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राजस्थान सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियत्रंण और अपील) नियम, 1958 (दिनांक 07-05-1959 से प्रभावी)

राजस्थान सिविल सेवाएँ (वर्गीकरण, नियंत्रण और अपील) नियम, 1958, जो 7 मई, 1959 से प्रभावी हुए, राजस्थान राज्य के भीतर सिविल सेवकों के लिए सेवाओं के वर्गीकरण, अनुशासनात्मक नियंत्रण, और अपील तंत्र के लिए एक ढांचा प्रदान करने के लिए स्थापित किए गए थे। ये नियम अनुशासनात्मक कार्यवाही, सिविल सेवकों द्वारा की गई किसी भी कार्रवाई के खिलाफ अपील, और राज्य में सिविल सेवा कर्मचारियों के समग्र प्रबंधन के लिए प्रक्रियाओं को निर्धारित करते हैं। वे निम्नलिखित पहलुओं को कवर करते हैं:

  1. सेवाओं का वर्गीकरण: नियम राज्य सरकार के अंतर्गत विभिन्न सिविल सेवाओं और पदों को वर्गीकृत करते हैं, प्रत्येक की परिभाषा और वर्गीकरण को निर्धारित करते हैं।
  2. आचरण और अनुशासन: वे सिविल सेवकों से अपेक्षित आचरण के मानकों और दुराचार के मामले में लिए जा सकने वाले अनुशासनात्मक कार्यवाहियों को निर्दिष्ट करते हैं। इसमें निलंबन की प्रक्रियाएं, विभिन्न अपराधों के लिए दंड, और ऐसे दंड लगाने के लिए विभिन्न अधिकारियों में निहित अधिकार शामिल हैं।
  3. अपील तंत्र: नियम यह भी विस्तार से बताते हैं कि सिविल सेवक अनुशासनात्मक कार्यवाहियों या उनके खिलाफ किए गए निर्णयों के खिलाफ कैसे अपील कर सकते हैं। यह अपीलों को क

राजस्थान सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियत्रंण और अपील) नियम, 1958 (दिनांक 07-05-1959 से प्रभावी)

भाग (1) सामान्य

नियम 1- संक्षिप्त नाम और प्रारंभः (क) इन नियमों का संक्षिप्त नाम “राजस्थान सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण और अपील) नियम, 1958” है। (ख) ये तुरंत प्रवृत्त होंगे।

नियम 2-निर्वचनः- जब तक संदर्भ द्वारा अन्यथा अपेक्षित न हो इन नियमों में-

(क) किसी सरकारी कर्मचारी के संबंध में “नियुक्ति अधिकारी” से निम्नलिखित में से जो भी उच्चतम प्राधिकारी हो, वह अभिप्रेत है-

(1) जिस सेवा का राजकीय कर्मचारी उस समय सदस्य है इस सेवा में या जिस सेवा में राजकीय कर्मचारी उस समय सम्मिलित है, उस सेवा की श्रेणी में, नियुक्तियां करने में सक्षम प्राधिकारी, या

(ii) जिस पद को राजकीय कर्मचारी उस समय धारण करता है उस पर नियुक्तियां करनें में सशक्त प्राधिकारी, या

(iii) जिस प्राधिकारी ने राजकीय कर्मचारी को उस सेवा, श्रेणी या पद, यथास्थिति, पर नियुक्ति किया था, या

(iv) जहाँ राज्य कर्मचारी किसी अन्य सेवा का स्थायी सदस्य होते हुए या अधिष्ठायी रूप से कोई अन्य स्थायी पद धारण करते हुये निरंतर सरकार के नियोजन में रहा है, यहाँ वहा प्रधिकारी जिसने उसे उस सेवा में या उन सेवा की किसी श्रेणी में या उस पद पर नियुक्त किया था।

परन्तु जहां सरकार ने या विभागाध्यक्ष ने किसी अधीनस्थ प्राधिकारी को अपनी शक्तियों सौंप दी हों तो नियम 23 (2) (क) (ख) के प्रयोजनों के लिए सम्बन्धित विभागाध्यक्ष ही नियुक्ति प्राधिकारी होगा।

(01. Inserted by Notification No. F. 16(2)Apptts. (A)/60 III,dated 2-

(ग) ‘अनुशासनिक कार्यवाही’ से किसी सरकारी कर्मचारी पर शास्ति लगाने के संबंध में ऐसा प्राधिकारी अभिप्रत है जो इन नियमों के अधीन उस पर ऐसी शास्ति लगाने के लिये सक्षम हो,

(घ) ‘राजपत्र’ से राजस्थान राजपत्र अभिप्रेत है,

(ड़) सीसरकार’ से राजस्थान सरकार अभिप्रेत है,

(च) राजकीय कर्मचारी से वह व्यक्ति अभिप्रत है जो किसी सेवा का सदस्य है अथवा राजस्थान सरकार के अधीन कोई सिविल पद धारण किये हुए है और उसमें ऐसा कोई भी व्यक्ति सम्मिलित है जो बाहरी सेवा में है अथवा जिनकी सेवायें अस्थायी रूप से किसी स्थानीय या अन्य प्राधिकारी तथा किसी स्थानीय या अन्य प्राधिकारी की सेवा का वह व्यक्ति भी जिसकी सेवायें अस्थायी रूप से राज्य सरकार को सौंपी जा चुकी हो अथवा जो किसी संविदा के अंतर्गत राजस्थान सरकार की सेवा में है अथवा जो अन्य किसी राजकीय सेवा से निवृत हो चुका है और राजस्थान सरकार के अधीन पुनर्नियोजित कर लिया गया है, किन्तु इसमें ऐसा व्यक्ति सम्मिलित नहीं है जो भारत संघ अथवा किसी राज्य सरकार की सिविल सेवा का है व राजस्थान में प्रतिनियुक्ति पर सेवा कर रहा है, वह उन्ही नियमों से शासित होता रहेगा जो उस पर प्रभावी हों,

2(छ) विभागाध्यक्ष से वह प्राधिकारी अभिप्रेत है जो अनुसूची ‘क’ में विनिर्दिष्ट है तथा अन्य कोई प्राधिकारी जो इन नियमों के लिये सरकार के आदेश से घोषित हो

(02. Substituted by No. F. 3(8)Karmik (A-III)/76 GSR, 116 dated 6- 12-79)

3 (ज) कार्यालयाध्यक्ष से सामान्य वित्तीय एवं लेखा नियमों के नियम 3 के अधीन विभागाध्यक्ष द्वारा इस रूप में घोषित अधिकारी अभिप्रेत है,1

(03. Substituted by No. F.3(3) Karmik (A-III)/79, GSR 46 dated 16-8- 1982.)

(झ) ‘अनुसूची’ से इन नियमों में संलग्न अनुसूची अभिप्रेत है,

(ञ) ‘सेवा’ से राजस्थान राज्य की कोई सिविल सेवा अभिप्रेत हैं।

नियम-3 नियमों का लागू होना:- (1) ये नियम निम्नांकित के सिवाय सभी राजकीय कर्मचारियों पर प्रभावी होंगे:-

(क) वे व्यक्ति जो भारत सरकार, अथवा किन्हीं भी राज्यों या संघ राज्य क्षेत्रों से प्रतिनियुक्ति पर हों,

(ख) वे व्यक्ति जो भारत सरकार के ऐसे औद्योगिक संस्थानो में नियोजित हैं, जो समय-समय पर अधिसूचित किये जाये और जो औद्योगिक विवाद अधिनियम के अंतर्गत कर्मकार है;

(ग) राजस्थान उच्च न्यायालय के न्यायाधीश,

(घ) उच्च न्यायालय के अधिकारी और कर्मचारी, जो संविधान के अनुच्छेद 229 के खंड (2) के अधीन बनाए गये नियमों द्वारा शासित होंगे,

(ङ) राजस्थान लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और सदस्य संविधान के अनुच्छेद 318 के अधीन बनाये गये नियमों द्वारा शासित होंगे,

(च) वे व्यक्ति जिनकी नियुक्ति तथा अन्य मामलों के लिये, जो इन नियमों के अंतर्गत आते हैं, तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के द्वारा या अधीन, उक्त विधि के अन्तर्गत आने वाले मामलों के संबंध में, विशेष उपबंध किया गया है,

(छ) वे व्यक्ति जो आकस्मिक नियोजन में हैं,

(ज) वे व्यक्ति जो एक महीने से कम की अवधि के नोटिस से सेवामुक्त किये जा सकते हैं, और,

(झ) अखिल भारतीय सेवाओं के सदस्य।

(2) उपनियम (1) में किसी बात के अन्तर्विष्ट होते हुये भी और संविधान के अनुच्छेद 311 के उपबंधो के अध्यधीन सरकार, आदेश द्वारा किसी सरकारी कर्मचारी या सरकारी कर्मचारियों के किसी वर्ग को, इन सब नियमों या इनमें से कुछ के प्रवर्तन से अलग कर सकेगी।

(3) यदि कोई संदेह उत्पन्न हो किः-

(क) क्या ये नियम या इनमें से कोई भी नियम किसी भी व्यक्ति पर लागू होता है; या

(ख) क्या कोई व्यक्ति जिस पर ये नियम लागू होते हों, किसी विशेष सेवा का सदस्य है, तो ऐसा मामला सरकार के नियुक्ति विभाग को निर्दिष्ट किया जायेगा जिसका कि निर्णय उन पर अन्तिम होगा।

नियम-4. करार द्वारा विशेष उपबंध- जहाँ किसी राजकीय कर्मचारी के संबंध में, इन नियमों के किसी नियम से असंगत विशेष उपबंध का रखा जाना आवश्यक प्रतीत हो, तो नियुक्ति प्राधिकारी, उक्त सरकारी कर्मचारी के साथ करार द्वारा ऐसे विशेष उपबंध कर सकेगा और तदुपरांत ये नियम उक्त सरकारी कर्मचारी पर उस सीमा तक लागू नहीं होंगें जिस सीमा तक इस प्रकार बनाए गए विशेष उपबंध उनसे असंगत हो। परन्तु यदि नियुक्ति प्राधिकारी सरकार के नियुक्ति विभाग के अतिरिक्त दूसरा कोई हो, तो ऐसे अधिकारी द्वारा सरकार के नियुक्ति विभाग की पूर्व स्वीकृति प्राप्त की जायेगी।

