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वैश्वीकरण की समझ: एनसीईआरटी कक्षा 10 सामाजिक विज्ञान के ‘वैश्विक दुनिया का निर्माण’ में एक विस्तृत अंतर्दृष्टि

भूमण्डलीकृत विश्व का बनना

1. प्रस्तावना

  • वैश्वीकरण का संक्षिप्त विवरण: आज की दुनिया में अलग-अलग देशों के बीच सीमाओं का कम होते जाना और आपसी जुड़ाव बढ़ना ही वैश्वीकरण है। यह आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक स्तरों पर अंतरराष्ट्रीय संबंधों को गहरा करता है।
  • वैश्वीकरण के इतिहास का अध्ययन क्यों प्रासंगिक है:
    • यह हमें समझने में मदद करता है कि हम आज जिस परस्पर जुड़ी दुनिया में रहते हैं, वह कैसे विकसित हुई है।
    • यह हमें वैश्वीकरण के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रभावों को समझने में सक्षम बनाता है।
    • यह हमें भविष्य में वैश्वीकरण के बेहतर प्रबंधन के लिए रणनीतियां विकसित करने में मदद करता है।

ध्यान दें: वैश्वीकरण का इतिहास प्राचीन काल से ही शुरू होता है। व्यापारियों, यात्रियों, धर्मगुरुओं और श्रमिकों की लगातार आवाजाही ने सदियों से विभिन्न संस्कृतियों के बीच संपर्क और विचारों के आदान-प्रदान को बढ़ावा दिया है। 19वीं सदी में तकनीकी विकास और औद्योगिक क्रांति के कारण वैश्वीकरण में तेजी आई। आज के आधुनिक वैश्वीकरण का चरित्र 20वीं और 21वीं सदी में सूचना क्रांति और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के उद्भव से और अधिक परिभाषित हुआ है।

2. पूर्व-आधुनिक युग

पूर्व-आधुनिक काल (लगभग 1500 ईस्वी तक) में वैश्विक स्तर पर जुड़ाव के कई महत्वपूर्ण कारक थे:

1. प्राचीन व्यापार मार्ग और उनका महत्व:

  • सिल्क रोड: यह चीन, मध्य एशिया, भूमध्यसागरीय क्षेत्र और पश्चिम के बीच सदियों से एक महत्वपूर्ण व्यापार मार्ग था। इस मार्ग पर रेशम, मसाले, कागज, मिट्टी के पात्र और अन्य सामानों का व्यापार होता था।
  • हिंद महासागर व्यापार: पूर्वी अफ्रीका से चीन तक फैला यह मार्ग मसालों, सोने, चांदी, कपास और अन्य सामानों के व्यापार के लिए प्रसिद्ध था। इस व्यापार में भारतीय व्यापारी प्रमुख भूमिका निभाते थे।
  • ट्रान्स-सहारन व्यापार: यह मार्ग पश्चिम अफ्रीका को भूमध्यसागरीय क्षेत्र से जोड़ता था। इस मार्ग पर सोने, नमक, हथियारों और गुलामों का व्यापार होता था।

2. पूर्व-आधुनिक युग में सांस्कृतिक और आर्थिक आदान-प्रदान:

  • धर्म के प्रसार: बौद्ध धर्म और ईसाई धर्म जैसे धर्म व्यापार मार्गों के साथ फैले और विभिन्न संस्कृतियों को प्रभावित किया।
  • कला और साहित्य का आदान-प्रदान: व्यापारियों और यात्रियों ने कला, साहित्य और वास्तुकला की शैलियों को एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र तक पहुंचाया।
  • तकनीकी ज्ञान का प्रसार: कागज बनाने की विधि, बारूद, कंपास और छपाई प्रेस जैसी तकनीकों का आविष्कार एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचा और समाजों के विकास को प्रभावित किया।

3. विजय और साम्राज्यों की भूमिका:

