
प्रारम्भिक आधुनिक काल अथवा ब्रिटिश काल।
ईस्ट इण्डिया कम्पनी का राज्य 1757 ई० से 1858 ई० तक।
अङ्गरेजों और फ्रांसीसी लोगों का युद्ध
-मुग़ल राज्य की अवनति से देशी राजे नवाबों में झगड़े होने लगे । अंग्रेजी व फ्रांसीसी आदि व्यापारिक कम्पनियों ने अवसर पाकर राज्य स्थापित करने के लिये देशी राजनैतिक झगड़ों में भाग लेने की चेष्टा की | प्रथम कर्नाटक युद्ध से फ्रांसीसियों का प्रभाव जम गया और देशी सूबेदारों की कमज़ोरी स्पष्ट हो गई द्वितीय कर्नाटक युद्ध से फ्रांसीसियों का नक्षत्र डूबता हुआ प्रतीत होने लगा और तृतीय कर्नाटक युद्ध में अङ्गरेज़ों को अपनी प्रभुता स्थापित करने का अवसर मिल गया ।
बंगाल में राज्य क्रान्ति
बंगाल में नवाब और अंग्रेजों में युद्ध हुए जिनका परिणाम यह हुआ कि नवाब शक्तिहीन हो गये और अँग्रेज़ बङ्गाल के स्वामी बन गये । फ्रांसीसी और डच शक्तियों का केवल बङ्गाल में ही नहीं वरन् सारे भारत में विध्वंस हो गया और अंग्रेजों की धाक बङ्गाल, बिहार अवध तक में बैठ गई। शाह आलम से अँग्रेजों को बंगाल और बिहार और उड़ीसा की दीवानी मिली जिससे कम्पनी के अधिकार बहुत बड़ गये 1 कम्पनी जो केवल व्यापार ही करती थी अब शासन भी करने लगी जिनमें कुछ व्यक्तियों की खूब चली और उनको बेईमानी से रुपया प्राप्त करने का अवसर मिला । क्लाइव ने बंगाल में द्वैत शासन प्रबंध स्थापित कर दिया और बङ्गाल की रक्षा मरहठों से करने के लिये अवध को मध्यस्थ राज्य (Buffer State) बना दिया ।
वारन हेस्टिंग्स (Warren Hastings) 1772-85 ई०
भारतवर्ष में कोई केन्द्र शासन न होने के कारण भारत एक युद्ध क्षेत्र बन गया। शाहआलम नाम मात्र को मुगल बादशाह रह गया मरहठों की चढ़ी बढ़ी शक्ति का तृत्तीय पानीपत युद्ध में नाश हो गया परन्तु वे फिर उभरने लगे । माधव जी सिन्धिया ने शाह आलम को अपने अधिकार में करके अपना राज्य उत्तर से दक्षिण तक बढ़ा लिया। रुहेलखंड में रुहेले पत्र अफ़गानों का और पंजाब में सिक्खों का जोर था । दक्षिण में हैदरअली. निज़ाम, मरहठे, मुहम्मद अली और अनरेश सब अपनी अपनी शक्ति बढ़ाने का प्रयत्न कर रहे थे।
ईस्ट इण्डिया कम्पनी बंगाल, बिहार, उड़ीसा और बनारस व गाजीपुर की मालिक हो गई। वारन हेस्टिंग्स ने नियमित शासन प्रबन्ध की स्थापना की और पिछली कुरीतियों, कम्पनी की आपत्तियों तथा अनुचित कार्यों को दूर किया।
गवर्नर जनरल हेस्टिंग्स ने बङ्गाल के दूषित द्वैत शासन प्रबन्ध को दूर करके शासन प्रबन्ध कम्पनी के हाथों में दे दिया और भूमिकर, न्याय और आर्थिक दशा सुधार करके राज्य प्रबन्ध को संगठित बना दिया। अवध को पुष्ट बनाने के लिये अवध की सहायता करके रुहेला को परास्त कर दिया । ब्रिटिश सरकार ने भी अपना उत्तरदायित्व विचार कर रेग्यूलेटिंग ऐक्ट पास कर दिया; परन्तु उसके दोषों के कारण गवर्नर जनरल और उसकी कौंसिल में अनेकानेक झगड़े हुए। मरहठों और मैसूर के युद्ध से अङ्गरेज़ों के सब शत्रु दब गये पर अङ्गरेजी कोष खाली हो गया और रुपया प्राप्त करने के लिये बनारस के राजा चेतसिंह और अवध की बेगमों के साथ बड़ी निर्दयता का व्यवहार किया गया। उस समय जब कि एशिया और यूरोप में अंग्रेजों के बहुत से शत्रु थे और संसार में अन्य स्थानों पर विजय प्राप्त करना अङ्गरेज़ों के लिये कठिन हो गया था, हेस्टिंग्स ने भारतवर्ष में न केवल अङ्गरेजी राज्य को नष्ट होने से बचा लिया वरन ब्रिटिश राज्य की नींव को पुष्ट कर दिया।
