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संकष्ट चतुर्थी: व्रत विधि, मंत्र और पूजा सामग्री

संकष्ट चतुर्थी: व्रत विधि, मंत्र और पूजा सामग्री

आज 28 मार्च 2024 को संकष्ट चतुर्थी मनाई जा रही है। यह भगवान गणेश को समर्पित एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है। इस दिन व्रत रखकर और गणपति की पूजा करके भक्त अपने दुखों से मुक्ति और मनचाही कामनाओं की पूर्ति प्राप्त करते हैं।

संकष्ट चतुर्थी पूजा विधि:

  • सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • पूजा स्थान को साफ करें और गणेश जी की मूर्ति स्थापित करें।
  • गणेश जी को स्नान कराएं और उन्हें फूल, माला, चंदन, रोली, अक्षत, दीप, धूप आदि अर्पित करें।
  • भगवान गणेश के मंत्रों का जाप करें, जैसे कि “ॐ गं गणपतये नमः” या “ॐ गजाननं भूत गणादि सेवितं…”
  • “संकष्ट चतुर्थी व्रत कथा” का पाठ करें।
  • गणेश जी को प्रसाद अर्पित करें, जैसे कि मोदक, लड्डू, फल आदि।
  • चंद्रमा उदय होने के बाद, व्रत का पारण करें।

संकष्ट चतुर्थी पूजा सामग्री:

  • गणेश जी की मूर्ति
  • स्नान के लिए जल, दूध, दही, घी, शहद आदि
  • फूल, माला, चंदन, रोली, अक्षत, दीप, धूप आदि
  • वस्त्र, सुपारी, नारियल, फल आदि
  • मोदक, लड्डू, फल आदि प्रसाद के लिए

संकष्ट चतुर्थी के लाभ:

  • इस व्रत को रखने से भगवान गणेश की कृपा प्राप्त होती है।
  • इस व्रत से दुखों और परेशानियों से मुक्ति मिलती है।
  • इस व्रत से मनचाही कामनाओं की पूर्ति होती है।
  • इस व्रत से सुख, समृद्धि और ज्ञान की प्राप्ति होती है।

यह भी जान लें:

  • संकष्ट चतुर्थी व्रत हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है।
  • इस व्रत को रखने वाले भक्तों को पूरे दिन उपवास रखना होता है।
  • व्रत के दौरान, भक्तों को क्रोध, झूठ, चोरी, हिंसा आदि से बचना चाहिए।
  • व्रत का पारण चंद्रमा उदय होने के बाद किया जाता है।

आइए, आज संकष्ट चतुर्थी का व्रत रखकर और भगवान गणेश की पूजा करके उनकी कृपा प्राप्त करें।

विशेष बिंदू

गणपति के सामने धूप-दीप जला कर निम्लिखित मन्त्र का जाप करें ।

गजाननं भूत गणादि सेवितं, कपित्थ जम्बू फल चारू भक्षणम्।
उमासुतं शोक विनाशकारकम्, नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम्।।

कार्य सिद्धि के लिए

1. ॐ सुमुखाय नम: 2. ॐ एकदंताय नम: 3. ॐ कपिलाय नम: 4. ॐ गजकर्णाय नम: 5. ॐ लंबोदराय नम: 6. ॐ विकटाय नम: 7. ॐ विघ्ननाशाय नम: 8. ॐ विनायकाय नम: 9. ॐ धूम्रकेतवे नम: 10. ॐ गणाध्यक्षाय नम: 11. ॐ भालचंद्राय नम: 12. ॐ गजाननाय नम: ।

जय गणेश!