हिंदू पंचांग के अनुसार 22 मार्च से विक्रम संवत 2080 का प्रारंभ होगा । विक्रम संवत अंग्रेजी कैलेंडर से 57 साल पहले शुरू हुआ था । समस्त सनातन धार्मिक बन्धुओं व भगनियो हेतु विक्रम संवत 2080 का मनोरम, मार्गदर्शक व मांगलिक कैलेंडर प्रस्तुत है। इस कैलेंडर का निर्माण परम् आदरणीय संस्थान सामर्थ्य 4 भारत द्वारा किया गया है। हम इसके साथ ही इस हिन्दू कैलेंडर की PDF भी उपलब्ध करवा रहे है। आपसे सादर निवेदन व आग्रह है कि इस विक्रम संवत 2080 के हिन्दू कैलेंडर को हर घर तक पहुँचाये। हम करबद्ध रूप से सामर्थ्य 4 भारत संस्थान को इस श्रेष्ठ कार्य हेतु सादर अभिनन्दन व इसके हमारी वेबसाइट पर शेयर करने की अनुमति देने के लिए हार्दिक आभार करते है।
विक्रम संवत
विक्रम संवत को विक्रमी कैलेंडर भी माना जाता है, यह भारत में हिंदुओं के लिए एक ऐतिहासिक कैलेंडर है। विक्रम संवत नेपाल का आधिकारिक कैलेंडर भी है और इसका नाम राजा विक्रमादित्य के नाम पर रखा गया है। यह कैलेंडर 9वीं शताब्दी के बाद पुरातत्व कला की शुरुआत के साथ ध्यान में आया। 9वीं शताब्दी से पहले, उसी कैलेंडर प्रणाली को कृत और मालव जैसे अन्य नामों से जाना जाता था।
विक्रमी कैलेंडर की कुछ विवरण का उल्लेख नीचे किया गया है:
- यह भारत और नेपाल में विद्यमान विक्रम युग की शुरुआत का प्रतीक है।
- इस अवधि का नाम राजा विक्रमादित्य के नाम पर शक शासकों पर उनकी विजय को मार्क करने के लिए रखा गया है।
- इसकी शुरुआत 57 ईसा पूर्व 9वीं शताब्दी से पहले विक्रमादित्य से होती है।
- यह चंद्रमा की गति पर आधारित कैलेंडर है और इसमें साल में 354 दिन होते हैं।
- विक्रम संवत में 12 महीने होते हैं और हर महीने को दो चरणों में विभाजित किया जाता है:
- शुक्ल पक्ष (15 दिन) – अमावस्या से शुरू होता है और पूर्णिमा पर समाप्त होता है
- कृष्ण पक्ष (15 दिन) – पूर्णिमा से शुरू होता है और अमावस्या पर समाप्त होता है
सत्येन रक्ष्यते धर्मो विद्याऽभ्यासेन रक्ष्यते । मृज्यया रक्ष्यते रुपं कुलं वृत्तेन रक्ष्यते ॥ धर्म की रक्षा सत्य से होती है, विद्या की रक्षा अभ्यास से होती है, रूप की रक्षा स्वच्छता से, और ‘कुल की रक्षा सद् आचरण से होती है।

चैत्र / वैशाख वि.सं. 2080 | मार्च / अप्रैल 2023 | वसंत ऋतु
कर्म प्रधान विश्व रचि राखा । जो जस करहि सो तस फल चाखा ।।
यह जगत कर्म प्रधान है। जो जैसा कर्म करता है, उसे वैसा ही फल प्राप्त होता है।

वैशाख / ज्येष्ठ वि.सं. 2080 मई 2023 ग्रीष्म ऋतु
मान्धाता च महीपतिः कृतयुगालंकार भूतो गतः । सेतुर्येन महोदधौ विरचितः क्वासौ दशास्यान्तकः ।। अन्ये चापि युधिष्ठिरप्रभृतयो याता दिवम् भूपते । नैकेनापि समम् गता वसुमती नूनम् त्वया यास्यति । ।
सतयुग के अलंकार मान्धाता, समुद्र पर सेतु का निर्माण और दसमुख का वध करने वाले श्री राम और युधिष्ठिर जैसे सत्यवादी सम्राट भी धरती पर आये और चले गये है मुञ्ज! यह धरती किसी एक के भी साथ नहीं गयी, तो क्या तुम्हारे साथ जायेगी? नहीं!

