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राजस्थान में शिक्षा: इतिहास, वर्तमान स्थिति और सुधार

भारतीय शैक्षिक परिदृश्य

आदिकाल से ही शिक्षा का विकास एवं प्रसार निरन्तर होता रहा है। प्रत्येक देश अपनी सामाजिक, सांस्कृतिक अस्मिता को अभिव्यक्ति देने, पनपाने और साथ ही समय की चुनौतियों का सामना करने के लिए अपनी विशिष्ट शिक्षा प्रणाली विकसित करता है। राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में “सबके लिए शिक्षा हमारे भौतिक एवं आध्यात्मिक विकास की बुनियादी आवश्यकता है। स्वतंत्रता प्राप्ति के समय से ही देश में विशेष रूप से प्राथमिक शिक्षा के अन्तर्गत सभी बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य रूप से उपलब्ध कराने के लिए प्रयास किए गए हैं। संविधान की धारा 45 में प्राथमिक शिक्षा को निःशुल्क और अनिवार्य रूप से देश के सभी बच्चों को उपलब्ध करवाने का संकल्प लिया था जो निःशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के रूप में लागू हो चुका है। राजस्थान में भी तत्सम्बन्धी क्रियान्वयन हेतु नियम 2011 बनाए जाकर 29 मार्च 2011 से प्रभावी हो चुके हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति. 1986 (संशोधित 1992) के अनुसार शिक्षा के तीन आयामों पर बल दिया गया-

1. सार्वजनिक पहुँच (Access) एवं नामांकन

2. 14 वर्ष की आयु तक ठहराव (Retention)

3.शिक्षा की गुणवत्ता में पर्याप्त सुधार।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के साथ शिक्षा में नवाचार और अनुसंधान को बढ़ाने पर बल दिया है। जिससे भारतीय शिक्षा प्रणाली को वैश्विक प्रतिस्पर्धा के योग्य बनाया जा सके। यह 21वीं शताब्दी की पहली शिक्षा नीति है। जिसका लक्ष्य हमारे देश के विकास के लिए अनिवार्य आवश्यकताओं को पूरा करना है। यह नीति इस सिद्धान्त पर आधारित है कि शिक्षा से न केवल साक्षरता और संख्या ज्ञान जैसी बुनियादी क्षमताओं के साथ-साथ उच्चतर स्तर की तार्किक और समस्या समाधान सम्बन्धी संज्ञानात्मक क्षमताओं का विकास होना चाहिए, बल्कि नैतिक, सामाजिक और भावनात्मक स्तर परभी व्यक्ति का विकास होना आवश्यक है।

भारत द्वारा 2015 में अपनाए गए सतत् विकास एजेंडा 2030 के लक्ष्य 4 (एसडीजी 4) में परिलक्षित वैश्विक शिक्षा विकास एजेंडा के अनुसार विश्व में 2030 तक “सभी के लिए समावेशी और समान गुणवत्ता युक्त शिक्षा सुनिश्चित करने और जीवन पर्यन्त शिक्षा के अवसरों को बढ़ावा दिये जाने” का लक्ष्य है। इस तरह के उदात लक्ष्य के लिए सम्पूर्ण शिक्षा प्रणाली को समर्थन और अधिगम को बढ़ावा देने के लिए पुनर्गठित करने की आवश्यकता होगी ताकि सतत् विकास के लिए 2030 एजेंडा के सभी महत्वपूर्ण लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सके।

राजस्थान का शैक्षिक परिदृश्य

पूर्व से ही राजस्थान में लोक शिक्षा एक परम्परा रही है। शैक्षिक संस्थाओं की स्थापना राजाओं या समुदाय द्वारा (हिन्दू पाठशाला या मुस्लिम मकतब) की गई परन्तु इसमें भागीदारी बहुत सीमित रहती थी। राजाओं द्वारा स्थापित संस्थाओं में राजघरानों या उच्च घरानों तक तथा समुदाय द्वारा स्थापित संस्थाएँ उच्च वर्ग तक सीमित थी।

राजस्थान में आधुनिक शिक्षा की शुरुआत 19 वीं सदी में हुई जबकि 1844 में लोक शिक्षण विभाग की स्थापना की गई। 19वीं सदी के मध्य में 647 शिक्षण संस्थाएँ थी। बालिकाओं के लिए पृथक् विद्यालय नहीं थे। विद्यालयों में ब्रिटिश विद्यालय प्रणाली का प्रभाव था। 20वीं सदी के प्रारम्भ में शिक्षा का विस्तार जिलों, छोटे शहरों एवं गाँवों में किया गया। 1917 से 1940 के मध्य कई आन्दोलन हुए तथा व्यापारिक समुदायों एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा विद्यालय खोले गए, जिनमें ग्रामीण बच्चों की भागीदारी प्रारम्भ हुई। शिक्षा की महत्ता को लोग समझने लगे एवं ऐसे जन अधिकारों जिसमें राजनैतिक स्वतंत्रता भी सम्मिलित है. के प्रति जागरुकता का माध्यम समझा जाने लगा।