  • अशोक साम्राज्य: मौर्य साम्राज्य के शासक, अशोक, तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में बौद्ध धर्म के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके साम्राज्य की व्यापकता ने विभिन्न संस्कृतियों के बीच संपर्क को बढ़ावा दिया।
  • रोमन साम्राज्य: भूमध्यसागरीय क्षेत्र में रोमन साम्राज्य व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान का एक केंद्र था। उन्होंने एक कानूनी व्यवस्था, सड़कों का नेटवर्क और एक आम मुद्रा का विकास किया जिसने पूरे क्षेत्र को एक साथ जोड़ा।
  • चंगेज खान का साम्राज्य: 13वीं शताब्दी में स्थापित चंगेज खान के साम्राज्य ने एशिया में व्यापार मार्गों को एकजुट किया और पूर्व-पश्चिम के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा दिया।

ये कुछ उदाहरण हैं जो दिखाते हैं कि पूर्व-आधुनिक युग में आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक संपर्क वैश्वीकरण की नींव रखते थे। भले ही उस समय के तकनीकी साधन सीमित थे, विचारों, वस्तुओं और लोगों का प्रसार लगातार हो रहा था, जो आज की परस्पर जुड़ी दुनिया का आधार बन गया है।

3. उन्नीसवीं सदी (1815-1914)

उन्नीसवीं सदी वैश्वीकरण के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। इस दौरान कई कारकों ने वैश्विक स्तर पर आर्थिक और सांस्कृतिक जुड़ाव को तेज गति प्रदान की।

1. औद्योगिक क्रांति का वैश्विक व्यापार पर प्रभाव:

  • उत्पादन में वृद्धि: औद्योगिक क्रांति ने कारखानों और मशीनों के विकास के साथ बड़े पैमाने पर उत्पादन का मार्ग प्रशस्त किया। इससे वस्तुओं की उपलब्धता और व्यापार की मात्रा में भारी वृद्धि हुई।
  • परिवहन क्रांति: स्टीम इंजन और जहाजों के आविष्कार ने समुद्री और रेलवे परिवहन में क्रांति ला दी। इससे माल की ढुलाई की लागत कम हो गई और वैश्विक व्यापार में सुगमता आई।
  • संचार में प्रगति: टेलीग्राफ के आविष्कार ने दूरस्थ इलाकों के बीच संचार को तेज़ और विश्वसनीय बना दिया, जिससे वैश्विक व्यापार में समन्वय में सुधार हुआ।

2. उपनिवेशवाद और वैश्विक आर्थिक गतिशीलता पर इसके प्रभाव:

  • यूरोपीय शक्तियों का विस्तार: 19वीं सदी में यूरोपीय शक्तियों ने एशिया, अफ्रीका और अमेरिका के अधिकांश हिस्सों को उपनिवेश बना लिया। इससे कच्चे माल के स्रोतों और उपभोक्ता बाजारों तक उनकी पहुंच बढ़ गई।
  • असमान विनिमय: उपनिवेशों से कच्चे माल को सस्ते में प्राप्त किया जाता था और तैयार माल को उन बाजारों में ऊंचे दामों पर बेचा जाता था। इस असमान विनिमय ने यूरोपीय शक्तियों को समृद्ध किया लेकिन उपनिवेशों को आर्थिक रूप से कमजोर बना दिया।
  • वैश्विक श्रम विभाजन: उपनिवेशवाद ने विभिन्न क्षेत्रों के बीच श्रम का एक वैश्विक विभाजन को जन्म दिया। यूरोपीय देश औद्योगिक वस्तुओं का उत्पादन करते थे, जबकि उपनिवेशों में कच्चे माल का उत्पादन होता था।

3. तकनीकी प्रगति और वैश्विक संपर्क में उनकी भूमिका:

  • टेलीग्राफ और केबल संचार: दूरसंचार प्रौद्योगिकी के विकास ने वैश्विक व्यापार में समन्वय और सूचना के आदान-प्रदान को सुगम बनाया।
  • स्टीमशिप और रेलवे परिवहन: परिवहन प्रौद्योगिकी में प्रगति ने वैश्विक स्तर पर लोगों और माल की आवाजाही को तेज और अधिक कुशल बना दिया।
  • सुएज नहर का निर्माण: 1869 में सुएज नहर के खुलने से एशिया और यूरोप के बीच समुद्री मार्ग कम हो गया, जिससे व्यापार की लागत कम हुई और व्यापार की मात्रा बढ़ी।

