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कक्षा 10, विषय हिंदी, सूरदास के पद एवम उनका वर्णन, एनसीईआरटी एवम माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान

सूरदास

  • कवि-परिचय (कवि परिचय)
    • आचार्य रामचंद्र शुक्ल का मानना है कि कृष्ण भक्त कवि सूरदास का जन्म 1540 विक्रमादित्य संवत् (1483 ईस्वी) में हुआ था और मृत्यु 1620 संवत् (1563 ईस्वी) के आसपास हुई थी।
    • उनका जन्मस्थान माना जाता है कि आगरा और मथुरा के बीच स्थित ‘रुनकटा’ गांव है। कुछ विद्वानों का मानना है कि उनका जन्मस्थान दिल्ली के पास ‘सीही’ गांव है।
    • उनके पिता का नाम रामदास बताया जाता है।
    • ‘वार्ता साहित्य’ और ‘भक्तमाल’ के आधार पर उन्हें सरस्वती ब्राह्मण माना जाता है। हालांकि, ‘साहित्य लहरी’ में एक पद है जो बताता है कि वह चंदबरदाई (पृथ्वीराज चौहान के दरबारी कवि) के वंशज, ब्रह्मभट्ट थे।
    • इसी कविता पर आधारित एक कहानी है कि सूरदास कुएं में गिर गए और अंधे हो गए। छह दिनों के बाद, भगवान कृष्ण ने उन्हें ठीक कर दिया। सूरदास ने तब अनुरोध किया कि उनकी आंखें हमेशा के लिए बंद कर दी जाएं ताकि वे सांसारिक पाप न देखें। परिणामस्वरूप, उन्हें आध्यात्मिक दृष्टि प्राप्त हुई।
  • सूरदास के जन्म से अंधे होने पर बहस
    • अधिकांश विद्वानों का मानना है कि वह बाद में अंधे हो गए क्योंकि उनकी कविताओं में इसका प्रमाण मिलता है।
  • साहित्यिक कृतियाँ
    • सूरदास की तीन मुख्य कृतियाँ हैं: सूरसागर, साहित्य लहरी और सूर सारवली।
    • सूरसागर उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना है और एक महान कवि के रूप में उनका स्थान सुरक्षित करने के लिए पर्याप्त है।
    • सूरदास ने अपनी कविताओं में ब्रज भाषा का प्रयोग किया। उनकी भाषा की सुंदरता और साहित्यिक गुणवत्ता किसी भी पिछले कवि द्वारा अद्वितीय है।
  • पद के बारे में संक्षिप्त परिचय
    • पहला पद कृष्ण और राधा की पहली मुलाकात का वर्णन करता है। कृष्ण बर्फ तोड़ते हैं और अपना परिचय देते हैं। राधा चतुराई से कृष्ण के गुणों (अच्छे और बुरे दोनों) का वर्णन करते हुए उनकी प्रशंसा करती हैं। कृष्ण राधा को अपने साथ खेलने के लिए आमंत्रित करते हैं।
    • शेष तीन पद उद्धव और गोपियों के बीच की वार्तालाप हैं। इसे ‘भ्रमर गीत’ (भौंरा का गीत) के रूप में जाना जाता है, जिसे हिंदी साहित्य में बेजोड़ माना जाता है। निर्गुण ब्रह्म के उपदेशक उद्धव गोकुल आते हैं। हालांकि, कृष्ण के बारे में गोपियों के विचारों को सुनकर वह वाणीहीन रह जाते हैं। गोपियों के शब्दों में विनोद और करुणा दोनों भरे हुए हैं। उद्धव उनके व्यंग के तीरों से छलनी हो जाते हैं और कृष्ण के प्रेम से अभिभूत हो जाते हैं।

सूरदास जी के पद

(1)

बूझत स्याम कौन तू गोरी। कहाँ रहति काकी है बेटी, देखी नहीं कबहूँ ब्रज-खोरी।। काहे को हम ब्रज-तन आवतिं, खेलत रहतिं आपनी पोरी। सुनत रहतिं स्रवननि नंद ढोटा, करत फिरत माखन दधि चोरी।। तुम्हरो कहा चोरि हम लैहें, खेलन चलो संग मिलि जोरी। सूरदास प्रभु रसिक सिरोमनि, बातनि भुरई राधिका भोरी ।।

पद: यह सूरदास द्वारा रचित कृष्ण-लीला का एक प्रसिद्ध पद है।

पद का भावार्थ (Meaning of the verse):

