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Hindi Vyakaran
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व्याकरण – Hindi Grammar

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किसी भी भाषा के सुंदर उपयोग हेतु यह आवश्यक होता है कि हम उस भाषा के व्याकरण को समझ कर उस भाषा का उपयोग करें। आज हिंदी भाषा की सम्पूर्ण विश्व मे आवश्यकता प्रतीत होने लगी है अतः अनेकानेक व्यक्ति इस भाषा को सीखना चाहते है। हिंदी भाषी व्यक्तियों हेतु भी यह आवश्यक है कि वे हिंदी भाषा के व्याकरण को समझे। व्याकरण की समझ आने पर ही हम भाषा का अच्छा उपयोग कर सकेंगे। इस आलेख में हम हिंदी व्याकरण से सम्बंधित समस्त बेसिक बातों को शामिल कर रहें है। आइये, हिंदी भाषा व्याकरण की बेसिक बातों को समझने का प्रयास करते है।

व्याकरण का अर्थ

व्याकरण शब्द संस्कृत भाषा से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है “वाक्” यानी भाषा या वचन तथा “ग्रहण” यानी लेन-देन। इसे अंग्रेजी में “Grammar” कहा जाता है। व्याकरण एक ऐसी शास्त्र है जो भाषा के संरचना, व्याकरणिक नियम और उनका उपयोग अध्ययन करती है। व्याकरण भाषा के व्याकरणिक संरचनों को समझने और उन्हें संशोधित करने में मदद करता है, जिससे भाषा का संचार और संवाद सुगम होता है। व्याकरण का अध्ययन विभिन्न भाषाओं में किया जाता है, जैसे अंग्रेज़ी, हिंदी, संस्कृत, फ़्रेंच, जर्मन आदि।

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हिन्दी व्याकरण क्या है? – What is Hindi Grammar?

हिंदी व्याकरण क्या है?

हिंदी व्याकरण उन नियमों और सिद्धांतों का अध्ययन है जो हिंदी भाषा की संरचना, उपयोग और रचना को नियंत्रित करते हैं। इसमें हिंदी में संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया, काल, प्रसंग, क्रियाविशेषण और भाषण के अन्य भागों के लिए व्याकरण के नियमों का अध्ययन शामिल है।

हिंदी का व्याकरण देवनागरी लिपि पर आधारित है, जिसमें 13 स्वर और 36 व्यंजन हैं। यह एक अत्यधिक विभक्ति वाली भाषा है, जिसका अर्थ है कि शब्दों के अंत एक वाक्य में उनके व्याकरणिक कार्य को इंगित करने के लिए बदलते हैं। उदाहरण के लिए, क्रिया के अंत में विषय के काल, व्यक्ति और संख्या के अनुसार परिवर्तन होता है।

हिंदी व्याकरण के अध्ययन में विभिन्न व्याकरणिक श्रेणियों जैसे लिंग, संख्या, केस और काल को समझना और वाक्य बनाने में वे एक-दूसरे के साथ कैसे बातचीत करते हैं, को समझना शामिल है। इसमें विभिन्न प्रकार की वाक्य संरचनाओं को सीखना भी शामिल है, जैसे कि सरल, यौगिक और जटिल वाक्य, और संचार में उनका प्रभावी ढंग से उपयोग कैसे करें।

हिंदी व्याकरण किसी भी व्यक्ति के लिए आवश्यक है जो हिंदी भाषा को पढ़ना, लिखना, बोलना या समझना चाहता है, चाहे वह व्यक्तिगत या व्यावसायिक कारणों से हो।

Hindi Vyakaran-हिंदी व्याकरण की विषयवस्तु

हिंदी व्याकरण भाषा की वह शाखा है, जिसमें हिंदी भाषा के विभिन्न तत्वों जैसे कि वर्ण, वर्तनी, वाक्य, वाक्य-विन्यास, संधि, समास, अलंकार, रस, छंद, वाक्यांश, सर्वनाम, कारक, वचन, पुरुष आदि का अध्ययन किया जाता है। हिंदी व्याकरण का उद्देश्य भाषा के संरचनात्मक और सांद्रतात्मक पहलुओं को समझने और इसे सही ढंग से बोलने, लिखने और समझने में सहायता करना होता है।

