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महर्षि गौतम की तपस्या: गोदावरी नदी की उत्पत्ति की प्रेरणादायक कहानी

तप का प्रभाव: गौतम ऋषि और गोदावरी की उत्पत्ति

एक समय की बात है, जब पृथ्वी पर भयंकर अकाल पड़ा। नदियाँ, तालाब, और सरोवर सूख गए, और हरियाली का नामोनिशान तक नहीं रहा। मनुष्य, पशु, और पक्षी, सभी जल के अभाव में तड़प रहे थे। ऐसे समय में, महर्षि गौतम के आश्रम में एक सरोवर का अस्तित्व था, जो स्वच्छ जल से भरा था और उसके आस-पास हरियाली फैली हुई थी। इस सरोवर के कारण, महर्षि गौतम के आश्रम में जीवन सुखमय था।

जब इस सरोवर के बारे में दूर-दूर तक लोगों को पता चला, तो वे अपने जीवन को बचाने के लिए वहाँ पहुंचने लगे। महर्षि गौतम ने सभी को स्वागत किया और सरोवर का जल उपयोग करने की अनुमति दी। इस प्रकार, सरोवर के आस-पास एक नगर का निर्माण हुआ, और सभी जीवन यापन करने लगे।

हालाँकि, कुछ दुष्ट प्रवृत्ति के लोग और ऋषि-मुनि महर्षि गौतम की इस प्रशंसा से ईर्ष्यावश गणपति के पास गए और उनसे गौतम का गर्व तोड़ने की प्रार्थना की। गणपति ने, उनकी प्रार्थना सुनकर, असहमति जताई और उन्हें समझाने का प्रयास किया। लेकिन, उनकी बातों का दुष्ट लोगों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा।

एक दिन, एक गाय आश्रम की वाटिका में घुस आई और जैसे ही महर्षि गौतम ने उसे हटाने का प्रयास किया, वह गाय अचानक गिर पड़ी और मर गई। इस घटना को देखकर आस-पास के लोगों ने गौतम पर गाय की हत्या का आरोप लगा दिया। इस आरोप से दुखी होकर महर्षि गौतम ने आश्रम छोड़ दिया और एकांतवास में चले गए, जहाँ वे और उनकी पत्नी अहल्या तपस्या में लीन हो गए।

गौतम ने भगवान शिव की आराधना की, जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और उनसे वरदान माँगने को कहा। गौतम ने गंगा नदी को प्रकट करने की प्रार्थना की, ताकि वे अपने पापों से मुक्त हो सकें। भगवान शिव ने उनकी प्रार्थना स्वीकार की और गंगा को प्रकट करने का वरदान दिया। इस तरह गंगा नदी प्रकट हुई, जिसे गौतमी या गोदावरी के नाम से जाना जाने लगा।

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि सच्ची तपस्या और निष्ठा से की गई आराधना से असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं। महर्षि गौतम के धैर्य और तपस्या ने न केवल उन्हें अन्याय से मुक्त किया, बल्कि उन्होंने अपनी तपस्या से समस्त मानवता के लिए जीवनदायिनी गंगा को भी प्रकट किया। उनकी कहानी हमें यह भी सिखाती है कि कठिनाईयों और चुनौतियों के बावजूद, अगर हमारे इरादे पवित्र और निष्कलंक हैं, तो प्रकृति और ईश्वर हमारा साथ देते हैं।