नियम-5 किसी विधि या करार द्वारा प्रदत्त अधिकारों और विशेषाधिकारों का संरक्षण-इन नियमों की कोई भी बात किसी भी सरकारी कर्मचारी को किसी अधिकार या विशेषाधिकार से वंचित नहीं करेगी, जिसका वह निम्नांकित आधारों पर हकदार हैं:-

(क) उस समय प्रवृत्त किसी विधि द्वारा या, उसके अधीन या,

(ख) इन नियमों के प्रारंभ के समय उस व्यक्ति और सरकार के बीच अस्तित्वयुक्त किसी करार की शर्तों के द्वारा।

भाग-2 वर्गीकरण

नियम 6(1) सिविल सेवाओं का निम्नांकित रूप से वर्गीकरण किया जाएगा-

(1) राज्य सेवायें, (ii) अधीनस्थ सेवायें (iii) लिपिक वर्गीय सेवायें (iv) चतुर्थ

श्रेणी की सेवायें। (2) यदि किसी सेवा में एक से अधिक ग्रेड के पद हों, तो विभिन्न ग्रेडों के पदों को विभिन्न वर्गों में सम्मिलित किया जा सकेगा।

(04. Inserted by Notification No. F.16(9)Apptts./(a)/59 Gr.III/dated

23-2-62.) नियम -7 राज्य सेवा में निम्नाकिंत होंगे-

(क) अनुसूची (1) में सम्मिलित सेवाओं के सदस्य

(ख) ऐसे व्यक्ति जो अनुसूची (1) में सम्मिलित पदों पर अधिष्ठायी हैसियत से कार्य करते हों और जो किसी दूसरी सेवा के संवर्ग में नहीं हों।

(ग) ऐसे व्यक्ति जिनका एकीकरण विभाग के नियमों के अनुसार उनका अंतिम चयन होने तक खंड (क) में निर्दिष्ट सेवाओं के संवर्गों के पदों पर या खण्ड (ख) में निर्दिष्ट सेवाओं के संवर्ग के पदों पर तदर्थ आधार पर नियुक्त किया गया हो।

नियम 8 अधीनस्थ सेवा में निम्नलिखित सम्मिलित होंगे-

(क) अनुसूची (2) में सम्मिलित सेवाओं के सदस्य

(ख) ऐसे व्यक्ति जो अनुसूची (2) में सम्मिलित पदों पर अधिष्ठायी हैसियत से कार्य करते हों और जो पद किसी दूसी सेवा के संवर्ग के न हो। (ग) ऐसे व्यक्ति जिनका एकीकरण विभाग के नियमानुसार उनका अंतिम चयन होने तक खंड (क) में निर्दिष्ट सेवाओं के संवर्गों के पदों पर या खंड (ख) मेंनिर्दिष्ट पदों पर तदर्थ आधार पर नियुक्त किया गया हो।

नियम 9. लिपिक वर्गीय सेवाओं में निम्नलिखित सम्मिलित होंगे-

(क) अनुसूची (3) मे सम्मिलित सेवाओं के सदस्य

(ख) ऐसे व्यक्ति जो अनुसूची (3) में सम्मिलित पदों पर अधिष्ठायी हैसियत से कार्य करते हों और जो पद किसी दूसरी सेवा के संवर्ग के नहीं हों।

(ग) ऐसे व्यक्ति जिनका एकीकरण विभाग के नियमानुसार उनका अंतिम चयन होने तक खंड (क) में निर्दिष्ट सेवाओं के संवर्ग के पदों पर, या खंड (ख) में निर्दिष्ठ पदों पर तदर्थ आधार पर नियुक्त किया गया हो।

नियम-10 चतुर्थ श्रेणी सेवा में निम्नांकित सम्मिलित होंगे-

(क) अनुसूची (4) में सम्मिलित सेवाओं के सदस्य,

(ख) ऐसे व्यक्ति जो अनुसूची (4) में सम्मिलित पदों पर अधिष्ठायी हैसियत से कार्य करते हों और जो पद किसी दूसरी सेवा के संवर्ग के नहीं हों।

(ग) ऐसे व्यक्ति जिनका एकीकरण विभाग के नियमानुसार उनका अंतिम चयन होने तक खंड (क) में निर्दिष्ट सेवाओं के संवर्ग के पदों पर, या खंड (ख) में निर्दिष्ट पदों पर तदर्थ आधार पर नियुक्त किया गया हो।

नियम-11 राज्य सरकार, इन नियमों के प्रयोजनार्थ, किसी पद को आदेश द्वारा वर्गीकृत कर सकेगी, यदि कोई पद, जो किसी सेवा में सम्मिलित नहीं किया गया है, किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा धारित हो जो नियम 7, 8, 9 तथा 10 के अधीन निर्दिष्ट सेवा में से किसी भी सेवा का सदस्य नहीं है। (05. Inserted by Notification No. F.3(8) Karmik (A-III)76 GSR 136)

भाग-3 नियुक्ति प्राधिकारी

नियम. 12 (1) किसी राज्य सेवा में समस्त नियुक्तियां सरकार द्वारा, या इस विषय में सरकार द्वारा विशेष रूप से सशक्त प्राधिकारी द्वारा की जाएंगी।

(2) अधीनस्थ और लिपिक वर्गीय सेवाओं में समस्त नियुक्तियाँ, विभागाध्यक्ष द्वारा या, इस विषय में सरकार की स्वीकृति से विभागाध्यक्ष द्वारा विशेष रूप से सशक्त प्राधिकारी द्वारा की जाएगी।

(3) किसी चतुर्थ श्रेणी सेवा में समस्त नियुक्तियाँ विभागाध्यक्ष द्वारा इस विषय में जारी किये गये नियमों एवं अनुदेशों के अध्यधीन कार्यालयाध्यक्ष द्वारा की जाएंगी।

(Substituted & Deleted by No. F.3(3) Karmik (A-III) 79 GSR 46 dated 16-8-82.)

भाग 4 – निलम्बन

नियम 13. निलम्बन- (1) नियुक्ति प्राधिकारी या कोई अधिकारी जिसके अधीन वह नियुक्ति अधिकारी है, या सरकार द्वारा इस विषय में सशक्त कोई भी अन्य प्राधिकारी किसी सरकारी कर्मचारी को निलम्बित कर सकेगा।

(क) जहां तक उसके विरूद्ध कोई अनुशासनिक कार्यवाही करने का विचार है या ऐसी कोई कार्यवाही लम्बित है; या

(ख) जहां उसके किसी फौजदारी अपराध के सम्बन्ध में, अन्वेषण या विचार हो रहा होः

परन्तु जहां निलम्बन की आज्ञा नियक्ति प्राधिकारी से नीचे के स्तर के प्राधिकारी द्वारा दी गई है तो उक्त प्राधिकारी, उन परिस्थितियों की रिपोर्ट, जिनमें ऐसी आज्ञा दी गई थी, तुरन्त नियुक्ति प्राधिकारी को देगा।

“राजस्थान सरकार का निर्णय राजस्थान सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियन्त्रण व अपील) नियम, 1958 के नियम 13 के उपनियम (1) द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए, राज्य सरकार इन नियमों के नियम 14 में निर्दिष्ट लघु शक्तियों में से कोई शास्ति आरोपित करने के लिये सशक्त अधिकारी को राज्य सरकार के कर्मचारी को निलम्बन करने का अधिकार प्रदान करती है।

(07. विज्ञप्ति संख्या एफ 3(9) नियुक्ति (क) 62 दिनांक 11-9-1962 द्वारा निविष्ट ।)

(2) कोई राज्य कर्मचारी जो किसी फौजदारी पोषारोपण पर या अन्यथा, 48 घण्टों से अधिक समय तक हिरासत में रखा गया हो तो उसे हिरासत की तिथि से, 1 उपनियम (1) के अधीन किसी सरकारी कर्मचारी को निलम्बनाधीन रखने के लिए सक्षम प्राधिकारी के आदेश द्वारा निलम्बित हुआ समझा जावेगा और वह आगामी आदेश तक निलम्बन में रहेगा।

(3) जब किसी निलम्बन आदेश में चल रहे राज्य कर्मचारी पर उसके विरूद्ध जारी की गयी बर्खास्तगी या सेवा से हटाये जाने या अनिवार्य सेव निवृत्ति की शास्ति, इन नियमों के अधीन अपील में या नजरसानी होने पर निरस्त कर दी जाती है और किसी निर्देशन के साथ मामला आगे जांच करने या कार्यवाही करने के लिए लौटा दिया जावे, तो उस कर्मचारी का निलम्बन, सेवा से बर्खास्तगी, हटाये जाने या अनिवार्य सेवानिवृत्ति को, मूल आदेश की तिथि से पुनः जारी रहना समझा जावेगा और वह आगामी आज्ञा तक प्रभावशील रहेगा।

(4) जब किसी राज्य कर्मचारी पर सेवा से बर्खास्त करने, हटाये जाने या अनिवार्य सेवा निवृत्ति करने की शास्ति, किसी न्यायालय के फैसले द्वारा खारिज कर दी जावे या शून्य घोषित कर दी जावे या प्रभावहीन हो जावे और मामले को परिस्थितियों पर विचार करते हुए, अनुशासनिक प्राधिकारी उन्हीं आरोपों पर, जिनके आधार पर उसे बर्खास्तगी, हटाये जाने या सेवानिवृत्ति की शास्ति मूलतः दी गई थी, आगे जांच करना तय करे तो उक्त राज्य कर्मचारी बर्खास्तगी, हटाये जाने या अनिवार्य सेवा निवृत्ति की मूल आदेश की तिथि से, नियुक्त प्राधिकारी द्वारा, निलम्बित किया समझा जावेगा और आगामी आदेशों तक वह निलम्बन में चलता रहेगा।

(5) इस नियम के अधीन जारी किया गया निलम्बन का आदेश, किसी भी समय, उक्त आदेश देने वाले या देने वाले समझे गये प्राधिकारी द्वारा या ऐसे प्राधिकारी द्वारा, निरस्त किया जा सकेगा, जिसका उक्त प्राधिकारी अधीनस्थ है।

