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NCERT कक्षा 10 सामाजिक विज्ञान अंतर्दृष्टि: 2024 में विनिर्माण उद्योगों की भूमिका

एनसीईआरटी दसवीं कक्षा, सामाजिक विज्ञान

1. परिचय

– विनिर्माण उद्योगों का संक्षिप्त अवलोकन

विनिर्माण उद्योग एक ऐसा क्षेत्र है जहां कच्चे माल को तैयार माल में बदल दिया जाता है। सरल शब्दों में, कच्चे पदार्थ जैसे कपास, लौह अयस्क, लकड़ी या खनिज तेल को मशीनों, श्रम और तकनीक की मदद से परिवर्तित करके उपयोगी वस्तुओं का निर्माण किया जाता है। ये वस्तुएं हमारे दैनिक जीवन के लिए आवश्यक हैं, जैसे कपड़े, कारें, औजार, दवाएं, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण आदि।

– इस विषय का महत्व

विनिर्माण उद्योग किसी भी देश के लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह:

  • आर्थिक विकास को बढ़ावा देता है: विनिर्माण उद्योग रोजगार पैदा करता है, निर्यात को बढ़ाता है और राष्ट्रीय आय में योगदान देता है।
  • मानव जीवन स्तर को ऊपर उठाता है: विनिर्माण उद्योग विभिन्न प्रकार की वस्तुओं का उत्पादन करता है जो हमारे जीवन को अधिक आरामदायक और सुविधाजनक बनाते हैं।
  • तकनीकी प्रगति को बढ़ावा देता है: विनिर्माण उद्योग नई तकनीकों के विकास और नवाचार को प्रोत्साहित करता है।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करता है: एक मजबूत विनिर्माण उद्योग देश को रक्षा उपकरणों और अन्य आवश्यक वस्तुओं के उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाता है।

इसलिए, विनिर्माण उद्योग का अध्ययन हमें यह समझने में मदद करता है कि यह हमारे जीवन को कैसे प्रभावित करता है और राष्ट्रीय विकास में इसकी क्या भूमिका है।

विनिर्माण का महत्व

विनिर्माण उद्योग किसी भी देश की रीढ़ की हड्डी की तरह होता है। यह न केवल रोजगार के अवसर पैदा करता है और अर्थव्यवस्था को गति देता है, बल्कि तकनीकी विकास को भी बढ़ावा देता है और वैश्विक व्यापार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आइए विनिर्माण के महत्व के इन प्रमुख पहलुओं पर विस्तार से चर्चा करें:

1. आर्थिक महत्त्व:

  • रोजगार सृजन: विनिर्माण उद्योग विभिन्न प्रकार के रोजगार पैदा करता है, कुशल श्रमिकों से लेकर इंजीनियरों और प्रबंधकों तक। यह बेरोजगारी को कम करने में मदद करता है और लोगों को बेहतर जीवन स्तर प्रदान करता है।
people working in a factory

जीडीपी में योगदान: विनिर्माण उद्योग किसी देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में महत्वपूर्ण योगदान देता है। इसका मतलब है कि यह देश के कुल उत्पादन मूल्य का एक बड़ा हिस्सा बनाता है। एक मजबूत विनिर्माण क्षेत्र एक मजबूत अर्थव्यवस्था का संकेत है।

GDP graph

निर्यात बढ़ाना: विनिर्माण उद्योग निर्यात को बढ़ाकर विदेशी मुद्रा कमाई में भी योगदान देता है। इससे देश के विदेशी मुद्रा भंडार को बढ़ाने में मदद मिलती है और आयात के लिए भुगतान करने की क्षमता बढ़ती है।

export goods being shipped

2. तकनीकी उन्नति:

  • नवाचार को बढ़ावा देना: विनिर्माण उद्योग लगातार नई तकनीकों और प्रक्रियाओं के विकास को प्रेरित करता है। कंपनियां लगातार अपने उत्पादों और उत्पादन प्रक्रियाओं को बेहतर बनाने के तरीकों की तलाश में रहती हैं, जिससे नवाचार होता है।
factory worker using a robot

