतनमान में वेतन प्राप्त करते हो व एक ही विभाग में कार्यरत हो व प्रशासनिक नियंत्रण में हो।
21. किसी कार्मिक को पदोन्नति /नियुक्ति यदि तथ्यों की त्रुटि के कारण दी गई है तो नियुक्ति अधिकारी ऐसी नियुक्ति/ पदोन्नति को तुरन्त निरस्त कर कार्मिक को उसी स्थिति में पुनः लगाएगा जिसमे वह त्रुटिपूर्ण पदोन्नति/ नियुक्ति से पूर्व में था।
22. राज्य सरकार एक कार्यवाहक/ स्थानापन्न कर्मचारी का वेतन स्वीकृत वेतन की दर से कम दर पर निर्धारित कर सकती है।
23. कार्य/उत्तरदायित्व की अधिकता के कारण स्वीकृत किया जाने वाला विशेष वेतन उसके मूल वेतन का 1/5 या 300 में से जो कम हो , से अधिक नही हो सकता।
24. मानदेय- केंद्र सरकार की निधि या किसी अन्य राज्य सरकार की निधि से छात्रव्रती/ वर्तिका के रूप में प्राप्त भुगतान ” मानदेय ” माना जाता है।
शुल्क- साहित्यिक, सांस्कृतिक व कलात्मक कार्यो से अर्जित राशि यदि कार्मिक द्वारा अपने सेवाकाल में अर्जित ज्ञान से प्राप्त हो तो वह शुल्क होती है।
सक्षम अधिकारी की अनुमति के बिना राज्य कार्मिक शुल्क/मानदेय प्राप्त नही कर सकता।
RSR 47 के तहत सभी कार्मिको को जो विश्वविद्यालय/शिक्षा मंडल/ अन्य परीक्षा लेने वाली संस्थाओं के लिए परीक्षक/ प्रश्नपत्र निर्माणकर्ता/अधीक्षक/परिवीक्षक/ जांचकर्ता नियुक्त किये जाने पर अपने वैधानिक कर्तव्यों को बिना किसी बाधा पूर्ण कर सके तो ऐसा कार्य करने व शुल्क प्राप्ति की अनुमति है। इसी प्रकार अपने पदेन कर्तव्यों को पूर्ण करते हुए नगरपालिका, स्थानीय निकायों, पंचायत व पँचायत समिति के कार्य/शुल्क स्वीकार कर सकता है।
उपरोक्त के अलावा प्राप्त शुल्क जब तक राज्य सरकार विशेष आज्ञा से यदि आदेशित नही करे तो (आवर्तक-400₹, व स्थाई – 250₹) से अधिक प्राप्त राशि का 1/3 राज्य सरकार के खाते में जमा करवाना होगा।
25. एक सरकार द्वारा अन्य सरकार के कार्मिकों को दिया गया भुगतान मानदेय के रूप में है एवम उसके किसी भाग की वसूली शुल्क मानकर नही की जाती है।
बिना विशिष्ट आज्ञा के भी निम्न भुगतान एक राज्य कार्मिक स्वीकार कर सकता है- सार्वजनिक में निबन्ध लेखन, किसी अपराधी को गिरफ्तार करवाने या विशिष्ट सूचना/सेवा देने से प्राप्त राशि, कस्टम-आबकारी से प्राप्त पुरुस्कार, आकाशवाणी प्रसारण।
नोट- अनुसन्धान कार्य में सलग्न कार्मिक राजकीय स्वीकृति बिना आविष्कार का स्वत्वाधिकार प्राप्त नही करेगा।