ज्येष्ठ / आषाढ़ वि.सं. 2080 | जून 2023 ग्रीष्म ऋतु
योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय । सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते । । 2.48।।
हे धनञ्जय! तू आसक्ति का त्याग करके सिद्धि-असिद्धि में सम होकर योग में स्थित हुआ कर्मों को कर; क्योंकि समत्व ही योग कहा जाता है।

आषाढ़ / श्रावण वि.सं. 2080 | जुलाई 2023 वर्षा ऋतु
विद्यार्थी के पांच लक्षण
काक चेष्टा, बको ध्यानं, स्वान निद्रा तथैव च। अल्पहारी, गृहत्यागी, विद्यार्थी पंच लक्षणम् ॥
उद्यमेन हि सिद्धयन्ति कार्याणि न मनोरथैः। न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः । । प्रयत्न करने से ही कार्य सिद्ध होते हैं, केवल इच्छा करने से नहीं, जैसे कि सोये हुए सिंह के मुँह में मृग अपने आप प्रवेश नहीं करते।

श्रावण वि.सं. 2080 | अगस्त 2023 वर्षा ऋतु
सानन्दमानन्दवने वसन्तं आनन्दकन्दं हतपापवृन्दम् ।वाराणसीनाथमनाथनाथं श्रीविश्वनाथं शरणं प्रपद्ये ॥
जो भगवान् शंकर आनन्दवन काशी क्षेत्र में आनन्दपूर्वक निवास करते हैं, जो परमानन्द के निधान एवं आदिकारण है, और जो पाप समूह का नाश करने वाले हैं, मैं ऐसे अनाथों के नाथ काशीपति श्री विश्वनाथ की शरण में जाता हूँ ।
होइहि सोइ जो राम रचि राखा। को करि तर्क बढ़ावै साखा ॥ जो कुछ राम ने रच रखा है, वही होगा । तर्क करके कौन विस्तार बढ़ाये।

भाद्रपद/आश्विन वि.सं. 2080 | सितम्बर 2023 वर्षा ऋतु
सेष महेस गनेस दिनेस, सुरेसहु जा हि निरंतर गावै।
संत रसखान
जाहि अनादि अनंत अखंड, अछेद अभेद सुवेद बतावै।।
नारद से शुक व्यास रटें, पचि हारे तऊ पुनि पार ना पावैं।
ताहि अहीर की छोहरियां, छछिया भर छाछ पे नाच नचावैं ।।
शेषनाग, श्री गणेश, सूर्यदेव, इंद्रदेव आदि सब देवता गण एवं भगवान शिव, जिनकी पूजा करते हैं, जिनको वेद अनादि, अनंत, अखंड, अछेद बताते हैं। नारद, शुक और व्यास जैसे ऋषि इनके बारे में जानने का प्रयत्न करते हैं.. पर हार जाते हैं। ऐसे श्री कृष्ण जी को अहीरों की कन्याएँ कटोरे भर छाछ के लिये नाच नचाती हैं।

आश्विन/कार्तिक वि.सं. 2080 | अक्टूबर 2023 शरद ऋतु
सर्वाबाधा प्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरी। एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरि विनाशनम्।।
सर्वेश्वरि! आप इसी प्रकार तीनों लोकों की समस्त बाधाओं को शान्त करो और हमारे शत्रुओं का नाश करती रहो।
सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥ हे नारायणी! आप सब प्रकार का मङ्गल प्रदान करनेवाली मङ्गलमयी हो। कल्याणदायिनी शिवा हो । सब पुरुषार्थों को सिद्ध करनेवाली, शरणागत वत्सला, तीन नेत्रोंवाली माँ गौरी हो । आपको नमस्कार है।