यह पद कृष्ण और राधा की पहली मुलाकात का वर्णन करता है। राधा कृष्ण को पहचान नहीं पाती हैं और उनसे पूछती हैं कि वे कौन हैं।

पंक्ति-दर-पंक्ति विश्लेषण (Line-by-line analysis):

  • पहली पंक्ति (First line):
    • बूझत स्याम कौन तू गोरी (Boojhat Shyam kaun too Gori): राधा कृष्ण को “स्याम” (Shyam – dark-complexioned one) कहकर संबोधित करती हैं और पूछती हैं कि “कौन तू (kaun too – who are you)?”
  • दूसरी पंक्ति (Second line):
    • कहाँ रहति काकी है बेटी, देखी नहीं कबहूँ ब्रज-खोरी (Kahan rahti kaki hai beti, dekhi nahin kabhoo Braj-khori): राधा आगे कृष्ण से पूछती हैं कि वे कहाँ रहते हैं (“कहाँ रहति काकी – Kahan rahti kaki – where do you live?”) और उन्हें “बेटी (beti – daughter)” कहकर सम्बोधित करती हैं। साथ ही यह बताती हैं कि उन्होंने कृष्ण को “कभी ब्रज में नहीं देखा (kabhoo Braj mein nahin dekhi – never seen in Braj)”.
  • तीसरी पंक्ति (Third line):
    • काहे को हम ब्रज-तन आवतिं, खेलत रहतिं आपनी पोरी (Kahe ko hum Braj-tan aavatin, khelat rahti apni pori): राधा कृष्ण से पूछती हैं कि “वह (we) ब्रज में क्यों आएं (kyon aavatin – why do we come)?” और यह भी कहती हैं कि वे “अपनी पोरी खेलती रहती हैं (apni pori khelat rahti hain – keep playing in our own courtyard)”.
  • चौथी पंक्ति (Fourth line):
    • सुनत रहतिं स्रवननि नंद ढोटा, करत फिरत माखन दधि चोरी (Sunat rahtiं sravannin Nand dhota, karat फिरat makhan dadhi chori): राधा कृष्ण को बताती हैं कि वे सुनती हैं कि “नंद के बेटे (Nand ke bete – son of Nand)” को दंड मिलता रहता है (“ढोटा खाता है – dhota khata hai”) क्योंकि वे “मक्खन और दही चुराते फिरते हैं (makhan aur dadhi churaate फिरते hain – keeps stealing butter and curd)”.
  • पाँचवीं पंक्ति (Fifth line):
    • तुम्हारा कहाँ चोरि हम लैहें, खेलन चलो संग मिलि जोरी (Tumhara kahaan chori hum le hain, khelna chalo sang mili jori): राधा कृष्ण से मजाकिया लहजे में कहती हैं कि “आपका क्या चुराएं (aap kahaan chori hum lein – what should we steal of yours)?” और उन्हें “आने के लिए कहते हुए (aaane ke liye kahte hue – inviting them to come)” पूछती हैं कि “क्या आप हमारे साथ खेलने के लिए नहीं चलोगे (kya aap humhare saath khelne ke liye nahin chalenge – won’t you come and play with us)?”
  • छठी पंक्ति (Sixth line):
    • सूरदास प्रभु रसिक सिरोमणि, बातनि भुरई राधिका भोरी (Surdas Prabhu Rasik Siromani, baatni bhuraai Radha Bhari): सूरदास कहते हैं कि प्रभु कृष्ण रस के सिरोमणि हैं (“Prabhu Krishna Rasik Siromani hain – Lord Krishna is the greatest connoisseur of love”) और राधा अपनी बातों से कृष्ण को लजा रही हैं (“Radha apni baaton se Krishna ko sharmaa rahi hain – Radha is shying Krishna away with her words”).

सारांश (Summary):

यह पद कृष्ण और राधा की पहली मुलाकात का एक सुंदर और चंचल वर्णन है। राधा कृष्ण को पहचान नहीं पाती हैं और उनसे मजाकिया सवाल पूछती हैं। कृष्ण, अपनी तरफ से, राधा के मधुर शब्दों और चंचलता का आनंद लेते हैं।

पद में प्रयुक्त साहित्यिक उपकरण (Literary devices used in the verse):

अनुप्रास (Anupras):

बूझत स्याम कौन तू गोरी (Boojhat Shyam kaun too Gori)

कहाँ रहति काकी है बेटी (Kahan rahti kaki hai beti)

सुनत रहतिं स्रवननि नंद ढोटा (Sunat rahtiं sravannin Nand dhota)