इसके अलावा, हिंदी व्याकरण में वाक्य-रचना, वाक्यांश, उपसर्ग, प्रत्यय, क्रिया, संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, काल, वचन, पुरुष, समास, अलंकार, छंद, रस, तत्सम और तद्भव शब्द आदि के बारे में भी जानकारी दी जाती है।

हिंदी व्याकरण न केवल हिंदी भाषा को समझने में मदद करता है, बल्कि यह भाषा का अध्ययन करने वाले लोगों को सम्पूर्ण भाषा ज्ञान और संभाषण की निपुणता प्रदान करता है।

इन विषयों के अलावा, हिंदी व्याकरण में वाक्य संरचना, शब्द निर्माण और विराम चिह्न के नियम भी शामिल हैं। भाषा में प्रभावी ढंग से संवाद करने के लिए हिंदी व्याकरण में एक मजबूत आधार होना जरूरी है। संक्षेप में यह कह सकते है कि आपको निम्नलिखित बिंदुओं पर कार्य करना होगा।

  • वर्ण – वर्ण एक ध्वनि का समूह होता है जो कि एक वाक्य में अलग-अलग शब्दों के रूप में प्रयोग किए जाते हैं। अन्य शब्दों में, वर्ण भाषा की सबसे छोटी इकाई होती है जिससे शब्द बनाये जाते हैं।
  • वर्तनी – हिंदी व्याकरण में वर्तनी का अर्थ है शब्दों को सही ढंग से लिखना और उच्चारित करना। वर्तनी शब्द के स्पष्ट और सही अर्थ को सुनिश्चित करती है जिससे भाषा के संचार को समझना आसान होता है।
  • वाक्य, वाक्य-विन्यास, वाक्य-रचना व वाक्यांश – वाक्य दो या उससे अधिक शब्दों के समूह होते हैं जो एक संयुक्त अथवा सम्पूर्ण विचार को व्यक्त करते हैं।
  • संधि – संधि शब्द संयोजन के द्वारा वर्णों या शब्दों के मेल को कहते हैं। संधि दो या दो से अधिक शब्दों के आसपास होने वाले वर्णों के आवर्त और संयोजन का परिणाम होती है।
  • समास – समास का उद्देश्य शब्दों की संख्या को कम करना होता है ताकि हम उचित समय में और सही ढंग से वाक्य बना सकें।
  • अलंकार – अलंकार की परिभाषा है – “भाषा की सुंदरता बढ़ाने के लिए शब्दों को समूहों में विभाजित करना, उन्हें जोड़कर या उन्हें अलग-अलग ढंग से प्रयोग करना”।
  • रस– “रस” शब्द का अर्थ होता है “भाव” या “भावों का उत्पन्न होना”। यह शब्द काव्य शास्त्र में बहुत महत्वपूर्ण होता है।
  • छंद – मात्राओं का निश्चित मान जिनके अनुसार पद्य रचना की जाती है (जैसे—मात्रिक छंद, मुक्तक छंद)।
  • सर्वनाम – सर्वनाम उन शब्दों को कहा जाता है, जिन शब्दों का प्रयोग संज्ञा अर्थात किसी व्यक्ति, वस्तु, स्थान आदि, के नाम के स्थान पर करते हैं। इसके अंतर्गत मैं, तुम, तुम्हारा, आप, आपका, इस, उस, यह, वह, हम, हमारा, आदि शब्द आते हैं।
  • कारक – संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से वाक्य का सम्बन्ध किसी दूसरे शब्द के साथ जाना जाए, उसे कारक ( Karak ) कहते हैं। कारक( Karak ) संज्ञा या सर्वनाम शब्दों का वह रूप होता है जिसका सीधा सम्बन्ध क्रिया से ही होता है। किसी कार्य को करने वाला कारक यानि जो भी क्रिया को करने में मुख्य भूमिका निभाता है, वह कारक( Karak ) कहलाता है।