4. वैश्विक बाजारों का उदय और अंतरराष्ट्रीय व्यापार समझौते:

  • उन्नीसवीं सदी के अंत तक, औद्योगिक क्रांति और वैश्विक व्यापार में वृद्धि के कारण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वस्तुओं की मांग और आपूर्ति में समानता आने लगी।
  • इसके परिणामस्वरूप, वैश्विक बाजारों का उदय हुआ, जहां वस्तुओं की कीमतें आपूर्ति और मांग के अंतरराष्ट्रीय बलों द्वारा निर्धारित की जाती थीं।
  • अंतरराष्ट्रीय व्यापार समझौते, जैसे मोस्ट फेवर्ड नेशन क्लॉज, का विकास हुआ, जिसने देशों के बीच व्यापार को कम प्रतिबंधित करने का प्रयास किया।

उन्नीसवीं सदी में हुई इन घटनाओं ने आधुनिक वैश्वीकरण का आधार तैयार किया। वैश्विक स्तर पर व्यापार, निवेश और लोगों की आवाजाही में वृद्धि हुई, जिसने दुनिया को पहले से कहीं अधिक परस्पर जुड़ा हुआ बना दिया।

4. अंतरयुद्ध काल का अर्थशास्त्र (1918-1939)

पहला विश्व युद्ध समाप्त होने के बाद का दौर, जिसे अंतरयुद्ध काल के नाम से जाना जाता है, आर्थिक उथल-पुथल और राजनीतिक अस्थिरता का समय था। आइए देखें इस दौरान हुए प्रमुख आर्थिक विकास को:

1. प्रथम विश्व युद्ध के आर्थिक परिणाम:

  • विनाश और कर्ज का बोझ: युद्ध ने यूरोप में बड़े पैमाने पर विनाश का कारण बना, खेतों और कारखानों को नष्ट कर दिया, लाखों लोगों की जान ली और देशों को भारी कर्ज में डूबो दिया।
  • मुद्रास्फीति: युद्ध के दौरान सरकारों ने युद्ध खर्चों को पूरा करने के लिए मुद्रा की अत्यधिक छपाई का सहारा लिया, जिससे मुद्रास्फीति बढ़ गई और लोगों की क्रय शक्ति कम हो गई।
  • व्यापार का ठहराव: युद्ध के दौरान व्यापार मार्ग बाधित हुए और देशों के बीच व्यापारिक संबंध कमजोर पड़ गए, जिससे वैश्विक आर्थिक गतिविधि में गिरावट आई।

2. महामंदी: कारण और वैश्विक प्रभाव:

  • 1929 में अमेरिकी शेयर बाजार धराशायी हो गया, जिससे महामंदी का दौर शुरू हुआ।
  • बैंकों का दिवालियापन और ऋण की कमी: शेयर बाजार गिरने से लोगों ने बैंकों से पैसा निकालना शुरू कर दिया, जिससे बैंक दिवालिया हो गए और ऋण का प्रवाह कम हो गया।
  • व्यापार युद्ध और संरक्षणवाद: महामंदी से बचने के लिए कई देशों ने अपने बाजारों की रक्षा के लिए संरक्षणवादी नीतियां अपनाईं, जिससे वैश्विक व्यापार में और गिरावट आई।
  • बेरोजगारी और सामाजिक अशांति: महामंदी के कारण बड़े पैमाने पर बेरोजगारी हुई, जिससे सामाजिक अशांति और राजनीतिक अस्थिरता बढ़ी।

3. विभिन्न देशों की राजनीतिक और आर्थिक नीतियों में बदलाव:

