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कॉमन सेंस | कॉमन सेंस के उदाहरण, महत्व को दर्शाती एक जबरदस्त कहानी

” कॉमन सेंस ” के बिना काम करना बड़ा हास्यापद हो सकता है। अगर कोई व्यक्ति किसी क्षेत्र विशेष में महारथी भी हो लेकिन व्यवहारिक जीवन मे अगर उसमें “कॉमन सेंस” का अभाव है तो उसको अनेक बार विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। आज हम “कॉमन सेंस” पर बात करेंगे।

कॉमन सेंस क्या है?

उचित तरीके से सोचने और व्यवहार करने और अच्छे निर्णय लेने की क्षमता को हम कॉमन सेंस कह सकते है। कॉमन सेंस को हम व्यवहारिक बुद्धि कह सकते है। यह सही है कि हमको किसी ना किसी क्षेत्र में पारंगत होने पर ही समाज मे विशेष पहचान मिलेगी लेकिन कॉमन सेंस नही रखने अथवा उपयोग में नही लाने पर विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ेगा।

कॉमन सेंस का उदाहरण

एक मीटिंग में एक उच्चाधिकारी बार बार उठके जाता व वापस आकर बैठ जाता। उसके इस व्यवहार से सभी का ध्यान उसकी तरफ जाता। आखिर किसी ने पूछ लिया कि “सर, कोई प्रॉब्लम है क्या?” उस अधिकारी ने बताया कि उसे वाशरूम यूज़ करना है लेकिन वाशरूम पर “लेडीज़” व “जेंट्स” नही लिखा है। इस पर एक जूनियर अधिकारी ने कहा कि ” बॉस, HIS व HER तो लिखा हुआ है ना।”

अब उस उच्चाधिकारी की समझ मे आया कि HIS का मतलब “जेंट्स” से व HER का आशय “Ladies” से है। उसका ध्यान इस मामूली बातबपर नही गया था क्योंकि उसके कॉन्सेप्ट में पहले से ही ” लेडीज” व ” जेंट्स” अंकित था। इस प्रकार कॉमन सेंस का इस्तेमाल करना बहुत जरूरी है।

कॉमन सेंस के अन्य उदाहरण

जिन लोगो मे कॉमन सेंस होता है वे सब्जी खरीदते समय थैले में पहले तरबूज रखते है उसके बाद उसके ऊपर टमाटर रखते है व जिन लोगो मे ये कॉमन सेंस कम होता है वे पहले टमाटर थैले में रखते है व उसके ऊपर तरबूज। सामान्य ज्ञान के उदाहरणों में लंबे समय तक बहुत बीमार महसूस होने पर डॉक्टर के पास जाना , अपने से दोगुने आकार के व्यक्ति से झगड़ा न करना, और सड़क पार करने से पहले दोनों तरफ देखना शामिल है।

‘कॉमन सेंस’ की कहानी

एक पंडितजी के घर में उनकी पहली संतान का जन्म होने वाला था। उनका नाम पंडित विष्णुदत्त शास्त्री था। पंडितजी ज्योतिष के प्रकांड विद्वान थे और उन्होंने दाई से कह रखा था कि जैसे ही बालक का जन्म हो नींबू प्रसूतिकक्ष से बाहर लुढ़का देना।
बालक जन्मा लेकिन बालक रोया नहीं तो दाई ने हल्की सी चपत उसके तलवों में दी और पीठ को मला और अंततः बालक रोया।
दाई ने नींबू बाहर लुढ़काया और बच्चे की नाल आदि काटने की प्रक्रिया में व्यस्त हो गई।
उधर पंडितजी ने गणना की तो उन्होंने पाया कि बालक की कुंडली में ‘पितृहंता योग’ है, अर्थात उनके ही पुत्र के हाथों उनकी मृत्यु का योग है।
पंडितजी शोक में डूब गए और अपने पुत्र को इस लांक्षन से बचाने के लिए बिना कुछ कहे बताए घर छोड़कर चले गए।

सोलह साल बीते।

बालक अपने पिता के विषय में पूछता लेकिन बेचारी पंडिताइन उसके जन्म की घटना के विषय में सबकुछ बताकर चुप हो जाती क्योंकि उसे इससे ज्यादा कुछ नहीं पता था।
अस्तु! पंडितजी का बेटा अपने पिता के पग चिन्हों पर चलते हुये प्रकांड ज्योतिषी बना।
उसी बरस राज्य में वर्षा नहीं हुई।