रूपक (Metaphor):

प्रभु रसिक सिरोमणि (Prabhu Rasik Siromani)

उपमा (Simile):

बातनि भुरई राधिका भोरी (Baatni bhuraai Radha Bhari)


इस पद का महत्व (Importance of this verse):

यह पद कृष्ण और राधा के प्रेम का एक सुंदर चित्रण प्रस्तुत करता है। यह पद राधा की चंचलता और कृष्ण के प्रति उनकी प्रेम भावना को दर्शाता है।

पद संख्या 02

(2)

मधुकर स्याम हमारे चोर। मन हरि लियौ तनक चितवनि मैं, चपल नैन की कोर।। पकरे हुते हृदय उर अंतर, प्रेम प्रीति कै जोर। गए छड़ाइ तोरि सब बंधन, दै गए हँसनि अँकोर ।। चाँकि परी जागत निसि बीती, दूत मिल्यौ इक भौर। सूरदास प्रभु सरबस लूटयौ, नागर नवल किसोर ।।

पद: यह सूरदास द्वारा रचित कृष्ण-लीला का एक प्रसिद्ध पद है।

पद का भावार्थ (Meaning of the verse):

यह पद कृष्ण के प्रति राधा के प्रेम का वर्णन करता है। राधा कहती हैं कि कृष्ण उनके मन को चुरा ले गए हैं और उन्हें प्रेम और प्रीति के बल पर अपने हृदय में कैद कर लिया है।

पंक्ति-दर-पंक्ति विश्लेषण (Line-by-line analysis):

  • पहली पंक्ति (First line):
    • मधुकर स्याम हमारे चोर (Madhukar Shyam hamare chor): राधा कृष्ण को “मधुकर (Madhukar – bee)” और “चोर (chor – thief)” कहकर संबोधित करती हैं।
  • दूसरी पंक्ति (Second line):
    • मन हरि लियौ तनक चितवनि मैं, चपल नैन की कोर (Man Hari liyau tanak chitavni main, chapal nain ki kor): राधा कहती हैं कि कृष्ण ने “एक पल के लिए देखने में (tanak chitavni mein – in a moment’s glance)” उनका मन चुरा लिया (“मन हरि लियौ – man Hari liyau”) और उनकी “चंचल आँखों (chapal nain – restless eyes)” का प्रभाव था।
  • तीसरी पंक्ति (Third line):
    • पकरे हुते हृदय उर अंतर, प्रेम प्रीति कै जोर (Pakre hote hriday ur antar, prem preeti ke jor): राधा कहती हैं कि कृष्ण ने “प्रेम और प्रीति के बल पर (prem preeti ke jor – by the force of love and affection)” उनके “हृदय को पकड़ लिया है (hriday ko pakad liya hai – captured my heart)”।
  • चौथी पंक्ति (Fourth line):
    • गए छड़ाइ तोरि सब बंधन, दै गए हँसनि अँकोर (Gaye chhadaai tori sab bandhan, dai gaye hansni ankor): राधा कहती हैं कि कृष्ण ने “सभी बंधनों को तोड़कर (sab bandhanon ko todkar – breaking all the bonds)” उन्हें मुक्त कर दिया है और “हँसी (hansi – laughter)” के रूप में उन्हें “एक और बंधन (ek aur bandhan – another bond)” दिया है।
  • पाँचवीं पंक्ति (Fifth line):
    • चाँकि परी जागत निसि बीती, दूत मिल्यौ इक भौर (Chaanki pari jagat nishi biti, doot milyau ik bhaur): राधा कहती हैं कि “रात जागते हुए (raat jaagte hue – spending the night awake)” बीत गई और “सुबह होने पर (subah hone par – at dawn)” उन्हें “एक दूत (ek doot – a messenger)” मिला।
  • छठी पंक्ति (Sixth line):
    • सूरदास प्रभु सरबस लूटयौ, नागर नवल किसोर (Surdas Prabhu sarbas lutayau, nagar naval kishore): सूरदास कहते हैं कि प्रभु कृष्ण ने “सब कुछ लूट लिया है (sab kuchh loot liya hai – has robbed everything)” और “वह नागर और नवीन किशोर (nagar aur navin kishore – young and handsome city-dweller)” हैं।

सारांश (Summary):

यह पद राधा के कृष्ण के प्रति प्रेम और भक्ति का एक भावपूर्ण वर्णन है। राधा कहती हैं कि कृष्ण ने उनके मन, हृदय और आत्मा को अपने प्रेम से जीत लिया है।

