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मृत्यु से भय कैसा? राजा परीक्षित की आध्यात्मिक यात्रा और जीवन के सत्य की खोज

मृत्यु से भय कैसा?

जीवन की अनिश्चितताओं और मृत्यु के अवश्यंभावी सत्य को समझाने वाली एक गहन कथा, जो श्रीमद्भागवत पुराण से प्रेरित है, राजा परीक्षित और शुकदेव जी महाराज की इस कथा के माध्यम से हमें जीवन और मृत्यु के प्रति एक नई दृष्टि प्राप्त होती है।

जब श्रीमद्भागवत पुराण के श्रवण के छह दिन बीत गए और तक्षक सर्प के काटने से उनकी मृत्यु निकट आ गई, तब भी राजा परीक्षित के मन में शोक और भय का भाव नहीं मिटा। मृत्यु की घड़ी समीप आते देख उनका मन व्याकुल हो उठा।

ऐसे समय में, शुकदेव जी ने राजा परीक्षित को एक कथा सुनाने का निश्चय किया।

कथा कुछ इस प्रकार है: एक राजा जंगल में भटक गया और वहाँ एक बहेलिये की झोंपड़ी में शरण ली। यह झोंपड़ी गंदी और दुर्गंध युक्त थी। परिस्थितियों के चलते राजा को वहाँ रुकना पड़ा, लेकिन सुबह होते ही उन्हें झोंपड़ी छोड़ने की बहेलिये द्वारा चेतावनी दी गई थी। राजा ने प्रतिज्ञा की कि वह सुबह होते ही झोंपड़ी छोड़ देगा।

लेकिन, सुबह होते ही राजा ने उस झोंपड़ी को छोड़ने में अनिच्छा व्यक्त की। उन्हें वह गंदी झोंपड़ी भी अपनी लगने लगी। इस पर बहेलिया क्रोधित हो उठा और राजा को तत्काल झोंपड़ी खाली करने को कहा। राजा के लिए यह स्थान छोड़ना अब एक झंझट बन गया था, और दोनों के बीच इस बात को लेकर विवाद हो गया।

शुकदेव जी महाराज ने इस कथा के माध्यम से राजा परीक्षित से पूछा कि उस राजा का उस स्थान पर सदा के लिए रहने की इच्छा रखना क्या उचित था? राजा परीक्षित ने उत्तर दिया कि वह राजा मूर्ख था, जो ऐसी गंदी झोंपड़ी में रहने की इच्छा रखता था।

तब शुकदेव जी ने राजा परीक्षित को समझाया कि वास्तव में वह राजा स्वयं वे थे, और इस भौतिक जगत की अस्थायी सुख-सुविधाओं के प्रति उनकी आसक्ति ही उन्हें आत्मिक उद्देश्य से भटका रही थी।

इस कथा के माध्यम से, शुकदेव जी महाराज ने यह शिक्षा दी कि इस संसारिक जीवन में हम सभी कुछ समय के लिए आए हैं और हमें अपने असली घर, अर्थात आध्यात्मिक लोक की ओर लौटना है। मृत्यु के भय से ऊपर उठकर, हमें अपने जीवन को सार्थक बनाने और आत्मिक उन्नति की ओर अग्रसर होने की आवश्यकता है।

इस प्रेरक कथा से हमें यह सीख मिलती है कि जीवन में सच्ची समृद्धि और शांति आत्मिक जागृति और उद्देश्य की प्राप्ति में है, न कि भौतिक वस्तुओं और अस्थायी सुखों में।

ी कृष्ण** 🙏🏼🙏🙏🏿

इस आध्यात्मिक जागरण के साथ, राजा परीक्षित ने अपने भीतर के भय और आसक्तियों को दूर कर दिया और मृत्यु के निकट आने पर भी उन्होंने एक गहरी शांति और समर्पण की भावना का अनुभव किया। उन्होंने समझा कि जीवन और मृत्यु, दोनों ही प्रकृति के अटल नियम हैं और जीवन की असली सार्थकता इसमें है कि हम अपने अंतरात्मा के साथ किस प्रकार का संबंध बनाए रखते हैं।

यह कथा हमें एक और महत्वपूर्ण शिक्षा देती है: जीवन में वास्तविक सुख और शांति की प्राप्ति के लिए आत्म-ज्ञान और आत्म-साक्षात्कार की ओर अग्रसर होना जरूरी है। जब हम अपने भीतर की यात्रा करते हैं और अपने आत्मा की अमरता को पहचानते हैं, तब हमें जीवन और मृत्यु के चक्र से ऊपर उठने की शक्ति प्राप्त होती है।

राजा परीक्षित की इस कथा को याद रखकर, आइए हम सभी अपने जीवन को अधिक सजगता और समर्पण के साथ जीने का प्रयास करें, जिससे हम न केवल अपने लिए, बल्कि समस्त मानवता के लिए एक सार्थक और सकारात्मक परिवर्तन ला सकें।

आत्मिक जागृति और आध्यात्मिक उन्नति की ओर बढ़ते हुए, हम सभी मृत्यु के भय से परे एक शांत और पूर्ण जीवन की ओर अग्रसर हो सकते हैं।

🙏🏾🙏🏻🙏🏽 जय श्री कृष्ण 🙏🏼🙏🙏🏿