  • वचन – वचन का शाब्दिक अर्थ “संख्या (Number)” होता है, और संख्यावाचक शब्दों को ही वचन कहा जाता हैं। संख्यावाची शब्द अर्थात संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और क्रिया आदि के जिस रूप से उसके एक या एक से अधिक होने का ज्ञान हो उसे “हिन्दी में वचन” कहते हैं। जैसे- लड़की, लडकियाँ ।
  • लिंग – व्याकरण के सन्दर्भ में लिंग से तात्पर्य भाषा के ऐसे प्रावधानों से है जो वाक्य के कर्ता के स्त्री/पुरुष/निर्जीव होने के अनुसार बदल जाते हैं। विश्व की लगभग एक चौथाई भाषाओं में किसी न किसी प्रकार की लिंग व्यवस्था है।
  • उपसर्ग – उपसर्ग ऐसे शब्दांश जो किसी शब्द के पूर्व जुड़ कर उसके अर्थ में परिवर्तन कर देते हैं या उसके अर्थ में विशेषता ला देते हैं। उप + सर्ग का अर्थ है – किसी शब्द के समीप आ कर नया शब्द बनाना। उदाहरण: प्र + हार = प्रहार, ‘हार’ शब्द का अर्थ है पराजय।
  • प्रत्यय – प्रत्यय वे शब्द हैं जो दूसरे शब्दों के अन्त में जुड़कर, अपनी प्रकृति के अनुसार, शब्द के अर्थ में परिवर्तन कर देते हैं। प्रत्यय शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है – प्रति + अय। प्रति का अर्थ होता है ‘साथ में, पर बाद में” और अय का अर्थ होता है “चलने वाला”, अत: प्रत्यय का अर्थ होता है साथ में पर बाद में चलने वाला।
  • क्रिया – क्रिया वे शब्द होते हैं जो किसी कार्य के होने या करने अथवा किसी व्यक्ति या वस्तु की स्थिति का बोध कराते हैं।
  • संज्ञा – संज्ञा (Sangya) का अर्थ नाम होता है, क्योंकि संज्ञा किसी व्यक्ति, वस्तु, प्राणी, गुण, भाव या स्थान के नाम को दर्शाती है। संज्ञा एक विकारी शब्द है। संज्ञा शब्द का उपयोग किसी वस्तु, प्राणी, व्यक्ति, गुण, भाव या स्थान के लिए नहीं किया जाता, बल्कि किसी वस्तु, व्यक्ति, प्राणी, गुण, भाव या स्थान के “नाम” के लिए किया जाता है।
  • विशेषण – संज्ञा की विशेषता बतलाने वाला विकारी शब्द (जैसे—नील कमल में नील शब्द विशेषण है)। विशेषण संज्ञा या सर्वनाम के रूप गुण, संख्या, मात्रा, परिमाण, आदि के विशेषता बताते हैं। वे संज्ञा अथवा सर्वनाम शब्द की विशेषता बताई जाती है, वे विशेष्य कहलाते हैं। अच्छा लड़का, तीन पुस्तकें, नई कलम। अच्छा, तीन और नई शब्द विशेषण है जो विशेष्य की विशेषता बतलाते हैं।
  • काल – क्रिया के जिस रूप से उसके होने के समय का बोध होता है, उसे काल कहा जाता है। काल का शाब्दिक अर्थ होता है ‘समय’, अर्थात क्रिया के उस रूपांतर को काल कहा जाता है जिससे उस कार्य के होने का समय और उसकी पूर्ण अथवा अपूर्ण अवस्था का ज्ञान होता हो।
  • तत्सम शब्द – तत्सम शब्द जो मूल भाषा के शुद्ध रूप में हो। तत्सम (तत् + सम = उसके समान) आधुनिक भारतीय भाषाओं में प्रयुक्त ऐसे शब्द जिनको संस्कृत से बिना कोई रूप बदले ले लिया गया है। हिन्दी, बांग्ला, कोंकणी, मराठी, गुजराती, पंजाबी, तेलुगू, कन्नड, मलयालम, सिंहल आदि में बहुत से शब्द संस्कृत से सीधे ले लिए गये हैं क्योंकि इनमें से कई भाषाएँ संस्कृत से जन्मी हैं।