पद में प्रयुक्त साहित्यिक उपकरण (Literary devices used in the verse):

  • रूपक (Metaphor):
    • मधुकर (Madhukar – bee)
    • चोर (chor – thief)
    • दूत (doot – messenger)
  • उपमा (Simile):
    • नागर नवल किसोर (nagar naval kishore – young and handsome city-dweller)
  • अनुप्रास (Anupras):
  • मन हरि लियौ तनक चितवनि मैं (Man Hari liyau tanak chitavni mein)
  • पकरे हुते हृदय उर अंतर (Pakre hote hriday ur antar)
  • गए छड़ाइ तोरि सब बंधन (Gaye chhadaai tori sab bandhan)


इस पद का महत्व (Importance of this verse):

यह पद कृष्ण-भक्ति और प्रेम का एक सुंदर उदाहरण है। राधा के शब्दों में कृष्ण के प्रति उनके प्रेम और समर्पण की भावना clearly दर्शायी गयी है।

अतिरिक्त टिप्पणियाँ (Additional notes):

यह पद ब्रज भाषा में लिखा गया है, जो हिंदी की एक पुरानी बोली है।

इस पद में कई शब्द हैं जो आधुनिक हिंदी में प्रचलित नहीं हैं।

इस पद को समझने के लिए, ब्रज भाषा की कुछ बुनियादी जानकारी होना आवश्यक है।

पद संख्या 03

(3)

संदेसनि मधुबन कूप भरे। अपने तो पठवत नहीं मोहन, हमरे फिरि न फिरे ।। जिते पथिक पठए मधुबन काँ, बहुरि न सोध करे। कैवै स्याम सिखाइ प्रबोधे, कै कहुँ बीच मरे ।। कागद गरे मेघ, मसि खूटी, सर दव लागि जरे ।। सेवक सूर लिखन कौ आंधौ, पलक  कपाट अरे ।।

पद: यह सूरदास द्वारा रचित कृष्ण-लीला का एक प्रसिद्ध पद है।

पद का भावार्थ (Meaning of the verse):

यह पद राधा के कृष्ण के प्रति प्रेम और विरह का वर्णन करता है। राधा कहती हैं कि उन्होंने कृष्ण के पास कई दूत भेजे हैं, लेकिन वे वापस नहीं आये। वे चिंतित हैं कि यह दूत भी वापस नहीं आयेगा और वे और भी दुखी हो जाएंगी। वे कृष्ण से प्रार्थना करती हैं कि वे उन्हें लिखना सिखाएं ताकि वे खुद उन्हें पत्र लिख सकें।

पंक्ति-दर-पंक्ति विश्लेषण (Line-by-line analysis):

  • पहली पंक्ति (First line):
    • संदेसनि मधुबन कूप भरे (Sandesani madhuban koop bhare): राधा कहती हैं कि उनके “संदेश (sandesh – messages)” मधुबन (Madhuban – forest) में “कूप (koop – well)” की तरह भर गए हैं, यानी वे कृष्ण तक नहीं पहुंच पा रहे हैं।
  • दूसरी पंक्ति (Second line):
    • अपने तो पठवत नहीं मोहन, हमरे फिरि न फिरे (Apne to pathavat nahin Mohan, hamare firin nahin fire): राधा कृष्ण से कहती हैं कि “आप (you) तो हमें कोई पत्र (patr – letter)” नहीं भेजते और “हमारे दूत (hamare doot – our messengers)” वापस नहीं आते।
  • तीसरी पंक्ति (Third line):
    • जिते पथिक पठए मधुबन काँ, बहुरि न सोध करे (Jite pathik pathae madhuban kaan, bahuri nahin sodh kare): राधा कहती हैं कि उन्होंने “जितने भी दूत (jitne bhi doot – as many messengers)” मधुबन (Madhuban – forest) में भेजे हैं, वे “वापस नहीं आये (wapas nahin aaye – did not return)” और “उनका पता नहीं चला (unka pata nahin chala – their whereabouts are unknown)”.
  • चौथी पंक्ति (Fourth line):
    • कैवै स्याम सिखाइ प्रबोधे, कै कहुँ बीच मरे (Kaive Shyam sikhai prabodhe, ka kahun bich mare): राधा कृष्ण से पूछती हैं कि “वे उन्हें लिखना कैसे सिखाएं (ve unhen likhna kaise sikhayen – how can you teach me to write)” और “क्या होगा यदि (kya hoga yadi – what if)” दूत “बीच में मर जाए (bich mein mar jaaye – dies in between)”.
  • पाँचवीं पंक्ति (Fifth line):
    • कागद गरे मेघ, मसि खूटी, सर दव लागि जरे (Kagad gare megh, masi khuti, sar dav lagi jare): राधा कहती हैं कि “कागज (kagaj – paper)” हवा में उड़ जाएगा (“gare megh – will fly away in the wind”), “स्याही (siyahi – ink)” सूख जाएगी (“khuti – will dry up”), और “उनका सिर (unka sir – their head)” “दर्द से जल जाएगा (dard se jal jaayega – will burn with pain)”।
  • छठी पंक्ति (Sixth line):
    • सेवक सूर लिखन कौ आंधौ, पलक कपाट अरे (Sevak Sur likhan kau andhau, palak kapat are): सूरदास कहते हैं कि “वे लिखने में अंधे (likhane mein andhe – blind to writing)” हैं और “अपनी पलकें बंद कर रहे हैं (apni palkein band kar rahe hain – closing their eyelids)”.