अनुसंधान और विकास में निवेश: विनिर्माण कंपनियां अनुसंधान और विकास (आर एंड डी) में भारी निवेश करती हैं। इससे भविष्य की तकनीकों के विकास में तेजी आती है और देश को वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धी बनाए रखने में मदद मिलती है।

scientist working in a lab

3. वैश्विक व्यापार में भूमिका:

  • अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा देना: एक मजबूत विनिर्माण क्षेत्र अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा देता है। देश अपने निर्मित सामानों का निर्यात कर सकता है और अन्य देशों से कच्चे माल और मशीनरी का आयात कर सकता है।
international trade

वैश्विक मूल्य श्रृंखला में भागीदारी: विनिर्माण उद्योग वैश्विक मूल्य श्रृंखला में भागीदारी के माध्यम से देश के लिए लाभ लाता है। इसका मतलब है कि एक देश विभिन्न देशों में स्थित कंपनियों के साथ मिलकर तैयार उत्पादों का निर्माण करता है।

उद्योगों का वर्गीकरण

उद्योगों को उनकी गतिविधियों, उत्पादों और उत्पादन के तरीकों के आधार पर विभिन्न श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है। आइए तीन मुख्य क्षेत्रों और विनिर्माण उद्योगों के विभिन्न प्रकारों पर एक नज़र डालें:

1. प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्र:

प्राथमिक क्षेत्र: प्राकृतिक संसाधनों के निष्कर्षण और उपयोग से संबंधित है, जैसे कृषि, खनन, मछली पकड़ना और वानिकी। ये उद्योग कच्चे माल का उत्पादन करते हैं जो अन्य उद्योगों द्वारा उपयोग किए जाते हैं।

primary sector activities like farming, mining, fishing, and forestry

द्वितीयक क्षेत्र: कच्चे माल को तैयार या अर्ध-निर्मित माल में बदलने से संबंधित है। इसमें विनिर्माण, निर्माण और ऊर्जा उत्पादन जैसे उद्योग शामिल हैं।

secondary sector activities like manufacturing

तृतीयक क्षेत्र: सेवाओं के प्रावधान से संबंधित है, जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, पर्यटन, व्यापार और वित्तीय सेवाएं। ये उद्योग अन्य दो क्षेत्रों के उत्पादों और सेवाओं का समर्थन करते हैं।

2. विनिर्माण उद्योग के प्रकार:

विनिर्माण उद्योगों को आगे विभिन्न प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है, जिनमें से दो सबसे महत्वपूर्ण हैं:

  • भारी उद्योग: बड़े पैमाने पर भारी सामानों का उत्पादन करते हैं, जिनमें जहाज, मशीनरी, लोहा और इस्पात, रसायन, सीमेंट और उर्वरक शामिल हैं। ये उद्योग आम तौर पर उच्च पूंजी निवेश और लंबी उत्पादन अवधि की आवश्यकता होती है।
  • हल्के उद्योग: छोटे पैमाने पर हल्के सामानों का उत्पादन करते हैं, जिनमें वस्त्र, खाद्य पदार्थ, जूते, फर्नीचर, कागज और इलेक्ट्रॉनिक्स शामिल हैं। ये उद्योग आम तौर पर कम पूंजी निवेश और कम उत्पादन अवधि की आवश्यकता होती है।

3. वर्गीकरण के मानदंड:

उद्योगों को विभिन्न मानदंडों के आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता है, जिनमें शामिल हैं:

  • कार्य का परिमाण: उद्योग के आकार और उत्पादन की मात्रा के आधार पर।
  • उत्पाद का प्रकार: उद्योग द्वारा उत्पादित वस्तुओं या सेवाओं के प्रकार के आधार पर।
  • प्रौद्योगिकी का उपयोग: उद्योग द्वारा उपयोग की जाने वाली मशीनरी और तकनीकों के प्रकार के आधार पर।
  • स्वामित्व का स्वरूप: उद्योग के स्वामित्व के प्रकार के आधार पर, जैसे सार्वजनिक क्षेत्र, निजी क्षेत्र या संयुक्त क्षेत्र।

