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जीवन को उत्कृष्ट बनाने का एकमात्र साधन

जीवन को उत्कृष्ट बनाने का एकमात्र साधन

जीवन को उत्कृष्टता की ओर ले जाने का, पूर्णता का अनुभव करने का, लक्ष्यप्राप्ति की अंतिम मंजिल तक पहुँचने का एकमात्र उपाय अध्यात्म ही है। इससे लोक और परलोक दोनों की सार्थकता सुनिश्चित होती है। परलोक में स्वर्ग और मुक्ति का लाभ उसे ही मिलता है जो अपने अंत:करण को आध्यात्मिक आदर्शों के अनुरूप ढाल लेने में सफल होता है। आत्मसाक्षात्कार, ईश्वर-दर्शन एवं ब्रह्मप्राप्ति की उपलब्धि का एक ही मार्ग है – आत्मा पर चढ़े मल-आवरणों को हटाकर उसे शुद्ध स्वरूप में विकसित करना।

लौकिक जीवन का प्रत्येक क्षेत्र उसी के लिए मंगलमय बनता है जिसने अपने गुण, कर्म, स्वभाव एवं दृष्टिकोण को परिष्कृत कर लिया है। श्रेयपथ पर चलने वाले लोग ही महापुरुष बनते हैं और इतिहास में अपना अनुकरणीय आदर्श छोड़ जाते हैं। इस शरीर को अमर बनाने का सौभाग्य ऐसे ही कर्मठ लोगों को मिलता है।

सुदृढ़ स्वास्थ्य, समर्थ मन, स्नेह-सहयोग, क्रिया-कौशल, समुचित धन, सुदृढ़ दांपत्य, सुसंस्कृत संतान, प्रगतिशील विकास-क्रम, श्रद्धा, सम्मान, सुव्यवस्थित एवं संतुष्ट जीवन का आधार केवल एक ही है – “अध्यात्म”। अपने को सुधारने से संसार सुधर जाता है। अपने को ठीक कर लेने से चारों ओर का वातावरण ठीक बनने में देर नहीं लगती।

जो अपने को सुधार न सका, अपनी गतिविधि को सुव्यवस्थित न कर सका, उसका इहलौकिक और पारलौकिक भविष्य अंधकारमय ही बना रहेगा। जो इस लोक को नहीं सँभाल सका उसका परलोक क्या सँभलेगा? जो इस जीवन में नारकीय मनोभूमि लिए बैठा है, उसे परलोक में स्वर्ग मिलेगा, ऐसी आशा करना व्यर्थ है। स्वर्ग की रचना इसी जीवन में करनी पड़ती है, दुष्प्रवृत्तियों के भव-बंधनों से इसी जीवन में मुक्त होना पड़ता है, परलोक में यही सफलताएँ साकार बन जाती हैं। इसलिए मनीषियों ने मनुष्य की सबसे बड़ी बुद्धिमत्ता उसकी आध्यात्मिक प्रवृत्ति को ही माना है।