स्वतंत्रता के पश्चात् ही शिक्षा पर बल दिया गया। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् प्राथमिक शिक्षा की ओर ध्यान दिया गया। शिक्षा व्यवस्था के संचालन के लिए 1950 में बीकानेर में प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा निदेशालय की स्थापना की गई। प्रशासनिक व्यवस्था के अन्तर्गत वर्तमान मे राज्य स्तर पर अतिरिक्त मुख्य सचिव, स्कूल शिक्षा, भाषा, पुस्तकालय एवं पंचायती राज (प्रारम्भिक शिक्षा) विभाग नेतृत्व प्रदान करते हैं। प्रारम्भिक शिक्षा एवं माध्यमिक शिक्षा का निदेशालय बीकानेर में स्थित है। प्रारम्भिक शिक्षा के क्षेत्र में राजस्थान स्कूल शिक्षा परिषद, राजस्थान राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद्, पंजीयक, शिक्षा विभागीय परीक्षाएं, राजस्थान राज्य पाठ्यपुस्तक मण्डल एवं माध्यमिक शिक्षा के क्षेत्र में माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान अजमेर, राजस्थान राज्य भारत स्काउट व गाइड, हिन्दुस्तान स्काउट्स एण्ड गाइड्स, राजस्थान राज्य बालिका शिक्षा फाउण्डेशन, राजस्थान स्कूल शिक्षा परिषद, सीमैट एवं राजस्थान स्टेट ओपन स्कूल, उच्च अध्ययन शिक्षण संस्थान (आई.ए.एस.ई), शिक्षक शिक्षा महाविद्यालय तथा माध्यमिक एवं उच्च माध्यमिक विद्यालय कार्य कर रहे हैं।

भारतीय शैक्षिक परिदृश्य: महत्वपूर्ण बिंदु

राष्ट्रीय शिक्षा नीतियां:

  • 1986 (संशोधित 1992): शिक्षा के 3 आयामों पर बल – पहुंच, ठहराव, गुणवत्ता
  • 2020: शिक्षा की गुणवत्ता, नवाचार, अनुसंधान पर बल, 21वीं सदी की पहली शिक्षा नीति
  • लक्ष्य: साक्षरता, संख्या ज्ञान, तार्किक, समस्या समाधान, नैतिक, सामाजिक, भावनात्मक विकास

वैश्विक शिक्षा लक्ष्य:

  • सतत विकास एजेंडा 2030 (एसडीजी 4): 2030 तक सभी के लिए समावेशी, गुणवत्ता युक्त शिक्षा
  • शिक्षा प्रणाली को पुनर्गठित करने की आवश्यकता

राजस्थान का शैक्षिक परिदृश्य:

  • पूर्व में लोक शिक्षा परंपरा, राजाओं/समुदाय द्वारा संस्थाएं, भागीदारी सीमित
  • आधुनिक शिक्षा: 19वीं सदी, 1844 में लोक शिक्षण विभाग
  • 20वीं सदी: शिक्षा का विस्तार, ग्रामीण बच्चों की भागीदारी
  • स्वतंत्रता पश्चात: प्राथमिक शिक्षा पर बल, 1950 में शिक्षा निदेशालय
  • वर्तमान: विभिन्न शिक्षा विभाग, बोर्ड, संस्थाएं

अन्य महत्वपूर्ण बिंदु:

  • शिक्षा का विकास एवं प्रसार निरंतर
  • शिक्षा प्रणाली: सामाजिक, सांस्कृतिक अस्मिता को अभिव्यक्ति देने, पनपाने के लिए
  • शिक्षा: भौतिक एवं आध्यात्मिक विकास की बुनियादी आवश्यकता
  • निःशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009
  • शिक्षा में नवाचार और अनुसंधान: भारतीय शिक्षा प्रणाली को वैश्विक प्रतिस्पर्धा के योग्य

निष्कर्ष:

भारतीय शिक्षा प्रणाली में निरंतर सुधार हो रहा है। शिक्षा नीतियां, शिक्षा विभाग, बोर्ड, संस्थाएं शिक्षा के स्तर को बेहतर बनाने के लिए कार्यरत हैं। शिक्षा में नवाचार और अनुसंधान पर बल दिया जा रहा है, ताकि भारतीय शिक्षा प्रणाली वैश्विक प्रतिस्पर्धा के योग्य बन सके।