राजकीय व्यवस्थाओं में राज्य सरकार, संबंधित मंत्री अपने-अपने विभागों के लिए नीति-निर्धारक होते हैं व योजनाओं का क्रियान्वयन करते हैं। सरकारी विभाग ग्राम- तहसीलों स्तर तक हैं। यदि संबंधित विभाग द्वारा केंद्रीयकृत स्तर पर ही कार्यक्रमों का संचालन, संयोजन व समन्वय किया जाए तो प्रभावी क्रियान्वयन नहीं हो पाएगा, चूंकि वृहत् जन है। अतः राजकीय विभागों में पदानुक्रम व Hierarchy बनाई गई, जिससे Grassroot स्तर पर संचालन व निरीक्षण संभव हो सके। प्रत्येक विभाग का प्रशासनिक विभाग है, जो संबंधित विभाग का विभागाध्यक्ष घोषित करता है, जो एक अथवा अधिक भी हो सकते हैं। विभागाध्यक्ष अपने अधीन विभाग के कार्यालयों हेतु कार्यालयाध्यक्ष घोषित करता है, जो उस विभाग के जिले अथवा संभागों में स्थित कार्यालयों के प्रभारी होते हैं। बड़े विभागों में अत्यंत प्रभावी क्रियान्वयन हेतु विभागाध्यक्ष द्वारा दो या दो से अधिक कार्यालयाध्यक्षों के ऊपर प्रादेशिक प्राधिकारी भी घोषित किए जाते हैं। उक्तव्यवस्था में कार्यालयाध्यक्ष विभागाध्यक्ष को रिपोर्ट करते हैं अथवा यदि प्रादेशिक प्राधिकारी है, तो प्रादेशिक प्राधिकारी को रिपोर्ट करते हैं व प्रादेशिक प्राधिकारी विभागाध्यक्ष को रिपोर्ट करते हैं, विभागाध्यक्ष अपने विभाग की समस्त जानकारी संकलित कर प्रशासनिक विभाग को रिपोर्ट करते हैं। प्रशासनिक विभाग, संबंधित मंत्री व राज्य सरकार तक सूचनाएं पहुँचाते हैं व अपने विभाग के अधिकारियों द्वारा जनकल्याणकारी योजनाओं, नीतियों को उपरोक्त पदानुक्रम से शासन की न्यूनतम इकाई तक पहुंचाते हैं। यदि कोई स्वतंत्र कार्यालय है तो वहां का प्रभारी कार्यालयाध्यक्ष हो यह आवश्यक नहीं है, चूंकि कार्यालयाध्यक्ष विभागाध्यक्ष द्वारा औपचारिक घोषित किया जाता है।
कार्यालयाध्यक्ष पद नहीं है, अपितु किसी पदाधिकारी को कार्यालयाध्यक्ष के रूप में कार्य करने हेतु Authorisation है। जैसे कोषाधिकारी का मूल पद कोषाधिकारी है एवं उसका कार्य राजकीय व्ययों को अधिकृत करना व जिले के लेखों का संकलन करना है। अधिशाषी अभियंता का पद अधिशाषी अभियंता है व उसका कार्य निर्माण, अनुरक्षण, मरम्मत कराना है, परंतु उपरोक्त दोनों ही कार्यालयाध्यक्ष घोषित हैं। अतः इनके समान दायित्व इस Authorisation से उत्पन्न हुए हैं, जो कार्यालय संचालन के लिए आवश्यक है। सभी कार्यालयों में यदि कोई पदाधिकारी कार्यालयाध्यक्ष घोषित है तो उनके समान कार्य कार्यालयाध्यक्ष की सक्षमता में निम्न प्रकार होंगे: (कार्यालयाध्यक्ष के कर्तव्य व दायित्व सामान्य वित्तीय एवं लेखा नियमों के परिशिष्ट-1 में दिये गये हैं)
1. कार्यालय के समस्त कार्मिकों के वेतन भत्ते आहरित करना व उन्हें वितरित करना। 2. कार्यालय की आवश्यकताओं के क्रम में उपापन करना व विभिन्न भुगतानों को प्राधिकृत करना।
3. नियमानुसार अग्रिम आहरण करना, स्थायी अग्रिम स्वीकृत करना, अस्थायी अग्रिम कार्मिक को आवश्यकता के क्रम में स्वीकृत करना व उनका समायोजन करना ।
4. कैश बुक सत्यापन करना ।
5. सेवा पुस्तिकाओं की प्रविष्ठियाँ प्रमाणित करना।
