छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद का जन्म काशी नगरी में सन् 1889 में हुआ था। इनके पिता बाबू देवीप्रसाद विश्रानुरागी थे जिन्हें लोग सुधनी साहु कहकर बुलाते थे। प्रसाद जी की प्रारंभिक शिक्षा का प्रबंध पहले घर पर ही हुआ। बाद में इन्हें क्वीन्स कॉलेज में अध्ययन हेतु भेजा गया। अल्प आयु में ही अपनी प्रतिभा से इन्होंने संस्कृत, हिन्दी, उर्दू, फारसी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान प्राप्त कर लिया था। बचपन से ही इनकी रुचि साहित्य की ओर थी। इन्दु नामक मासिक पत्रिका का इन्होंने सम्पादन किया। साहित्य जगत में इन्हें वहीं से पहचान मिली। काव्य रचना के साथ-साथ नाटक, उपन्यास पूर्व कहानी विधा में भी इन्होंने अपना कौशल दिश्वया। इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित है।
काव्य – आँसू, लहर, झरना, कामायनी, प्रेम पथिक , चित्राधार
नाटक – ध्रुवस्वामिनी, विशाखा, राज्यश्री, अजातशत्रु, स्कन्दगुप्त, चंद्रगुप्त एवम एक घूंट
उपन्यास – कंकाल, तितली, इरावती (अपूर्ण)
कहानी – आकाशदीप, प्रतिध्वनि, पुरस्कार, गुण्डा, आँधी, छाया, इन्द्रजाल
प्रसाद जी की प्रतिभा बहुमुखी है, किन्तु साहित्य के क्षेत्र में कवि एवं नाटककार के रूप में इनकी ख्याति विशेष है। छायावादी कवियों में ये अग्रण्य हैं। कामायनी इनका
अन्यतम काव्य ग्रन्थ है जिसकी तुलना संसार के श्रेष्ठ काव्यों से की जा सकती है। ‘सत्यं शिवं सुन्दरम् का जीता जागता रूप प्रसाद के काव्य में मिलता है। मानव सौन्दर्य के
साथ-साथ इन्होंने प्रकृति सौन्दर्य का सजीव एवं मौलिक वर्णन किया है। इन्होंने ब्रजभाषा एवं खड़ी बोली दोनों का प्रयोग किया है। इनकी भाषा संस्कृतनिष्ठ है। 15 नवम्बर सन 1937 ई. को हिन्दी साहित्य का यह अमर कवि सदा के लिए संसार से विदा हो गया।
जयशंकर प्रसाद की ‘प्रभो कविता उनके रफूट कविताओं के संग्रह ‘कानन कुसुम’ से ली गई है। इश्वर की स्तुति करते हुए कवि ने उसकी सर्वव्यापकता, सौन्दर्य और शक्तिमता का गुणगान किया है। कवि को प्रकृति के प्रत्येक उपादान में ईश्वर का अनन्त प्रसार दृष्टिगत होता है। चन्द्र किरणं ईश्वरीय प्रकाश को व्यक्त करती है। सागर की उत्ताल तरंगें उसकी स्तुति करती हैं। चन्द्रिका उसकी मुस्कान को तथा नदियों का कल-कल निनाद उसके आह्ह्लाद को व्यक्त करता है। वस्तुतः प्रकृति के सौन्दर्य और प्रेम से युक्त मख्य रूप को प्रकाशित करने पाला ईश्वर ही है। ईश्वर की कृपा होने पर ही मनुष्य के समस्त मनोरथ पूर्ण होते हैं। खड़ी बोली हिन्दी में रचित यह कविता प्रसाद जी की भावाभिव्यक्ति का सुंदर उदाहरण है। तत्सनमयी और गंभीर भाषा ने कविता को अद्भुत अभिव्यंजना सौष्ठव से युक्त कर दिया है। लयात्मकता, सरसता और मौलिकता की दृष्टि से भी यह कविता उत्तम कोटि की है।
प्रभो!