भाग-5 अनुशासन

नियम, 14 शास्तियों (दण्ड) के प्रकार

निम्नांकित शास्तियां (दण्ड) समुचित और पर्याप्त कारणों से, जिनको अभिलिखित किया जाएगा और जैसा इसमें इसके पश्चात् उपबन्धित है, किसी सरकारी कर्मचारी पर लगाई जा सकेगी, अर्थात्-

(i) परिनिन्दा,
(ii) वेतन वृद्धि या पदोन्नति रोकना,
(iii) लापरवाही से या किसी विधि, नियम या आदेश को भंग करने से सरकार को हुई आर्थिक हानि की उसके वेतन में से सम्पूर्ण या आंशिक रूप से वसूली,
(iv) निम्नतर सेवा, ग्रेड या पद पर अथवा निम्नतर काल वेतनमान में अथवा काल वेतनमान में नीचे के प्रक्रम पर अवनत कर देना, या पेंशन की दशा में नियमानुसार देय राशि में कमी कर देना,

(08. Inserted vide Notification No. F. 3(2)Apptts. (A)/60 Group III dated 8-12-1960)
(v) आनुपातिक पेंशन पर अनिवार्य सेवा निवृत्ति,
(vi) सेवा से हटाया जाना, जो कि आगे नियोजन के लिए निरर्हता नहीं होगी,
(vii) सेवा से पदच्युति, जो सामान्यतः भावी नियोजन के लिए निरर्हता होगी।

नियम 15. अनुशासनिक प्राधिकारी (1) राज्य सेवाओं के सम्बन्ध में सरकार या सरकार द्वारा इस निमित्त विशेष रूप से सशक्त प्राधिकारी,
अधीनस्थ एवं लिपिक वर्गीय सेवाओं के सम्बन्ध में विभागाध्यक्ष या विभागाध्यक्ष द्वारा सरकार के अनुमोदन से विशेष रूप से सशक्त प्राधिकारी और चतुर्थ श्रेणी सेवाओं के लिए कार्यालयाध्यक्ष, अनुशासनिक प्राधिकारी होगा।

(2) जिन सेवाओं के सम्बन्ध में जिनमें नियुक्ति करने की शक्ति किसी प्राधिकारी को नहीं सौंपी गयी हो, परिनिन्दा तथा वेतन वृद्धि को रोकने की शास्ति के अतिरिक्त शास्ति लगाने से पहले लोक सेवा आयोग से परामर्श किया जायेगा।

(09. जी.एस.आर. 46 अधिसूचना सं. एफ 1(3) कार्मिक (ए-ना)/79 दिनांक 16-8-1982 से पुनः स्थापित तथा 20-6-1982 से प्रभावी ।)

वृहद दंड के लिए जांच कि प्रक्रिया

नियम 16. (1) जनसेवक (जांच) अधिनियम, 1850, के उपबंधों पर प्रभाव डाले बिना, किसी राजकीय कर्मचारी पर नियम 14 के खण्ड (iv) से (vii) में विनिर्दिष्ट शास्तियों में से कोई शास्ति लगाने वाला आदेश तब तक नहीं दि जाएगा, जब तक कि यथा-साध्य इसमें इसके पश्चात् उपबंधित रीति से ज न करली गई हो।

(2) अनुशासनिक प्राधिकारी, जिन अभिकथनों के आधार पर जांच किया जाना प्रस्तावित है, उनके आधार पर निश्चित आरोप तैयार करेगा। ऐसे आरोप अभिकथनों के विवरणों के साथ जिन पर वे आधारित हैं, लिखित रूप में राजकीय कर्मचारी को ससूचित किये जायेंगे और उससे ऐसे समय के भीतर जो अनुशासनिक प्राधिकारी द्वारा विनिर्दिष्ट किया जाए एक लिखित कथन प्रस्तुत करने की अपेक्षा की जाएगी जिसमें यह बतलाया जावेगा कि क्या वह सभी आरोपों की या उनमें से किसी की सत्यता को स्वीकार करता है, उसे क्या स्पष्टीकरण देना है, या बचाव, यदि कोई हो, करना है और क्या वह व्यक्तिगत सुनवाई चाहता है।

परन्तु जब दोषारोपित व्यक्ति द्वारा अपने बचाव के अनुक्रम में दिए गए किसी कथन या अभिकथन पर कार्यवाही की जानी प्रस्तावित हो तो कोई अतिरिक्त आरोप तैयार करना आवश्यक नहीं होगा।

(3) राजकीय कर्मचारी को अपने बचाव की तैयारी करने के प्रयोजनार्थ ऐसे राजकीय अभिलेखों का जिन्हें वह विनिर्दिष्ट करे निरीक्षण करने तथा उनमें से उद्धरण लेने की अनुज्ञा दी जायेगी परन्तु यदि अनुशासनिक प्राधिकारी की राय में ऐसे अभिलेख उस प्रयोजन से सुसंगत नहीं हैं या उसे ऐसे अभिलेख दिखाना लोकहित के विरूद्ध है तो कारण को अभिलिखित करते हुए ऐसी अनुज्ञा देने से इन्कार किया जा सकेगा।

(4) बचाव पक्ष के लिखित कथन की प्राप्ति पर या विनिर्दिष्ट समय में ऐसा कोई कथन प्राप्त न हो तो अनुशासनिक प्राधिकारी स्वयं ऐसे आरोपों के बारे में जो स्वीकार नहीं किए गए हैं जांच कर सकेगा या यदि यह ऐसा करना आवश्यक समझे तो उस प्रयोजन के लिए “जांच बोर्ड” या “जांच प्राधिकारी” नियुक्त कर सकेगा और जहां राजकीय कर्मचारी ने अपने बचाव के लिखित कथन में आरोपों के समस्त अनुच्छेद स्वीकार कर लिए हों तो अनुशासनिक प्राधिकारी प्रत्येक पर अपने निष्कर्ष अभिलिखित करेगा।

10 (4-क) यदि राजकीय कर्मचारी जिसने आरोप के किसी अनुच्छेद को बचाव के लिखित कथन में स्वीकार नहीं किया है या बचाव में कोई लिखित कथन प्रस्तुत नहीं किया है, जांच प्राधिकारी के समक्ष उपस्थित होता है तो ऐसा प्राधिकारी उससे पूछेगा कि क्या वह दोषी है, या अपने बचाव में कुछ कहना चाहता है और यदि वह आरोप के अनुच्छेद के लिए दोषी होने का 11/31 अभिवचन करता है तो जांच प्राधिकारी उस अभिभाग को अभिलिखित करेगा, अभिलेख पर स्वयं हस्ताक्षर करेगा तथा उस पर राजकीय कर्मचारी के हस्ताक्षर प्राप्त करेगा। जांच अधिकारी, राजकीय कर्मचारी ने आरोपों के जिन अनुच्छेदों के लिए दोषी होने का अभिवचन किया हो उनके विषय में जांच प्राधिकारी दोषी पाये जाने का निष्कर्ष भेजेगा।

(10. जी.एस.आर. 129; सं. एफ. 3 (17) नियुक्ति/ (क-3)/67 दिनांक 5-10-74 द्वारा निविष्ट ।)

(5) अनुशासनिक प्राधिकारी किसी भी व्यक्ति को आरोपों की जांच करने दाले प्राधिकारी (जिसे इसके पश्चात् जांघ प्राधिकारी के रूप में निर्दिष्ट किया गया है) के समक्ष आरोपों के समर्थन में प्रकरण को प्रस्तुत करने के लिए नामजद कर सकेगा। राज्य कर्मचारी भी अनुशासनिक प्राधिकारी द्वारा अनुमोदित किसी दूसरे राज्य कर्मचारी “(या सेवा निवृत्त राज्य कर्मचारी) की सहायता से अपने प्रकरण को प्रस्तुत कर सकेगा; परन्तु वह इस प्रयोजन के लिये किसी विधि व्यवसायी को नियुक्त नहीं कर सकेगा जब तक कि अनुशासनिक प्राधिकारी द्वारा नामांकित व्यक्ति भी विधि व्यवसायी न हो या जब तक कि अनुशासनिक प्राधिकारी प्रकरण की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए ऐसी अनुज्ञा न दे दें।

(11. क्र.एफ 9(2) (11) डीओपी/क-3/2007 दिनांक 21-12-2012 द्वारा ‘परन्तुक (1) प्रतिस्थापित किया गया एवं तुरन्त प्रभावी। राजस्थान राजपत्र भाग 4(ग) दिनांक 4-2-2013 को प्रकाशित ।)

12 नियम 18 (6) क. जहां जांच प्रारम्भ होने पर राज्य कर्मचारी ने आरोपों के प्रति दोषी न होने का अभिवचन किया है, जांच प्राधिकारी अनुशासनिक प्राधिकारी की ओर से उप-संजात होने वाले उप-स्थापक अधिकारी से साक्षियों व दस्तावेजों की सूची 10 दिनों के भीतर प्रस्तुत करने के लिए कहेगा जो साथ ही साथ राज्य कर्मचारी को भी एक प्रति भेजेगा। अपचारी कर्मचारी अभियोजन साक्षियों व दस्तावेजों की सूचियां प्राप्त होने के 10 दिनों के भीतर अपने बचाव के लिए अपेक्षित अभिलेखों की सूची प्रस्तुत करेगा। जांच प्राधिकारी तब दोनों पक्षों के अभिलेखों को मंगवायेगा तथा पक्षकारों से उन्हें स्वीकार या अस्वीकार करने के लिए कहेगा। इसके बाद वह ऐसे साक्ष्य को बुलावेगा जो आवश्यक समझा जावेगा तथा उपस्थापक अधिकारी मुख्य परीक्षा व राज्य कर्मचारी या उसके सहायक कर्मचारी जो भी उपस्थित हों, को प्रतिपरीक्षा का अवसर देगा। उपस्थापक अधिकारी को साक्षियों से उन किन्हीं बिन्दुओं पर जिन पर उनकी प्रतिपरीक्षा की गई है पुनः परीक्षा करने के अधिकार होंगे परन्तु जांच अधिकारी की अनुज्ञा बिना वह किसी नये तथ्य पर पुनः परीक्षा न कर पायेंगे। अभियोजन साक्ष्य की समाप्ति के बाद राज्य कर्मचारी को उन साक्षियों की सूची जिन्हें वह अपने बचाव में पेश करना चाहता है 10 दिनों के भीतर प्रस्तुत करने की अपेक्षा की जावेगी। जांच प्राधिकारी साक्षियों व अभिलेखों की सुसंगति पर विचार करेगा तथा केवल सुसंगत साक्षियों व अभिलेखों का आव्हान करेगा तथा पक्षकारों को मुख्य परीक्षा / प्रतिपरीक्षा/पुनः परीक्षा का अवसर प्रदान करते हुए साक्ष्य अभिलिखित करेगा तथा तब साक्ष्य समाप्त करेगा। जांच प्राधिकारी दोनों पक्षों द्वारा मंगवाये जाने वाले साक्षियों तथा अभिलेखों की सुसंगता पर विचार करेगा तथा किसी साक्षी या अभिलेख को मंगवाने से इन्कार करने की परिस्थिति में अपने कारण अभिलिखित करेगा। जांच प्राधिकारी पक्षकारों के साक्षियों से ऐसे प्रश्न पूछ सकेगा जो न्याय के हित में हो। पक्षकारों को तर्क प्रस्तुत करने का अवसर भी दिया जावेगा।