6. स्टोर प्रभारी कार्य करना व स्टोर का भौतिक सत्यापन करना।
7. कार्मिक के अवकाश आवेदनों पर विचार कर स्वीकृत अस्वीकृत करना।
8. वार्षिक वेतन वृद्धियां स्वीकृत करना।
9. ए.सी.पी. इत्यादि प्रकरणों को जाँचकर नियुक्ति प्राधिकारी को प्रेषित करना ।
10. कार्यालय का बजट तैयार कर विभागीय बजट में सम्मिलित कराना।
11. कार्यालय का सामान्य प्रशासन ।
12. विभिन्न ऑडिट पैरा व अन्य आपत्तियों के क्रम में कार्यवाही व वसूलियां करना ।
13. अवधि पार दावों को जांच पश्चात् प्री- चैक कर भुगतान करना ।
14. कार्यालय के लेखों को बनाना ।
15. कार्यालय के लेखों को संकलित करना ।
16. GA 55, GA 55-A, LPC इत्यादि जारी करना ।
राजकीय व्यय सभी स्तरों पर नहीं किया जा सकता। इसे करने की सक्षमता 4 स्तरों पर ही राज्य सरकार द्वारा प्रत्यायोजित है, जो कि कार्यालयाध्यक्ष, प्रादेशिक प्राधिकारी, विभागाध्यक्ष व प्रशासनिक विभाग है अर्थात् इन चार स्तरों पर ही राजकीय धन का व्यय किया जा सकता है एवं ये ही उपापन कर सकते हैं।
प्रत्येक कार्यालयाध्यक्ष DDO ( Drawing & Disbursing Officer) होता है अर्थात् राजकीय धन के आहरण व उसके वितरण (संबंधित को भुगतान) की सक्षमता उसमें निहित होती है। कार्यालयाध्यक्ष कां कार्यों की अधिकता होती है व बड़े संस्थापनों में उपरोक्त सम्पूर्ण कार्यों हेतु कार्यालयाध्यक्ष को कठिनाई उत्पन्न हो सकती है अतः कार्यालयाध्यक्ष को यह शक्ति दी गई है कि वह चाहे तो अपनी आहरण व वितरण शक्तिअपने अधीन किसी राजपत्रित अधिकारी को सौंप सकता है, किंतु वह राजपत्रित अधिकारी उसके सीधे नियंत्रण में (Direct Subordinate) होना चाहिए अर्थात् कार्यालयाध्यक्ष अपनी आहरण वितरण शक्ति प्रत्यायोजित कर सकता है, परंतु ऐसे प्रत्यायोजनों में घोषित आहरण वितरण अधिकारी (डीडीओ) राजपत्रित अधिकारियों को छोड़कर अन्यों के ही आहरण एवं वितरण कर सकता है अर्थात् राजपत्रित अधिकारियों के वेतन एवं भत्तों से संबंधित बिलों या आदेशों पर हस्ताक्षर नहीं कर सकता। आहरण एवं वितरण अधिकारी घोषित करने से कार्यालयाध्यक्ष बिल के सही होने अथवा भुगतान हेतु स्वयं की जिम्मेदारी से मुक्त नहीं होता है। प्रत्येक कार्यालयाध्यक्ष डीडीओ होता है, परंतु प्रत्येक डीडीओ कार्यालयाध्यक्ष नहीं होता ।
सामान्य वित्तीय एवं लेखा नियमों के नियम 135 के अंतर्गत कार्यालयाध्यक्ष अपने अधीनस्थ राजपत्रित सरकारी कर्मचारी को समस्त सरकारी कर्मचारियों की सेवा पुस्तिकाओं सेवा पंजियों में प्रविष्टियों को अनुप्रमाणित करने की शक्तियां प्रत्यायोजित कर सकता है तथा इन दस्तावेजों को उसकी व्यक्तिगत अभिरक्षा में रखने के लिए प्राधिकृत कर सकता है परंतु शतं यह है कि कार्यालयाध्यक्ष सेवा पुस्तिकाओं / सेवा पंजियों के उचित संधारण तथा प्रविष्टियों के अनुप्रमाणन के लिए एवं उनकी अभिरक्षा के लिए उत्तरदायी रहेगा। कार्यालयाध्यक्ष प्रत्येक वर्ष इन दस्तावेजों में से कम से कम 10 प्रतिशत की जाँच करेगा तथा ऐसी जाँच किए जाने के प्रमाण में उन प्रविष्टियों पर अपने लघु हस्ताक्षर करेगा। अधीनस्थ राजपत्रित सरकारी कर्मचारी की सेवा पुस्तिकाओं / सेवा पंजियों में इस प्रकार प्राधिकृत की गयी प्रविष्टियाँ कार्यालयाध्यक्ष द्वारा अनुप्रमाणित की जायेंगी जो कि उनकी अभिरक्षा के लिए उत्तरदायी होगा।