  • तद्भव शब्द – समय और परिस्थिति की वजह से तत्सम शब्दों में परिर्वतन होने से जो शब्द उत्पन्न हुए हैं उन्हें तद्भव शब्द कहते हैं।
  • भाषा व्याकरण एवं लिपि का परिचय – भाषा व्याकरण एक विशेष तकनीक है जो भाषा के संरचन एवं उसके वाक्यों के विभिन्न घटकों का अध्ययन करती है। लिपि एक विशेष तकनीक है जो शब्दों या वाक्यों को लिखने के लिए उपयोग किया जाता है।
  • वर्ण विचार एवं आक्षरिक खंड शब्द-विचार – वर्ण विचार एक भाषा विज्ञान (linguistics) का अध्ययन है जो भाषाओं के ध्वनि एवं उनके संरचनात्मक विवरणों को अध्ययन करता है। यह विज्ञान वर्णों की ध्वनियों की व्याख्या एवं उनके संरचना से संबंधित विवरणों का अध्ययन करता है। इस विज्ञान के माध्यम से हम भाषाओं में उपस्थित विभिन्न वर्णों के लिए उच्चारण रूपों के विवरण को समझ सकते हैं।
  • शब्द प्रकार- उत्पत्ति के आधार पर (तत्सम तद्भव, देशज, विदेशी), रचना के आधार पर, प्रयोग के आधार पर, अर्थ के आधार पर । शब्दों को उत्पत्ति, रचना, प्रयोग और अर्थ के आधार पर अलग-अलग प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है।
  • शब्द-विचार – (विकारी संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया, विशेषण , अविकारी क्रिया-विशेषण, संबंध बोधक,समुच्चय बोधक, विस्मयादि बोधक) शब्द-विचार एक ऐसी क्रिया है जिसमें हम विभिन्न शब्दों को विचार करते हैं तथा उनके अर्थ, प्रयोग, रूप, उच्चारण आदि के बारे में जानते हैं। शब्द-विचार करने से हमारी भाषा कौशल, विवेक एवं अभिव्यक्ति क्षमता में सुधार होता है। यह एक महत्वपूर्ण कौशल है जो हमारे संचार क्षेत्र में बहुत उपयोगी होता है।
  • पद-परिचय – पद-परिचय एक व्याकरण शब्द है जो भाषा के विभिन्न अंगों में एक शब्द की स्थिति या प्रयोग का वर्णन करता है। पद-परिचय शब्दों के रूप, विभक्तियों, वचनों, लिंगों आदि के आधार पर होता है। इसे संज्ञा-विशेषण समूह के रूप में भी जाना जाता है।
  • शब्द शक्तियाँ – हिन्दी व्याकरण में किसी वाक्य के भाव को समझने के लिए प्रयुक्त अर्थ को शब्द शक्ति कहा जाता है। कुछ वाक्य ऐसे होते हैं जिनके अर्थ सभी लोगों के लिए समान होते हैं लेकिन कुछ वाक्य ऐसे होते हैं जिनका अर्थ प्रत्येक व्यक्ति अपनी परिस्थितियों के अनुसार लेता है।
  • शब्द रूपांतरण (लिंग, वचन, कारक, काल, वाच्य) – भाषाविज्ञान में, रूपांतरण, जिसे शून्य व्युत्पत्ति या अशक्त व्युत्पत्ति भी कहा जाता है, एक प्रकार का शब्द निर्माण है जिसमें किसी मौजूदा शब्द (एक अलग शब्द वर्ग के) से बिना किसी बदलाव के एक शब्द (एक नए शब्द वर्ग का) का निर्माण शामिल है, जो कहने का तात्पर्य है, व्युत्पत्ति केवल शून्य का प्रयोग करके।