(12. क्र. एफ. 3 (2) कार्मिक/क-3/81 दिनांक 16-9-82 द्वारा प्रतिस्थापित)

13 (6) (क-1) किसी व्यक्ति की साक्ष्य जो औपचारिक रूप की है, शपथ पत्र द्वारा दी जा सकेगी और सब न्यायोचित अपवादों के अधीन रहते हुए, विभागीय कार्यवाही में स्वीकार की जा सकेगी। जहां जांच अधिकारी यह उचित समझे, कि किसी व्यक्ति को बुलाया जाकर उसकी व्यक्तिगत रूप से परीक्षा होनी चाहिये, या कोई पक्षकार अर्थात् प्रस्तुतकर्ता अधिकारी या अपचारी अधिकारी, किसी साक्षी की व्यक्तिगत उपस्थिति पर जो दे तो, ऐसे साक्षी की व्यक्तिगत उपस्थिति के लिए व्यवस्था की जानी चाहिये।

13. जी.एस. और 81; सं. एफ. 3(15) कार्मिक / (क-3)/72 दिनांक 26-12-1973 द्वारा जोड़ा गया।)

(6) (ख) जांच प्राधिकारी, उसके द्वारा संचालित किये जा रहे व आंशिक रूप से सुने गये मामलों में, समुचित तथा पर्याप्त कारणों पर, जो लेखबद्ध किये जायेंगे, साक्षियों को परीक्षा के लिए पुनः बुला सकेगा।

(6) (ग) जांच प्राधिकारी, आदेश के 10 दिनों के भीतर या ऐसे समय के भीतर, जो 10 दिनों से अधिक नहीं होगा, जिसे जांच प्राधिक
अनुज्ञात करे, किन्हीं ऐसे अभिलेखों की, जो सरकार के कब्जे में हैं, लेकिन उपनियम 6 (क) में निर्दिष्ट सूची में वर्णित नहीं हैं, खोज या प्रस्तुतीकरण के लिए नोटिस प्रेषित करेगा।

(14. जी.एस.आर. 129; स.एफ. 3 (17) नियुक्ति/क-3/65 दिनांक 9-10-1974 द्वारा जोड़ा गया।)

6 (घ) इन नियमों के, नियम 18 के अधीन संयुक्त विभागीय जांच के मामले में था, नियम 16 के अधीन जांच के मामले में, यदि राज्य कर्मचारी सुनवाई की तारीख को, जिसकी उसे उन्हें सूचना दी गई थी बिना पर्याप्त कारण के, उपस्थित होने में असफल रहता है/रहते हैं तो, जांच प्राधिकारी ऐसे राज्य कर्मचारी / कर्मचारियों की अनुपस्थिति में आगे जांथ की कार्यवाही कर सकेगा।

(6)- (ख) (क) जांच प्राधिकारी के निष्कर्ष (क) जहां नियम 14 के खण्ड (i) से (iii) में विनिर्दिष्ट शास्तियों में से, कोई शास्ति अधिरोपित करने में सक्षम, किन्तु नियम 14 के खण्ड (iv) से (vii) तक में विनिर्दिष्ट शास्तियों में कोई शास्ति आरोपित करने मे असक्षम, अनुशासनिक अधिकारी ने किसी आरोप की स्वयं जांच की हो या करवायी हो, और उस प्राधिकारी की, स्वयं के द्वारा निकाले गये निष्कर्षों के आधार पर या स्वयं के द्वारा नियुक्त किसी जांच प्राधिकारी के द्वारा निकाले गये किन्हीं निष्कर्षों के आधार पर, लिए गए निर्णय
के आधार पर, यह राय हो कि, नियम 14 कि खण्ड (iv) से (vii) में विनिर्दिष्ट शास्तियों में से, कोई शास्ति राज्य कर्मचारी पर आरोपित की जानी चाहिये, वहां पर उक्त अनुशासनिक प्राधिकारी जांच के अभिलेख को ऐसे अनुशासनिक प्राधिकारी को अग्रषित करेगा, जो अन्त में वर्णित शास्तियों को अधिरोपित करने में सक्षम हो।

(ख) वह अनुशासनिक प्राधिकारी, जिसको कि इस प्रकार से अभिलेख प्रेषित किया गया है, अभिलेख पर उपस्थित साक्ष्य के अनुसार कार्यवाही कर सकेगा अथवा उसकी मान्यता हो कि साक्षियों में से किसी की पुनः परीक्षा करना न्याय के हित में है तो वह साक्षी को पुनः बुला सकेगा और साक्षी की मुख्य परीक्षा, प्रतिपरीक्षा व पुनः परीक्षा कर सकेगा तथा राज्य कर्मचारी पर ऐसी शास्ति आरोपित कर सकेगा, जो इन नियमों के अनुसार उसे उचित प्रतीत होती हो।

(7) जांच की समाप्ति पर जांच प्राधिकारी, प्रत्येक आरोप पर अपने निष्कर्ष उनके कारणों सहित, अभिलिखित करते हुए जांच की रिपोर्ट तैयार करेगा। यदि ऐसे प्राधिकारी की राय में, जांच की कार्यवाही में मूलतः तैयार किये गये आरोपों से भिन्न आरोप स्थापित होते हैं तो, वह ऐसे भिन्न आरोपों पर अपने निष्कर्ष अभिलिखित कर सकेगा; परन्तु ऐसे आरोपों पर निष्कर्ष तब तक अभिलिखित नहीं किये जावेंगे, जब तक कि राज्य कर्मचारी ने उन्हें संस्थापित करने वाले तथ्यों को स्वीकार न कर लिया हो, या जब तक उसे उनके विरूद्ध अपना बचाव प्रस्तुत करने का अवसर न मिल चुका हो।

(8) जांच के अभिलेख में निम्नांकित सम्मिलित होंगे:

(1) उपनियम (2) के अधीन राज्य कर्मचारी के विरूद्ध तैयार किए गये आरोप तथा उसको दिया गया अभिकथन विवरण;
(ii) कर्मचारी का बचाव का लिखित कथन, यदि कोई हो;
(iii) जांच के अनुकम में लिया गया मौखिक साक्ष्य;
(iv) जांच के अनुक्रम में वह अभिलेखीय साक्ष्य, जिस पर विचार किया गया हो;
(v) जांच के बारे में अनुशासनिक प्राधिकारी तथा जांच प्राधिकारी द्वारा दिये गये आदेश, यदि कोई हों, और
(vi) प्रत्येक आरोप पर निष्कर्ष व उनके कारणों को बतलाने वाली रिपोर्ट।

(9) अनुशासनिक प्राधिकारी, यदि वह जांच प्राधिकारी न हो तो, जांच के अभिलेख पर विचार करेगा तथा प्रत्येक आरोप पर, अपने निष्कर्ष अभिलिखित करेगा।

अनुशासनिक प्राधिकारी, जांच प्राधिकारी के प्रतिवेदन पर विचार करते समय न्यायोचित तथा पर्याप्त कारणों से, जो अभिलिखित किये जायेंगे, प्रकरण को उसकी और आगे जांच करने के लिये या नये सिरे से जांच किये जाने के लिए, प्रतिप्रेषित कर सकेगा, यदि उसे यह विश्वास करने के लिए कारण हो कि, पहले की गयी जांच में कोई कमी रह गयी है।

(10) अनुशासनिक प्राधिकारी, उसके द्वारा की गई जांच, यदि कोई हो, की रिपोर्ट की एक प्रति या जहां अनुशासनिक प्राधिकारी जांच प्राधिकारी न हो वहां जांच प्राधिकारी की रिपोर्ट की एक प्रति, सरकारी कर्मचारी को अग्रेषित करेगा जिससे यह अपेक्षा की जायेगी कि वह अपना लिखित अभ्यावेदन या निवेदन यदि वह करना चाहे, पन्द्रह दिन के भीतर-भीतर अनुशासनिक प्राधिकारी को प्रस्तुत कर दे।
भी शास्ति अधिरोपित की जानी चाहिए तो वह, नियम 17 में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, ऐसी शास्ति अधिरोपित करते हुए आदेश करेगाः परन्तु ऐसे प्रत्येक मामले में, जिसमें आयोग से परामर्श करना आवश्यक हो, जांच का अभिलेख अनुशासनिक प्राधिकारी द्वारा आयोग को उसकी सलाह के लिए अग्रेषित किया जायेगा और उस सरकारी कर्मचारी पर कोई भी ऐसी शास्ति अधिरोपित करने वाला कोई भी आदेश करने से पूर्व ऐसी सलाह पर

(10क) अनुशासनिक प्राधिकारी यदि आरोप की किसी नद के बारे मे जांच प्राधिकारी के निष्कर्षों से असहमत हो तो वह ऐसी असहमति के अपने कारणों को अभिलिखित करेगा और ऐसे आरोप के बारे में अपने स्वयं के निष्कर्ष अभिलिखित करेगा। यदि इस प्रयोजनार्थ पर्याप्त साक्ष्य अभिलेख पर हो और उसे जांच रिपोर्ट की एक प्रति के साथ सरकारी कर्मचारी को उसके अभ्यावेदन के लिए अग्रेषित किया जायेगा।

15 (10ख) अनुशासनिक प्राधिकारी उप नियम (11) और (11क) में विनिर्दिष्ट रीति से आगे कार्यवाही करने से पूर्व सरकारी कर्मचारी द्वारा प्रस्तुत किये गये अभ्यावेदन, यदि कोई हो, पर विचार करेगा।