  • अमेरिका: राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट ने न्यू डील कार्यक्रम लागू किया, जो सरकारी खर्च बढ़ाकर और सामाजिक सुरक्षा प्रदान कर अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने का प्रयास था।
  • जर्मनी: अत्यधिक मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए जर्मनी ने नई मुद्रा जारी की और कठोर आर्थिक सुधार कार्यक्रम लागू किए।
  • ब्रिटेन: ब्रिटेन ने अपने साम्राज्य के साथ मिलकर आर्थिक सहयोग का रास्ता अपनाया और संरक्षणवादी नीतियों को अपनाया।
  • सोवियत संघ: सोवियत संघ ने केंद्रीयकृत नियोजित अर्थव्यवस्था का विकास किया, जहां सरकार ने उत्पादन और वितरण को नियंत्रित किया।

4. संरक्षणवाद का उदय और वैश्विक व्यापार पर इसके प्रभाव:

  • महामंदी से बचने के लिए कई देशों ने आयात पर उच्च शुल्क लगाए और व्यापारिक बाधाएं पैदा कीं।
  • इस संरक्षणवाद के कारण वैश्विक व्यापार में भारी गिरावट आई, जो अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को और नुकसान पहुंचाता था।
  • संरक्षणवाद ने द्वितीय विश्व युद्ध के कारणों में से एक के रूप में भी योगदान दिया।

अंतरयुद्ध काल का अर्थशास्त्र उथल-पुथल का दौर था, जो महामंदी की वजह से और भी बिगड़ गया। इस समय की घटनाओं ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को कमजोर किया और द्वितीय विश्व युद्ध के लिए परिस्थितियां तैयार कीं। हालांकि, इस काल में कई देशों ने आर्थिक पुनर्जीवन और राजनीतिक सुधार के प्रयास भी किए, जो भविष्य की वैश्विक अर्थव्यवस्था के विकास के लिए महत्वपूर्ण थे।

5. विश्व अर्थव्यवस्था का पुनर्निर्माण: युद्ध पश्चात काल

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद का दौर वैश्विक अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण और नाटकीय परिवर्तन का समय था। आइए देखें इस दौरान हुए प्रमुख आर्थिक विकास को:

1. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद आर्थिक पुनर्निर्माण:

  • विनाश का पैमाना: युद्ध ने दुनिया के कई हिस्सों में बड़े पैमाने पर विनाश का कारण बनाया, खेतों और कारखानों को नष्ट कर दिया, और पूरे देशों को आर्थिक पतन के कगार पर ला खड़ा किया।
  • मार्शल प्लान: अमेरिका ने यूरोपीय देशों के पुनर्निर्माण में मदद करने के लिए मार्शल प्लान लागू किया, जिसने अरबों डॉलर की सहायता प्रदान की और आर्थिक विकास को गति दी।
  • जापान का आर्थिक चमत्कार: द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जापान ने उल्लेखनीय आर्थिक पुनर्निर्माण किया, जिसने उसे दुनिया की प्रमुख आर्थिक शक्तियों में से एक बना दिया।

2. अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं की स्थापना:

  • संयुक्त राष्ट्र (UN): 1945 में संयुक्त राष्ट्र की स्थापना की गई, जिसका उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखना, मानवाधिकारों को बढ़ावा देना और अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना था।
  • अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF): IMF की स्थापना अंतरराष्ट्रीय वित्तीय स्थिरता बनाए रखने और देशों को भुगतान संतुलन के मुद्दों से निपटने में मदद करने के लिए की गई थी।
  • विश्व बैंक: विश्व बैंक की स्थापना गरीब देशों के विकास में मदद करने और पुनर्निर्माण परियोजनाओं के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए की गई थी।

3. शीत युद्ध और वैश्विक आर्थिक नीतियों पर इसका प्रभाव:

  • पूंजीवाद बनाम साम्यवाद: शीत युद्ध के दौरान अमेरिका और सोवियत संघ के नेतृत्व में दो महाशक्तियों के बीच वैचारिक संघर्ष चल रहा था। दोनों देशों ने वैश्विक स्तर पर अपने आर्थिक मॉडल को बढ़ावा दिया।
  • प्रॉक्सी युद्ध और हथियारों की दौड़: शीत युद्ध के दौरान दोनों महाशक्तियों ने दुनिया के कई हिस्सों में प्रॉक्सी युद्ध लड़े और लगातार हथियारों का विकास किया, जिसने वैश्विक अर्थव्यवस्था पर बोझ बढ़ाया।
  • व्यापार ब्लॉकों का उदय: शीत युद्ध के दौरान दोनों महाशक्तियों के नेतृत्व में व्यापार ब्लॉकों का उदय हुआ, जैसे NATO और सीटो पश्चिमी देशों में, और वारसा संधि और कॉमेकॉन पूर्वी देशों में।

4. तकनीकी नवाचार और वैश्वीकरण का तीव्र गति से बढ़ना:

  • कंप्यूटर क्रांति: 20वीं सदी के उत्तरार्ध में कंप्यूटर क्रांति हुई, जिसने वैश्विक अर्थव्यवस्था के हर क्षेत्र में परिवर्तन लाए। नई तकनीकों ने संचार, परिवहन, उत्पादन और वितरण के तरीकों में क्रांति ला दी।
  • सूचना क्रांति: कंप्यूटर क्रांति के बाद सूचना क्रांति आई, जिसने सूचना के प्रसार और प्रसंस्करण के तरीकों में क्रांति ला दी। इंटरनेट के विकास ने वैश्विक स्तर पर संचार और व्यापार में नाटकीय वृद्धि की।
  • वैश्वीकरण का तीव्र गति से बढ़ना: तकनीकी नवाचारों ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को और अधिक परस्पर जोड़ा, अंतरराष्ट्रीय व्यापार और निवेश में वृद्धि की और वैश्विक श्रम विभाजन को गहरा किया।

वैश्विक अर्थव्यवस्था का विकास:

वैश्विक अर्थव्यवस्था का विकास प्राचीन काल से ही हो रहा है, लेकिन 19वीं सदी के औद्योगिक क्रांति के बाद से इसमें तेजी आई है। औद्योगिक क्रांति ने बड़े पैमाने पर उत्पादन, नए परिवहन और संचार तकनीकों का विकास किया, जिससे अंतरराष्ट्रीय व्यापार और निवेश में वृद्धि हुई। 20वीं सदी में, कंप्यूटर और सूचना क्रांति ने वैश्वीकरण को और गति दी, जिससे दुनिया भर में अर्थव्यवस्थाएं पहले से कहीं अधिक परस्पर जुड़ी हुई हैं।

इतिहास से सीखे गए सबक:

वैश्विक अर्थव्यवस्था के विकास के इतिहास से हम कई महत्वपूर्ण सबक सीख सकते हैं:

  • अंतरराष्ट्रीय सहयोग महत्वपूर्ण है: द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के पुनर्निर्माण के दौरान अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं, जैसे संयुक्त राष्ट्र, आईएमएफ और विश्व बैंक की स्थापना ने वैश्विक अर्थव्यवस्था के स्थिरीकरण और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • मुक्त व्यापार फायदेमंद होता है: संरक्षणवाद आर्थिक विकास को बाधित कर सकता है और वैश्विक अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा सकता है। मुक्त व्यापार आमतौर पर सभी देशों के लिए अधिक फायदेमंद होता है।
  • तकनीकी नवाचार महत्वपूर्ण है: तकनीकी नवाचार आर्थिक विकास को चलाने में एक प्रमुख कारक है। सरकारों और निजी क्षेत्र को नवाचार को बढ़ावा देने के लिए निवेश करना चाहिए।
  • आर्थिक असमानता को कम करना महत्वपूर्ण है: वैश्विक अर्थव्यवस्था में अत्यधिक असमानता सामाजिक अशांति और राजनीतिक अस्थिरता को जन्म दे सकती है। सरकारों को आर्थिक असमानता को कम करने के लिए नीतियां बनानी चाहिए।