  • उपसर्ग – संस्कृत एवं संस्कृत से उत्पन्न भाषाओं में उस अव्यय या शब्द को उपसर्ग (prefix) कहते हैं जो कुछ शब्दों के आरंभ में लगकर उनके अर्थों का विस्तार करता अथवा उनमें कोई विशेषता उत्पन्न करता है ।
  • प्रत्यय – प्रत्यय वे शब्द हैं जो दूसरे शब्दों के अन्त में जुड़कर, अपनी प्रकृति के अनुसार, शब्द के अर्थ में परिवर्तन कर देते हैं।
  • अर्थ विचार (पर्याय, विलोम, वाक्यांश के लिए एक शब्द, समानार्थी )
  • विराम चिह्न – विराम शब्द वि + रम् + घं से बना है और इसका मूल अर्थ है “ठहराव”, “आराम” आदि के लिए। जिन सर्वसंमत चिह्नों द्वारा, अर्थ की स्पष्टता के लिए वाक्य को भिन्न भिन्न भागों में बाँटते हैं, व्याकरण या रचनाशास्त्र में उन्हें “विराम” कहते हैं।
  • मुहावरे एवं लोकोक्तियाँ – मुहावरा एक ऐसा वाक्य होता है जो वाक्य की रचना करने पर अपना एक अलग अर्थ या विशेष अर्थ प्रकट करता है इनका प्रयोग करने से भाषा,आकर्षक, प्रभावपूर्ण तथा रोचक बन जाती है। लोकक्ति लोक + उक्ति’ शब्दों से मिलकर बना है जिसका अर्थ है- लोक में प्रचलित उक्ति या कथन। जब कोई पूरा कथन किसी प्रसंग विशेष में उद्धत किया जाता है तो लोकोक्ति कहलाता है। इसी को कहावत कहते है। लोकोक्ति वाक्यांश न होकर स्वतंत्र वाक्य होते हैं।
  • संक्षिप्तीकरण – संक्षिप्तीकरण उस प्रक्रिया को कहते हैं जिसमें किसी लेख, भाषण, विवरण आदि के मूलाशय को सुरक्षित रहने हेतु अप्रासंगिक तथ्यों का परिहार कर सुनियोजित ढंग से अन्तर्निहित उद्देश्य मात्र को प्रस्तुत किया जाता है। अतः संक्षेप में कहा जा सकता है कि मूल भावों की रक्षा करते हुए अपनी भाषा में तथ्य अथवा कथ्य का प्रकटीकरण ही संक्षेपण है। उदाहरण के लिए यदि कोई अनुच्छेद आपको संक्षेपण के लिए दिया गया है तो आपको उसका मूल कथ्य एक-तिहाई रूप में लिख देना चाहिए।
  • पल्लवन – किसी लोकोक्ति, सूक्ति, वाक्य, उक्ति, कहावत आदि के भावों को समझना और उसकी बिस्तार से व्याख्या करना पल्लवन कहलाता है। पल्लवन की सहायता से किसी विषय वाक्य को विस्तार पूर्वक समझाया जाता है ताकि उस वाक्य में छिपे भाव की गहराई को अच्छे से समझाया जा सके।
  • निबंध – निबन्ध (Essay) गद्य लेखन की एक विधा है। लेकिन इस शब्द का प्रयोग किसी विषय की तार्किक और बौद्धिक विवेचना करने वाले लेखों के लिए भी किया जाता है। निबंध के पर्याय रूप में सन्दर्भ, रचना और प्रस्ताव का भी उल्लेख किया जाता है। लेकिन साहित्यिक आलोचना में सर्वाधिक प्रचलित शब्द निबंध ही है।
  • अपठित – अपठित का शाब्दिक अर्थ है-जो कभी पढ़ा नहीं गया। जो पाठ्यक्रम से जुड़ा नहीं है और जो अचानक ही हमें पढ़ने के लिए दिया गया हो। अपठित गद्यांश में गद्यांश से संबंधित विभिन्न प्रश्नों के उत्तर देने के लिए कहा जाता है।
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