(15. सं.प.9 (41) कार्मिक/क-3/2002 दिनांक 21-1-2003 द्वारा प्रतिस्थापित। राज.राज-पत्र भाग 4 (ग) दिनांक 21-1-2003 को पृष्ठ 153 पर प्रकाशित।)

(11) आरोप की समस्त या किन्हीं मदों पर अपने निष्कर्षों का ध्यान में रखते हुए यदि अनुशासनिक प्राधिकारी की यह राय हो कि उक्त सरकारी कर्मचारी पर नियम 14 के खण्ड (1) से (iii) में विनिर्दिष्ट शास्तियों में से कोई भी शास्ति अधिरोपित की जानी चाहिए तो वह, नियम 17 में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, ऐसी शास्ति अधिरोपित करते हुए आदेश करेगाः परन्तु ऐसे प्रत्येक मामले में, जिसमें आयोग से परामर्श करना आवश्यक हो, जांच का अभिलेख अनुशासनिक प्राधिकारी द्वारा आयोग को उसकी सलाह के लिए अग्रेषित किया जायेगा और उस सरकारी कर्मचारी पर कोई भी ऐसी शास्ति अधिरोपित करने वाला कोई भी आदेश करने से पूर्व ऐसी सलाह पर विचार किया जायेगा।

18 (11क) आरोप की समस्त या किन्हीं मदों पर अपने निष्क को ध्यान में रखते हुए और जांच के दौरान पेश किये गये साक्ष्य के आधार पर यदि अनुशासनिक प्राधिकारी की यह राय हो कि नियम 14 के खण्ड (iv) (vii) में विनिर्दिष्ट शास्तियों में से कोई भी शास्ति उस सरकारी कर्मचारी पर अधिरोपित की जानी चाहिए तो वह ऐसी शास्ति अधिरोपित करते हुए आदेश जारी करेगा और सरकारी कर्मचारी को, उस पर अधिरोपित किये जाने के लिए प्रस्तावित शास्ति के सम्बन्ध में, अभ्यावेदन प्रस्तुत करने का कोई अवसर प्रदान करना आवश्यक नहीं होगाः परन्तु ऐसे प्रत्येक मामले में जिसमें आयोग से परामर्श करना आवश्यक हो, जांच का अभिलेख अनुशासनिक प्राधिकारी द्वारा आयोग को उसकी सलाह के लिए अग्रेषित किया जायेगा और उस सरकारी कर्मचारी पर कोई भी ऐसी शास्ति अधिरोपित करने वाला कोई भी आदेश करने से पूर्व ऐसी सलाह पर विचार किया जायेगा।

(16. सं.प.9 (5) (41) कार्मिक/क-3/2001 दिनांक 21-1-2003 द्वारा प्रतिस्थापित। राज.राज-पत्र भाग 4 (ग) दिनांक 21-1-2003 को पृष्ठ 153 पर प्रकाशित ।)

(12) अनुशासनिक प्राधिकारी द्वारा दिये गये आदेश सरकारी कर्मचारी को संसूचित किये जायेंगे और उसे जांच प्राधिकारी की रिपोर्ट की एक प्रति भी दी जायेगी और जहां अनुशासनिक अधिकारी, जब जांच प्राधिकारी न हो तो उसके निष्कर्षों का एक विवरण, जांच अधिकारी के निष्कर्षों से असहमति, यदि कोई हो, के संक्षिप्त कारणों सहित दिया जायेगा, यदि वे पहले उसको नहीं दिए गए है और यदि आयोग द्वारा कोई सलाह दी गई हो तो उसकी एक प्रति भी दी जाएगी तथा जहां अनुशासनिक प्राधिकारी ने आयोग की सलाह स्वीकार न की हो तो ऐसी अस्वीकृती के कारणों का संक्षिप्त विवरण दिया जाएगा। तथापि जांच प्राधिकारी के प्रतिवेदन की प्रति देना उन मामलों में आवश्यक नहीं होगा जिनमें नियम 14 के खण्ड (1) से (iii) में विनिर्दिष्ट शास्तियों में से कोई शास्ति सरकारी कर्मचारी पर लगाई जाय।

नियम 17 लघु शास्तियां लगाने की प्रक्रिया

(1) नियम 14 के खण्ड (i) से (iii) में विनिर्दिष्ट शास्तियों में से कोई शास्ति लगाने का तब तक आदेश नहीं दिया जायेगा जब तक कि-

(क) सरकारी कर्मचारी को उसके विरूद्ध कार्यवाही करने का प्रस्ताव तथा अभिकथनों को, जिन पर ऐसा किया जाना प्रस्तावित है, लिखित रूप से सूचना न दे दी गयी हो और उसका अभ्यावेदन, जो वह देना चाहे, देने का अवसर न दे दिया गया हो। ” ” (कक) ऐसे प्रत्येक मामले में जिसमें तीन वर्षों से अधिक की कालावधि के लिए या संचयी प्रभाव से किसी भी कालावधि के लिए या इस प्रकार से जिससे उसे संदेय पेन्शन की रकम पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े, वेतन वृद्धियों को रोकना प्रस्तावित है या जिसमें अनुशासनिक प्राधिकारी की राय यह हो कि ऐसी जांच आवश्यक है, नियम 16 में अधिकथित रीति में जांच कर ली गयी हो।

(17. Added vide G.S.R. 37; No. F. 3(9)DOP/A-III/85 dated 16-11-87 published in Raj. Gaz E.O.4 (Ga) dated 18-11-1987 page 93-95.)

(ख) खण्ड (क) के अधीन सरकारी कर्मचारी द्वारा प्रस्तुत ऐसे अभ्यावेदन पर, यदि कोई हो, और खण्ड (कक) के अधीन की गई जांच के अभिलेख पर, यदि कोई हो, अनुशासनिक प्राधिकारी द्वारा विचार कर लिया गया हो।

18 (ग) सरकारी कर्मचारी को यदि वह चाहे तो अपना मामला स्पष्ट करने के लिए अनुशासनिक प्राधिकारी द्वारा व्यक्तिगत सुनवाई का अवसर दे दिया गया हो।

(18. Amended by No. F 3(9)DOP/A-III/78 dated 27-1-1979)

(घ) उन मामलों में जिनमें आयोग से परामर्श लेना आवश्यक हो, परामर्श न कर लिया गया हो।
(2) ऐसे मामलों में कार्यवाही के अभिलेख में निम्नलिखित सम्मिलित होंगे-

(1) सरकारी कर्मचारी को उसके विरूद्ध कार्यवाही करने के प्रस्ताव की सूचना की प्रति;

(ii) उसके ससूचित अभिकथन विवरण की प्रति;

(iii) उसका अभ्यावेदन यदि कोई हो;

(iv) जांच के दौरान प्रस्तुत साक्ष्य;

(v) प्रत्येक अभिकथन पर निकाले गये निष्कर्ष

(vi) आयोग की सलाह यदि कोई हो और;

(vii) मामले पर दिये गये आदेश, उनके कारणों सहित नियम 18 संयुक्त परीक्षण (1) जहां किसी मामले में दो या अधिक राजकीय
कर्मचारी सम्बन्धित हों, सरकार या कोई अन्य प्राधिकारी जो ऐसे समस्त सरकारी कर्मचारियों को सेवा से पदच्युत करने की शास्ति लगाने के लिए सक्षम हो, यह आदेश दे सकेगा कि उन सबके विरुद्ध अनुशासनिक कार्यवाही एक साथ की जावे।

(2) ऐसे किसी आदेश में निम्नलिखित निर्देश होंगे-

(i) उस अधिकारी का पद विवरण जो उक्त संयुक्त कार्यवाही के लिए अनुशासनिक अधिकारी होगा।

(ii) नियम 14 में विनिर्दिष्ट उन शास्तियों का विवरण उन्हें आरोपित करने वह प्राधिकारी सक्षम होगा।

(iii) क्या कार्यवाही में नियम 16 या 17 में निहित प्रकियाओं का पालन किया जाना है।

1918-क. कार्यस्थलों पर कामकाजी महिलाओं के यौन उत्पीड़न के मामलों में विशेष प्रक्रिया- नियम 16, 17 और 18 में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी यदि राजस्थान सिविल सेवा (आचरण) नियम, 1971 के नियम 25 कक के अन्तर्गत यौन उत्पीड़न की कोई शिकायत हो तो ऐसी शिकायत की जांच करने के लिए प्रत्येक विभाग/कार्यालय में स्थापित शिकायत समिति को जांच प्राधिकारी समझा जायेगा और उक्त समिति की रिपोर्ट को इन नियमों के प्रयोजन के लिए जांच रिपोर्ट समझा जायेगा। अनुशासनिक प्राधिकारी उक्त जांच रिपोर्ट पर इन नियमों के अनुसार कार्य करेगा। यदि शिकायत समिति के लिए यौन उत्पीड़न की शिकायत के मामलें में जाँच करने के लिए पृथक् प्रक्रिया विहित नहीं हो तो शिकायत समिति यथा साध्य इन नियमों में अभिकथित प्रक्रिया के अनुसार जांच करेगी।

(19. New Rule 18A inserted vide G.S.R. 92; No. F9(2)(59)DOP/A-IV/97 Part-1 dated 14-2-2006. Published in Raj. Gaz. Part 4 (Ga) dated 14-2-2006 Page 131(1) to 131(3).)

