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लक्ष्मण-परशुराम संवाद: रामचरितमानस का कौशलपूर्ण विवाद एवम प्रश्नोत्तर

लक्ष्मण-परशुराम संवाद: रामचरितमानस का कौशलपूर्ण विवाद

वाल्मीकि रामायण के अनुगमन में लिखे गए महाकाव्य रामचरितमानस की बालकाण्ड में लक्ष्मण और परशुराम के बीच का संवाद एक कौशलपूर्ण विवाद का उत्कृष्ट उदाहरण है। यह प्रसंग उस घटनाक्रम का हिस्सा है, जहाँ शिव धनुष तोड़ने के बाद क्रोधित परशुराम धनुष यज्ञ स्थल पर आते हैं।

परशुराम का आवेश और लक्ष्मण का व्यंग

धनुष भंग का समाचार सुनकर क्रोध से भर उठे परशुराम यह जानने के लिए बेताब हैं कि किसने उनकी तपस्या का फल भोगा है। वे सीधे राम से उल्टा संबोधन करते हुए कहते हैं, “नाथ संभुधनु भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा।।” (हे शिव धनुष तोड़ने वाले! क्या तुम मेरे कोई दास हो?)

इसके जवाब में लक्ष्मण अपने व्यंगपूर्ण अंदाज़ में कहते हैं, “बहु धनुहीं तोरी लरिकाईं। कबहूँ न असि रिस कीन्हि गोसाई।।” (आपके पास तो धनुषों का ही खेल है। क्या कभी आपने इन पर क्रोध किया है?) लक्ष्मण का यह कथन परशुराम के क्रोध को और भड़का देता है।

बढ़ता तनाव और विश्वामित्र का हस्तक्षेप

परशुराम उम्र और पद का हवाला देते हुए लक्ष्मण को “नृप बालक” कहकर फटकारते हैं। वे राम को क्षत्रिय कुल का द्रोही और ब्रह्मचारी का अपमान करने वाला बताते हैं। लक्ष्मण हर बार अपने शांत और व्यंगपूर्ण जवाब से परशुराम को और ज्यादा उत्तेजित करते हैं।

इस बीच, वातावरण को और अधिक गरम होने से रोकने के लिए गुरु विश्वामित्र हस्तक्षेप करते हैं। वे परशुराम को राम की योग्यता का परीक्षण करने के लिए राजी करते हैं।

संवाद का चरमोत्कर्ष और हास्य का समावेश

जब परशुराम युद्ध के लिए लक्ष्मण को ललकारते हैं, तो लक्ष्मण हंसते हुए कहते हैं, “अहो मुनीसु महा पुनि पुनि मोहि देखावहु कुठारू। चहत उड़ावन फूंकि पहारू।।” (महर्षि! आप बार-बार मुझे यह कुठार दिखा रहे हैं। क्या आप फूंक मारकर पहाड़ को उड़ाना चाहते हैं?) लक्ष्मण का यह व्यंग्य युद्ध के माहौल को हल्का कर देता है।

फिर लक्ष्मण परशुराम के वंश और उनके गुरु सेनापति वसिष्ठ के बीच के विवाद को उठाते हुए परशुराम को आईने के सामने ला खड़ा करते हैं। वे तर्क देते हैं कि असली गुरुद्रोही तो परशुराम खुद हैं।

राम का हस्तक्षेप और संवाद का अंत

लक्ष्मण और परशुराम के बीच का यह तनावपूर्ण विवाद तब शांत होता है, जब राम हस्तक्षेप करते हैं। राम शांत स्वर में लक्ष्मण को रोकते हुए परशुराम से विनम्रतापूर्वक क्षमा मांगते हैं।

यह देखकर परशुराम को अपनी उग्रता का एहसास होता है। वे लक्ष्मण के तीखे व्यंगों को स्वीकार करते हैं और राम की विनयशीलता से प्रभावित होते हैं। अंततः शांत होकर वे राम की परीक्षा लेने के लिए सहमत होते हैं।

