🕉️ ~ वैदिक पंचांग ~ 🕉️
- दिनांक: 09 फरवरी 2024
- दिन: शुक्रवार
- विक्रम संवत: 2080
- शक संवत: 1945
- अयन: उत्तरायण
- ऋतु: शिशिर ऋतु
- मास: माघ (गुजरात-महाराष्ट्र अनुसार पौष)
- पक्ष: कृष्ण
- तिथि: चतुर्दशी सुबह 08:02 तक, तत्पश्चात अमावस्या
- नक्षत्र: श्रवण रात्रि 11:29 तक, तत्पश्चात धनिष्ठा
- योग: व्यतीपात शाम 07:07 तक, तत्पश्चात वरीयान
- राहुकाल: सुबह 11:28 से दोपहर 12:53 तक
- सूर्योदय: 07:14
- सूर्यास्त: 18:32
- दिशाशूल: पश्चिम दिशा में
- व्रत पर्व विवरण: दर्श अमावस्या, माघ अमावस्या, मौनी, त्रिवेणी अमावस्या, अमावस्या क्षय तिथि
- विशेष: चतुर्दशी और अमावस्या व व्रत के दिन स्त्री-सहवास तथा तिल का तेल खाना और लगाना निषिद्ध है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-38)
👉🏻 मौनी अमावस्या पर इतना करने से होगी पितरों की सद्गति:
माघ-मौनी अमावस्या के दिन विशेष अनुष्ठान करने से माना जाता है कि पितरों को सद्गति प्राप्त होती है। इस दिन मौन व्रत, स्नान, दान, तर्पण, और पिण्डदान करने का विशेष महत्व होता है। यह मान्यता है कि ऐसा करने से पितृदोष से मुक्ति मिलती है और पितरों को शांति प्राप्त होती है।
- मौनी अमावस्या के अनुष्ठान:
- मौन व्रत: इस दिन मौन रहकर अपने मन को शांत रखने और आत्म चिंतन करने की परंपरा है।
- पवित्र स्नान: प्रयाग संगम या किसी पवित्र नदी में स्नान करने से विशेष फल प्राप्त होता है।
- तर्पण और पिण्डदान: पितरों के निमित्त तिल और जल से तर्पण तथा पिण्डदान करने से उन्हें तृप्ति मिलती है।
- दान: ब्राह्मणों को अन्न, वस्त्र, गौदान आदि करने से पितर संतुष्ट होते हैं और दानकर्ता को पुण्य की प्राप्ति होती है।
- विशेष कृत्य:
- गंगाजल में गुड़, घी, तिल के साथ मधुयुक्त खीर अर्पित करने से पितर तृप्त होते हैं।
- ताँबे के पात्र में अष्टद्रव्ययुक्त गंगाजल से भगवान सूर्य को अर्घ्य देने से अपने पितरों के साथ सूर्यलोक में स्थान मिलता है।
- पितरों की संतुष्टि के लिए गंगा के तट पर पिण्डदान करने का महत्व है।
इन अनुष्ठानों के माध्यम से मौनी अमावस्या के पवित्र दिन पर पितरों की सद्गति और उनकी शांति के लिए प्रार्थना की जाती है। यह प्रथा न सिर्फ आध्यात्मिक संतुष्टि प्रदान करती है बल्कि पारिवारिक संबंधों में सौहार्द और समृद्धि लाती है।
स्त्रोत सोशल मीडिया