4. निष्कर्ष:

उद्योगों का वर्गीकरण हमें उनकी विशेषताओं और भूमिका को बेहतर ढंग से समझने में मदद करता है। यह आर्थिक विकास, रोजगार सृजन और तकनीकी प्रगति में उनके योगदान का विश्लेषण करने में भी सहायक होता है।

औद्योगिक प्रदूषण

औद्योगिक गतिविधियाँ हमारे दैनिक जीवन के लिए आवश्यक वस्तुओं के उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, लेकिन वे पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा भी पैदा कर सकती हैं। औद्योगिक प्रदूषण पर्यावरण में हानिकारक पदार्थों के रिलीज के कारण होता है, जिससे वायु, जल और मिट्टी के संदूषण का खतरा बढ़ जाता है।

प्रदूषकों के प्रकार:

औद्योगिक प्रक्रियाएं विभिन्न प्रकार के प्रदूषकों को छोड़ती हैं, जिनमें शामिल हैं:

औद्योगिक प्रक्रियाएं विभिन्न प्रकार के प्रदूषकों को छोड़ती हैं, जिनमें शामिल हैं:

  • वायु प्रदूषक: कारखानों से निकलने वाली गैसें जैसे सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और हाइड्रोकार्बन हवा को प्रदूषित करते हैं। ये गैसें श्वसन संबंधी समस्याएं, एसिड रेन और ओजोन परत के क्षरण में योगदान करती हैं।
air pollution from factories

जल प्रदूषक: औद्योगिक अपशिष्ट, रसायन, धातु और ठोस कचरा जल निकायों को प्रदूषित करते हैं। ये प्रदूषक जल जीवन को नुकसान पहुंचाते हैं, जल जनित बीमारियों का प्रसार करते हैं और जल की गुणवत्ता को खराब करते हैं।

water pollution from factories

मृदा प्रदूषक: औद्योगिक कचरा, रसायन और रिसाव मिट्टी को दूषित कर सकते हैं। ये प्रदूषक पौधों के विकास को बाधित करते हैं, खाद्य श्रृंखला में प्रवेश करते हैं और मानव स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा करते हैं।

soil pollution from factories

औद्योगिक प्रदूषण के स्रोत:

  • फैक्ट्रियों से उत्सर्जन: कारखानों की चिमनियों से निकलने वाली धुआं और गैसें वायु को प्रदूषित करती हैं। औद्योगिक प्रक्रियाओं से ध्वनि प्रदूषण भी हो सकता है।
  • अपशिष्ट निपटान: अनुचित अपशिष्ट निपटान, औद्योगिक कचरे का रिसाव और ठोस कचरे का जमाव मिट्टी और जल प्रदूषण का कारण बनते हैं।
  • ऊर्जा उत्पादन: कोयला आधारित बिजली उत्पादन स्टेशन वायु प्रदूषण में एक प्रमुख योगदानकर्ता हैं। अन्य औद्योगिक प्रक्रियाएं भी विभिन्न प्रकार के ईंधनों के दहन के माध्यम से वायु को प्रदूषित करती हैं।

स्वास्थ्य और पर्यावरण पर प्रभाव:

औद्योगिक प्रदूषण का मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण पर गंभीर प्रभाव पड़ता है, जिनमें शामिल हैं:

  • श्वसन संबंधी समस्याएं: वायु प्रदूषण अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, फेफड़ों का कैंसर और अन्य श्वसन संबंधी समस्याओं का खतरा बढ़ाता है।
  • जल जनित रोग: प्रदूषित जल के उपयोग से हैजा, टाइफाइड और अन्य जल जनित रोग फैल सकते हैं।
  • मिट्टी की उर्वरता में कमी: प्रदूषित मिट्टी पौधों की वृद्धि को बाधित करती है और कृषि उत्पादकता को कम करती है।
  • जैव विविधता का ह्रास: औद्योगिक प्रदूषण जलीय और स्थलीय पारिस्थितिक तंत्र को नुकसान पहुंचा सकता है, जिससे पौधों और जानवरों की कई प्रजातियों को खतरा होता है।