नियम 19. कतिपय प्रकरणों में विशेष प्रक्रिया नियम 16, 17 तथा 18 में किसी बात के होते हुए भीः

(1) जहां, सरकारी कर्मचारी पर कोई शास्ति, ऐसे आचरण पर लगाई जाए जिसके कारण वह किसी फौजदारी आरोप पर सिद्ध हुआ हो, या

(ii) जहां अनुशासनिक अधिकारी का, ऐसे कारणों से जो लेखबद्ध किये जायेंगे, समाधान हो जाय कि उक्त नियमों में निहित प्रक्रिया का अनुसरण करना यूक्ति-युक्त रूप से साध्य नहीं है, या

(iii) जहां राज्यपाल का समाधान हो जाए कि राज्य की सुरक्षा के हित में ऐसी प्रक्रिया का अनुसरण करना समीचीन नहीं है। तो अनुशासनिक प्राधिकारी मामले की परिस्थितियों पर विचार कर सकेगा तथा ऐसे आदेश, जो वह उपयुक्त समझे, दे सकेगा; परन्तु ऐसे किसी मामले में, जिसमें आयोग से परामर्श करना आवश्यक हो. ऐसे आदेश देने से पहले आयोग से परामर्श लिया जायेगा।

20 नियम 19-क- केन्द्रीय सरकार को या पब्लिक सैक्टर में किसी कम्पनी को या राज्य अथवा केन्द्रीय विधान मण्डलों के अधिनियम द्वारा सृजित स्वशासी निकायों को उधार दिये गये अधिकारियों के सम्बन्ध में उपबन्धः-

(1) जहां कि सरकारी कर्मचारी की सेवाएं:-

(i) केन्द्रीय सरकार को;
ii) कम्पनी अधिनियम, 1956 (1956 का अधिनियम सं. 1) के अधीन रजिस्ट्रीकृत किसी पब्लिक सेक्टर कम्पनी को; या
(iii) राज्य या केन्द्रीय विधान मण्डलों के अधिनियम द्वारा सृजित सरकार के नियन्त्रण के अधीन किसी स्वशासी निकाय को जिन्हें इस नियम में इसके पश्चात् उधारगृहीता प्राधिकारी कहा है, उधार दी गई हो तो उधार ग्रहीता प्राधिकारी को उसे निलम्बित करने के प्रयोजनार्थ नियुक्ति प्राधिकारी की तथा उसके विरुद्ध अनुशासनिक कार्यवाही करने के प्रयोजनार्थ अनुशासनिक प्राधिकारी की शक्ति होगी।

परन्तु उधार ग्रहीता अधिकारी उस प्राधिकारी को जिसने कर्मचारी की सेवायें उधार दी हैं (जिसे इस नियम में इसके पश्चात् उधार दायी प्राधिकारी कहा गया है), उस कर्मचारी के निलम्बन या अनुशासनिक कार्यवाही प्रारम्भ करने के यथास्थिति आदेश दिये जाने की परिस्थितियों की तुरन्त सूचना देगा।

(2) सरकारी कर्मचारी के विरूद्ध की गई कार्यवाहियों के निष्कर्षों को ध्यान में रखते हुयेः

(i) यदि उधार ग्रहीता प्राधिकारी का मत हो कि नियम 14 के खण्ड (1) से

(3) में विनिर्दिष्ट शास्तियों में से कोई शास्ति उस पर आरोपित की जानी चाहिये तो वह उत्तरदायी प्राधिकारी के परामर्श से, उस मामले में ऐसे आदेश पारित कर सकेगा जैसा वह आवश्यक समझे परन्तु उधार ग्रहीता प्राधिकारी
तथा उधारदायी प्राधिकारी के मध्य मतभेद होने की दशा में, सरकारी कर्मचारी की सेवाएं वापस उधारदायी प्राधिकारी के अधीन कर दी जायेगी।

(ii) यदि उधारग्रहीता प्राधिकारी का मत हो कि नियम 14 के खण्ड (4) स (7) में विनिर्दिष्ट शास्तियों में से, कोई शास्ति उस पर अधिरोपित कि जानी चाहिए तो वह उसकी सेवाएं पुनः उधारदायी प्राधिकारी के अधीन कर देगा तथा जांच की कार्यवाही भी भेज देगा और तब उधारदायी प्राधिकारी, यदि यह अनुशासनिक प्राधिकारी भी है, ऐसे आदेश पारित कर सकेगा जैसा वह आवश्यक समझे। यदि वह अनुशासनिक प्राधिकारी नहीं है, तो वह उस मामले को अनुशासनिक प्राधिकारी को प्रस्तुत कर सकेगा जो ऐसे आदेश पारित करेगा जैसे वह आवश्यक समझेः

परन्तु अनुशासनिक प्राधिकारी ऐसे आदेश पारित करते समय, नियम 16 के उप नियम (10) तथा (11) के उपबन्धों का पालन करेगा। (20 Inserted by No. F. 3(17)Apptts. (A-III)/67 dated 9-10-1974.)

21 नियम 19 (ख)- नियुक्ति प्राधिकारी के विभाग से भिन्न किसी सरकारी विभाग में पदस्थापित अधीनस्थ सेवा, लिपिक वर्गीय सेवा और चतुर्थ श्रेणी सेवा के सरकारी कर्मचारी के सम्बन्ध में उपबन्ध-

(1) जहां कोई सरकारी कर्मचारी नियुक्ति प्राधिकारी के विभाग से भिन्न किसी विभाग में (जिसे इन नियमों में इसके पश्चात् उधार लेने वाले विभाग के रूप में निर्दिष्ट किया गया है) पदस्थापित किया गया हो, वहां उधार लेने वाले विभाग के विभागाध्यक्ष को उसे निलंबाधीन रखने के प्रयोजनार्थ नियुक्ति प्राधिकारी की और उसके विरूद्ध अनुशासनिक कार्यवाहियां करने के प्रयोजनार्थ अनुशासनिक अधिकारी की शक्तियां होंगीः परन्तु उधार लेने वाला विभाग उसके निलंबन के आदेश से सम्बन्धित परिस्थितियों की या यथास्थिति, अनुशासनिक कार्यवाहियां प्रारम्भ करने की सूचना नियुक्ति प्राधिकारी को तुरन्त देगा।

(2) सरकारी कर्मचारी के विरूद्ध की गयी अनुशासनिक कार्यवाहियों के निष्कर्षों को ध्यान में रखते हुएः
(i) यदि उधार लेने वाले विभाग के विभागाध्यक्ष की यह राय हो कि नियम 14 के खण्ड (i) से (iii) तक में विनिर्दिष्ट कोई भी शास्ति सरकारी कर्मचारी पर अधिरोपित की जानी चाहिए, तो वह नियुक्ति प्राधिकारी से परामर्श करके, मामले में ऐसे आदेश पारित कर सकेगा, जो वह आवश्यक समझे। परन्तु उधार लेने वाले विभाग के विभागाध्यक्ष और नियुक्ति प्राधिकारी के बीच कोई मतभेद होने की दशा में ऐसे सरकारी कर्मचारी की सेवाएं नियुक्ति प्राधिकारी के अधीन कर दी जायेंगी।

(ii) यदि उधार लेने वाले विभाग के विभागाध्यक्ष की यह राय हो कि नियम 14 के खण्ड (iv) से (vii) तक में विनिर्दिष्ट कोई भी शास्ति, सरकारी कर्मचारी पर अधिरोपित की जानी चाहिए तो वह उसकी सेवाएं नियुक्ति प्राधिकारी के अधीन कर देगा और जांच की कार्यवाहियां उसे भेज देगा और तब नियुक्ति प्राधिकारी यदि वह अनुशासनिक प्राधिकारी नहीं है, ऐसे आदेश पारित कर सकेगा, जो वह आवश्यक समझे या यदि वह अनुशासनिक प्राधिकारी नहीं है, तो सम्बन्धित अनुशासनिक प्राधिकारी को मामला भेज देगा, जो मामले में ऐसे आदेश पारित करेगा, जो वह आवश्यक समझेः परन्तु ऐसे कोई आदेश पारित करने में अनुशासनिक प्राधिकारी नियम-16 के उपनियम (10) व (11) के उपबन्धों की अनुपालना करेगा।

(21. अधि. सं. क्रमांक एफ. 3 (4)96 DOP/A-3/96 दिनांक 29-3-1997 द्वारा जोड़ा गया।)

22 नियम 20. अधीनस्थ सेवा, लिपिक वर्गीय सेवा और चतुर्थ सेवा के मामलों में सरकार से भिन्न, अन्य अनुशासनिक प्राधिकारी द्वारा पारित आदेश, अपील प्राधिकारी को संसूचित किये जायेंगे।

(22. Substituted by G.S.R. 46; No. F 3(13)Apptts. (A-III)79 dated 16- 08-1982)

भाग (vi) अपीलें

नियम 21. सरकार द्वारा दिये गये आदेशों की कोई अपील नहीं होगी-

इस भाग में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी नियम 14 में विनिर्दिष्ट शास्तियों में से कोई भी शास्ति लगाने वाले, सरकार द्वारा दिये गये, किसी आदेश के विरूद्ध कोई अपील नहीं होगी।

नियम 22. निलम्बन के आदेशों के विरुद्ध अपील- कोई सरकारी कर्मचारी निलम्बन आदेश के विरुद्ध, उस प्राधिकारी को अपील कर सकेगा, जिसके ठीक अधीनस्थ वह प्राधिकारी हो जिसने आदेश दिया हो या जिसके द्वारा दिया गया समझा जाए।

शास्तियां लगाने के विरुद्ध अपील

23 नियम-23 (1) अधीनस्थ सेवा, लिपिक वर्गीय सेवा या चतुर्थ श्रेणी सेवा का कोई सदस्य, उस पर नियम 14 में निर्दिष्ट शास्तियों में से कोई शास्ति अधिरोपित करने वाले, किसी आदेश के विरूद्ध, नीचे यथादर्शित प्राधिकारी को अपील कर सकेगा-

(1) अधीनस्थ सेवा प्रशासनिक विभाग में सरकार को,
(2) लिपिक वर्गीय सेवा प्रशासनिक विभाग में सरकार को,
(3) चतुर्थ श्रेणी सेवा विभागाध्यक्ष को,

तथापि राज्य सरकार, किसी सामान्य या विशेष आदेश के द्वारा, कोई अन्य प्राधिकारी विनिर्दिष्ट कर सकेगी, जिसको अनुशासनिक प्राधिकारियों में से किसी के द्वारा, इन नियमों के नियम 14 के अन्तर्गत शास्तियों में से, कोई शास्ति अधिरोपित करने वाले आदेश के विरुद्ध, अपील प्रस्तुत की जा सकेगी।