क्लाइव के इंगलैंड चले जाने के बाद वेरेल्स्ट और कार्टियर गवर्नर हुए जिनके समय में कोई मुख्य घटना नहीं हुई परन्तु उनके समय में सारे भारतवर्ष की और विशेष कर बंगाल की दशा बिगड़ी हुई थी। इस दशा को देख कर डाइरेक्टरों ने क्लाइव के समय के पुरुषार्थी और साहसी वारेन हेस्टिंग्स को 1772 ईसवी में बंगाल का गवर्नर बना कर भेजा। वारेन हेस्टिंग्स सन् 1732 ई० में पैदा हुआ था। वह भी क्लाइव के समान 18 वर्ष की अवस्था में कम्पनी का क्लर्क हो कर आया था। वह क़ासिम बाज़ार को कोठी का सुपरिन्टेन्डेन्ट था और सिराजुद्दौला के कोठी छीनने पर क़ैद हो गया था परन्तु वह वहाँ से भाग निकला । सन् 1757 ई० में मुर्शिदाबाद के दरबार में वह कम्पनी का एजेन्ट हो गया और सन् 1761 ई० में वह बंगाल की कौंसिल का मेम्बर हो गया। वह 1764 ई० में इङ्गलैंड वापस चला गया; परन्तु 1769 ई० में वह मद्रास की कौंसिल का मेम्बर हो कर आया और 1772 ई० में बङ्गाल का गवर्नर हो गया। उसको बहुत सी आपत्तियों का सामना करना पड़ा क्लाइव के चले जाने के पीछे द्वैत शासन से जो दोष उत्पन्न गये थे उनके दूर करने को उसने सुधार किये। रेग्यूलेटिंग एक्ट के अनुसार उसको सन् 1774 ई० में भारतवर्ष का गवर्नर जनरल बनाया गया सन् 1785 ई० तक उसने बड़ी सफलता पूर्वक कठिनाइयों का सामना करते हुए उस पद को सुशोभित किया । उसने मैसूर और मरहठों से युद्ध किये और बङ्गाल के शासन को सुधारा। इस समय तक हेस्टिंग्स को भारतवर्ष और कम्पनी की दशा का भली भाँति ज्ञान हो गया था। उसकी ईमानदारी और योग्यता भी प्रसिद्ध हो थी। उसमें दो अच्छे गुण थे । कर्तव्य परायणता और दृढ़ प्रतिज्ञा जिनके कारण उसके सब काम सफलता पूर्वक पूर्ण हुए।
कार्नवालिस और सर जान शोर 1785 ई० से 1798 ई० तक
लार्ड कार्नवालिस एक ईमानदार अनुभवी और योग्य शासक था यद्यपि पार्लियामेंट ने भारत में युद्ध करने के विरुद्ध कानून पास कर दिया था और वह भी ऐसा नहीं चाहता था परन्तु टीपू से युद्ध करना ही पड़ा जिसमें टीपू की हार हुई। सिरीरंगपट्टम के संधिपत्र के द्वारा टीपू को अपना आधा राज्य भेंट करना पड़ा जिसे अङ्गरेज़ों, मरहठे और निज़ाम ने बाँट लिया। इसने कम्पनी के कर्मचारियों और न्यायालयों में सुधार किये। दस वर्षीय बन्दोबस्त को स्थाई बना दिया। कम्पनी को 1763 ई० में रेग्यूलेटिङ्ग ऐक्ट के अनुसार नया आज्ञा पत्र मिला जिससे व्यापारी भारत से तीन हज़ार टन तक के माल का व्यापार कर सकते थे । फ्राँस और फ़ारिस के बादशाह के भय से सर जान शोर को अवध के नवाब से नई सन्धि करनी पड़ी।
लार्ड वेलेजली (१७९८-१८०५ ई०) ब्रिटिश अधिपत्य की स्थापना
