Site logo

स्वाभिमान: दया का एक अनदेखा पहलू


स्वाभिमान: एक छुपी हुई दया की कहानी

“क्या अजीब बात है, ये सेठ हफ्ते में 3-4 बार अपनी चप्पल कैसे तोड़ लेता है?” मोची की आंखें सामने की विशाल किराना दुकान पर टिकी थीं, जहाँ एक मोटे सेठ आराम से बैठे थे।

जब भी कोई काम नहीं होता, सेठ का नौकर मोची के पास टूटी चप्पल ले आता। मोची अपनी पूरी मेहनत और लगन से चप्पल को इतना मजबूत सी देता कि वह कहता, “अब तो यह 2-3 महीने नहीं टूटेगी।” नौकर हमेशा बिना मोलभाव किए पैसे दे देता। लेकिन 2-3 दिन बाद ही वही चप्पल फिर से टूटी हुई मोची के पास पहुंच जाती।

आज फिर वही दिन था, सुबह हुई, सूरज निकला, और सेठ… अपनी चप्पल तोड़ने में लगा था। जब चप्पल नहीं टूटी, तो उसने नौकर को बुलाया, “अरे रामधन, इसका कुछ कर, ये मंगू कौन से धागे से चप्पल सीलता है, टूटती ही नहीं।”

रामधन के मन में उथल-पुथल मची थी। वह सेठ से बोला, “सेठ जी, मुझे तो आपका यह हर बार का नाटक समझ में नहीं आता। खुद ही चप्पल तोड़ते हो और फिर मंगू के पास भेज देते हो।”

सेठ ने रामधन को टूटी चप्पल सौंपते हुए, गहरी सांस लेते हुए बोले, “देख रामधन, जिस दिन मंगू के पास कोई ग्राहक नहीं आता, उस दिन मैं जानबूझकर अपनी चप्पल तोड़ता हूँ। मुझे पता है कि मंगू गरीब है, पर उसमें स्वाभिमान है। अगर मेरे इस ‘नाटक’ से उसका स्वाभिमान बचता है और मैं उसकी मदद कर सकता हूँ, तो मुझे इसमें कोई हर्ज नहीं।”

रामधन की आँखें नम हो गईं। उसे समझ आ गया कि सच्ची दया और स्वाभिमान के मध्य सेठ ने एक अद्वितीय सेतु का निर्माण किया था। यह कहानी सिर्फ सेठ और मोची की नहीं, बल्कि मानवता के उस उज्ज्वल पक्ष की थी, जहाँ दया और स्वाभिमान साथ-साथ चलते हैं।

संदेश:

यह प्रसंग हमें यह सिखाता है कि सहायता के अनेक रूप हो सकते हैं, पर जब वह स्वाभिमान के साथ की जाती है, तो उसकी गरिमा और भी बढ़ जाती है। यह आपसी सम्मान और सहायता की भावना को मजबूत करता है।

आसमान साफ हो सकता है, पर कभी-कभी इंसानी भावनाओं के बादल भी बरसने के लिए तैयार होते हैं। ये कहानी हमें यही सिखाती है कि सद्भावना और दयालुता के जरिए हम एक-दूसरे के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकते हैं।

सदैव प्रसन्न रहिए। जो प्राप्त है, वह पर्याप्त है।