राजस्थान शिक्षा विभाग समाचार 2023

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Teacher | शिक्षक का अर्थ , शिक्षक व गुरु में अंतर व शिक्षक एक कम्पलीट व्यक्तित्व

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शिक्षक शब्द से सामान्य मतलब विद्या या ज्ञान सिखलाने वाले व्यक्ति से है। शिक्षक शब्द से आशय ऐसे व्यक्ति से है जो शिक्षण का कार्य करता है। सीखने-सिखाने की प्रक्रिया को सहजता और विशेषज्ञता के साथ करता है। भारत मे शिक्षक को अध्यापक, गुरु, टीचर, सर जैसे आदरसूचक शब्दों से सम्बोधित किया जाता है। शिक्षक व गुरु दोनों हिंदी भाषा के शब्द है लेकिन दोनों एक समान नही है दोनों में अंतर है।

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शिक्षक व गुरु में अंतर | difference between teacher and guru

शिक्षक को हम अंग्रेजी में Teacher कहते है लेकिन गुरु शब्द के लिए अंग्रेजी में समीचीन शब्द नही है। इसलिए अंग्रेजी में गुरु को Guru ही कहा जाता है। सामान्यतः शिक्षक व गुरु को समानार्थी शब्द समझा जाता है जबकि दोनों शब्दो मे बड़ा अंतर है। आइये, हम शिक्षक व गुरु दोनों के अंतर को समझने का प्रयास करते है-

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  • गुरु और शिक्षक में पहला अंतर यह है कि शिक्षक सिर्फ विषय विशेष के अध्यापन से जुड़ा होता है,जबकि गुरु अध्यापन से आगे जाकर जिन्दगी की हक़ीकत से भी रूबरू कराता है और उससे निपटने के गुर सिखाता है।
  • शिक्षक गुरु हो सकता है पर किसी गुरु को सिर्फ शिक्षक समझ लेना उचित नही है। उदाहरण के रूप में श्रीकृष्ण भगवान – अर्जुन की बात करेंगे तो यहां श्रीकृष्ण शिक्षक नही अपितु गुरु है वे अर्जुन को जीवन का मर्म व कर्म की प्रधानता को समझाते है।
  • शिक्षक पढाता है जबकि गुरु पढ़ाता नहीं, गढ़ता है। गढ़ना का मतलब है अपने शिष्य के व्यक्तित्व को एक नई ऊँचाई प्रदान करना। गुरु का काम यही है कि वह अपने शिष्य को तपाकर उसे एक आकार देकर उसे भविष्य के लिए तैयार करें।
  • शिक्षक द्वारा शिक्षण एक औपचारिक कार्य है जबकि गुरु द्वारा अनोपचारिक रूप से शिष्य को तराशा जाता है। माता,पिता,भाई,बहन,तमाम रिश्तेदार,तमाम जानकार,जिनसे हमें दिन में कई बार संपर्क करना पड़ता है,सब गुरु हो सकते हैं। सबके पास जिन्दगी के अनुभव हैं। हम उनके दैनिक क्रियाकलापों को देखकर ही बहुत कुछ सीखते हैं।
  • गुरु आपके अन्त:करण और आपकी आत्मा पर दृष्टि रखता है, शिक्षक पाठ्यक्रम पर !
  • शिक्षक बदलते रहते हैं… जीवन की विभिन्न कक्षाओं के हिसाब से पर गुरु एक ही रहते हैं !
  • शिक्षक हमारा रिजल्ट बनाते हैं। गुरु हमारा जीवन बनाते हैं !
  • शिक्षक का क्षेत्र सीमित होता है जबकि गुरु का क्षेत्र व्यापक होता है।
  • शिक्षक बनने के लिए प्रशिक्षण प्राप्त करना पड़ता है जबकि गुरु अपने ज्ञान से पद प्राप्त करता है।

शिक्षक स्वयम् में एक “कम्प्लीट व्यक्तित्व” ।

“गुरु गोविन्द दोउ खड़े, किसके लागु पाय बलिहारी गुरु आपकी, गोविन्द दियो बताय।।”

दुनिया का हर प्रोफेशन अपने ज्ञान क्षेत्र में संकलन, अध्ययन, वर्गीकरण व निर्णय हेतु बाह्य कारको पर निर्भर रहता है, इसके विपरीत शिक्षक जब शिक्षण कार्य में सलग्न होता है तब यह प्रक्रिया स्वतः ही स्वाभाविक रूप से घटित होती हैं।

रामायण व महाभारत युग में भी एक गुरु के नाम से उनका गुरुकुल स्थापित, संचालित व विकसित होता था, जैसे द्रोणाचार्य जी का गुरुकुल, कृपाचार्य जी का गुरुकुल इत्यादि। ये गुरु ही अपने ज्ञान के अनुसार अपने गुरुकुल का पाठ्यक्रम, दशा-दिशा, नियम – विधान तय करते थे। राज्य का उन पर सीधा नियंत्रण नहीं था। राजा इन गुरुकुलों को पूर्ण स्वायतता के साथ ही सम्मान प्रदान करते थे।

साधारण नागरिको के बच्चे ” पोशाल” में अध्ययन करते थे। इनकी प्रमुख विशेषता अनुशासन व एकल शिक्षक होना था। शिक्षा के यह केंद्र सामान्य नागरिको हेतु जीवनयापन हेतु प्राथमिक शिक्षा प्रदान करते थे। इनके संचालक ” गुरासा” समाज से अत्यंत अल्प सहयोग प्राप्त कर अपने विचारानुसार ही अपनी संस्था संचालित करते थे।

आज के इस प्रोफेशनल युग में निजी क्षेत्रो के प्रतिष्ठीत शिक्षण संस्थान भी किसी एक व्यक्ति विशेष की सोच के अनुसार ही पल्लवित हुए है। इन संस्थानों की सफलता में प्रवर्तक शिक्षक की सोच, विचारधारा व कार्यशैली की सीधी दखल देखी जा सकती हैं।

एक संस्थान अपने जीवन में कई दौर देखता है। अध्ययन करेंगे तो पाएंगे कि किसी एक व्यक्ति विशेष के कार्यकाल में संस्थान ने अभूतपूर्व ख्याति अर्जित की थी। उस दौर में उस व्यक्ति विशेष द्वारा अपनी सोच के साथ अपनी सम्पूर्ण ऊर्जा का निवेश कर सभी को नेतृत्व प्रदान किया था।

आज जितने भी शिक्षण तरीके या नवाचार है वे कठोरतम सामजिक स्थितियों में एकल प्रयासों से ही प्रस्फुटित हुए है। शिक्षा क्षेत्र के ये ” स्कुल ऑफ़ थॉट्स” एकल व्यक्ति ही रहे हैं।

एकल व्यक्ति अवधारणा का यह मतलब कदापि नहीं है कि ” समूह ” महत्वहीन है, अपितु ये कहना उचित है कि शिक्षा में ” एकल ” व ” समूह ” एक दूसरे को गतिमान करते है, मोमेंटम प्रदान करते है। “एकल” रूप में शिक्षक अन्वेषण करता है एवम् ” समूह ” रूप में कार्य कर उदाहरण प्रस्तुत करता है एवम् परिणाम में सामूहिक सम्पति रूप में समाज को श्रेष्ट संस्था प्राप्त होती है।

सादर।

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