सर जान शोर के बाद लार्ड वेलेजली भारत का गवर्नर जनरल नियुक्त हुआ उस समय तीनों प्रेसीडेन्सियों का शासन प्रबन्ध बहुत शोचनीय था । देशी राजाओं व नवाबों की शक्ति बहुत बढ़ गई थी उसने भारत की वर्तमान स्थिति को देख कर दो बातों का निश्चय किया । एक तो अङ्गरेज़ी शक्ति को सर्व शिरोमणि बना कर भारत में अंग्रेजी राज्य व प्रभुता स्थापित करना, दूसरे फ्रांसीसी शक्ति का तहस नहस करना । अतः उसने शोर की तटस्थ नीति को तिलाञ्जली देकर सहायक सन्धि की नीति का प्रयोग किया। वेलेजली ने अपनी चतुराई से देशी राज्यों को अपनी सरक्षता में लाकर अङ्गरेज़ी राज्य को सुरक्षित बना दिया ।
शान्ति के उपासक तथा सीमा संगठन
- लार्ड कार्नवालिस (जौलाई से अक्टूबर तक 1805 ई०)
- सर जार्जबाल (1805-07 ई०)
- लार्ड मिन्टो (1807-13 ई०)
लार्ड वेलेजली के पश्चात् लाई कानवालिस दूसरी बार भारत का गवर्नर नियुक्त हुआ परन्तु कुछ ही महीनों बाद उसकी मृत्यु हो जाने के कारण सर जाजवालों गवर्नर जनरल हुआ। वह भी मद्रासी सेना में विद्रोह होन के कारण गवर्नर बना दिया गया और लाई मिन्टो गवनर जनरल बनाया गया। उसने फ़ारिस व अफ़ग़ानिस्तान को दूत भेज कर उनसे संधि की और महाराजा रणजीतसिंह से अमृतसर के स्थान पर संधि करके उसे मित्र बना लिया। कम्पनी को 1813 ई में नया आज्ञापत्र मिला जिसके अनुसार प्रत्येक अङ्गरेज भारत से व्यापार कर सकता था
युद्ध के पुजारी
- लार्ड हेस्टिंग्स ( 1813-23 ई० )
- लार्ड एमहर्स्ट ( 1823-28 ई० )
लार्ड हेस्टिंग्स के समय में सब और अशान्ति फैली हुई थी । उसको नैपालियों, पिंडारियों और पेशवाओं से युद्ध करना पड़ा । नेपाल में गोरखों को अधीन किया फिर सिन्धिया पर दबाव डाल कर उसकी सेना की सहायता से पिंडारियों का अन्त किया। इसके पश्चात् मरहठों की चौथी लड़ाई में पेशवाई और मरहठा शाही का अन्त हो गया साथ ही साथ भोंसला व होल्कर भी अङ्गरेज़ी सरकार के अधीन हो गये इन विजयों के कारण अङ्गरेज़ी राज्य बहुत विस्तृत हो गया। उसके बाद लार्ड ऐमहर्स्ट के समय मुख्य घटनायें हुई एक तो ब्रह्मा से युद्ध और दूसरी भरतपुर की विजय । ब्रह्मा के युद्ध के बाद यान्डाबू की सन्धि से सारी बंगाल की खाड़ी पर अङ्गजों का अधिकार हो गया ।
शान्ति, संगठन व शासन सुधार ।
- लार्ड विलियम बेंटिंक (1828-35 ई०)
- सर चार्ल्स मेटकाफ़ (1835-36 ई०)
लार्ड विलियम बैंटिक का समय सुधारों के लिए प्रसिद्ध है। उसके समय में शासन, आर्थिक और सेना सम्बन्धी सुधार हुए । उसने ठगी व सती की कुरीतियों का दमन किया । भारतवासियों को बिना किसी जात पाँत के भेद से उच्च पद मिलने लगे । 1833 ई० में कम्पनी को एक नया फ़रमान मिला। अब कप्पनी का कार्य भारत में शासन करना ही रह गया । उसने देशी राज्यों की संरक्षता अपने ऊपर ले ली और उनके अन्दरूनी शासन में भी हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया उसके समय में क़ानूनी कमीशन बना जिसने ताज़ीरात हिन्द बनाया । सर चार्लस मेटकाफ़ के समय में प्रेस की स्वतंत्रता मिली ।
अफ़ग़ानिस्तान व सिन्ध के साथ युद्ध
- लॉर्ड ऑकलैंड ( 1836-42 ई० )
- एलेनबरा ( 1842-44 ई० )