(2) राज्य सेवा का कोई सदस्य जिसके विरूद्ध, नियम 14 में विनिर्दिष्ट शास्तियों में से कोई शास्ति लगाने का आदेश सरकार के अतिरिक्त किसी प्राधिकारी द्वारा दिया गया हो तो वह ऐसे आदेश के विरूद्ध सरकार को अपील कर सकेगाः परन्तु राजस्थान उच्चतर न्यायिक सेवा या राजस्थान न्यायिक सेवा का सदस्य जिसके विरुद्ध सेवा से पदच्युति करने या सेवा मुक्त करने की शास्तियों के सिवाय नियम 14 में विनिर्दिष्ट शास्तियों में से कोई शास्ति लगाने का आदेश सरकार के अतिरिक्त किसी प्राधिकारी द्वारा दिया गया हो तो वह केवल ऐसी समिति को ही अपील कर सकेगा जिसमें मुख्य न्यायाधीश द्वारा नामजद राजस्थान उच्च न्यायालय के तीन न्यायाधीश होः परन्तु यह भी है कि राज्य सेवा का कोई सदस्य जिसके विरूद्ध आयुक्त विभागीय जांच गबन के जांच के मामलों में सौंपे गये प्राधिकार के अधीन विभागाध्यक्ष द्वारा नियम 14 में विनिर्दिष्ट शास्तियों में से कोई शास्ति लगाने का आदेश दिया जाए तो वह उक्त विभाग से सम्बन्धित प्रशासनिक विभाग में सरकार को अपील कर सकेगा।

(3) उपनियम (1) से (3) में विनिर्दिष्ट किसी बात के होते हुए भी नियम 18 के अधीन एक ही कार्यवाही में दिए गए किसी आदेश के विरूद्ध अपील उस प्राधिकारी को होगी जिसके ठीक अधीनस्थ उस कार्यवाही के लिए अनुशासनिक प्राधिकारी के रूप में कार्य करने वाला प्राधिकारी हो।

(4) जंहा इस नियम के अधीन की जाने वाली अपील सरकार को होती है तो उस पर विनिश्चय, लोक सेवा आयोग से परामर्श करने के बाद, जहां कहीं ऐसा परामर्श करना आवश्यक हो, किया जायेगा।

(23. Substituted by No. F. 3(3) Karmik (A-III) 79 dated 16-8- 1982.)

नियम 24. किसी भी अपील योग्य आदेश के मामलों में उक्त आदेश पारित करने वाला प्राधिकारी युक्ति युक्त समय के अन्दर आदेश की एक प्रमाणित प्रति उस व्यक्ति को निःशुल्क देगा जिसके विरुद्ध आदेश पारित किया गया है।

नियम 25. अपीलों के लिए परिसीमाः- इस भाग के अधीन कोई अपील तब तक ग्रहण नहीं की जाएगी जब तक कि वह उस दिन से तीन महीने की अवधि के अन्दर प्रस्तुत नहीं कर दी जाए, जिस दिन अपीलकर्ता को उस आदेश की प्रति प्राप्त हुई हो जिसके विरूद्ध अपील करनी होः
परन्तु अपील प्राधिकारी उपर्युक्त समय के समाप्त होने के बाद भी अपील ग्रहण कर सकेगा यदि उसका समाधान हो जाए कि अपील कर्ता के पास अपील के समय पर प्रस्तुत न करने के लिये पर्याप्त कारण थे।

नियम 26. अपील का रूप व अर्न्तवस्तु (1) अपील करने वाला प्रत्येक व्यक्ति पृथक रूप से तथा अपने स्वयं के नाम से अपील करेगा।

(2) अपील उस प्राधिकारी को, जिसके निर्णय के विरूद्ध अपील होती है को भेजी जावेगी। उसमें वह समस्त सारवान विवरण तथा तर्क जिन पर अपीलकर्ता निर्भर करता है, अन्तर्विष्ट होंगे। उसमें कोई अनादर पूर्ण या अनुचित भाषा का प्रयोग नहीं होगा तथा वह स्वयं में पूर्ण होगी।

27. अपील प्रस्तुत करना प्रत्येक अपील समुचित माध्यम से उस प्राधिकारी को प्रस्तुत की जावेगी। जिसके आदेश के विरूद्ध अपील की गई होः

परन्तु यदि ऐसा प्राधिकारी इस कार्यालय का अध्यक्ष नहीं है जिसमें अपीलकर्ता सेवा कर रहा हो या यदि वह सेवा में न हो तो उस कार्यालय का, जिससे वह अन्तिम बार सेवा कर रहा था, कार्यालयाध्यक्ष नहीं है, अथवा ऐसे कार्यालय के अध्यक्ष के अधीन नहीं हैं तो अपील ऐसे कार्यालय के अध्यक्ष को प्रस्तुत की जावेगी जो उसे तुरन्त उक्त अधिकारी को अग्रेषित करेगाः परन्तु यह और है कि अपील की प्रति अपील प्राधिकारी को सीधी प्रस्तुत की जा सकेगी।

नियम 28 अपीलों को रोके रखना

(1) वह प्राधिकारी जिसके आदेश के विरूद्ध अपील की गई हो, अपील को रोक सकेगा, यदि-

(i) वह अपील ऐसे किसी आदेश के विरूद्ध हो, जिसकी अपील न होती हो, या
(ii) उसमें नियम 26 के उपबन्धों में से किसी का पालन नहीं किया गया हो, या
(iii) वह नियम 25 में विनिर्दिष्ट अवधि के अन्दर प्रस्तुत न की गयी हो तथा विलम्ब का कारण भी नहीं बताया गया हो, या
(iv) वह किसी पूर्व निश्चित अपील की पुनरावृत्ति हो और कोई नए तथ्य या परिस्थितियां नहीं बताई गयी हों परन्तु इसमें कोई अपील जो केवल इस आधार पर रोकी गयी हो कि नियम 26 के उपबन्धों का अनुपालन नहीं किया गया हो तो, वह अपीलकर्ता को लौटा दी जाएगी और यदि उसको लौटाए जाने के एक मास के अन्दर
उपर्युक्त उपबन्धों का अनुपालन करने के बाद, वह पुनः प्रस्तुत की जाये तो रोकी नहीं जाएगी।

(2) जहां कोई अपील रोकी जाए तो अपील कर्ता को उस तथ्य तथा उसके कारणों के बारे में सूचित किया जाएगा।

(3) किसी प्राधिकारी द्वारा पिछली तिमाही में रोकी गयी अपीलों की एक सूची, उनके रोकने के कारणों सहित, उस प्राधिकारी द्वारा, अपील प्राधिकारी को प्रत्येक तिमाही के प्रारम्भ में प्रस्तुत की जाएगी।

नियम 29. अपीलों का परीषण (प्रेषण)-

(1) वह प्राधिकारी जिसके आदेश के विरूद्ध अपील की गयी है, किसी विलम्ब के बिना प्रत्येक अपील को, जो नियम 28 के अधीन नहीं रोकी गयी हो, उस पर स्वयं की टिप्पणी और सम्बन्धित अभिलेखों के साथ अपील प्राधिकारी को पारेषित करेगा।

(2) वह प्राधिकारी जिसको अपील होती हो, नियम 28 के अधीन रोकी गयी अपील को अपने पास पारेषित करने का निर्देश दे सकेगा और तदुपरान्त ऐसी अपील सम्बन्धित अभिलेखों और अपील रोकने वाले की टिप्पणी के साथ उस प्राधिकारी को पारेषित की जावेगी।

नियम 30 अपीलों पर विचार

(1) किसी निलम्बन आदेश के विरूद्ध की किसी अपील के मामलें में, अपील प्राधिकारी, विचार करेगा कि क्या नियम 13 के उपबन्धों को ध्यान में रखते हुए तथा उस मामले की परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए निलम्बन का आदेश न्याय संगत है या नहीं तथा तदुपरान्त आदेश को पुष्ट या रद्द करेगा।

(2) नियम 14 में विनिर्दिष्ट शास्तियों में से कोई शास्ति लगाने के आदेश के विरूद्ध की गई अपील के मामलें में, अपील प्राधिकारी निम्नांकित तथ्यों पर विचार करेगा कि-

(क) क्या इन नियमों में विहित प्रक्रिया का अनुपालन किया गया है और यदि नहीं, तो क्या ऐसे अनुपालन न करने से संविधान के किन्हीं उपबन्धों का अतिक्रमण हुआ है या न्याय नहीं हो पाया है;

(ख) क्या वे तथ्य जिनके आधार पर आदेश दिया गया था, सिद्ध किये जा चुके है;

(ग) क्या सिद्ध तथ्यों के आधार पर कोई आदेश देने के लिए पर्याप्त औचित्य है; और

(घ) क्या लगाई गई शास्ति अत्याधिक है, पर्याप्त है या अपर्याप्त है; और सरकारी कर्मचारी को, यदि वह ऐसा चाहे तो अपने मामले को स्पष्ट करने हेतु व्यक्तिगत सुनवाई का अवसर देने के पश्चात् और आयोग से परामर्श करने के बाद, यदि उस मामले में परामर्श करना आवश्यक हो तो-

(i) उस शास्ति को अपास्त करने, कम करने, पुष्ट करने या बढ़ाने या
(ii) मामले को, शास्ति लगाने वाले प्राधिकारी के पास या किसी अन्य प्राकिधारी के पास ऐसे निर्देश के साथ जैसा वह मामले की परिस्थितियों में उपर्युक्त समझे, विप्रेषित करने का, आदेश देगा।

परन्तु – (1) अपील प्राधिकारी ऐसी कोई वर्धित शास्ति नहीं लगायेगा। जिसको उस मामले में लगाने के लिए वह स्वयं या वह प्राधिकारी जिसके आदेश के विरूद्ध अपील की गयी है, सक्षम न हो,
(ii) वर्धित शास्ति लगाने का आदेश तब तक पारित नहीं किया जाएगा जब तक कि अपीलकर्ता को ऐसा कोई अभ्यावेदन करने का, जो कि वह ऐसी वर्धित शास्ति के विरूद्ध करना चाहे अवसर न दे दिया जाए,
(iii) यदि ऐसी वर्धित शास्ति, जिसके लगाने का अपील प्राधिकारी प्रस्ताव करे, नियम 14 के खण्ड (iv) से (vii) में निर्दिष्ट शास्तियों में से कोई एक हो और मामले में नियम 16 के अधीन जांच न की गयी हो तो अपील
प्राधिकारी नियम 19 के उपबन्धों के अध्यधीन स्वयं ऐसी जांच करेगा या ऐसी जांच करने के निर्देश देगा व उसके बाद ऐसी जांच की कार्यवाही पर विचार करके ऐसे आदेश पारित कर सकेगा जो वह उपयुक्त समझे।

नियम 31. अपील में दिए गए आदेशों का कार्यान्वहन वह प्राधिकारी जिसके आदेश के विरूद्ध अपील की गई है, अपील प्राधिकारी द्वारा पारित आदेशों को क्रियान्वित करेगा।

भाग-VII पुनरीक्षण एवं पुनर्विलोकन

(24. Substituted by G.S.R. 68; No. F.3(2)Karmik/A-III/82 dated 21-6-
1983.)