विमल इंदु की विशाल किरणें, प्रकाश तेरा बता रही हैं। अनादि तेरी अनन्त माया, जगत को लीला दिखा रही है।
प्रसार तेरी दया का कितना, ये देखना है तो देखे सागर। तेरी प्रशंसा का राग प्यारे, तरंग मालाएँ गा रही है।
तुम्हारा स्मित हो जिसे निरखना, वो देख सकता है चंद्रिका को। तुम्हारे हँसने की चुन में नदियी, निनाद करती ही जा रही है।
विशाल मंदिर की यामिनी में, जिसे देखना हो दीपमाला। तो तारकागण की ज्योति उसका, पता अनूठा बता रही हैं।
प्रभो! प्रेम प्रकाश तुम हो, प्रकृति पदिमनी के अंशुमाली।
असीम उपवन के तुम हो माली, धरा बराबर बता रही है।
जो तेरी होवे दया दयानिधि, तो पूर्ण होता ही है मनोरथ। सभी ये कहते पुकार करके, यहीं तो आशा दिला रही है।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न –
1. जयशंकर प्रसाद का जन्म किस वर्ष हुआ था?
(क) 1880 (ख) 1889 (ग) 1888 (घ) 1890
2. जयशंकर प्रसाद द्वारा सम्पादित पत्रिका का नाम क्या है?
(क) प्रभा (ख) माधुरी (ग) सरस्वती (घ) इन्द्र
अतिलघुत्तरात्मक प्रश्न-
3. जयशंकर प्रसाद के किन्हीं तीन काव्यसंग्रहों के नाम बताइए?
4. ईश्वर की प्रशंसा का राग कौन गा रहा है?
5. मनुष्य के मनोरथ कब पूर्ण होते हैं?
6. अंशुमाली का क्या अर्थ है?
लघुत्तरात्मक प्रश्न-
7. प्रकृति पद्मिनी के अंशुमाली से कवि का क्या तात्पर्य है?
8. कवि ने ईश्वर को अनादि क्यों कहा है?
9. यामिनी में अनूठा पता कौन बता रही है?
10. दयानिधि से क्या तात्पर्य है?
निबंधात्मक प्रश्न-
11. “प्रमो” कविता का सार अपने शब्दों में लिखिए?
उत्तर
वस्तुनिष्ठ प्रश्न –
1. (ख) 1889
2. (क) प्रभा
अतिलघुत्तरात्मक प्रश्न-
3. कामायनी, झरना, आँसू
4. तरंग मालाएँ
5. जब दयानिधि की दया होती है
6. किरणों का समूह
लघुत्तरात्मक प्रश्न-
7. प्रकृति पद्मिनी के अंशुमाली से कवि का तात्पर्य सूर्य से है।
8. कवि ने ईश्वर को अनादि कहा है क्योंकि उसका कोई आरंभ नहीं है।
9. तारकागण की ज्योति
10. दयानिधि का अर्थ है दयालु
निबंधात्मक प्रश्न-
11. “प्रमो” कविता में कवि प्रकृति के सौंदर्य का वर्णन करते हैं। वे प्रकृति को एक सुंदर स्त्री के रूप में देखते हैं और उसकी प्रशंसा करते हैं। कवि का मानना है कि प्रकृति मनुष्य को प्रेम और आनंद प्रदान करती है।
अंश 2:
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि उपरोक्त उत्तर केवल एक प्रारंभिक बिंदु हैं। आपको अपनी समझ और व्याख्या के आधार पर उत्तरों को और विस्तृत और समृद्ध बनाना चाहिए।
अतिरिक्त प्रश्न:
जयशंकर प्रसाद की प्रमुख रचनाओं के बारे में बताएं।
जयशंकर प्रसाद की भाषा और शैली की विशेषताएं क्या हैं?
जयशंकर प्रसाद का हिंदी साहित्य में क्या योगदान है?