माँ का अटूट प्रेम: एक प्रेरणादायक कहानी
एक छोटे शहर में समीर नामक एक लड़का रहता था, जिसकी जिंदगी बचपन में ही पिता की मृत्यु के बाद कठिनाइयों से भर गई थी। परिवार की आर्थिक स्थिति गिर गई, और समीर की माँ, जिनकी शिक्षा सीमित थी, दूसरों के घरों में काम कर बर्तन धोने और सिलाई-कढ़ाई करके अपने बेटे की पढ़ाई का खर्च उठाती थीं।
समीर स्वभाव से शर्मीला था और अक्सर चुप रहता था। एक दिन, वह स्कूल से एक लिफाफा लेकर आया और उसे अपनी माँ को देते हुए कहा, “माँ, मास्टर साहब ने यह पत्र आपके लिए भेजा है, देखिए इसमें क्या लिखा है?”
माँ ने पत्र को मन ही मन पढ़ा और मुस्करते हुए कहा, “बेटा, इसमें लिखा है कि आपका बेटा बहुत होशियार है, इस स्कूल के अन्य बच्चों की तुलना में उसकी बुद्धि काफी तेज है और हमारे पास उसे पढ़ाने के लिए योग्य शिक्षक नहीं हैं, इसलिए कल आप उसे किसी अन्य स्कूल में भेज दें।”
समीर को स्कूल न जा पाने का दुःख हुआ, लेकिन साथ ही उसके मन में आत्मविश्वास भी भर गया कि वह कुछ खास है और उसकी बुद्धि तेज है।
माँ ने उसे दूसरे स्कूल में दाखिला दिलवा दिया। समय बीता, समीर ने कड़ी मेहनत की, बाद में उसने सिविल सेवा की परीक्षा भी पास की और एक आईएएस अधिकारी बन गया।
समीर की माँ अब बूढ़ी हो चुकी थी, और कई दिनों से बीमार थीं, और एक दिन अचानक उनका निधन हो गया।
यह समीर के लिए बड़ा झटका था, वह बेकाबू होकर रोने लगा, उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह अपनी माँ के बिना कैसे जीएगा… रोते हुए, उसने अपनी माँ की पुरानी अलमारी खोली और उसमें उसकी माला, चश्मा और अन्य चीजें निकाल कर चूमने लगा।
समीर के पुराने खिलौने और बचपन के कपड़े भी उस अलमारी में संभाल कर रखे गए थे। समीर ने एक-एक कर सभी चीजें निकालना शुरू किया और तब उसकी नज़र एक पुराने पत्र पर पड़ी। दरअसल, यह वही पत्र था जो मास्टर साहब ने उसे 18 साल पहले दिया था।
समीर ने नम आँखों से उसे पढ़ना शुरू किया – “आदरणीय अभिभावक, हमें यह सूचित करते हुए खेद है कि आपका पुत्र समीर अध्ययन में बहुत कमजोर है और खेलकूद में भी हिस्सा नहीं लेता। ऐसा प्रतीत होता है कि समीर की बुद्धि उसकी उम्र के अनुसार विकसित नहीं हुई है, इसलिए हम अपने स्कूल में उसे शिक्षा देने में असमर्थ हैं। आपसे अनुरोध है कि समीर को किसी मानसिक रूप से विकलांग बच्चों के स्कूल में दाखिला दिलवाएं या घर पर ही उसे शिक्षित करें।
सादर, प्रिंसिपल”
समीर को यह जानकर एहसास हुआ कि भले ही उसकी माँ इस दुनिया में नहीं है, लेकिन जहाँ भी हैं, उनका प्यार और आशीर्वाद हमेशा उसके साथ रहेगा।
दोस्तों, रुडयार्ड किपलिंग ने कहा है –
“भगवान हर जगह नहीं हो सकते, इसलिए उन्होंने माँ को बनाया।” (भगवान हर जगह नहीं हो सकते, इसलिए उन्होंने माँ को बनाया।)
बलिदान और तपस्या की बेहतरीन मिसाल से बेहतर कौन हो सकता है माँ? जिससे हम पढ़-लिखकर बड़े हो सकें और कुछ बन सकें, वह चुपचाप इतने सारे त्याग करती है, अपनी जरूरतों का त्याग कर हमारी इच्छाओं को पूरा करती है। यहाँ तक कि अगर बच्चा बुरा व्यवहार करे, तो भी माँ उसके लिए अच्छा सोचती है। सच में, माँ जैसा कोई नहीं होता!