नियम 32 वह प्राधिकारी, जिसके पास नियम 14 में विनिर्दिष्ट शास्तियों में से कोई शास्ति लगाने के आदेश के विरूद्ध अपील होती हो और यदि उसकी कोई अपील न की गयी हो तो वह, स्वेच्छा से या अन्यथा, अपने अधीनस्थ किसी प्राधिकारी द्वारा की गई अनुशासनिक कार्यवाही के मामले के अभिलेख को मंगवा सकेगा तथा उनका परीक्षण कर सकेगा और यदि आवश्यक हो तो आगे अन्वेषण करने के बाद, ऐसे मामले में पारित किसी आदेश का पुनरीक्षण कर सकेगा तथा आयोग से परामर्श करने के बाद, जहां ऐसा परामर्श करना आवश्यक हो-

(क) आदेश को पुष्ट, संशोधन या निरस्त कर सकेगा;
(ख) कोई शास्ति लगा सकेगा या आदेश द्वारा लगाई गई शास्ति को अपास्त, कम, पुष्ट या वर्धित कर सकेगा;
(ग) मामले को उस प्राधिकारी को, जिसने आदेश दिया हो, या किसी अन्य प्राधिकारी को ऐसी आगे की कार्यवाही या जांच करने का निर्देश देते हुए, जैसा कि मामले की परिस्थितियों में वह उचित समझे, विप्रेषित कर सकेगा; या
(घ) ऐसा आदेश जो वह उपयुक्त समझे पारित कर सकेगा; परन्तु-

(1) किसी शास्ति को लगाने या वर्धित करने का कोई आदेश तब तक पारित नहीं किया जाएगा, जब तक कि, सम्बन्धित व्यक्ति को अभ्यावेदन करने का, जो वह ऐसी वर्धित शास्ति के विरूद्ध करना चाहे, अवसर न दिया गया हो।

25 (2) यदि अपील प्राधिकारी किसी ऐसे मामले जिसमें नियम 16 के अधीन कोई जांच नहीं की गयी हो, नियम 14 के खण्ड (iv) से (vii) में विनिर्दिष्ट शास्तियों में से कोई शास्ति लगाने का प्रस्ताव करे तो नियम 19 के उपबन्धों के अध्यधीन ऐसी जांच का निर्देश देगा और उसके बाद ऐसी जांच पर विचार करके ऐसा आदेश पारित करेगा जो वह उचित समझे।

(25. Substituted by G.S.R. 68; No. F3(2)Karmik/A-III/82 dated 21-6- 1983.)

(3) इस नियम के अधीन किसी कार्यवाही का प्रारम्भ, पुनरीक्षित किये जाने वाले आदेश के दिनांक से छः माह के पश्चात् नहीं किया जायेगा।

नियम 33. राज्य सेवाओं के सदस्यों के विरुद्ध अनुशासनिक मामलों में आदेशों का पुनर्विलोकन सरकार स्वेच्छा से या अन्यथा, उस मामले के अभिलेखों को मंगवा सकेगी जिसमें कि राज्य सेवाओं के किसी सदस्य पर नियम 14 में विनिर्दिष्ट शास्तियों में से कोई शास्ति लगाने वाला आदेश दिया गया हो, ऐसे किसी मामले में पारित किसी आदेश का पुनर्विलोकन कर सकेगी और आयोग से परामर्श करने के बाद जहां ऐसा परामर्श करना आवश्यक हो,

20 (क) आदेश की पुष्टि, उनका उपान्तरण या उनको अपास्त कर सकेगी,

(26. Substituted vide G.S.R. 129; No. F.3(17) Apptts. (A-III)/67 dated 9- 10-1974.)

(ख) कोई शास्ति अधिरोपित या अपास्त कर सकेगी, इसके द्वारा अधिरोपित किसी शास्ति को कम कर सकेगी या बढ़ा सकेगी।

परन्तु किसी शास्ति को वर्धित करने का आदेश तब तक नहीं दिया जाएगा तब तक कि सम्बन्धित व्यक्ति को, कोई अभ्यावेदन करने का जो वह ऐसी वर्धित शास्ति के विरूद्ध करना चाहे, अवसर न दे दिया गया हो:-

नियम 34-राज्यपाल की पुनर्विलोकन सम्बन्धी शक्तियों इन नियमों में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, राज्यपाल, स्वेच्छा से या अन्यथा, प्रकरणों के अभिलेखों को मंगाने के पश्चात् किसी आदेश का, जो इन नियमों या नियम

35 द्वारा निरसित नियमों के अधीन दिया गया हो या अपील योग्य हो, पुनर्विलोकन कर सकेगें और आयोग से परामर्श करने के बाद, जहाँ ऐसा परामर्श करना आवश्यक हो-

(क) आदेशों को पुष्ट, उपान्तरित या अपास्त कर सकेंगे, या

(ख) कोई भी शास्ति लगा सकेंगे या आदेश द्वारा लगाई गई शास्ति को अपास्त, कम या पुष्ट कर सकेंगे, या

(ग) मामले को, उस प्राधिकारी को जिसने आदेश दिया हो या किसी अन्य प्राधिकारी को, अन्य कार्यवाही या जांच का निर्देश देते हुए, जैसा कि वे मामले की परिस्थितियों में उचित समझें, विप्रेषित कर सकेंगे, या

(घ) ऐसे अन्य आदेश जैसा वे उपर्युक्त समझें, पारित कर सकेंगेः परन्तु यह (1) किसी शास्ति को लगाने या वर्धित करने का आदेश तब तक नहीं दिया जाएगा जब तक कि सम्बन्धित व्यक्ति को अभ्यावेदन करने का, जो वह ऐसी वर्धित शास्ति के विरूद्ध करना चाहे, अवसर न दे दिया गया हो।

2″ (ii) यदि राज्यपाल किसी ऐसे मामले में जिसमें नियम 16 के अधीन कोई जांच नहीं की गई है, नियम 14 के खण्ड (iv) से (vii) में विनिर्दिष्ट शास्तियों में से कोई शास्ति लगाने का प्रस्ताव करें तो वे नियम 19 के उपबन्धों के अधीन ऐसी जाँच का निर्देश देंगे और उसके बाद ऐसी जांच की कार्यवाही पर विचार करने के बाद ऐसा आदेश पारित करेंगे जो वे ठीक समझे।

(27. Substituted vide G.S.R. 68; No. F 3(2) Karmik/A-III/82 dated 21-6- 1983.)

20 पुनर्विलोकन की जाने वाली आज्ञा के दिनांक से तीन वर्ष से अधिक के बाद इस नियम के अधीन कोई कार्यवाही नहीं की जायेगी।

(28. Added by G.S.R. 29; No. F. 3(2)Karmik (A-III)/75 dated 25-7- 1975.)

भाग VIII प्रकीर्ण तथा अस्थायी

नियम 35. निरसन तथा व्यावृत्ति

(1) राजस्थान सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियन्त्रण तथा अपील) नियम, 1958 तथा ऐसे किन्हीं नियमों के अधीन जारी की गई अधिसूचना और दिये गये आदेश उस सीमा तक, एतद्वारा निरस्त किये जाते हैं जहां तक कि वे उन व्यक्तियों पर लागू होते हैं

जिन पर ये नियम लागू होते हैं और जहां वे अनुसूची में विनिर्दिष्ट सिविल सेवाओं के वर्गीकरण से सम्बन्धित हैं अथवा जहां तक वे नियुक्तियों करने, शास्तियों लगाने या अपील ग्रहण करने की शक्तियों प्रदान करते है:

परन्तु-

(क) ऐसा निरसन उक्त नियमों, अधिसूचनाओं और आदेशों अथवा तद्दीन पहले की गई किसी बात या कार्यवाही के प्रवर्तन को प्रभावित नहीं करेगा,

(ख) उक्त नियमों, अधिसूचनाओं या आदेशों के अधीन कोई कार्यवाहियों जो इन नियमों के प्रारम्भ के समय लम्बित थी चालू रहेगी और यथासम्भव इन नियमों के उपबन्धों के अनुसार निपटाई जाएगी।

(2) इन नियमों में कोई भी बात, ऐसे व्यक्ति को, जिस पर कि ये नियम लागू होते हों, अपील करने के लिये उस अधिकार से वंचित करने का प्रभाव नहीं करेगी जो कि इन नियमों के प्रारम्भ होने से पूर्व पारित किसी आदेश के सम्बन्ध में उसके उपनियम (1) द्वारा निरसित नियमों, अधिसूचनाओं या आदेशों के अधीन प्रोद्भूत हो चुका हो।

(3) इन नियमों के प्रारम्भ होने के समय लम्बित वाद में की गई अपील पर, जो किसी ऐसे आदेश के विरूद्ध हो जो इन नियमों के प्रारम्भ होने से पूर्व दिया गया था, इन नियमों के अनुसार विचार किया जाकर उस पर आदेश पारित किये जाऐंगे।

(29. Inserted vide Notification No. F. 3(2)Apptts. A/61 Gr. III dated 16-9-1961.)

नियम 36. संदेहों का निवारण- जहां कोई सन्देह उत्पन्न हो कि किसी कार्यालय का अध्यक्ष कौन है या कोई प्राधिकारी के अधीनस्थ है या उससे उच्चतर है या इन नियमों के उपबन्धों में से किसी उपबन्धों के विवेचन में या
उनकी योग्यता में सन्देह हो, तो मामला सरकार के नियुक्ति विभाग में निर्दिष्ट किया जायेगा, जिसका उस पर विनिश्चय अन्तिम होगा।

नियम 37. कतिपय अधिकारियों के लिए विशेष उपबन्ध- जहां कोई अधिकारी एकीकरण की योजनाओं में से किसी योजना में किसी पद पर नियुक्त नहीं किया गया है, तो वह राजस्थान में सम्मिलित उसी इकाई में उस पर लागू होने वाले नियमों में जिसमें उसने अन्तिम नियुक्ति धारण की हो, शासित होता रहेगा।

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