सामान्य वित्तीय एवं लेखा नियमों के नियम 77 के अनुसार नमूने के हस्ताक्षर (Specimen Sign) कार्यालयाध्यक्ष / आहरण एवं वितरण अधिकारी / प्रादेशिक अधिकारी / विभागाध्यक्ष या चैकों को आहरित करने अथवा बिलों पर हस्ताक्षर या प्रतिहस्ताक्षर करने के लिए प्राधिकृत कोई भी प्राधिकारी निम्नलिखित प्रारूप में अपने हस्ताक्षर अपने से उच्चतर अधिकारी या अन्य अधिकारी जिसके कि नमूने के हस्ताक्षर पहले से कोषागार या बैंक में है, के मार्फत कोषागार या बैंक में भिजवायेगा। जब कोई ऐसा अधिकरी किसी अन्य अधिकारी को अपने पद का कार्यभार संभलाता है, तो वह भी कार्यभार संभालने वाले अधिकारी के नमूने के हस्ताक्षर कोषागार / बैंक को भिजवायेगा।
एक ही कार्यालय या स्थापन के संबंध में विभागाध्यक्ष द्वारा एक से अधिक राजपत्रित अधिकारी को कार्यालयाध्यक्ष घोषित नहीं किया जा सकता, जब तक कि कार्यालय या स्थापन एक-दूसरे से स्पष्ट रूप से प्रथक् न हों। कार्यालयाध्यक्ष घोषित करने के आदेश का आदर्श प्रारूप सामान्य वित्तीय एवं लेखा नियमों के अनुलग्नक’ क’ में दिया गया है, जो निम्न प्रकार है:-
सामान्य वित्तीय एवं लेखा नियमों के नियम 3 के अधीन मुझे प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए (पदनाम) को उसके कार्यालय के संबंध में सरकार के वित्तीय नियमों के प्रयोजनार्थ कार्यालयाध्यक्ष घोषित करता हूँ (पदनाम)
वित्तीय नियमों एवं समय-समय पर जारी किए गए आदेशों के अधीन कार्यालयाध्यक्ष को प्रत्यायोजित समस्त वित्तीय एवं अन्य शक्तियों का प्रयोग करेगा। कर्त्तव्य एवं दायित्व सामान्यतया सरकार के सामान्य वित्तीय एवं लेखा नियमों के विभिन्न उपबन्धों में निर्धारित किए गए हैं।
महत्वपूर्ण कर्त्तव्यों का सारांश परिशिष्ट-1 में दिया गया है।
(पदनाम) विशेष रूप से निम्नलिखित कर्तव्यों का पालने करेंगे:-
स्वतंत्र कार्यालय अथवा वह कार्यालय जहाँ कार्यालयाध्यक्ष घोषित है एक प्रशासनिक इकाई है व प्रशासनिक अनुक्रम में न्यूनतम स्तर की है। कार्यालयाध्यक्ष प्रशासनिक संचालन व विभागाध्यक्ष को रिपोर्ट करने व संबंधित विभाग की राज्य की नीतियों को लागू करने हेतु शक्तिप्राप्त अधिकारी है। सेवा पुस्तिका संधारण, प्रविष्टियाँ, अवकाश स्वीकृक्ति, वार्षिक वेतन वृद्धि स्वीकृति इत्यादि हेतु कार्यालयाध्यक्ष को अपने कार्यालय के अधीनस्थ कार्मिकों हेतु ही सक्षमता है। कार्यालयाध्यक्ष की स्वयं की सेवापुस्तिका विभागाध्यक्ष के पास एवं व्यक्तिगत दावे विभागाध्यक्ष द्वारा स्वीकृत किये जाएंगे। कार्यालयाध्यक्ष स्वयं के वेतन भत्ते आहरित कर सकता है। कार्यालयाध्यक्ष के कार्यालय के लिए सामान्य वित्तीय एवं लेखा नियमों के नियम 212 के अंतर्गत स्थायी अग्रिम /स्थाई पेशगी / Imprest कार्यालयाध्यक्ष द्वारा ही स्वीकृत किया जा सकता है।