अपनी वीरता और साहस के लिए पहचाने जाने वाले नंतराम नेगी बाल्यकाल से ही काफी ओजस्वी थे। जौनसार में आज भी उनकी वीरता की कहानी को याद किया जाता है। ऐसे वीर प्रतापी को शत-शत नमन।
अमर शहीद श्रृंखला
अमर बलिदानी के त्याग व वीरता को सदैव याद किया जाएगा। इस महानायक को समस्त देशवासियों की तरफ से सादर नमन।

देहरादून के सुदूर पश्चिम में स्थित जौनसार जनजाति क्षेत्र के नन्तराम नेगी बाल्यकाल से ही अत्यंत ओजस्वी थे। जब मुगल सेनापति गुलाम कादिर खान ने देहरादून पर हमला किया और वहाँ से नाहन, हिमाचल प्रदेश की ओर बढ़ा, उस समय नाहन के राजा नाबालिग थे। उनकी माता ने अपने सेनापति को नन्तराम नेगी के पास भेजा। वीर नन्तराम ने नाहन की सेना के साथ मुगलों पर आक्रमण किया और उसके सेनापति का वध कर उसे परास्त किया। इस लड़ाई में नन्तराम नेगी और उनका घोड़ा दोनों घायल हो गए और मारकंडे की चढ़ाई में 14 फरवरी 1746 को मात्र 21 वर्ष की आयु में वीरगति को प्राप्त हुए ।
अमर बलिदानी नन्तराम नेगी की वीरता की गाथा | The story of the bravery of immortal martyr Nantram Negi
वीर नंतराम नेगी का जन्म सन 1764 में जौनसार बावर के विराट खाई क्षेत्र के मलेथा में हुआ था. उस समय जौनसार क्षेत्र सिरमौर का अंग था. नंतराम किशोरावस्था से ही शास्त्र विद्या में निपुण थे. उनकी अनोखी प्रतिभा तथा युद्ध कौशल के कारण उन्हें सिरमौर की सेना में स्थान मिला. अपनी प्रतिभा के बल पर कुछ ही समय पश्चात नंतराम नेगी को सिरमौर सेना में एक सैन्य टुकड़ी का मुखिया नियुक्त कर दिया गया था.
मुगल काल में जब मुगल सेना अपने दुश्मनों को रौंदते हुए बादशाही बाग (सहारनपुर) पहुंची. तब नाहन रियासत के राजा को यह खबर मिली कि मुगल सेना का अगला लक्ष्य नाहन रियासत है. तब नहान रियासत के राजा ने अपने सेनापति व अन्य मुख्य सलाहाकारों को राजदरबार में उपस्थित होने का आदेश दिया. राजा ने मुगल सेना के आक्रमण के बारे में जानकारी दी. इससे निपटने के लिए राजदरबार में कई उपाय राजा के सामने सुझाए गए. तब किसी ने राजा को सिरमौर रियासत के मलेथा गांव के वीर नंतराम नेगी के बारे में बताया.
वीर नंतराम नेगी तब सिरमौर रियासत की सेना में एक सैनिक थे. राजा का संदेश पाकर नंतराम नेगी दरबार पहुंचे. राजा ने नंतराम नेगी को मुगल सूबेदार का सिर कलम करने पर सिरमौर रियासत की कालसी तहसील में खंचाजी वजीर पद आरक्षित करने की बात कही. नंतराम ने राजा से परामर्श करने के बाद मां काडका (काली) मंदिर में पूजा अर्चना की और पांवटा दून के लिए रवाना हुए. रात के समय नंतराम मुगल सेना ने जहां डेरा डाला था वहां पहुंचे. नेगी ने मुगल सेना के एक सिपाही से सूबेदार के तंबू के बारे में पूछा और उन्हें सन्देश देने की बात कही. उसके बाद नेगी सूबेदार के तंबू के आगे पहुंचे जहां दो प्रहरी पहरा दे रहे थे. नेगी ने दोनों पहरेदारों का गला दबाकर उन्हें खत्म कर दिया.
इस युद्ध में नंतराम नेगी वीरगति को प्राप्त हुए. मुगल सेना को पराजय का मुंह देखना पड़ा. यह युद्ध इतिहास में कटासन युद्ध के नाम से प्रसिद्ध है. उनके अप्रीतम शोर्य को देखकर महाराजा जगत प्रकाश ने नंतराम को मरणोपरांत “गुलदार” की उपाधि प्रदान की. आज भी जौनसार स्थित उनके गांव को मलेथा” गुलदार ” के नाम से जाना जाता है. मात्र 21 वर्ष की आयु में वीर नंतराम अपने पीछे शौर्य गाथा छोड़कर जनमानस में सदैव के लिए अमर हो गए. उनकी वीरता के किस्से सैकड़ों सालों से जौनसार बावर तथा सिरमौर के गांव में लोकगीतों में गाए जाते हैं.
पूरे जौनसार बावर क्षेत्र में प्रसिद्ध हारूल नृत्य उन्हीं की स्मृति में किया जाता है. नंतराम के पैतृक गांव मलेथा में उनकी स्मृति में एक प्राचीन मंदिर बना है. जिसमें हर बार दशहरे के अवसर पर पूरी क्षेत्र के लोग एकत्रित होकर नंतराम के शस्त्रों की पूजा करते हैं. नंतराम ने कटासन मंदिर में मां भवानी की पूजा कर आशीर्वाद लेकर जिस तलवार से रुहेले सरदार का वध किया था. वह आज भी उस मंदिर में सुशोभित है.