कार्तिक/मार्गशीर्ष वि.सं. 2080 | नवंबर 2023 शरद ऋतु
जो आनंद सिंधु सुखरासी । सीकर तें त्रैलोक सुपासी ॥ सो सुखधाम राम अस नामा । अखिल लोक दायक विश्रामा ॥ ये जो आनंद के समुद्र और सुख की राशि हैं, जिस (आनंदसिंधु) के एक कण से तीनों लोक सुखी होते हैं, उन (आपके सबसे बड़े पुत्र) का नाम 'राम' है, जो सुख का भवन और संपूर्ण लोकों को शांति देनेवाला है।

मार्गशीर्ष पौष वि.सं. 2080 | दिसंबर 2023 हेमंत ऋतु
ये हि संस्पर्शजा भोगा दुःखयोनय एव ते। आद्यन्तवन्तः कौन्तेय न तेषु रमते बुधः ।। 115.2211 स्वामी रामसुखदास
स्वामी रामसुखदास
इन्द्रिय तथा विषयों के संयोग से उत्पन्न होने वाले जो भोग हैं वे दुःख के ही हेतु हैं, क्योंकि वे आदि-अन्त वाले हैं। बुद्धिमान पुरुष उनमें नहीं रमता।।
शक्तीहैव यः सोढुं प्राक्शरीरविमोक्षणात् । कामक्रोधोद्भवं वेगं स युक्तः स सुखी नरः ।। जो मनुष्य इसी लोक में शरीर त्यागने के पूर्व ही काम और क्रोध से उत्पन्न हुए वेग को सहन करने में समर्थ है, वह योगी (युक्त) और सुखी मनुष्य है।

पौष / माघ वि.सं. 2080 | जनवरी 2024 शिशिर ऋतु
स्वामी विवेकानंद जी
सत्य, किसी समाज का सम्मान नहीं करता। समाज को ही सत्य का सम्मान करना पड़ेगा, अन्यथा समाज का विनाश हो जाएगा। सत्य ही समस्त प्राणियों और समाजों का मूल आधार है, अतः सत्य कभी भी समाज के अनुसार अपना गठन नहीं करेगा।
वही समाज सब से श्रेष्ठ है, जहाँ सभी सत्यों को कार्य में परिवर्तित किया जा सकता है। यदि समाज इस समय उच्चतम सत्यों को स्थान देने में समर्थ नहीं है, तो उसे इस योग्य बनाओ। और जितना शीघ्र तुम ऐसा कर सको, उतना ही अच्छा है।

माघ/फाल्गुन वि.सं. 2080 | फरवरी 2024 शिशिर ऋतु
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी । जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी श्रेष्ठ हैं।
अधर्मेणैधते तावत् ततो भद्राणि पश्यति । ततः सपत्नान् जयति समूलस्तु विनश्यति ॥ १७४ ॥
अधर्म से व्यक्ति पहले अल्पकाल के लिए अति करता, सुख भोगता च शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता हुआ प्रतीत होता है, परन्तु अंत में समूल नष्ट हो जाता है। इस कारण मनुष्य को क्षणिक लाभ के लिए सत्य और धर्म का त्याग कदापि नहीं करना चाहिए।

फाल्गुन/ न/चैत्र वि.सं. 2080 | मार्च 2024 वसंत ऋतु
अविनाशी तत्त्व (ब्रह्म) ही सत्य है, ये भौतिक संसार असत्य है, ( नाशवान् ) है।
ब्रह्म सत्यं जगत् मिथ्या ।
उठो, इस भ्रम को मिटा दो कि तुम निर्बल हो। तुम एक अमर आत्मा हो, स्वच्छंद जीव हो, धन्य हो, सनातन हो। तुम तत्त्व नहीं हो, तत्त्व तुम्हारा सेवक है, तुम तत्त्व के सेवक नहीं हो।

Vikram Samvt 2080 | विक्रम संवत 2080 | हिंदू कैलेंडर PDF
Samarthy4bhart
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