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कक्षा 5वीं और 8वीं बोर्ड परीक्षा: सत्रांक गणना को समझें | उपस्थिति और लिखित परीक्षा के अंक का महत्व

कक्षा पंचम/अष्टम बोर्ड के सत्रांक की गणना

प्रारम्भिक शिक्षा पूर्णता परीक्षा, जो कि पांचवीं और आठवीं बोर्ड परीक्षाओं के रूप में आयोजित की जाती है, में परीक्षा परिणामों की गणना के लिए विशेष विधान प्रदान किए गए हैं। इस परीक्षा में प्रश्न पत्र के लिए 80 अंक और सत्रांक के लिए 20 अंक निर्धारित किए गए हैं। सत्रांक के इन 20 अंकों में से 15 अंक लिखित परीक्षा के और 5 अंक उपस्थिति के आधार पर जोड़े जाते हैं।

सत्रांक की गणना निम्नानुसार की जाती है:

  • लिखित के 100 अंकों में से सत्रांक के लिए 15 अंकों का निर्धारण इस प्रकार से किया जाएगा:
  • 0-6 अंक = 1 अंक
  • 7-13 अंक = 2 अंक
  • 14-20 अंक = 3 अंक
  • 21-26 अंक = 4 अंक
  • 27-33 अंक = 5 अंक
  • 34-40 अंक = 6 अंक
  • 41-46 अंक = 7 अंक
  • 47-53 अंक = 8 अंक
  • 54-60 अंक = 9 अंक
  • 61-66 अंक = 10 अंक
  • 67-73 अंक = 11 अंक
  • 74-80 अंक = 12 अंक
  • 81-86 अंक = 13 अंक
  • 87-93 अंक = 14 अंक
  • 94-100 अंक = 15 अंक

उपस्थिति के लिए निर्धारित 5 अंक सत्रांक में जोड़ने की गणना इस प्रकार से की जाएगी:

  • 65% से 75% तक उपस्थिति = 3 अंक
  • 76% से 85% तक उपस्थिति = 4 अंक
  • 86% से 100% तक उपस्थिति = 5 अंक

आठवीं बोर्ड परीक्षा में समाजोपयोगी उत्पादक कार्य, समाज सेवा/कला शिक्षा, स्वास्थ्य एवं शारीरिक शिक्षा के लिए निर्धारित अंकों में से प्राप्तांक को सत्रांक के साथ ही पोर्टल पर अपलोड किया जाता है।

कार्यानुभव, कलाशिक्षा, और स्वास्थ्य/शारीरिक शिक्षा के लिए निम्नलिखित निर्धारित अंक हैं:

  • कार्यानुभव के लिए कुल निर्धारित अंक: 100
  • कलाशिक्षा के कुल निर्धारित अंक: 100
  • स्वास्थ्य/शारीरिक शिक्षा के लिए कुल निर्धारित अंक: 100

यह व्यवस्था सुनिश्चित करती है कि छात्रों की उपलब्धियों और उनकी सक्रिय भागीदारी को व्यापक रूप से मापा जा सके, न केवल अकादमिक परीक्षाओं में उनके प्रदर्शन के आधार पर बल्कि उनके उपस्थिति और विभिन्न समाजोपयोगी और विकासात्मक गतिविधियों में भाग लेने के आधार पर भी। यह प्रणाली छात्रों को अपनी कक्षाओं में नियमित रूप से उपस्थित रहने और विविध गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करती है।

इस प्रक्रिया के माध्यम से, शिक्षा प्रणाली में समग्र विकास पर जोर दिया जाता है, जिससे छात्रों को न केवल अकादमिक ज्ञान प्राप्त होता है, बल्कि वे सामाजिक, शारीरिक और कलात्मक क्षेत्रों में भी विकसित होते हैं। इस प्रकार, यह निर्देशिका छात्रों के लिए एक व्यापक और बहुआयामी शिक्षा प्रदान करने की दिशा में एक कदम है।