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वृद्धसेवा का कर्म: एक प्रेरक प्रसंग

वृद्धसेवा का कर्म: एक प्रेरक प्रसंग

भारतीय संस्कृति में वृद्धसेवा को बहुत महत्व दिया गया है। यह कहानी नियति की है, जिसने अपने ससुर के श्राद्ध के दिन उनकी पसंदीदा खीर बनाई और अनजाने में उनके प्रति अपने पुराने व्यवहार पर पश्चाताप किया।

कथा का आरंभ:
सितंबर के महीने में, नियति ने अपने ससुरजी के श्राद्ध के लिए भोजन तैयार किया। उसने पंडित जी और अन्य मेहमानों के लिए खीर बनाई जिसकी सभी ने प्रशंसा की। खीर बनाने के बाद, उसने सोचा कि खीर का स्वाद कैसा है और उसने खुद भी इसका आनंद लिया।

अतीत की छाया:
खीर खाते समय, नियति को उस समय की याद आई जब उसके ससुरजी ने उससे खीर बनाने के लिए कहा था। नियति ने उनकी इच्छा को अनदेखा किया था, जिससे उनके ससुरजी को गहरी चोट पहुंची थी। वे अपनी पत्नी उमा की याद में खीर खाना चाहते थे, जो अक्सर उनके लिए खीर बनाती थी।

पश्चाताप का क्षण:
जब नियति खीर खा रही थी, उसे लगा कि उसके ससुरजी उससे खीर खाने का आग्रह कर रहे हैं। इस आवाज़ ने उसे अपने किए पर गहराई से पश्चाताप करने को मजबूर किया। उसे समझ में आया कि जीवन में बुजुर्गों का सम्मान और सेवा करना कितना महत्वपूर्ण है।

सीख:
नियति की कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि वृद्धसेवा का कर्म न केवल हमारे पूर्वजों के प्रति हमारे कर्तव्य का हिस्सा है, बल्कि यह हमारे संस्कारों का भी परिचायक है। जब हम अपने बुजुर्गों की सेवा करते हैं, तो हम न केवल उन्हें आदर और सम्मान प्रदान करते हैं, बल्कि हम एक सुखद और समृद्ध समाज की नींव भी रखते हैं।

नियति के प्रसंग में, उसकी अंतरात्मा की आवाज़ ने उसे अपने कर्मों का आईना दिखाया। उसे अहसास हुआ कि बुजुर्गों की इच्छाओं की अनदेखी करके, हम उनके अमूल्य आशीर्वाद और स्नेह से वंचित हो जाते हैं।

आत्मसंतोष की प्राप्ति:
नियति के लिए, अपने ससुर के प्रति किए गए व्यवहार पर पश्चाताप करना एक आत्मसंतोष की प्राप्ति थी। इस घटना ने उसे एक महत्वपूर्ण जीवन पाठ सिखाया – कि जीवन में जिनका हम प्यार करते हैं, उनके प्रति हमारी संवेदनशीलता और सेवा ही सच्ची श्रद्धांजलि है।

समापन:
वृद्धसेवा का कर्म हमें यह सिखाता है कि हमारे बुजुर्ग हमारे जीवन के आधार स्तंभ हैं। उनकी सेवा, सम्मान और प्यार हमारे संस्कारों का प्रतीक है। नियति की कहानी हमें याद दिलाती है कि हमें अपने बुजुर्गों की इच्छाओं और आवश्यकताओं का सम्मान करना चाहिए, उनकी जीवन यात्रा के सम्मान में उनकी सेवा करनी चाहिए।

“सदैव प्रसन्न रहिये। जो प्राप्त है, वो पर्याप्त है।”