औद्योगिक प्रदूषण को कम करने के उपाय:

  • नवीन तकनीकों का उपयोग: प्रदूषण नियंत्रण प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके हानिकारक उत्सर्जन को कम किया जा सकता है।
  • नियमों का सख्ती से पालन: औद्योगिक गतिविधियों को पर्यावरण नियमों का पालन करना चाहिए और प्रदूषण नियंत्रण उपायों को लागू करना चाहिए।
  • पुनर्चक्रण और पुन: उपयोग: कचरे के पुनर्चक्रण से हम उपयोगी पदार्थों का निर्माण कर सकते हैं।

औद्योगिक प्रदूषण को कम करने के उपाय:

  • नवीन तकनीकों का उपयोग: प्रदूषण नियंत्रण प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके हानिकारक उत्सर्जन को कम किया जा सकता है। इन प्रौद्योगिकियों में शामिल हैं:
    • प्रदूषण नियंत्रण उपकरण: ये उपकरण कारखानों से निकलने वाले प्रदूषकों को पकड़ने और हटाने में मदद करते हैं।
    • ऊर्जा कुशलता में सुधार: ऊर्जा कुशलता में सुधार करके, औद्योगिक प्रक्रियाओं से उत्सर्जन को कम किया जा सकता है।
    • सस्टेनेबल प्रौद्योगिकियों का उपयोग: सस्टेनेबल प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके, औद्योगिक गतिविधियों से होने वाले पर्यावरणीय प्रभाव को कम किया जा सकता है।
  • नियमों का सख्ती से पालन: औद्योगिक गतिविधियों को पर्यावरण नियमों का पालन करना चाहिए और प्रदूषण नियंत्रण उपायों को लागू करना चाहिए। सरकारों को उद्योगों पर नियमों को लागू करने और प्रदूषण नियंत्रण उपायों को लागू करने के लिए आवश्यक संसाधन प्रदान करने चाहिए।
  • पुनर्चक्रण और पुन: उपयोग: कचरे के पुनर्चक्रण और पुन: उपयोग से औद्योगिक कचरे की मात्रा को कम किया जा सकता है। सरकारों और उद्योगों को कचरे के पुनर्चक्रण और पुन: उपयोग के लिए प्रोत्साहन प्रदान करना चाहिए।
  • पर्यावरण जागरूकता बढ़ाना: पर्यावरण जागरूकता बढ़ाकर, लोगों को औद्योगिक प्रदूषण के खतरों के बारे में शिक्षित किया जा सकता है। यह लोगों को औद्योगिक प्रदूषण को कम करने में मदद करने के लिए कार्रवाई करने के लिए प्रेरित कर सकता है।

औद्योगिक प्रदूषण एक गंभीर समस्या है जो मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए खतरा है। इन उपायों को लागू करके, हम औद्योगिक प्रदूषण को कम करने और एक स्वस्थ और टिकाऊ भविष्य बनाने में मदद कर सकते हैं।

पर्यावरणीय अवनयन

पर्यावरणीय अवनयन प्राकृतिक पर्यावरण में होने वाले अवांछित परिवर्तनों को संदर्भित करता है जो पारिस्थितिक तंत्रों को नुकसान पहुंचाते हैं और मानव जीवन को असहनीय बना सकते हैं। यह मानव गतिविधियों जैसे विनिर्माण, कृषि और खनन का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष परिणाम हो सकता है।

विनिर्माण के कारण होने वाले अवनयन के उदाहरण:

