
राजु सारसर “राज” | तुम्हारे लौट आनें की खुशी में
मा नें
बना कर रख लिए हैं
तिल-शक्कर के लड्डू|
पतंगों ने पंख पसारे हैं
आकाश के आंगन में |
बच्चों ने गड़ा दी है आंखें,
पतंगों की पीठ पर |
पंजाब के खेतों में,
मुस्कान बिखेरता गेहूं,
तैयार खड़ा है तुम्हारे वारने लेने को,
राजस्थान के धोरों में,
चने के फूल मुस्कुराने लगे हैं,
हल्का सा जामुनीपन लिए हुए,
सरसों फूली नहीं समा रही है,
पोंगल-बिहू के पकवानों की खुशबू,
सुदूर पूर्व से दक्षिण तक पसर गई है।
हिमाचली-कश्मीरी,
वादियों ने भर ली है झोलियां फूलों से,
तुम्हारे स्वागत को,
महाकवि कन्हैयालाल सेठिया की तरह,
मैं भी लिख रहा हूँ एक कविता |
सबने करली है तैयारियां,
अपने-अपनें अंदाज़ से |
ओ, सूरज ! तुम्हारे लौट आने की खुशी में |
राजू सारसर “राज”
मु.पॉ. किशनपुरा दिखनादा
हनुमानगढ़ (राजस्थान)