भारतीय स्वतंत्रता संग्राम एक लंबी, बहुआयामी और जटिल प्रक्रिया थी, जिसमें विभिन्न समय पर विभिन्न आंदोलनों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस संग्राम में कई नायक और नायिकाएं, अनेक विचारधाराएं और विभिन्न रणनीतियां सामने आईं, जिन्होंने मिलकर भारत को ब्रिटिश शासन से मुक्त कराया।
महात्मा गांधी के नेतृत्व में यह अहिंसक आंदोलन भारतीय जनमानस के राजनीतिक जागरण का प्रतीक बना। गांधीजी का मानना था कि ब्रिटिश शासन भारतीयों के सहयोग पर निर्भर करता है, और यदि भारतीय उनके साथ सहयोग न करें तो उनका शासन चलाना असंभव हो जाएगा। इस आंदोलन ने ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिला दी और भारतीयों में एक नई आशा और आत्मविश्वास जगाया।
यह आंदोलन गांधीजी के ‘दांडी मार्च’ के साथ शुरू हुआ, जिसमें उन्होंने ब्रिटिश सरकार द्वारा लगाए गए नमक कानून को तोड़ा। यह आंदोलन न केवल नमक कानून के विरुद्ध था, बल्कि यह ब्रिटिश सरकार की अन्यायपूर्ण नीतियों के खिलाफ भी था। इस आंदोलन ने भारतीयों को एकजुट किया और उन्हें स्वतंत्रता दिलाई।
“भारत छोड़ो” नारे के साथ शुरू हुए इस आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक निर्णायक मोड़ ला दिया। गांधीजी की इस आह्वान ने भारतीयों में एक नई ऊर्जा और संकल्प को जगाया, जिसने ब्रिटिश राज के खिलाफ व्यापक जन-आंदोलन को प्रेरित किया। इस आंदोलन की विशेषता थी कि इसने सभी वर्गों के भारतीयों को अपने साथ जोड़ा और ब्रिटिश सरकार को अंततः भारत छोड़ने के लिए मजबूर किया।
क्रांतिकारी आंदोलन ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष का रास्ता अपनाया। भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, राजगुरु, और सुखदेव जैसे युवा क्रांतिकारियों ने अपने बलिदानों से भारतीय युवाओं में राष्ट्रीयता की भावना को जागृत किया। इन क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ अपने निर्भीक प्रतिरोध और संघर्ष से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा प्रदान की।
भारत के स्वतंत्रता आंदोलनों ने न केवल देश को ब्रिटिश शासन से मुक्ति दिलाई, बल्कि एक ऐसे समाज की नींव रखी जहां समानता, स्वतंत्रता और भ्रातृत्व के मूल्य सर्वोपरि हैं। इन आंदोलनों ने भारतीयों में एकता, साहस और आत्मसम्मान की भावना को मजबूत किया।