लार्ड आकलैंड राजनैतिक विषयों में निपुण नहीं था उसने बिना विचारे काबुल पर चढ़ाई कर दी। इसने दोस्त मुहम्मद को तख्त से उतार कर शाह सुजा को अमीर बना दिया। अफ़ग़ानियों में चारों तरफ़ विद्रोह हो गया। हजारों अंग्रेज मारे गये। कम्पनी ने घटना को सुनकर इस लार्ड आकलैंड को वापिस बुला लिया। लार्ड एलेनबरा के समय में युद्ध का अन्त हुआ। शाहसुजा को अफ़ग़ानों ने कत्ल कर डाला अङ्गरेज़ों ने दोस्त मुहम्मद को काबुल का अमीर मान लिया । 1843 ई० में जनरल नेपियर ने सिन्ध को फ़तह कर लिया, ग्वालियर की ताकत को कम कर दिया गया अन्त में उसे बहुत सी बदनामियों के कारण वापिस बुला लिया गया ।
महाराज रणजीत सिंह, पंजाब की विजय
- लॉर्ड होर्डिंग (1844-48 ईसवी)
- लॉर्ड डलहौजी (1848-56 ईसवी)
महाराजा रणजीतसिंह ने सीमा प्रान्त का बहुत सा हिस्सा अफ़ग़ानों से छीन कर अपना अधिकार जमा लिया। उसने काशमीर, पेशावर को भी जीत लिया अन्त में १८३५ ई० में रणजीतसिंह की मृत्यु के साथ सिक्खों की शक्ति व राज्य क्षय हो गये ।
लार्ड हार्डिङ्ग के समय में 1845 ई० में सिक्खों का पहिला युद्ध हुआ जिस में सिक्खों की हार हुई । 1846 ई० के लाहोर के सन्धिपत्र से अङ्गरेज़ों को पंजाब का बहुत सा हिस्सा मिल गया । लार्ड डलहौज़ी के समय में सिक्खों की दूसरी लड़ाई हुई जिसमें अङ्गरेज़ों को बहुत हानि पहुंची। पंजाब अगरेज़ी राज्य में मिला लिया गया। महाराजा दलीपसिंह को 5 हजार रुपया देकर देश से निकाल दिया।
भारत की अंतिम विजय। (लार्ड डलहौजी 1848-56)
ब्रह्मा की दूसरी लड़ाई से अङ्गरेजों के अधिकार में रंगून का बन्दरगाह और अनेकों खानें आ गई । लार्ड डलहौजी ने नई नीति पर कार्य करना प्रारम्भ किया पंजाब, पीगू आदि को जीत लिया । हड़प नीति के अनुसार सितारा, झाँसी आदि अँगरेज़ी राज्य में मिला लिये गये श्रवध का आन्तरिक शासन ख़राब होने के कारण और कम्पनी के डाइरेक्टरों की रिपोर्ट पर व अँगरेज़ी राज्य में सम्मिलित कर लिया गया और नवाब को 15 लाख की पेन्शन देकर कलकत्ते भेज दिया । सन् 1853 ई० में कम्पनी को एक नया आज्ञापत्र मिला जिसके अनुसार पंजाब और बंगाल में अलग अलग लेफ़्टीनेन्ट गवनर रखने की आज्ञा मिल गई हिन्दुस्तानियों को उच्चपद मिलने लगे और इंगलैंड में सिविल सर्विस की परीक्षा होने लगी।
विद्रोह और कम्पनी का अन्त
लार्ड केनिंग के समय की प्रसिद्ध घटना सन् 1857 ई० का विद्रोह था जो कि फ़ौजी विद्रोह था। विद्रोह के मुख्य कारण, बद इन्तज़ामी और धार्मिक तथा सामाजिक बुराइयाँ थीं। यह मेरठ, देहली, लखनऊ, पंजाब आदि में फैला। इसमें झाँसी की रानी, नाना साहब, बहादुरशाह और अवध की बेग़मों ने ख़ास भाग लिया । लाई केनिङ्ग ने बड़ी दयालुता से विद्रोह का दमन किया । पार्लियामेंट ने कम्पनी को इसका उत्तरदायी बनाया और शासन की बागडोर पार्लियामेंट ने अपने हाथ में ले ली सन् 1858 में महारानी विक्टोरिया ने देशी राज्यों की रक्षा करने, गोद लेने, अँगरेजी राज्य में सम्मिलित करने की घोषणा कर दी लाई केनिङ्ग ने यह घोषणा करने के लिये अनेक स्थानों पर दरबार किये विद्रोहियों के अलग अलग उद्देश्य होने से बहुत से राजों का भाग न लेने से और लोकप्रिय न होने से असफल हुधा ।