राजा ने डौंडी पिटवाई जो भी वर्षा के विषय में सही भविष्यवाणी करेगा उसे मुंहमांगा इनाम मिलेगा लेकिन गलत साबित हुई तो उसे मृत्युदंड मिलेगा। बालक ने गणना की और निकल पड़ा।
लेकिन जब वह राजदरबार में पहुंचा तो देखा एक वृद्ध ज्योतिषी पहले ही आसन जमाये बैठे हैं।

“राजन आज संध्याकाल में ठीक चार बजे वर्षा होगी।” वृद्ध ज्योतिषी ने कहा।

बालक ने अपनी गणना से मिलान किया और आगे आकर बोला,”महाराज मैं भी कुछ कहना चाहूंगा।”

राजा ने अनुमति दे दी।

“राजन वर्षा आज ही होगी लेकिन चार बजे नहीं बल्कि चार बजे के कुछ पलों के बाद होगी।”

वृद्ध ज्योतिषी का मुँह अपमान से लाल हो गया और उन्होंने दूसरी भविष्यवाणी भी कर डाली।

“महाराज वर्षा के साथ ओले भी गिरेंगे और ओले पचास-पचास ग्राम के होंगे।”

बालक ने फिर गणना की।

“महाराज ओले गिरेंगे लेकिन कोई भी ओला पैंतालीस से अड़तालीस ग्राम से ज्यादा का नहीं होगा।”

अब बात ठन चुकी थी।

लोग बड़ी उत्सुकता से शाम का इंतजार करने लगे।

साढ़े तीन बजे तक आसमान पर बादल का एक कतरा नहीं था, लेकिन अगले बीस मिनिट में क्षितिज से मानो बादलों की सेना उमड़ पड़ी। अंधेरा सा छा गया। बिजली कड़कने लगी लेकिन चार बजने पर भी पानी की एक बूंद न गिरी। लेकिन जैसे ही चार बजकर दो मिनिट हुये धरासार वर्षा 🎊होने लगी। वृद्ध ज्योतिषी ने सिर झुका लिया। आधे घण्टे की बारिश के बाद ओले गिरने शुरू हुए। राजा ने ओले मंगवाकर तुलवाये। कोई भी ओला पचास ग्राम का नहीं निकला। शर्त के अनुसार सैनिकों ने वृद्ध ज्योतिषी को गिरफ्तार कर लिया और राजा ने बालक से इनाम मांगने को कहा।

“महाराज, इन्हें छोड़ दिया जाये।” बालक ने कहा।

राजा के संकेत पर वृद्ध ज्योतिषी को मुक्त कर दिया गया।

“बजाय धन संपत्ति मांगने के तुम इस अपरिचित वृद्ध को क्यों मुक्त करवा रहे हो।”

बालक ने सिर झुका लिया और कुछ क्षणों बाद सिर उठाया तो उसकी आँखों से आंसू बह र खाहे थे।

“क्योंकि ये सोलह साल पहले मुझे छोड़कर गये मेरे पिता श्री विष्णुदत्त शास्त्री हैं।”

वृद्ध ज्योतिषी चौंक पड़ा।

दोनों महल के बाहर चुपचाप आये लेकिन अंततः पिता का वात्सल्य छलक पड़ा और फफक कर रोते हुए बालक को गले लगा लिया।

“आखिर तुझे कैसे पता लगा कि मैं ही तेरा पिता विष्णुदत्त हूँ।”

“क्योंकि आप आज भी गणना तो सही करते हैं लेकिन “कॉमन सेंस” का प्रयोग नहीं करते।” बालक ने आंसुओं के मध्य मुस्कुराते हुए कहा।

“मतलब”? पिता हैरान था।

“वर्षा का योग चार बजे का ही था लेकिन वर्षा की बूंदों को पृथ्वी की सतह तक आने में कुछ समय लगेगा कि नहीं ?”

“ओले पचास ग्राम के ही बने थे लेकिन धरती तक आते आते कुछ पिघलेंगे कि नहीं?”

“और…”

“दाई माँ बालक को जन्म लेते ही नींबू थोड़े फैंक देगी, उसे कुछ समय बालक को संभालने में लगेगा कि नहीं, और उसी समय में ग्रहसंयोग बदल भी तो सकते हैं और पितृहंता योग पितृरक्षक योग में भी तो बदल सकता है न ?”

पंडितजी के समक्ष जीवन भर की त्रुटियों की श्रंखला जीवित हो उठी और वह समझ गए कि केवल दो शब्दों के गुण के अभाव के कारण वह जीवन भर पीड़ि़त रहे और वह थे–
कॉमन सेंस