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यमराज और डाकू: एक प्रेरणादायक प्रसंग जो सिखाता है विनम्रता और सेवा का महत्व

20 फरवरी 2024: प्रेरक प्रसंग – यमराज और डाकू

एक साधु और एक डाकू की कहानी:

एक बार की बात है, एक धर्मनिष्ठ साधु जीवनभर तपस्या और भक्ति में लीन रहा। वहीं दूसरी ओर, एक क्रूर डाकू ने लूटपाट और हत्याओं से अपना जीवन व्यतीत किया। जब उनकी मृत्यु हुई, तो दोनों को यमराज के दरबार में लाया गया।

डाकू ने, अपने पापों को स्वीकारते हुए, दंड की आज्ञा का इंतजार किया। साधु ने, अपने पुण्यों का बखान करते हुए, स्वर्ग जाने की मांग की।

यमराज ने दोनों की बातें सुनीं और डाकू को एक अनोखा दंड दिया – उसे साधु की सेवा करनी थी। साधु इस आदेश से सहमत नहीं था, यह सोचकर कि डाकू के अपराध उसे दूषित कर देंगे।

यमराज ने धैर्य खोते हुए कहा, “तुमने तपस्या तो की, पर विनम्रता नहीं सीखी। डाकू, जिसने पाप किए, विनम्रता से दंड स्वीकारने को तैयार है, पर तू अहंकार में डूबा है। तुम्हारी तपस्या अधूरी है। अब तू इस डाकू की सेवा करोगे।”

साधु को यमराज के वचन सत्य लगे। उसने डाकू की सेवा शुरू की। दोनों को साथ रहने से धीरे-धीरे उनमें बदलाव आया। साधु ने करुणा सीखी और डाकू में पश्चाताप जगा। उनकी सेवाभावना और परस्पर सम्मान देखकर यमराज प्रसन्न हुए।

कुछ समय बाद, यमराज ने दोनों को पुनः अपने समक्ष बुलाया। इस बार, साधु और डाकू दोनों में विनम्रता और आत्म-सुधार के भाव झलक रहे थे। यमराज ने उन्हें आशीर्वाद दिया और कहा, “तुम दोनों ने अपने कर्मों का फल पाया और सीखा। अब तुम आत्मबल के साथ नया जीवन शुरू करो।”

कहानी से सीख:

  • विनम्रता और करुणा जीवन में महत्वपूर्ण गुण हैं।
  • हर किसी में सुधार की क्षमता होती है।
  • ईश्वरीय न्याय सदा सत्य होता है।
  • अपने कर्मों का फल हमें भोगना ही पड़ता है।

अंतिम विचार:

यह प्रेरक कहानी हमें सिखाती है कि हमें अपने अहंकार को त्यागकर विनम्रता और दया का भाव अपनाना चाहिए। हर किसी में अच्छाई की उम्मीद रखनी चाहिए और अपने कर्मों के प्रति सजग रहना चाहिए।