सोशल मीडिया पर ऑनलाइन दोस्ती एक धोखा भी हो सकती है।
आजकल युवा सोशल मीडिया पर पहुंच जाते हैं। पर क्या वाकई ऑनलाइन दोस्ती का यह चलन आपके लिए सुरक्षित है.ऐसी दोस्ती पर आंख बंद कर यकीन करना सही है? आइए आपके इन सब सवालों का जवाब कुछ सुझावों के साथ देने की कोशिश करते हैं. आइए जानते हैं ऑनलाइन दोस्ती करते समय धोखे से बचने के लिए कौन से उपाय अपनाने चाहिए।
ऑनलाइन दोस्ती करते समय इस बात का ध्यान रखें कि हर समय अपने दोस्तों को छोड़कर ऑनलाइन दोस्त से बात करते रहना या उसकी आस में ऑनलाइन रहना बिल्कुल गलत है. ऐसा करने से आप न सिर्फ अपना कीमती समय खराब करेंगे बल्कि भावनात्मक रूप से भी धोखा खाने के लिए खुद को तैयार करेंगे।
सोशल मीडिया पर ऑनलाइन दोस्तों के प्रकार |types of online friends on social media
सोशल मीडिया की साइट्स पर बनाए गए दोस्तों के भी कई प्रकार होते हैं। कुछ आपकी असल जिंदगी के दोस्त या रिश्तेदार होते हैं जिन्हें आप बाद में सोशल साइट पर भी जोड़ लेते हैं।
कुछ ऐसे लोग होते हैं, जो आपको केवल एक-दो बार ही किसी समारोह या कार्यक्रम में मिलते हैं और आपको झट से फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज देते हैं।
कुछ ऐसे भी लोग आपको फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजते हैं, जो आपके दोस्त के दोस्त हैं। अब ये आपकी मर्जी पर होता है कि आपको इनकी रिक्वेस्ट स्वीकारना है या नहीं?
सोशल मीडिया पर दोस्त बन जाते है दुश्मन | friends become enemies on social media
कुछ लोग आपसे ईर्ष्या भी करने लगते हैं। इनके ईर्ष्या की वजह होती है आपकी पोस्ट से दिखती हुई आपकी जीवनशैली या आपकी खूबसूरती भी हो सकती है। अब आप सोच भी नहीं सकते हैं कि कैसे-कैसे कारणों से लोग आपसे ईर्ष्या करके आपको नुकसान पहुंचाने की सोच सकते हैं। अतः आप अनावश्यक सोशल मीडिया पर दोस्ती को तवज्जों देने की जगह अपने वास्तविक दोस्तो को ही अधिमान व प्राथमिकता प्रदान कीजियेगा।
सोशल मीडिया चुरा रहा है आपकी नींद | social media is stealing your sleep
अच्छी सेहत का राज होता है, एक अच्छी नींद लेकिन आज के वक्त में जिस तरह से लोगों की जिदंगी हो गयी है. एक अच्छी नींद पूरी करना बहुत मुश्किल साबित हो चुका है. चाहे वो किसी भी उम्र का इंसान हो।
नींद में आयी कमी की मुख्य वजह मोबाइल फोन बताई गई है. ये अध्ययन 10 साल के 60 स्कूली छात्रों पर किए गए. जिसमें से ज्यादातर के पास सोशल मीडिया की सुविधा मौजूद थी. इनमें से 69 प्रतिशत बच्चों ने कहा कि वो चार घंटे रोजाना मोबाइल फोन का प्रयोग करते हैं और सोशल मीडिया पर सक्रिय रहते हैं.
आभासी दोस्तो की हकीकत को बयान करती एक कहानी |60 + वाट्सअप ग्रुप
A story telling the reality of virtual friends | 60 + WhatsApp groups
कार से उतरकर भागते हुए हॉस्पिटल में पहुंचे नोजवान बिजनेस मैन ने पूछा..
“डॉक्टर, अब कैसी हैं माँ?“ हाँफते हुए उसने पूछा।
“अब ठीक हैं। माइनर सा स्ट्रोक था। ये बुजुर्ग लोग उन्हें सही समय पर लें आये, वरना कुछ बुरा भी हो सकता था। “
डॉ ने पीछे बेंच पर बैठे दो बुजुर्गों की तरफ इशारा कर के जवाब दिया।
“रिसेप्शन से फॉर्म इत्यादि की फार्मैलिटी करनी है अब आपको।” डॉ ने जारी रखा।
“थैंक यू डॉ. साहेब, वो सब काम मेरी सेक्रेटरी कर रही हैं“ अब वो रिलैक्स था।
फिर वो उन बुजुर्गों की तरफ मुड़ा.. “थैंक्स अंकल, पर मैनें आप दोनों को नहीं पहचाना।“
“सही कह रहे हो बेटा, तुम नहीं पहचानोगे क्योंकि हम तुम्हारी माँ के वाट्सअप फ्रेंड हैं ।” एक ने बोला।
“क्या, वाट्सअप फ्रेंड ?” चिंता छोड़ , उसे अब, अचानक से अपनी माँ पर गुस्सा आया।
“ 60 + नाम का वाट्सअप ग्रुप है हमारा।”
“सिक्सटी प्लस नाम के इस ग्रुप में साठ साल व इससे ज्यादा उम्र के लोग जुड़े हुए हैं। इससे जुड़े हर मेम्बर को उसमे रोज एक मेसेज भेज कर अपनी उपस्थिति दर्ज करानी अनिवार्य होती है, साथ ही अपने आस पास के बुजुर्गों को इसमें जोड़ने की भी ज़िम्मेदारी दी जाती है।”
“महीने में एक दिन हम सब किसी पार्क में मिलने का भी प्रोग्राम बनाते हैं।”
“जिस किसी दिन कोई भी मेम्बर मैसेज नहीं भेजता है तो उसी दिन उससे लिंक लोगों द्वारा, उसके घर पर, उसके हाल चाल का पता लगाया जाता है।”
आज सुबह तुम्हारी माँ का मैसेज न आने पर हम 2 लोग उनके घर पहुंच गए..।
वह गम्भीरता से सुन रहा था ।
“पर माँ ने तो कभी नहीं बताया।” उसने धीरे से कहा।
“माँ से अंतिम बार तुमने कब बात की थी बेटा? क्या तुम्हें याद है ?” एक ने पूछा।
बिज़नेस में उलझा, तीस मिनट की दूरी पर बने माँ के घर जाने का समय निकालना कितना मुश्किल बना लिया था खुद उसने।
हाँ पिछली दीपावली को ही तो मिला था वह उनसे गिफ्ट देने के नाम पर।
बुजुर्ग बोले..
“बेटा, तुम सबकी दी हुई सुख सुविधाओं के बीच, अब कोई और माँ या बाप अकेले घर मे कंकाल न बन जाएं… बस यही सोच ये ग्रुप बनाया है हमने। वरना दीवारों से बात करने की तो हम सब की आदत पड़ चुकी है।”
उसके सर पर हाथ फेर कर दोनों बुज़ुर्ग अस्पताल से बाहर की ओर निकल पड़े। नवयुवक एकटक उनको जाते हुए देखता ही रह गया।
दोस्तों, यह तो कहानी है लेकिन सच यही है कि आज की व्यस्तता के युग में ऐसे ही व्हाट्सएप ग्रुप की जरूरत है और एसे ही दोस्तों की जरूरत है जो मुशिकल के समय एक दूसरे का साथ दे।