सारांश (Summary):

यह पद राधा के कृष्ण के प्रति प्रेम और विरह का एक मार्मिक चित्रण है। राधा कृष्ण के प्रति अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए संघर्ष कर रही हैं।

पद संख्या 04

ऊधौ मन माने की बात।

दाख छुहारा छांड़ि अमृत फल, बिषकीरा बिष खात ।। ज्यों चकोर कों देई कपूर कोउ, तजि अंगार अघात। मधुप करत घर फोरि काठ मैं, बंधत कमल के पात।। ज्यों पतंग हित जानि आपनो, दीपक साँ लपटात । सूरदास जाकौ मन जासौ, सोई ताहि सुहात ।।

ऊधौ मन माने की बात।

दाख छुहारा छांड़ि अमृत फल, बिषकीरा बिष खात ।।

Meaning:

  • Just as a fool leaves the grapes and raisins and eats the poisonous berries,
  • So does the foolish mind leave the nectar-like fruit of devotion to Krishna and instead crave for the poisonous pleasures of the world.

ज्यों चकोर कों देई कपूर कोउ, तजि अंगार अघात।

Meaning:

  • Just as a moth, even after being burnt by the fire, still flies towards it,
  • So does the foolish mind, even after experiencing the pain of worldly attachments, still crave for them.

मधुप करत घर फोरि काठ मैं, बंधत कमल के पात।

Meaning:

  • Just as a bee, in its eagerness to collect honey, gets trapped in the lotus flower,
  • So does the foolish mind, in its eagerness to enjoy the pleasures of the world, gets trapped in its sorrows.

ज्यों पतंग हित जानि आपनो, दीपक साँ सूरदास जाकौ मन जासौ, सोई ताहि लपटात । सुहात ।।

Meaning:

  • Just as a moth, thinking it to be beneficial, flies towards the flame and gets burnt,
  • So does the foolish mind, thinking the pleasures of the world to be beneficial, gets trapped in its sorrows.

सारांश (Summary):

This verse from the poem “Udho Man Mane Ki Baat” by Surdas teaches us that the foolish mind, in its ignorance, craves for the wrong things and gets trapped in the sorrows of the world. It is only by turning to Krishna and practicing devotion that we can attain true happiness and fulfillment.

पद में प्रयुक्त साहित्यिक उपकरण (Literary devices used in the verse):

  • रूपक (Metaphor):
    • दाख छुहारा (grapes and raisins) – the pleasures of the world
    • अमृत फल (nectar-like fruit) – devotion to Krishna
    • चकोर (moth) – the foolish mind
    • अंगार (fire) – the pain of worldly attachments
    • मधुप (bee) – the foolish mind
    • कमल (lotus flower) – the sorrows of the world
    • पतंग (moth) – the foolish mind
    • दीपक (flame) – the pleasures of the world
  • उपमा (Simile):
    • ज्यों चकोर कों देई कपूर कोउ, तजि अंगार अघात।
    • ज्यों पतंग हित जानि आपनो, दीपक साँ सूरदास जाकौ मन जासौ, सोई ताहि लपटात । सुहात ।।

अनुप्रास (Alliteration):

  • दाख छुहारा
  • ज्यों चकोर
  • मधुप करत
  • ज्यों पतंग

यह भी ध्यान रखें कि यह केवल एक संक्षिप्त व्याख्या है। इस पद के बारे में और अधिक जानने के लिए, आप विभिन्न स्रोतों से जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।