वर्तमान और भविष्य के वैश्वीकरण पर ऐतिहासिक वैश्विक आर्थिक रुझानों के प्रभाव:

ऐतिहासिक वैश्विक आर्थिक रुझान वर्तमान और भविष्य के वैश्वीकरण को कई तरह से प्रभावित कर रहे हैं:

  • वैश्वीकरण बढ़ता रहेगा: तकनीकी नवाचार और परिवहन और संचार लागत में कमी के कारण वैश्वीकरण बढ़ता रहने की संभावना है।
  • नए व्यापार ब्लॉकों का उदय हो सकता है: शीत युद्ध के बाद के द्विध्रुवी वैश्विक व्यवस्था के टूटने से नए व्यापार ब्लॉकों का उदय हो सकता है।
  • आर्थिक असमानता एक चुनौती बनी रहेगी: वैश्विक अर्थव्यवस्था में आर्थिक असमानता एक बड़ी चुनौती बनी रहेगी। सरकारों और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं को इस असमानता को कम करने के लिए तरीके खोजने की जरूरत है।
  • पर्यावरणीय स्थिरता एक महत्वपूर्ण चिंता है: वैश्वीकरण पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। सरकारों और निजी क्षेत्र को पर्यावरणीय रूप से टिकाऊ विकास को बढ़ावा देने के लिए काम करना चाहिए।

निष्कर्ष:

वैश्विक अर्थव्यवस्था का विकास इतिहास का एक लंबा और जटिल प्रक्रिया है। इतिहास से हम कई महत्वपूर्ण सबक सीख सकते हैं जो हमें वर्तमान और भविष्य के वैश्वीकरण को बेहतर ढंग से प्रबंधित करने में मदद कर सकते हैं। हमें एक ऐसी वैश्विक अर्थव्यवस्था बनाने का प्रयास करना चाहिए जो सभी देशों और लोगों के लिए समृद्ध और टिकाऊ हो।

‘वैश्वीकरण की समझ: NCERT कक्षा 10 सामाजिक विज्ञान के ‘विश्व के निर्माण’ का विस्तृत अवलोकन’

  1. प्राचीन विश्व (The Pre-modern World)
  • प्राचीन काल से 15वीं शताब्दी तक: प्रारंभिक व्यापार मार्गों का विकास, सांस्कृतिक आदान-प्रदान, और विजय तथा साम्राज्यों का वैश्विक संबंधों पर प्रभाव।
  1. उन्नीसवीं सदी (1815-1914)
  • 1815: नेपोलियन युद्धों का अंत, एक नए आर्थिक युग की शुरुआत।
  • मध्य 1800s: औद्योगिक क्रांति अपने चरम पर पहुंचती है, जिससे वैश्विक व्यापार में परिवर्तन होता है।
  • उन्नीसवीं सदी के अंत: यूरोपीय उपनिवेशीकरण की चरम सीमा; वैश्विक बाजारों की स्थापना।
  1. युद्धोत्तर अर्थव्यवस्था (The Interwar Economy)
  • 1914-1918: प्रथम विश्व युद्ध से वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं में बाधा।
  • 1929: महामंदी की शुरुआत, जिसका वैश्विक अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
  • 1930s: विश्वभर में संरक्षणवादी नीतियों का उदय।
  1. विश्व अर्थव्यवस्था का पुनर्निर्माण: युद्धोत्तर युग (Rebuilding a World Economy: The Post-War Era)
  • 1945: द्वितीय विश्व युद्ध का अंत, वैश्विक आर्थिक पुनर्निर्माण की शुरुआत।
  • 1940s-1950s के अंत: प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं (संयुक्त राष्ट्र, IMF, विश्व बैंक) की स्थापना।
  • 1960s-1970s: शीत युद्ध युद्ध का वैश्विक आर्थिक नीतियों पर प्रभाव।
  • 20वीं सदी के अंत: तकनीकी नवाचारों ने वैश्वीकरण की नई लहर को गति दी।