वनों की कटाई: विनिर्माण के लिए लकड़ी की आवश्यकता होती है, और बड़े पैमाने पर वनों की कटाई जंगलों के आवास को नष्ट कर देती है, कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषण को कम करती है, और मिट्टी के कटाव में योगदान करती है।

deforestation for manufacturing

संसाधन का ह्रास: विनिर्माण धातु, खनिज और जीवाश्म ईंधन जैसे प्राकृतिक संसाधनों का भारी उपयोग करता है। समय के साथ, इन संसाधनों का ह्रास पर्यावरणीय क्षति और आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान का कारण बन सकता है।

resource depletion for manufacturing

दीर्घकालिक परिणाम:

पर्यावरणीय अवनयन के दीर्घकालिक परिणाम गंभीर हो सकते हैं और इसमें शामिल हैं:

जलवायु परिवर्तन: वनों की कटाई और जीवाश्म ईंधन का जलना ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में वृद्धि करता है, जिससे वैश्विक तापमान में वृद्धि होती है। जलवायु परिवर्तन से समुद्र के स्तर में वृद्धि, अत्यधिक मौसम की घटनाएं, और पारिस्थितिक तंत्रों का विनाश हो सकता है।

climate change caused by manufacturin

जैव विविधता का ह्रास: प्राकृण आवास का विनाश और प्रदूषण पौधों और जानवरों की प्रजातियों की गिरावट का कारण बन सकता है। जैव विविधता का ह्रास पारिस्थितिक तंत्र की स्थिरता को कमजोर करता है और खाद्य श्रृंखला को बाधित कर सकता है।

biodiversity loss caused by manufacturing

पर्यावरणीय अवनयन को रोकना और नियंत्रित करना महत्वपूर्ण है। इसमें शामिल हैं:

  • नवीन और टिकाऊ विनिर्माण प्रथाओं को अपनाना
  • पुनर्चक्रण और पुन: उपयोग को बढ़ावा देना
  • प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करना
  • जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करना
  • पर्यावरण संरक्षण के बारे में जागरूकता बढ़ाना

हम अपनी पृथ्वी की देखभाल करने और भविष्य की पीढ़ियों के लिए स्वस्थ वातावरण सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार हैं। पर्यावरणीय अवनयन के खतरों के बारे में जागरूक होकर और टिकाऊ प्रथाओं को अपनाकर, हम एक बेहतर भविष्य का निर्माण कर सकते हैं।

पर्यावरणीय अवनयन का नियंत्रण

हमारे प्राकृतिक संसाधनों और पारिस्थितिकी तंत्रों के संरक्षण के लिए पर्यावरणीय अवनयन को नियंत्रित करना बेहद जरूरी है। इसे हासिल करने के लिए कई रणनीतियां अपनाई जा सकती हैं:

1. सरकारी विनियम और नीतियां:

  • सरकारें पर्यावरण के अनुकूल विनियम लागू कर सकती हैं जैसे प्रदूषण के मानक तय करना, जंगलों की कटाई पर नियंत्रण, और संसाधनों के निष्कर्षण पर सीमाएं लगाना।
  • पर्यावरण के अनुकूल उत्पादों और प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देने के लिए सब्सिडी और टैक्स में रियायत जैसे आर्थिक प्रोत्साहन दिए जा सकते हैं।

2. टिकाऊ विनिर्माण प्रथाएं:

  • उद्योगों को ऐसे तरीकों को अपनाना चाहिए जो कम संसाधन का उपयोग करते हैं, कम कचरा पैदा करते हैं, और पुनर्चक्रण और पुन: उपयोग को प्रोत्साहित करते हैं।
  • प्राकृतिक ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करना और उत्पादों के जीवन चक्र का विश्लेषण करना और उसमें सुधार करना महत्वपूर्ण है।

3. पर्यावरण अनुकूल प्रौद्योगिकियां:

  • नई और बेहतर प्रौद्योगिकी पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। उदाहरण के लिए, प्रदूषण नियंत्रण उपकरण, सौर पैनल, और ऊर्जा-कुशल मशीनें पर्यावरण के अनुकूल विकल्प हैं।

4. अपशिष्ट प्रबंधन रणनीतियां:

  • कचरे को कम करना, पुनर्चक्रण करना, और फिर निपटाना का सिद्धांत अपनाना जरूरी है। लैंडफिल में कचरा डालने से बचना चाहिए और कचरे से ऊर्जा उत्पादन जैसे नवाचारों पर ध्यान देना चाहिए।

5. नवाचार और प्रौद्योगिकी की भूमिका:

  • नवाचार और प्रौद्योगिकी नए पर्यावरण-अनुकूल समाधान ढूंढने में मददगार हैं। उदाहरण के लिए, जैव-आधारित सामग्री, स्मार्ट ग्रिड, और कार्बन कैप्चर तकनीकें सभी टिकाऊ भविष्य के लिए आशाजनक हैं।

6. नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत:

  • जीवाश्म ईंधन के उपयोग को कम करके और सौर, पवन, जलविद्युत जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की ओर बढ़कर ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम किया जा सकता है।

7. स्वच्छ उत्पादन विधियां:

  • औद्योगिक प्रक्रियाओं में हानिकारक रसायनों के उपयोग को कम करना और पानी और ऊर्जा की खपत को कम करना पर्यावरणीय प्रभाव को कम कर सकता है।

निष्कर्ष

इस अध्याय में हमने विनिर्माण उद्योगों के महत्व, उनके पर्यावरणीय प्रभावों, और टिकाऊ प्रथाओं को अपनाने के तरीकों पर विस्तार से चर्चा की है। अब आइए कुछ प्रमुख बिंदुओं को संक्षेप में देखें:

मुख्य बिंदु:

  • विनिर्माण उद्योग आर्थिक विकास, रोजगार सृजन, और तकनीकी उन्नति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • हालांकि, विनिर्माण उद्योग पर्यावरण को प्रदूषित कर सकते हैं और प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर सकते हैं।
  • टिकाऊ विनिर्माण प्रथाओं को अपनाना पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने और संसाधनों का संरक्षण करने के लिए आवश्यक है।
  • इसमें कम संसाधन का उपयोग करना, कचरे को कम करना, पुनर्चक्रण और पुन: उपयोग को बढ़ावा देना, नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग करना, और स्वच्छ उत्पादन विधियों को अपनाना शामिल है।

टिकाऊ भविष्य:

यदि विनिर्माण उद्योग टिकाऊ प्रथाओं को अपनाते हैं, तो वे न केवल पर्यावरण की रक्षा कर सकते हैं, बल्कि आर्थिक रूप से भी लाभान्वित हो सकते हैं। यह संसाधनों की दक्षता बढ़ाकर, नए बाजारों तक पहुंच बनाकर, और ब्रांड की प्रतिष्ठा बेहतर करके हासिल किया जा सकता है।

कार्रवाई का आह्वान:

टिकाऊ भविष्य बनाने के लिए उद्योगों और नीति निर्माताओं दोनों को ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। कुछ महत्वपूर्ण कार्रवाई बिंदु इस प्रकार हैं:

  • उद्योगों को पर्यावरण-अनुकूल प्रौद्योगिकियों में निवेश करना चाहिए और टिकाऊ प्रथाओं को अपनाना चाहिए।
  • सरकारों को पर्यावरण-अनुकूल नियमों और नीतियों को लागू करना चाहिए और ऐसे उद्योगों को सब्सिडी देकर प्रोत्साहित करना चाहिए जो टिकाऊ प्रथाओं को अपनाते हैं।
  • व्यक्ति उपभोक्ता टिकाऊ उत्पादों को चुनकर और कचरे को कम करके पर्यावरण की रक्षा में अपनी भूमिका निभा सकते हैं।

सभी को मिलकर यह सुनिश्चित करना चाहिए कि विनिर्माण उद्योग आर्थिक विकास को पर्यावरण की सुरक्षा के साथ जोड़ सकें। एक स्वस्थ ग्रह और मजबूत अर्थव्यवस्था दोनों संभव हैं, और आने वाली पीढ़ियों के लिए बेहतर भविष्य बनाने के लिए यह हमारा सामूहिक दायित्व है।