निष्कर्ष

लक्ष्मण और परशुराम के बीच का संवाद रामचरितमानस में एक रोचक और महत्वपूर्ण प्रसंग है। यह संवाद विनय, क्रोध, कूटनीति और युद्ध कौशल जैसे विभिन्न भावों का मिश्रण है। लक्ष्मण का व्यंगपूर्ण स्वभाव और राम की शांत विनम्रता इस पूरे प्रकरण को मनोरंजक बनाती है। यह प्रसंग हमें यह भी सिखाता है कि कैसे कठिन परिस्थितियों में भी विनम्रता और सूझबूझ से विवाद को सुलझाया जा सकता है।


अतिरिक्त विश्लेषण

लक्ष्मण की भूमिका: लक्ष्मण राम के परम सखा होने के साथ ही उनके रक्षक भी हैं। इस संवाद में लक्ष्मण राम की रक्षा के लिए परशुराम के क्रोध का सामना बिना किसी भय के करते हैं। उनका व्यंगपूर्ण स्वभाव तनाव कम करने और परशुराम के अहंकार को चोट पहुंचाने का एक कुशल तरीका है।

राम की भूमिका: राम इस पूरे प्रकरण में शांत और विनम्र बने रहते हैं। वे लक्ष्मण के आवेश को समझते हैं और सही समय पर हस्तक्षेप करते हैं।

विश्वामित्र की भूमिका: एक अनुभवी गुरु के रूप में विश्वामित्र पूरे प्रकरण में संतुलन की भूमिका निभाते हैं। वे परशुराम के क्रोध को शांत करने का प्रयास करते हैं और राम की क्षमता को प्रदर्शित करने का अवसर प्रदान करते हैं।


सांस्कृतिक महत्व

लक्ष्मण-परशुराम संवाद रामचरितमानस में न केवल मनोरंजक प्रसंग है, बल्कि यह हिंदू धर्म और संस्कृति में विनय, कर्तव्य और सौजन्य के महत्व को भी दर्शाता है। यह संवाद हमें यह भी याद दिलाता है कि कैसे बुद्धि और कूटनीति से किसी भी कठिन परिस्थिति का सामना किया जा सकता है।

लक्ष्मण-परशुराम संवाद: प्रश्नोत्तर

वस्तुनिष्ठ प्रश्न:

  1. (क) परशुराम
  2. (क) राम

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न:

  1. परशुराम
  2. परशुराम के लिए
  3. क्योंकि लक्ष्मण ने उनका अपमान किया था।
  4. क्योंकि लक्ष्मण ने परशुराम को मंदबुद्धि कहा था।

लघुत्तरात्मक प्रश्न:

  1. क्योंकि वे शिव का अपमान समझते थे।
  2. राम ने धनुष उठाते ही उसे तोड़ दिया था।
  3. लक्ष्मण निर्भय और वीर थे।
  4. (क) क्रोधी (ख) अभिमानी

निबंयात्मक प्रश्न:

  1. कथासार:

धनुष यज्ञ में राम शिव धनुष तोड़ देते हैं। यह समाचार सुनकर परशुराम क्रोधित होकर यज्ञ स्थल पर आते हैं। वे राम से युद्ध करने की इच्छा व्यक्त करते हैं। लक्ष्मण राम की रक्षा करते हुए परशुराम का सामना करते हैं। लक्ष्मण और परशुराम के बीच तीखा वाद-विवाद होता है। अंत में राम परशुराम को शांत करते हैं और उनसे विनम्रतापूर्वक क्षमा मांगते हैं। परशुराम राम की विनयशीलता से प्रभावित होते हैं और उन्हें आशीर्वाद देते हैं।

  1. भाषा की विशेषताएँ:
  • सरल और सहज भाषा
  • ओज और प्रसाद गुण का मिश्रण
  • वीर रस का प्रभाव
  • मुहावरों और लोकोक्तियों का प्रयोग
  • छंदों का प्रयोग

उपरोक्त क्रम में प्रश्न एवम उत्तर:

वस्तुनिष्ठ प्रश्न:

  1. भृगुसुत से तात्पर्य है –

उत्तर: (क) परशुराम

  1. ‘रघुकुल मानु’ संज्ञा किस पात्र के लिए आया है?

उत्तर: (क) राम

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न:

  1. शिव धनुष भंग होने पर कौन कुपित हुआ?

उत्तर: परशुराम

  1. प्रसंग में गाधिसूनु किसके लिए प्रयोग किया गया है?

उत्तर: परशुराम के लिए

  1. परशुराम लक्ष्मण को मंदबुद्धि क्यों कह रहे हैं?

उत्तर: क्योंकि लक्ष्मण ने उनका अपमान किया था।

  1. जनक दरबार में बैठी सभा ‘हाय हाय’ क्यों करने लगी?

उत्तर: क्योंकि लक्ष्मण ने परशुराम को मंदबुद्धि कहा था।

लघुत्तरात्मक प्रश्न:

  1. शिव धनुष भंग होने पर परशुराम क्यों कुपित हो रहे थे?

उत्तर: क्योंकि वे शिव का अपमान समझते थे।

  1. शिव का धनुष कैसे टूट गया था?

उत्तर: राम ने धनुष उठाते ही उसे तोड़ दिया था।

  1. “इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं पंक्ति से लक्ष्मण की कौन-सी विशेषता का पता चलता है?

उत्तर: लक्ष्मण निर्भय और वीर थे।

  1. ‘लक्ष्मण-परशुराम संवाद प्रसंग’ के आधार पर परशुराम के चरित्र की किन्हीं दो विशेषताओं पर प्रकाश डालिए?

उत्तर: (क) क्रोधी (ख) अभिमानी

निबंयात्मक प्रश्न:

  1. ‘लक्ष्मण परशुराम संवाद’ का कथासार अपने शब्दों में लिखिए?

उत्तर:

धनुष यज्ञ में राम शिव धनुष तोड़ देते हैं। यह समाचार सुनकर परशुराम क्रोधित होकर यज्ञ स्थल पर आते हैं। वे राम से युद्ध करने की इच्छा व्यक्त करते हैं। लक्ष्मण राम की रक्षा करते हुए परशुराम का सामना करते हैं। लक्ष्मण और परशुराम के बीच तीखा वाद-विवाद होता है। अंत में राम परशुराम को शांत करते हैं और उनसे विनम्रतापूर्वक क्षमा मांगते हैं। परशुराम राम की विनयशीलता से प्रभावित होते हैं और उन्हें आशीर्वाद देते हैं।

  1. ‘लक्ष्मण-परशुराम संवाद’ की भाषा की विशेषताएँ बताइए? उत्तर: सरल और सहज भाषा: इस प्रसंग की भाषा सरल और सहज है। इसमें कठिन शब्दों का प्रयोग नहीं किया गया है। ओज और प्रसाद गुण का मिश्रण: इस प्रसंग में ओज और प्रसाद गुण का मिश्रण है। ओज गुण के कारण भाषा में वीरता और शक्ति का भाव है। प्रसाद गुण के कारण भाषा में सरलता और स्पष्टता है। वीर रस का प्रभाव: इस प्रसंग में वीर रस का प्रभाव है। लक्ष्मण और परशुराम के बीच वाद-विवाद और युद्ध की तैयारी वीर रस के उदाहरण हैं।मुहावरों और लोकोक्तियों का प्रयोग: इस प्रसंग में मुहावरों और लोकोक्तियों का प्रभावशाली प्रयोग किया गया है।छंदों का प्रयोग: इस प्रसंग में विभिन्न छंदों का प्रयोग किया गया है। छंदों के प्रयोग से भाषा में लय और गति का भाव आता है।